ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन-अध्यक्ष। - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षीगण की ‘’ रजत लाभ योजना ’’ में उसके द्वारा जमा किऐ गऐ 34,245/- रूपये 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित विपक्षीगण से उसे दिलाऐ जाऐ। मानसिक, आर्थिक और सामाजिक क्षति की मद में 3,00,000/- रूपया और परिवाद व्यय की मद में 20,000/- रूपया परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि विपक्षी सं0-3 विपक्षी सं0-1 एवं विपक्षी सं0-2 का एजेन्ट है। विपक्षी सं0-3 के माध्यम से परिवादी ने विपक्षी सं0-1 की ‘’ रजत लाभ योजना ’’ के अन्तर्गत 3 योजनाओं में कुल 34,245/-रूपया जमा कराऐ। इनकी योजना नम्बर क्रमश: 17449202813 धनराशि 10,000/-रू0, योजना सं0-17449202814 धनराशि 10,000/- रू0 तथा योजना सं0- 17449202815 धनराशि 14,245/- रूपया थी। जमा धनराशि प्राप्त करने हेतु परिवादी ने दिनांक 20/3/2013 को विपक्षी सं0-2 के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जिसका विपक्षी सं0-2 ने अभी तक निस्तारण नहीं किया। पूछताछ करने पर परिवादी को बताया गया कि ली गई पालिसियों पर उसने लोन लिया है इस वजह से उसे धनराशि अदा नहीं की जाऐगी बल्कि उसके द्वारा लिऐ गऐ लोन की धनराशि की वसूली की जाऐगी। परिवादी के यह कहने पर कि उसने कोई लोन नहीं लिया और यदि उसे कोई लोन दिया गया है तो लोन देने का चैक नम्बर और बैंक का नाम इत्यादि उसे बताया जाये इस पर विपक्षी ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादी ने यह आरोप लगाया कि विपक्षीगण आपस में हमसाज हैं और बेईनामी से उसकी धनराशि हड़प लेना चाहते हैं। जानबूझकर वे परिवादी को पालिसियों का रूपया अदा नहीं कर रहे हैं और ऐसा न करके विपक्षीगण ने सेवा देने में कमी की है। परिवादी के अनुसार उसने विपक्षीगण को अपने अधिवक्ता के माध्यम से कानूनी नोटिस भी दिनांक 18/4/2013 को भिजवाया, किन्तु उसका भी विपक्षीगण ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादी ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवादी के समर्थन में परिवादी ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-3/6 लगायत 3/8 प्रस्तुत किया। सूची कागज सं0-3/9 के माध्यम से परिवादी ने परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित योजनाओं में धनराशि जमा किऐ जाने सम्बन्धी विपक्षी सं0-1 द्वारा जारी पासबुक, दिनांक 20/3/2013 को रूपया वापिस दिऐ जाने हेतु विपक्षी सं0-2 को दिऐ गऐ प्रार्थना पत्र तथा विपक्षीगण को अपने अधिवक्ता के माध्यम से भिजवाऐ गऐ कानूनी नोटिस दिनांकित 18/4/2013 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है।
- विपक्षीगण की ओर से उनके अधिकृत प्रतिनधि श्री आर0एस0 वर्मा के शपथ पत्र कागज सं0-8/1 लगायत 8/2 से समर्थित प्रतिवाद पत्र कागज सं0-9/1 लगायत 9/9 दाखिल हुआ। प्रतिवाद पत्र में विपक्षी सं0-1 की ‘’ रजत लाभ योजना ‘’ के अन्तर्गत परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित 34,245/- रूपये की धनराशि परिवादी द्वारा जमा किया जाना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु साथ ही यह भी कहा गया है कि इन तीनों योजनाओ में जमा की गई धनराशियों के सापेक्ष क्रमश-7500/- रूपया -7500/- रूपया और 10,600/-रूपया इस प्रकार कुल 25,600/- रूपया का ऋण दिनांक 15/5/2004 को परिवादी द्वारा लिया गया था किन्तु परिवादी इन ऋण को लेने और ऋण की धनराशि प्राप्त करने से इन्कार कर रहा है। इस मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला फोरम को नहीं है। परिवादी के अनुसार उसने कोई ऋण नहीं लिया और ऋण सम्बन्धी प्रपत्र विपक्षीगण ने फर्जी तैयार किऐ हैं अत: इस विवाद के निस्तारण हेतु दोनों पक्षों की ओर से वृहद साक्ष्य की आवश्यकता होगी जिसको ग्रहण करने और उसका विश्लेषण कर विवाद के विनिश्चय का फोरम को क्षेत्राधिकार नहीं है। विपक्षीगण ने यह कहते हुऐ कि उन्होंने परिवादी को सेवा देने में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की और परिवादी को कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ, परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- प्रतिवाद पत्र के साथ विपक्षीगण ने परिवादी द्वारा ऋण लेने हेतु किऐ गऐ अभिकथित आवेदन तथा ऋण प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत किऐ गऐ प्रार्थना पत्रों की फोटो प्रतियों को बतौर संलग्नक दाखिल किया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-9/5 लगायत 9/18 हैं।
- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-13/1 लगायत 13/4 दाखिल किया।
- विपक्षीगण की ओर से उनके अधिकृत प्रतिनिधि श्री आर0एस0 वर्मा का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-15/1 दाखिल हुआ।
- परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की। विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्को को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- पक्षकारों के मध्यम इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि दिनांक 20/9/2003 को परिवादी ने विपक्षी सं0-1 की ‘’ रजत लाभ योजना ‘’ में क्रमश: 10,000/-, 10,000/- और 14245/- रूपये इस प्रकार कुल 34245/- रूपये की धनराशि 3 अलग-अलग योजना में जमा की थी। इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि परिवादी द्वारा प्रार्थना पत्र दिऐ जाने के बावजूद विपक्षीगण ने उक्त धनराशि परिवादी को वापिस नहीं की है
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि उसके द्वारा जमा की गई धनराशि विपक्षीगण ने वापिस न कर सेवा में कमी की है। विपक्षीगण से उसे परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाऐं। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित जमा धनराशियों के सापेक्ष परिवादी ने क्रमश: 7500/-, 7500/- और 10,600/- रूपये के 3 पृथक-पृथक ऋण विपक्षीगण से लिऐ थे जिसकी उसने अदायगी नहीं की है ऐसी दशा में विपक्षीगण परिवादी द्वारा लिऐ गऐ ऋण की धनराशि परिवादी से वसूल करने एवं उसे परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि के सापेक्ष एडजेस्ट करने के अधिकारी हैं। प्रत्युत्तर में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने जमा राशि के सापेक्ष विपक्षीगण से किसी प्रकार का ऋण लेना अथवा ऋण हेतु आवेदन करने से इनकार किया और कहा कि विपक्षीगण की ओर से अभिकथित ऋण सम्बन्धी जो प्रपत्र अपने प्रतिवाद वाद के साथ किऐ गऐ हैं वे उन्होंने फर्जी तैयार किऐ हैं।
- अब देखना यह है कि क्या परिवादी ने जमा की गई धनराशि के सापेक्ष विपक्षीगण से कुल 25,600/- रूपये के 3 ऋण जैसा कि प्रतिवाद पत्र में उल्लिखित हैं, लिऐ थे अथवा नहीं ?
- परिवादी ने जो धनराशि विपक्षी की ‘’ रजत लाभ योजना’’ में जमा की थी उसकी पासबुकों की फोटो प्रति पत्रावली के कागज सं0-3/10, 3/11 एवं 3/12 हैं। यह पासबुकें विपक्षी सं0-1 की ओर से जारी की गई हैं। इन पासबुकों में परिवादी को ऋण दिऐ जाने की कोई डेविट एन्ट्री नहीं है। परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित क्रमश: 10000/-, 10000/- और 14245/- रूपया जमा करने हेतु परिवादी द्वारा दिऐ गऐ आवेदन की फोटो प्रतियां क्रमश: पत्रावली के कागज सं0-9/5, 9/8 एवं 9/11 हैं। इन जमा राशियों के सापेक्ष परिवादी द्वारा कथित रूप से विपक्षी सं0-1 को ऋण लेने सम्बन्धी आवेदन की फोटो प्रतियां पत्रावली के कागज सं0-9/16 व 9/18 हैं। धनराशि जमा करने हेतु परिवादी द्वारा दिऐ गऐ आवेदन पत्रों एवं कथित रूप से ऋण लेने सम्बन्धी आवेदन पत्रों की यह फोटो प्रतियां प्रतिवाद पत्र के साथ विपक्षीगण ने दाखिल की हैं। धनराशि जमा करने हेतु दिऐ गऐ आवेदन पत्रों और ऋण लेने हेतु परिवादी द्वारा दिया जाना बताऐ जा रहे प्रार्थना पत्रों पर परिवादी के जो हस्ताक्षर बने हैं वे एक-दूसरे से एकदम भिन्न हैं। धनराशि जमा करने हेतु दिऐ गऐ आवेदनों में परिवादी के हस्ताक्षर और कथित रूप से ऋण लेने हेतु दिऐ गऐ आवेदन में परिवादी के हस्ताक्षरों में इतनी अधिक भिन्नता है कि उनमें देखने मात्र से ही अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसी परिस्थति में परिवादी द्वारा ऋण हेतु आवेदन किया जाना प्रमाणित नहीं है। इसके अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी ने परिवाद के पैरा स0-1 में उल्लिखित धनराशि जमा करने हेतु प्रार्थना पत्र दिनांक 20/9/2003 को दिऐ थे। उसी तारीख में परिवादी की ओर से ऋण लेने हेतु प्रार्थना पत्र दिया जाना दर्शाया गया है ऐसी दशा में विपक्षीगण का अपने साक्ष्य शपथ पत्र में यह कहना कि धनराशि जमा करने के बाद परिवादी को रूपयों की आवश्यकता पड़ी तो उसने ऋण लेने हेतु आवेदन किया था, नि:तान्त आधारहीन और हास्यास्पद दिखाई देता है क्योंकि परिवादी को यदि रूपयों की आवश्यकता थी तो वह परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित रूपये विपक्षीगण की ‘’ रजत लाभ योजना ‘’ में जमा ही क्यों करता। विपक्षीगण की ओर से दाखिल कागज सं0-9/14 व 9/15 परिवादी द्वारा लिया जाना बताऐ जा रहे ऋण की रसीदों की नकलें हैं। विपक्षीगण के साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-15/1 के पैरा सं0-7 में इन रसीदों पर परिवादी के हस्ताक्षर होना बताया गया है, किन्तु परिवादी के इन रसीदों पर हस्ताक्षर नहीं है।
- परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशियों की पासबुकों में कथित ऋण परिवादी को दिऐ जाने की केाई डेविट एन्ट्री न होना, धनराशि जमा करने हेतु दिऐ गऐ आवेदन पत्रों और कथित रूप से ऋण लेने हेतु दिऐ गऐ प्रार्थना पत्रों में परिवादी के हस्ताक्षरों में मौलिक भिन्नता होना तथा परिवादी द्वारा कथित रूप से ऋण प्राप्त करने सम्बन्धी रसीदों पर परिवादी के हस्ताक्षर न होना यह दर्शाता है कि कदाचित परिवादी ने जमा धनराशि के सापेक्ष विपक्षीगण से कोई ऋण लिया ही नहीं था और ऋण लिऐ जाने सम्बन्धी प्रपत्रों को विपक्षीगण ने फर्जी तैयार किया है।
- विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-5 में उल्लिखित रूलिंग्स का अबलम्व लेते हुऐ यह तर्क दिया कि पक्षकारों के मध्य विवाद चॅूंकित कथित धोखाधड़ी विषयक है अत: फोरम को इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिवाद किया।
- हमने इन निर्णयज विधियों का अवलोकन किया। यह निर्णयज विधियां वर्तमान मामलें में विपक्षीगण के लिए सहायक नहीं हैं क्योंकि पत्रावली पर जो साक्ष्य सामग्री एवं प्रपत्र उपलब्ध हैं उनके तथ्यात्मक विशलेषण से हम सुरक्षित रूप से यह निष्कर्षित कर पाने में सफल रहें है कि परिवादी ने न तो ऋण हेतु विपक्षीगण के समक्ष आवेदन किया और न ही विपक्षीगण से किसी प्रकार का कोई ऋण लिया तथा ऋण सम्बन्धी प्रपत्र विपक्षीगण ने अपने बचाव में फर्जी तैयार किऐ हैं।
- विपक्षीगण की ओर से जिन निर्णयज विधियों का अबलम्व लिया गया है वे उस दशा में आकर्षित होती जबकि कथित धोखाधड़ी का विषय इतना गूढ़ एवं गम्भीर होता कि उसके विनिश्चय हेतु हमें दोनों पक्षों से वृहद साक्ष्य की अपेक्षा होती। इस मामले में पक्षकारों ने जो साक्ष्य सामग्री पत्रावली पर उपलब्ध कराई है उसी के आधार पर हम कथित धोखाधड़ी के विवाद का विनश्चय करने में सफल रहे हैं।
- हमारे मत में प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथित कर देने मात्र से कि मामले में धोखाधड़ी का बिन्दु अन्तर्निहित है, फोरम के सुनवाई के क्षेत्राधिकार को वर्जित नहीं किया जा सकता। हमारा निष्कर्ष है कि जिला फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित जमा धनराशि के सापेक्ष परिवादी ने विपक्षीगण के समक्ष न तो ऋण हेतु आवेदन किया और न ही कोई ऋण प्राप्त किया। परिवादी को उसकी जमा धनराशि 34245/- रूपया परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित विपक्षी सं0-1 व 2 से वापिस दिलाई जानी चाहिए। उक्त के अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की मद में परिवादी को 2000/- (दो हजार रूपया) और परिवाद व्यय की मद में 2500/- (दो हजार पॉंच सौ रूपया) अतिरिक्त इन विपक्षीगण से दिलाया जाना भी हम न्यायोचित समझते हैं। तदानुसार परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 34,245/- (चौतीस हजार दो सौ पैतालिस) रूपये की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में, विपक्षी सं0-1 व 2 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। इसके अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की मद में 2000/- (दो हजार रूापया) और परिवाद व्यय की मद में 2500/- दो हजार पाँच सौ रूपया) परिवादी विपक्षी सं0-1 व 2 से प्राप्त करने का भी अधिकारी होगा। समस्त धनराशि की अदायगी इस आदेश की तिथि से दो माह के भीतर की जाये। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
22.03.2016 22.03.2016 22.03.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 22.03.2015 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
22.03.2016 22.03.2016 22.03.2016 | |