Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 122/2011 Amit Singh aged about 27 years, Son of Sri Jitendra Pratap Singh, resident of Meera Bhawan, Stadium Road, Senani Nagar, karanpur, District Pratapgarh, U.P. - Complainant
Versus - Sahara Hospital, Viraj Khand, Gomti Nagar, Lucknow, through its proprietor/Administrator and their Staff.
- Dr. Shekhar Tandon Senior Surgeon, (Cardiac) Sahara Hospital Viraj Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
- Dr. Devendra Singh Surgeon, (Cardiac) Sahara Hospital Viraj Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
- National Insurance Company Limited Jeevan Bhawan, 43 Hazratganj, Lucknow.
- New India Assurance Co. Ltd 3rd Floor, Arif Chamber-I Kapoorthala, Aliganj, Lucknow. 226020
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री अरूण टण्डन विपक्षी सं0 1 त 3 के विद्वान अधिवक्ता:-श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव विपक्षी सं0 5 के विद्धान अधिवक्ता:- श्री दिनेश कुमार दिनांक:-28.11.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 28,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति के लिए प्रस्तुत किया गया है।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि मार्च 2010 में परिवादी की पत्नी श्रीमती नमिता सिंह को सांस लेने की समस्या उत्पन्न हुई, उसी समय प्रतापगढ़ स्थित रूमा हॉस्पिटल में दिनांक 29.03.2010 को दिखाने गया और उनकी सलाह पर सरस्वती अस्पताल में डॉक्टर डी0के0 अग्रवाल कार्डियोलॉजिस्ट को दिनांक 12.04.2010 को दिखाया गया। उनके द्वारा कुछ परीक्षण किये गये और यह निष्कर्ष निकाला गया कि परिवादी की पत्नी Rheumatic Heart Disease से ग्रसित है, जो सामान्यत: निविदा योग्य है। डॉक्टर द्वारा सर्जरी की सलाह दी गयी, इस मध्य कुछ दवायें खाने के लिए दी गयी। परिवादी ने सहारा हॉस्पिटल जो स्वयं को उचित दर्जे का अस्पताल बताते हैं, में इलाज कराने का निर्णय लिया, जहां पर डॉक्टर देवेन्द्र सिंह विपक्षी सं0 3 द्वारा दिनांक 17.04.2010 से इलाज प्रारंभ किया गया, उनके द्वारा भी सर्जरी की सलाह दी गयी। डॉक्टर देवेन्द्र सिंह द्वारा जो दवायें लिखी गयी, वह श्रीमती नमिता सिंह को दी गयी तथा दिनांक 19.04.2010 को अस्पताल में भर्ती किया गया, दिनांक 17.04.2011 को डॉक्टर द्वारा जो नुस्खा लिखा गया, उसमें जांच तथा मरीज की दशा तथा उनकी जांच के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है, परंतु मौखिक रूप से बताया गया कि एक सामान्य सर्जरी की जायेगी, कुल खर्च 75,000/-रू0 बताया गया। डॉक्टर शेखर टण्डन विपक्षी सं0 1 द्वारा भी यही कथन किया गया। परिवादी ने सर्जरी के लिए अपनी सहमति प्रदान की थी, अंकन 35,000/-रू0 अग्रिम जमा किये। परिवादी की पत्नी श्रीमती नमिता सिंह को दिनांक 20.04.2010 को सुबह 9 बजे ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया, जहां पर 10:45 एएम पर ऑपरेशन शुरू हुआ, जो 12.05 पर खत्म हुआ। डॉक्टर देवेन्द्र सिंह द्वारा बताया गया कि इलाज के दौरान कुछ जटिलता उत्पन्न हुई हैं, पंरतु इसे दुरूस्त कर लिया जायेगा। परिवादी को दिनांक 20.04.2010 को पत्नी से नहीं मिलने दिया तथा दिनांक 21.04.2010 को मिलने दिया। परिवादी ने देखा कि श्रीमती नमिता सिंह का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। इसके पश्चात दिनांक 21.04.2010 की रात्रि में 1 बजे परिवादी तथा उनके पिता को बुलवाया और बताया कि मरीज की हालत बहुत गंभीर है और दूसरी सर्जरी के लिए कहा गया, जिसके द्वारा वाल्व प्रतिस्थापित किया जायेगा। इसके लिए अंकन 2,00,000/-रू0 की व्यवस्था करने के लिए भी कहा गया, जबकि परिवादी द्वारा पूछा गया कि केवल 1 सर्जरी से भी 2 दिन के अंदर ठीक होने के लिए कहा गया था। अत्यधिक कुण्ठा में धन का प्रबंध का प्रयास किया गया। दिनांक 21.04.2010 को सुबह 3 बजे परिवादी की पत्नी को MICU में ले जाया गया। परिवादी को खून का प्रबंध करने के लिए कहा गया। परिवादी के कुछ रिश्तेदारों ने रक्तदान किया। सुबह 10:30 बजे बताया गया कि ऑपरेशन कर दिया गया है। अपनी पत्नी को देख सकते हैं, परंतु जब परिवादी ने अपनी पत्नी को देखा तो शरीर में कोई हलचल नहीं थी तथा आंखे नहीं खोल पा रही थी। मरीज की दशा बताने के बजाए डॉक्टर 2,00,000/-रू0 बिल अदा करने की मांग करते रहे, जबकि परिवादी यह समझता तथा पत्नी 2-3 दिन तक भर्ती रही, इस बीच वह रूपये की व्यवस्था कर लेगा, परंतु डॉक्टर और स्टाफ इंतजार करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। अंतत: दिनांक 22.04.2010 को सुबह 9 बजे ऐसा प्रतीत हुआ कि परिवादी की पत्नी की मृत्यु हो गयी है, परंतु विपक्षीगण द्वारा उन्हें वेन्टीलेटर पर रखा गया क्योंकि वह धन की मांग कर रहे थे, इसके बाद दिनांक 23.04.2010 को धन अदा करने पर परिवादी की पत्नी का मृत शरीर सुपुर्द किया गया, इस प्रकार अत्यधिक एवं अमानवीय कृत्य किया गया, जो मेडिकल प्रोफेशन के मूल्यों के विपरीत है। विपक्षीगण ने अत्यधिक अनुरोध के बाद इलाज से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराये, जो एनेक्जर सं0 3 है। दिनांक 08.05.2010 को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी, परंतु पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। एफ0आई0आर0 की प्रति एनेक्जर सं0 4 है, इस प्रकार विपक्षी सं0 2 द्वारा की गयी असावधानी स्पष्ट रूप से साबित है, दूसरा ऑपरेशन करने से पहले कोई चर्चा नहीं की गयी और विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादी की मृत्यु कारित हुई है। तदनुसार क्षतिपूर्ति के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- परिवाद के समर्थन में शपथ पत्र तथा उपरोक्त वर्णित दस्तावेज प्रस्तुत किये गये।
- विपक्षीगण की ओर से संयुक्त लिखित कथन प्रस्तुत किया गया तथा परिवादी की पत्नी का इलाज करना स्वीकार किया गया। परिवादी की पत्नी Rheunatic Heart Disease, Severe Mitral Stenosis, Pulmonary altery Hypertention, aterial Fibrillation से ग्रसित थी। मरीज का Mitral Valve area 0.59 सेमी स्क्वायर (पीएचटी) तथा 0.72 सेमी स्कावयर (2d echo Cardiography) तथा उन्हें Mitral Valve balloon Dilation की शरण डॉक्टर डी0के0 अग्रवाल सरस्वती हार्ट केयर इलाहाबाद द्वारा दी गयी थी। इलाज से पूर्व सभी प्रकार के लाभ तथा परिणामों के बारे में बता दिया गया था। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के पश्चात ही परिवादी तथा उनकी पत्नी सीएमवी (Closed Mitral Valvotomy) के लिए तैयार हुए थे। परिवादी ने सही पत्र पर अपने हस्ताक्षर किये थे। दिनांक 20.04.2010 को सीएमवी सम्पादित की गयी, जो सहज एंव सामान्य थी। मरीज को एमआईसीयू में अंतरित किया गया। दिनांक 20.04.2010 को 12:20 को ट्यूब हटाया गया, उस समय बी0पी0 130/80 था तथा पल्स 100 प्रति मीटर थी। सांस की गति 30/मिनट थी तथा यूनिट की निकासी 125 एमएल प्रति घण्टा थी। केवल मरीज के सहायक को ही अंदर जाने की अनुमति थी क्योंकि मरीज एमआईसीयू में भर्ती थी, जो इन्फेक्शन फ्री जोन है।
- लिखित कथन में आगे उल्लेख किया गया है कि सीएमवी करने के पश्चात मरीज एमआर (Mitral Regurgitation) से ग्रसित हो गयी तथा ह्रदय गति धीमी हो गयी तथा आईसीडी ट्यूब से मामूली ब्लड रिसाव हुआ, इसलिए Mitral वाल्व के प्रतिस्थापन की आवश्यकता हुई, जिसकी सूचना मरीज के सहायक को दी गयी तथा लिखित सहमति प्राप्त की गयी तथा समस्त कार्यवाही नियमित रूप से तथा मेडिकल सिद्धांतों के अनुसार सम्पादित की गयी। मरीज के सहायक के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया गया। इस संबंध में लगाये गये सभी आरोप असत्य हैं। इलाज के दौरान सेवा में कोई कमी नहीं की गयी, इसलिए विपक्षीगण किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है।
- लिखित कथन के समर्थन में शपथ पत्र तथा नुस्खा पर्ची संलग्न की गयी है, बी0एच0टी0 के अभिलेख प्रस्तुत किये गये हैं।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ताओं की बहस सुनने से पूर्व इस पीठ द्वारा दिनांक 12.01.2024 को निम्नलिखित आदेश पारित किया था:-
''निर्णय लिखाते समय यह पाया गया कि प्रस्तुत केस के निस्तारण के लिए इलाज के दौरान लापरवाही बरती गयी या नहीं। इस बिन्दु पर विशेषज्ञ रिपोर्ट प्राप्त करना आवश्यक है। अत: निदेशक एस0जी0पी0जी0आई0 को एक पत्र कार्यालय द्वारा लिखा जाए कि वे एक पैनल का गठन कर इस बिन्दु पर रिपोर्ट प्रेषित करें कि क्या इलाज के दौरान डॉक्टर द्वारा लापरवाही बरती गयी है या नहीं? परिवादी द्वारा आयोग के कार्यालय में इलाज से संबंधित दस्तावेज अगले 15 दिन के अंदर उपलब्ध कराये जायें। तदनुसार कार्यालय को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले सभी दस्तावेजों को प्रति संलग्न करते हुए उक्त अपेक्षित नोटिस अविलम्ब प्रेषित किया जाए। अत: पत्रावली रिपोर्ट सहित पुन: बहस हेतु दिनांक 26.03.2024 को सूचीबद्ध हो। तदनुसार कार्यालय के माध्यम से उभय पक्ष को सूचना निर्गत की जाये।'' - दिनांक 12.01.2024 के आदेश का कोई अनुपालन परिवादी की ओर से नहीं किया गया। वांछित दस्तावेज कार्यालय को उपलब्ध नहीं कराये गये, इसलिए विशेषज्ञ रिपोर्ट प्राप्त नहीं की जा सकी। तदनुसार दिनांक 10.10.2024 को परिवादी के अधिवक्ता द्वारा केवल यह कथन किया गया है कि लिखित कथन बाद में प्रस्तुत हुआ है, जिसके विरूद्ध साक्ष्य प्रस्तुत करनी है, विशेषज्ञ रिपोर्ट प्राप्त करने के संबंध में कोई कथन नहीं किया गया, यह अनुरोध इस आधार पर नकारा गया कि लिखित कथन के समर्थन में साक्ष्य विपक्षी को प्रस्तुत करनी होती है न कि परिवादी को। परिवादी द्वारा अपने साक्ष्य प्रस्तुत की जा चुकी है, इसलिए लिखित कथन के विरूद्ध साक्ष्य प्रस्तुत करने का मौखिक अनुरोध निरर्थक माना गया, चूंकि कोई विशेषज्ञ रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गयी। अत: पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर ही इस परिवाद का निस्तारण किया जा रहा है।
- इलाज के दौरान लापरवाही के तथ्य को निम्न 2 प्रकार से साबित किया जा सकता है:-
- जब डॉक्टर के स्तर से कारित लापरवाही का घटनाक्रम स्वयं प्रमाणित हो। (Res Ipsa loquitur) प्रस्तुत केस में यह स्थिति मौजूद नहीं है क्योंकि विपक्षी सं0 1 में कार्यरत दोनों डॉक्टर कुशल एवं योग्य डॉक्टर हैं, उनकी शैक्षिक योग्यता तथा इलाज करने की क्षमता पर कोई संदेह व्यक्त नहीं किया गया है। परिवाद पत्र में भी दुर्व्यवहार के अलावा लापरवाही के किसी तथ्य का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। सम्पूर्ण उल्लेख धनराशि की मांग का प्रबंध करने के लिए है तथा धन प्राप्त किये बिना मृत शरीर को वापस न लौटाने के संबंध में है। यथार्थ में इलाज के दौरान बरती गयी लापरवाही का कोई उल्लेख ही परिवाद पत्र में स्थान प्राप्त नहीं है, साबित होना तो प्रश्न ही नहीं उठता।
- डॉक्टर के स्तर से कारित लापरवाही को विशेषज्ञ साक्ष्य प्रस्तुत करके साबित किया जा सकता है। प्रस्तुत केस में परिवादी ने अपने स्तर से विशेषज्ञ रिपोर्ट प्रस्तुत करने का कोई प्रयास नही किया, जब निर्णय लिखाते समय पीठ द्वारा यह महसूस किया गया कि विशेषज्ञ रिपोर्ट का मंगाया जाना इस परिवाद के निस्तारण के लिए उचित होगा तब भी परिवादी द्वारा कोई पैरवी नहीं की गयी। अंतत: विशेषज्ञ रिपोर्ट के अभाव में ही परिवाद का निस्तारण बाध्यतावश किया जा रहा है। अत: इस स्थिति में स्पष्ट है कि इस आशय की कोई विशेषज्ञ रिपोर्ट पत्रावली पर मौजूद नहीं है कि इलाज के दौरान डॉक्टर के स्तर से कोई लापरवाही कारित की गयी है।
- स्वयं परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में उल्लेख किया है कि मार्च 2010 में परिवादी की पत्नी श्रीमती नमिता सिंह को सर्वप्रथम प्रतापगढ़ रूमा अस्पताल में दिनांक 29.03.2010 को दिखाया गया, इसके बाद सरस्वती हॉस्पिटल में डॉक्टर डी0के0 अग्रवाल कार्डियोलॉजिस्ट को दिखाया गया, परंतु वहां पर अंतिम रूप से इलाज नहीं कराया गया। अत: परिवादी को ज्ञात था कि मरीज की बीमारी गंभीर है, इसलिए विपक्षी सं0 1 में मरीज को भर्ती कराया गया और वहां के डॉक्टर के द्वारा सर्वप्रथम दिनांक 20.04.2010 को सीएमवी ( Closed Mitral Valvotomy) सम्पादित की गयी। यह कार्यवाही मरीज के तामीरदार परिवादी की सहमति से की गयी। यह सहमति पत्र पत्रावली पर मौजूद है। सीएमवी दिनांक 20.04.2010 को अभिलेख के अनुसार की गयी और मरीज को सघन देखभाल के लिए एमआईसीयू में शिफ्ट किया गया, जहां पर मरीज को एमआर Mitral Regurgitation की सिद्धांता उत्पन्न हुई और मरीज के सासों की गति धीमी हो गयी। आईसीडी ट्यूब से मामूली खून का रिसाव हुआ, इस स्थिति में Mitral Valve का प्रतिस्थापन करना उचित पाया गया और तदनुसार यह कार्यवाही अमल मे लायी गयी। इस प्रकार मेडिकल प्रोटोकॉल के विपरीत डॉक्टर द्वारा इलाज करने के संबंध में सम्पूर्ण परिवाद पत्र में कोई कथन नहीं किया है, इसलिए जब कोई कथन ही लापरवाही के संबंध में नहीं है तब लापरवाही का तथ्य स्थापित होने का प्रश्न ही नहीं उठता। नजीर INS. MALHOTRA (Ms) Vs. Dr. A. KRIPLANI AND OTHERS में व्यवस्था दी गयी है कि डॉक्टर के स्तर से लापरवाही के तथ्य को प्रारंभिक रूप से साबित करने का दायित्व परिवादी पर है, जब प्रारंभिक रूप से लापरवाही का तथ्य स्थापित कर दिया जाता है तब लापरवाही को स्पष्ट करने का दायित्व डॉक्टर पर आता है। प्रस्तुत केस में सम्पूर्ण परिवाद पत्र के अवलोकन के पश्चात स्पष्ट होता है कि इलाज के दौरान कारित लापरवाही का कोई उल्लेख परिवाद पत्र में मौजूद नहीं है। पैरा सं0 1 लगायत 8 में इलाज की प्रक्रिया का विवरण है। पैरा सं0 9 में केवल यह उल्लेख है कि परिवादीगण को मरीज से मिलने नहीं दिया गया, चूंकि मरीज एमआईसीयू में भर्ती थी, वहां पर सभी रिश्तेदारों का सहज आवागमन संभव नहीं है, इसके पश्चात पैरा सं0 10 एवं 11 में अंकन 2,00,000/-रू0 की व्यवस्था का उल्लेख है, इसके पश्चात पैरा सं0 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24 में विपक्षीगण के व्यवहार, धन की मांग, प्रथम सूचना रिपोर्ट का लिखाना इसके बावजूद कोई कार्यवाही न होना तथा इलाज में खर्च राशि का उल्लेख तथा क्षतिपूर्ति का उल्लेख किया गया है, परंतु इलाज में वास्तव में क्या, किस प्रकार की लापरवाही बरती गयी, इसका कोई उल्लेख मौजूद नहीं है, इसलिए चूंकि लापरवाही का तथ्य स्थापित नहीं है तदनुसार परिवादी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। अत: परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश परिवाद खारिज किया जाता है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |