जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
कवंर पाल सिंह बड़वा पुत्र श्री भंवरलाल, जाति- बड़वा, निवासी- हिनोनिया, तहसील- सरवाड़, जिला- अजमेर ।
- प्रार्थी/प्रार्थिया
बनाम
सहारा इण्डिया जरिए षाखा प्रबन्धक, षाखा कार्यालय, केकड़ी, जिला-अजमेर ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 18/2014
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री राजेन्द्र सिंह राठौड़, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री विभौर गौड़, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-27.10.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसके ष्वसुर ने अपने जीवनकाल में अप्रार्थी कम्पनी के यहां परिवाद की चरण संख्या 1 में वर्णित अनुसार खाता खुलवाया और उक्त खाते के अन्तर्गत उनके ष्वसुर की रिस्क कवर थी । दिनांक 30.11.2009 को उनके पिता का देहान्त हो जाने के बाद उसने अप्रार्थी कम्पनी के समक्ष समस्त औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए क्लेम पेष किया । अप्रार्थी कम्पनी द्वारा क्लेम का भुगतान नहीं किए जाने पर क्रमष दिनंाक 17.4.2012 व 25.4.2013 को क्रमषः अप्रार्थी कम्पनी व सहायक निदेषक, उपभोक्ता मामले विभाग, नई दिल्ली को षिकायत करते हुए क्लेम दिलवाए जाने की प्रार्थना की । इसी मध्य दिनांक 27.7.2012 के पत्र द्वारा अप्रार्थी कम्पनी ने उसे सूचित किया है कि मामले में विवाचक नियुक्त कर दिया गया है और ष्षीघ्र ही क्लेम पेष किए जाने पर अवार्ड पारित कर दिया जाएगा । तदोपरान्त उसने विवाचक से सम्पर्क कर उनके द्वारा चाहे गए दस्तावेजात भी प्रस्तुत कर दिए। किन्तु क्लेम राषि का भुगतान नहीं कर अप्रार्थी कम्पनी ने सेवादोष किया है । प्रार्थी/प्रार्थिया ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी कम्पनी ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्ति में विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों का हवाला देते हुए प्रष्नगत परिवाद लोन से संबंधित होने, लोन प्रदान करने का अधिकार व्यावसायिक संस्थानों के पास सुरक्षित होने , लोन निर्धारित ष्षर्तो के अधीन दिए जाने और उन ष्षर्तो को पूरा नहीं किए जाने पर लोन प्रदान नहीें करना सेवा में कमी की श्रेणी में नहीं आना बताते हुए परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना करते हुए मदवार जवाब में कथन किया है कि स्व. श्री कल्याण सिंह निवेषक ने दिनंाक 29.4.2006 को उनकी षाखा केकड़ी में सहारा स्टार प्लस योजना के अन्तर्गत रू. 200/- मासिक जमा कराने हेतु 60 माह के लिए खाता खोला था । जिसमें निवेषक द्वारा दिनंाक 27.11.2009 तक अनियमित रूप से कुल रू. 8,800/-, जमा कराए थे । दिनंाक 30.11.2009 को निवेषक का देहान्त हो जाने के बाद उसके खाते में जमा धनराषि व ब्याज (डेथ मैच्योरिटी) राषि कुल रू. 10,032/- का भुगतान दिनंाक 25.1.2010 को जरिए एडवांस संख्या ठक्च्।11192357 के कर दिया गया जिसे प्रार्थी ने बिना किसी प्रतिवाद के प्राप्त कर लिया है । प्रार्थी द्वारा डेथ मैच्योरिटी राषि प्राप्त करने के उपरान्त उक्त स्कीम की अवधि समाप्त हो जाने के कारण वह उत्तरदाता का उपभोक्ता नहीं रह गया है। उत्तरदाता ने उक्त स्कीम की ष्षर्त संख्या 17 का हवाला देते हुए कथन किया है कि निवेषक की मृत्यु उपरान्त सहायता/ डैथ हैल्प लोन की राषि प्राप्त करने के लिए मनोनीत उत्तराधिकार द्वारा व्यक्तिगत जमानत देने के उपरान्त उक्त राषि मासिक किष्तों में दिए जाने का प्रावधान है और उक्त राषि की रिकवरी भी मनोनीत उत्तराधिकार से 16 वर्ष में की जानी होती है । उत्तर परिवाद की चरण संख्या 40 में षर्त संख्या 17 में अंकित षर्तो की पालना किए जाने के उपरान्त भी डैथ हैल्प राषि दिए जाने का प्रावधान बताते हुए परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब के समर्थन में श्री दिनेष कुमार, षाखा प्रबन्धक का षपथपत्र पेष किया है । ष्
3. प्रार्थी पक्ष का प्रमुख रूप से तर्क रहा है कि प्रार्थी के मनोनीत होने के कारण उसके द्वारा अप्रार्थी की सहारा स्टार प्लस में खुलवाए गए खाते के बाद मृतक का दिनंाक 30.11.2009 को हुए निधन के बाद इसकी सूचना अप्रार्थी कम्पनी को दिए जाने व उक्त स्कीम के तहत क्लेम प्रस्तुत कर वांछित औपचारिकताएं पूरी करते हुए क्लेम हेतु लगातार सम्पर्क किया गया है । पत्र भेजकर भी क्लेम बाबत् जानकारी मांगी गई है । इस पर दिनांक 27.7.2012 को अप्रार्थी कम्पनी के अधिवक्ता द्वारा भेजे गए पत्र में उन्हांेने अप्रार्थी कम्पनी द्वारा प्रकरण में विवाचक नियुक्त होने व ष्षीघ्र ही क्लेम पेष करने पर अवार्ड पारित किए जाने का उल्लेख करते हुए वचन दिया। किन्तु अब तक भी क्लेम राषि अदा नहीं की गई है । प्रार्थी/प्रार्थिया पक्ष ने विवाचक से सम्पर्क कर उनके द्वारा मांगे गए दस्तावेजात भी उपलब्ध करवा दिए गए थे । इसके बावजूद अब तक क्लेम राषि नहीं दी गई है । उसे हुई मानसिक एवं आर्थिक क्षति होने के कारण परिवाद स्वीकार करते हुए वंाछित क्षतिपूर्ति दिलाई जानी चाहिए
4. अप्रार्थी कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने खण्डन में प्रारम्भिक आपत्ति प्रस्तुत करते हुए परिवाद को काल बाधित होने के कारण निरस्त होने योग्य बताया है । प्रमुख रूप से तर्क प्रस्तुत किया कि मृतक की मृत्यु के पष्चात् उसके खाते में समस्त जमा राषि मय ब्याज के प्रार्थी नामिनी को भुगतान किया जा चुका है । उसके द्वारा अप्रार्थी कम्पनी से पूर्ण सन्तुष्टी के साथ बिना किसी प्रतिवाद के भुगतान प्राप्त किया गया है । अतः परिवाद पोषणनीय नहीं है । हस्तगत प्रकरण डैथ क्लेम का नहीं है बल्कि मृत्यु उपरान्त सहायता राषि दिए जाने के संबंध में है । पाॅलिसी में इस आषय की षर्तो का उल्लेख किया गया है एवं इन ष्षर्तो को पढकर, सुन व समझ कर खाताधारक ने अपनी स्वीकृति स्वरूप हस्ताक्षर किए थे । अपने तर्को के समर्थन में उन्होने उक्त पाॅलिसी की ष्षर्तो की ओर मंच का ध्यान आकर्षित करते हुए यह भी तर्क प्रस्तुत किया कि मृत्यु के समय पाॅलिसी होल्डर ष्षर्तो के अधीन आयु सीमा में नहीं था । अतः इस आधार पर वह किसी प्रकार का कोई क्लेम अथवा अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । अपने तर्को के समर्थन में उन्होंने परिवाद कालबाधित होना बताते हुए, फुल एण्ड फाईनल भुगतान प्राप्त करने बाबत् तथा पाॅलिसी की षर्तो के संबंध में निम्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त पेष किए हैं:-
1ण् 2012;3द्धब्च्त् 378;छब्द्ध ैनदपस ज्ञनउंत टे ठण्डण् ैंींतं प्दकपं ब्वउउमतबपंस .
ब्वतचवतंजपवद स्जक
2ण् 2012;2द्धब्च्त् 210 ;छब्द्ध च्ंूंद ।ीनरं टे भ्ंतंलंदं न्तइंद क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल ंदक ।दतण्
3ण् 2012;3द्धब्च्त् 273 ;छब्द्ध ैउज श्रलवजप ैींतंउं टे भ्ंतंलंदं न्तइंद क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल ए ज्ीतवनही पजे म्ेजंजम व्ििपबमत ए त्मूंतप ए भ्ंतलंदं ंदक ।दतण्
4ण् 2011;4द्धब्च्त् 107 ;छब्द्ध डंीमदकतं ैपदही ज्ीतचनही ळच्। छपजपद टे भ्ंतंलंदं न्तइंद क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल ए ज्ीतवनही पजे ब्ीपम ि।कउपदपेजतंजवत ंदक ।दतण्
5ण् ।प्त् 2009 ैब् 2210 ैजंजम ठंदा व् िप्दकपं टे डध्े ठण्ैण् ।हतपबनसजनतंस प्दकनेजतपमे
6ण् 2006 ;3द्धब्च्त् 334 ;छब्द्ध ैउज ैनदमजं ैींतंउं ंदक व्ते टे ैीतप च्पंत ब्ींदक ;भ्वदज ब्ंचजण्द्ध
7ण् 2008;4द्धब्च्त् 360 ;छब्द्ध डण्ैण् ैनइतंउंदपंउ टे प्देजपजपजम व िब्वेजे ंदक ॅवतो ।बबवनदजंदजे व् ि प्दकपं
8ण् 2002;3द्धब्च्त् 107 ;ैब्द्ध डध्े ज्ञमतंसं ।हतव डंबीपदमतल ब्वतचवतंजपवद स्जक टे ठपरवल ज्ञनउंत ंदक व्ते ण्
9ण् 2006;1द्धब्च्त् 121 ;ैब्द्ध डतेण् त्नउं च्ंस - क्तण् ।ण्त्ण् स्ंोीउंदंद भ्ंतंलंदं न्तइंद क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल टे ठण् ज्ञण् ैववक
10ण् 2004;3द्धब्च्त् 122 ;छब्द्ध च्नदरंइ न्तइंद क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल ंदक ।दतण्टे ैण् ळनतरपमदकंत ैपदह
फुल एण्ड फाईनल भुगतान प्राप्त करने बाबत्:-
1. 2012;4द्धब्च्त् 601 ;छब्द्ध स्वदहवूंस ैचपदपदपदह डपससक च्अज स्जक ज्ीतवनही क्पतमबजवत ज्मस ब्ींदक ठंदेंस टे छमू प्दकपंप ।ेेनतंदबम ब्व स्जक जीतवनही ब्ीपम ि त्महपवदंस डंदंहमत
2ण् 2011;3द्धब्च्त् 318 ;छब्द्ध त्ंर ज्ञनउंत टे न्दपजपमक प्दकपं प्देनतंदबम ब्व स्जक
3ण् 2002;3द्धब्च्त् 251 ;छब्द्ध ैतप श्रंलंरवजीप - ब्व स्जक टे ज्ीम वतपमदजपंस प्देनतंदबम ब्व स्जक
4ण् 1;2000द्धब्च्श्र 403 ;छब्द्ध न्च् ैजंजम ब्वउउपेेपवद ण् ज्ञंउंसमेी ज्मूंतप टे डंदंहमत ए ज्ीम छमू प्दकपं प्देनतंदबम ब्वउचंदल
पाॅलिसी की षर्तो के संबंध में:-
1ण् 1997;2द्धब्च्श्र 269 व्ततपेें ैजंजम ब्वउउपेेपवद डंीमेी प्दकनेेजपतमे टे ठण्ड ए ैजंजम ठंदा व् ि प्दकपं - 4 व्ते
2ण् 1992 ब्च्श्र 553 ;छब्द्ध त्ंकउंसंलं ।नजव ब्वउचंदल टे ।ण्च्ण् ैजंजम थ्पदंदबपंस ब्वतचवतंजपवद
3ण् 1994;1द्धब्च्श्र 101;छब्द्ध स्ंगउप थ्ंइतपबंजवते - व्ते टे न्दपवद ठंदा व् िप्दकपं - व्तेण्
4ण् 1993;3द्धब्च्श्र 379;छब्द्धडध्े छंजतंद ठवतमूमसस ैमतअपबमे टे ज्ीम ।ेेजजण् ळमदमतंस डंदंहमतए प्दकपंद ठंदा - व्तेण्
5ण् 1993;2द्धब्च्श्र 147 श्रंहंददंजी डमीमत टे ज्ीम ठण्डण् ैजंजम ठंदा व िप्दकपं - व्तेण्
6ण् 2002;3द्धब्च्त् 5;छब्द्ध डध्े ैतमम ज्ञंदंां क्नतहं भ्ंजबीमतपमे च्अजण्स्जक टे ैजंजम ठंदा व् ि प्दकपं
7ण् 2008;1द्धब्च्त्126;छब्द्ध च्ंदरंइ छंजपवदंस ठंदा ंदक ।दत टे ।उपतज स्ंस ठींजपं
5. हमने परस्पर तर्क सुने हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित न्यायिक दृष्टान्तों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
6. जहां तक परिसीमा काल के संबंध में प्रस्तुत नजीरों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का प्रष्न है इन सभी नजीरों में वादकरण उत्पन्न होने की तिथि से दो वर्ष के अन्दर प्रस्तुत परिवाद का पोषणीय माना गया था व इस अवधि के बाद प्रस्तुत ऐसे परिवादों को अवधि बाधित माना गया था । हस्तगत मामलें में प्रष्नगत पाॅलिसीधारक की मृत्यु दिनांक 30.10.2009 को होना अभिकथित है । प्रार्थी द्वारा हस्तगत परिवाद दिनंाक 17.1.2014 को अर्थात उक्त मृत्यु के लगभग सवा चार वर्ष बाद प्रस्तुत किया है । प्रार्थी ने बीमाधारक की मृत्यु के बाद अप्रार्थी कम्पनी से लगातार सम्पर्क करना बताया है व अन्त में अप्रार्थी कम्पनी के अधिवक्ता श्री जयप्रकाष षर्मा द्वारा इस बाबत् दिनांक 27.7.2012 को पत्र द्वारा सूचित किए जाने को परिवाद को समयावधि में होने बाबत् प्रतिवाद लिया है । दिनांक 27.7.2012 के इस पत्र में अप्रार्थी के प्रतिनिधि अधिवक्ता ने प्रार्थी पक्ष को उक्त पाॅलिसी के संदर्भ में विवाचक नियुक्त किए जाने बाबत् सूचित किया गया है । अतः इस पत्र की तिथि दिनंाक 27.7.2012 से 2 वर्ष की अवधि भीतर दायर किए गए परिवाद को मंच की राय में समयावधि में दायर किया जाना माना कर इस बाबत् अप्रार्थी कम्पनी की ओर से उठाई गई इस आपत्ति को अस्वीकृत कर खारिज किया जाता है । जो विनिष्चय समयावधि बाबत् प्रस्तुत हुए है, में इस प्रकार के तथ्य का अभाव था । अतः यह तथ्यों की भिन्नता होने के कारण उनके लिए सहायक नहीं है ।
7. स्वीकृत रूप से प्रार्थी पक्ष के मृतक खाताधारक ने अप्रार्थी कम्पनी की सहारा स्कीम में खाता खुलवाया है तथा प्रतिमाह निष्चित राषि जमा कराई है जैसा कि उपलब्ध अभिवचन व अभिलेख से प्रकट होता है । हम अप्रार्थी कम्पनी के इन तर्को से सहमत है कि प्रार्थी प़क्ष की ओर से प्रस्तुत यह परिवाद किसी पाॅलिसी का डैथ क्लेम नहीं है अपितु ऐसे खाताधारक की मृत्यु उपरान्त सहायता की रकम दिए जाने बाबत् प्लान है, जैसा कि उक्त प्लान हेतु भरे गए फार्म के बाद मृत्यु उसमें उल्लेखित षर्तो से प्रकट होती है ।
8. जहां तक फुल एण्ड फाईनल पेमेन्ट लिए जाने का प्रष्न है, इस प्रतिवाद के संबध में एक ओर प्रार्थी प़क्ष का कोई खण्डनीय कथन अथवा साक्ष्य सामने नहीं आई है , वहीं इसके समर्थन में अप्रार्थी कम्पनी की ओर से प्रार्थी पक्ष के मृतक के उक्त स्कीम के अन्तर्गत खाते की प्रति प्रस्तुत हुई है, को देखने से यह प्रकट होता है कि उक्त खाताधारक ने प्रष्नगत स्कीम में प्रतिमाह निष्चित रूप से अच्छी राषि समय समय पर जमा करवाई व उसकी मृत्यु उपरान्त उसके नामिनी उक्त जमाषुदा राषि मय ब्याज के फुल एण्ड फाईनल पेमेन्ट के तहत प्राप्त कर लिया है, जो की उक्त स्कीम की षर्तो का भाग है । इस प्रकार जहां प्रार्थी पक्ष के नीमिनी होने के नाते उक्त मृतक खातेदार की जमाषुदा राषि का फुुल एण्ड फाईनल पेमेन्ट प्राप्त कर लिया गया है , वहीं अब इस संबंध में वे किसी प्रकार के विवाद को नहीं उठा सकते व अन्य उज्रराज के बिना इन बिन्दुओं के आधार पर अब प्रार्थी पक्ष किसी भी प्रकार क्लेम को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । यदि उसका मामला विवाचक के समक्ष लम्बित है तो वह इस हेतु उक्त विवाचक के समक्ष अपील दायर करने के लिए स्वतन्त्र है ।
9. सार यह हैं कि मंच की राय में उपरोक्त समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी का परिवाद खारिज किए जाने योग्य है एव आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
10. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 27.10.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष