Madhya Pradesh

Seoni

CC/65/2013

PASKAL JOSAF - Complainant(s)

Versus

SAHARA CITY HOMES MARKETING AND SELES CORPORATION - Opp.Party(s)

26 Dec 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)

 प्रकरण क्रमांक -65-2013                              प्रस्तुति दिनांक-27.06.2013


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

पास्कल जोसफ, आत्मज स्वर्गीय श्री
बी.एस.जोसफ, उम्र लगभग 60 वर्श,
निवासी-जोसफ बिला दुर्गावती वार्ड,
नागपुर रोड, सिवनी (म0प्र0)।....................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-: 
सहारा सिटी होम्स मार्केटिंग एण्ड सेल्स
कारपोरेषन द्वारा-
(1)    षाखा प्रबंधक,
    सहारा सिटी होम्स मार्केटिंग एण्ड सेल्स
    कारपोरेषन फस्र्ट फलोर, अनुग्रह प्लाजा
    महावीर मढि़या के पास जी.एन. रोड, सिवनी(म0प्र0)।
(2)    प्रबंधक, कस्टूमर डिलाइट, वेस्टजोन,
    सहारा प्राइम सिटी लिमिटेड, कावेरी अपार्टमेंट, 
    2 फलोर, माउंट रोड सदर, नागपुर 440001 (महाराश्ट्र)।
(3)    प्राधिकृत अधिकारी,
    पंजीकृत कार्यालय सहारा इंडिया, सेंटर-2
    कपूरथला काम्पलेक्स, लखनउ 
    (उत्तरप्रदेष) 226024.............................अनावेदकगणविपक्षीगण।    


             :-आदेश-:
     (आज दिनांक- 26.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक सहारा सिटी होम्स मार्केटिंग एण्ड सेल्स कारपोरेषन के सहारा सिटी होम्स योजना के तहत, सहारा सिटी के नाम से नागपुर (महाराश्ट्र) में निर्मित हो रहे बंगलों में दो बेडरूम के परिवादी द्वारा बुक किये गये दिनांक-28.03.2009 को आबंटित बी-10304 का बंगला षीघ्र निर्मित किये जाने एवं परिवादी से प्राप्त अंतर की राषि 4,14,008-रूपये पर 12 प्रतिषत ब्याज सहित, परिवादी को ब्याज व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)        यह विवादित नहीं कि-परिवादी ने दिनांक-28.03.2009 को 2,91,700-रूपये और दिनांक-08.07.2009 को 1,22,308-रूपये अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में जमा किया था और मकान के मूल्य का अगि्रम धन राषि जमा करने बाबद प्रस्ताव प्रपत्र पेष किया था। 
(3)        संक्षेप में परिवाद का सार यह है कि-परिवादी ने अनावेदक क्रमांक-1 के माध्यम से वर्श-2009 में 70,000-रूपये का एफ0डी0 जमा करने पर, अनावेदक संस्था की स्वर्ण योजना के तहत परिवादी को कूपन प्रदान किया गया, जिसमें नागपुर (महाराश्ट्र) में सहारा सिटी में निर्मित होने वाले बंगलों में-से निर्धारित किस्म, आकार व मूल्य का बंगला परिवादी को दिया जाना मान्य किया गया, लेकिन परिवादी को उक्त प्रस्तावित से हटकर अन्य प्रवर्ग-2 बी.एच.के. का बंगला अपनी आवष्यकतानुसार अनुकूल लगा, जो अनावेदक के सक्षम अधिकारियों को अवगत कराने पर बताया गया कि-2बी.एच.के. वाले बंगले का मूल्य 4,14,008-रूपये अधिक है, जिसे परिवादी ने स्वीकार कर, बढ़े हुये मूल्य की अंतर राषि 2,91,000-रूपये दिनांक-28.03.2009 को व 1,22,808- रूपये दिनांक-08.07.2009 को अनावेदक क्रमांक-1 के माध्यम से जमा कर, पावती पाया था, जो कि-अनावेदक-पक्ष द्वारा, परिवादी को आष्वस्त किया गया था कि-संस्था की योजना के अनुसार, कूपनधारी ग्राहक को अलाटमेन्ट दिनांक से 36 माह में बंगले का निर्माण कर, आधिपत्य प्रदान किया जायेगा, तो उक्त अनुसार तीन वर्श के पष्चात दिनांक-28.03.2012 को परिवादी को आबंटित बंगला बी-10304 का आधिपत्य दिया जाना आपेक्षित रहा है, जो कि-निर्धारित सेवा षर्तों व प्रदत्त आष्वासनों के अनुसार परिवादी को आधिपत्य पात्रता अनुसार, 29,14,000-रूपये की राषि के संबंध में 5308-रूपये की दर से कुल-480 किष्तों का भुगतान करना था, जो कि-तयषुदा अवधि से 14 माह अधिक बीत जाने पर भी उक्त बंगले का निर्माण नहीं हुआ और आधिपत्य भी परिवादी को नहीं दिया गया, जो कि-परिवाद से 6 माह पूर्व परिवादी बंगले देखने गया, तो वहां उसे क्राउड युनिट में नंबर-बी10 टार्इप का कोर्इ बंगला होना नहीं दिखा, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 और 2 से भी संपर्क कर, वस्तु-सिथति की लिखित जानकारी मांगे जाने पर भी मात्र मौखिक आष्वासन, षीघ्र निर्माण पूरा कर, आधिपत्य दिये जाने के बाबद भ्रमित किया गया, जबकि-परिवादी द्वारा अदा की गर्इ अंतर की राषि को अनावेदकगण अपने पास रखे हुये है, उसका उपयोग कर रहे हैं, जिससे परिवादी को अपूर्णनीय क्षति कारित हुर्इ है और निवास के मूल उददेष्य से वंचित होना पड़ा, तो आर्थिक क्षति, असुविधा, समय व श्रम की हानि के संबंध में 2,00,000-रूपये हर्जाना पाने का परिवादी अधिकारी है। और अगस्त-2012 में अनावेदक क्रमांक-1 को जरिये अधिवक्ता नोटिस भेजे जाने पर भी कोर्इ जवाब नहीं दिया गया, न ही कोर्इ समुचित कार्यवाही की गर्इ।  
(4)        मामले में अनावेदक-पक्ष की ओर से विहित अवधि में कोर्इ जवाब पेष नहीं किया गया, जो कि-अंतिम तर्क के समय अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से पेष जवाब, अभिलेख में लिये जाने की अनुमति नहीं दी गर्इ। जबकि-परिवाद की संधारणीयता के संबंध में आक्षेप, जो अंतिम तर्क के समय उठाये गये, उन्हें विचार में लिया गया है।
(5)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या परिवाद इस जिला फोरम में संधारणीय है?
        (ब)    क्या अनावेदक-पक्ष ने, परिवादी को आबंटित
            बंगलाफलैट के निर्माण में अनुबंध के विपरीत
            अनुचित विलम्ब किया जा रहा होकर, परिवादी
            के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है व अनुचित 
            व्यापार-प्रथा को अपनाया गया है?
        (स)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6)        सहारा सिटी होम्स योजना के सहारा सिटी, नागपुर में मकान निर्माणाधीन होने मात्र के आधार पर, परिवाद के श्रवण की स्थानीय क्षेत्रीय अधिकारिता का निर्धारण कतर्इ नहीं होना है, जबकि-सहारा सिटी होम्स मार्केटिंग एण्ड सेल्स कारपोरेषन का षाखा कार्यालय सिवनी में सिथत होकर, अनावेदक क्रमांक-1 उक्त षाखा का प्रबंधक है, उक्त षाखा कार्यालय में ही परिवादी के द्वारा उसे अलाट किये गये निर्मित होने वाले मकान के संबंध में अगि्रम धन राषि भुगतान किये जाने की अनुमति में अलाटमेन्ट बाबद प्रस्ताव आवेदन, परिवादी द्वारा, दिनांक-18.03.2009 को सिवनी में ही, अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में पेष किया गया, कुल मूल्य की 10 प्रतिषत बुकिंग राषि भी दिनांक-28.03.2009 को अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में परिवादी द्वारा जमा की गर्इ, जिस पर प्रदर्ष सी-10 की रसीद जारी हुर्इ, किष्त की राषि जमा करने की रसीद प्रदर्ष सी-11 भी अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा से ही जारी हुर्इ है, तो अनावेदक-पक्ष का परिवादी से करोबार करने वाला कार्यालय भी सिवनी में सिथत होना पाया जाता है। और वाद-कारण भी सिवनी में उत्पन्न होना पाया जाता है, इसलिए इस जिला फोरम को स्थानीय श्रवण अधिकारिता होना पाया जाता है। जो कि-अनावेदक-पक्ष द्वारा, हाउसिंग कालोनी निर्मित कर, कालोनी में मकानफलैट निर्मित कर, उनका विक्रय किये जाने का ही कारोबार होना और अनावेदक की योजना के तहत परिवादी से अगि्रम धन राषि फलैट के कुल मूल्य का 10 प्रतिषत प्राप्त कर, षेश राषियों के बाबद किष्तों का अनुबंध कर, उक्त फलैट निर्माण कर, परिवादी को विक्रय किये जाने का सौदा रहा है, तो निषिचत रूप से परिवादी, अनावेदकगण का उपभोक्ता है। जो कि-निषिचत समय-सीमा के अन्दर मकान निर्मित कर, कब्जा न देने और विक्रय-पत्र निश्पादित न करने संबंधी विवाद, उपभोक्ता विवाद होकर, इस जिला फोरम द्वारा, श्रवण योग्य है, इसलिए परिवाद इस जिला फोरम में संधारणीय होना पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(7)        परिवादी की ओर से परिवाद में जो 70,000-रूपये का एफ0 डी0 अनावेदक क्रमांक-1 की षाखा में जमा कर, अनावेदक संस्था की स्वर्ण योजना का कूपनधारी होना परिवादी को कहा गया है, पर इस संबंध में न तो स्वर्ण योजना के कोर्इ कूपन की प्रति परिवादी की ओर से पेष की गर्इ, न ही स्वर्ण योजना का विवरण या षर्तें दर्षाने बाबद कोर्इ कथित योजना के दस्तावेज पेष किये गये।
(8)        परिवादी-पक्ष की ओर से प्रदर्ष सी-12 का अनावेदक क्रमांक- 3 सहारा इंडिया के पत्र दिनांक-14 जून-2005 की एक प्रति पेष की गर्इ है, जो कि-सहारा सिटी होम्स मार्केटिंग एण्ड सेल्स कारपोरेषन की योजना से संबंधित होना, उक्त पत्र से दर्षित नहीं। प्रदर्ष सी-12 के पत्र में 25 अप्रैल-2005 के तिमाही ड्रा का र्इनाम परिवादी द्वारा जीता जाना, जिसके विकल्प-'अ में 25,00,000-रूपये मूल्य का बंगला 5,208-रूपये की 480 मासिक किष्तों के भुगतान पर दिये जाने का ही मात्र उल्लेख है, जो कि-उक्त र्इनामी ड्रा के संबंध में परिवादी ने कभी प्रस्ताव स्वीकार किया हो, उस पर कोर्इ कार्यवाही हुर्इ हो, ऐसा उल्लेख न तो परिवाद में किया गया है, न ही इस बाबद कोर्इ अन्य दस्तावेज पेष हुये हैं। तो सहारा सिटी होम्स योजना के तहत, वर्श-2009 में नागपुर षहर में कोर्इ सहारा सिटी की कालोनी विकसित व निर्माण किये जाने का कोर्इ संबंध प्रदर्ष सी-12 के परिवादी के द्वारा चार वर्श पूर्व खुले किसी र्इनामी ड्रा से होना स्थापित नहीं पाया जाता है। प्रदर्ष सी-12 में उलिलखित 25,00,000-रूपये मूल्य वाला बंगला कहां, किस षहर स्थान का रहा है, किस आकार-प्रकार, क्षेत्रफल व क्षमता का रहा है, ऐसा भी कुछ परिवादी-पक्ष की ओर से दर्षाया नहीं गया। प्रदर्ष सी-12 में उलिलखित 5208-रूपये की 480 किष्तों में से कभी कोर्इ भी मासिक किष्त परिवादी के द्वारा अदा की गर्इ हो, ऐसा भी परिवादी-पक्ष दर्षा नहीं सका है, तो स्पश्ट है कि- 5,308-रूपये की 480 किष्तों में भुगतान किये जाने की कोर्इ षर्त रहे होने का बनावटी वृतांत प्रदर्ष सी-7 के परिवाद पूर्व भेजे कहे जा रहे नोटिस में व परिवाद में निर्मित किया गया है, जबकि-स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-1 के प्रष्नाधीन फलैट के संबंध में आबंटन आवेदन की प्रति में दिये षर्तों से ही स्पश्ट है कि-परिवादी को आबंटित फलैट का प्रकार 022 रहा है, जो दो बेडरूम का रहा है और क्राउन युनिट में रहा है और उक्त इकार्इ का ही प्रस्तावित मूल्य 29,14,000-रूपये रहा, जिसमें अगि्रम बुकिंग धन 2,91,700-रूपये परिवादी द्वारा अदा किया गया था, जो प्रदर्ष सी-10 की रसीद से भी स्पश्ट है। और प्रदर्ष सी-11 की रसीद से यह भी स्पश्ट है कि-जो 1,22,308-रूपये परिवादी द्वारा दिनांक-08.07.2009 को जमा किये गये थे, वह किष्त की राषि रही है। 
(9)        स्पश्ट है कि-परिवाद में जो प्रस्तावित से हटकर 2बी.एच.पीे. का दूसरे टार्इप का बंगला परिवर्तित कर लिये जाने और 4,14,008-रूपये अंतर की राषि रहे होने की कहानी परिवादी-पक्ष ने प्रदर्ष सी-7 के नोटिस व परिवाद में निर्मित की है, वह बनावटी कहानी है, जिसके लिये कोर्इ आधार अभिलेख में नहीं।
(10)        प्रदर्ष सी-1 के बुकिंग आवेदन और प्रदर्ष सी-4 के परिवादी को प्राप्त नोटिस से ही स्पश्ट है कि-उक्त सौदा किसी बंगले के संबंध में नहीं था, बलिक बहुमंजलीय इमारत के तीसरे फलोर पर निर्मित होने वाले युनिट बी10304 के फलैट के बाबद बुकिंग परिवादी ने की थी, उक्त योजना के विज्ञापन या अनुबंध का कोर्इ प्रपत्र परिवादी के द्वारा जानबूझकर पेष नहीं किया गया, लेकिन अनावेदक-पक्ष की ओर से परिवादी को भेजे गये पत्रनोटिस दिनांक-11.04.2009 की प्रति प्रदर्ष सी-4 से स्पश्ट है कि-38 माह में मासिक किष्तों में षेश राषि के भुगतान का प्लान रहा है और प्रदर्ष सी-4 के पत्र के साथ परिवादी को पेमेंट षेडयूल की प्रति भेजी गर्इ थी, पुन: दिनांक-16.11.2009 का अनावेदक-पक्ष के पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-8 से भी प्रकट है कि-परिवादी को पुन: भुगतान षेडयूल की प्रति भेजी गर्इ थी, लेकिन परिवादी-पक्ष की ओर से उक्त पेमेंट षेडयूल की प्रति को इस मामले में जानबूझकर पेष नहीं किया गया। 
(11)        यह भी स्पश्ट है कि-अप्रैल-2009 में प्रदर्ष सी-4 का पत्र, जून-2009 में प्रदर्ष सी-2 का पत्र, जुलार्इ 2009 में प्रदर्ष सी-5 का पत्र भेजकर परिवादी से किष्तों की मांग, किष्तों की कितनी राषि देय हो चुकी है, यह बताते हुये की जाती रही, तो प्रदर्ष सी-2 के पत्र दिनांक-30.06.2009 में जो दिनांक-15.06.2009 तक 1,45,400-रूपये की किष्तों की राषि बकाया होना कहकर मांग की गर्इ, उक्त संबंध में ही परिवादी ने प्रदर्ष सी-11 की रसीद के माध्यम से दिनांक-08.07.2009 को मात्र 1,22,908-रूपये की ही राषि का भुगतान किया। और तत्पष्चात स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-8 के अनावेदक के पत्र दिनांक-16.11.2009 प्राप्त होने के बावजूद, परिवादी के द्वारा 38 मासिक किष्तों की षेश राषि अदा नहीं की गर्इ। 
(12)        परिवादी ने प्रदर्ष सी-8 के अनावेदक के पत्र को ही तर्क में इस बात का आधार बनाया है कि-उसमें आबंटन तिथि से 38 माह में युनिटफलैट का कब्जा दिया जाना प्रस्तावित होना लेख किया गया है और इसलिए परिवादी-पक्ष का यह तर्क है कि-36 महिने में निर्माण पूर्ण करने की षर्त व आष्वासन अनावेदक-पक्ष का रहा है, लेकिन प्रदर्ष सी-8 से यह स्पश्ट है कि-एप्लीकेषन फार्म में लिखे नियम व षर्त की पूर्ति किये जाने पर ही और कोर्इ नियंत्रण से बाहर की बाधा न हाने पर ही, 38 माह में कब्जा दिये जाने का प्रस्ताव रहा है।
(13)        ऐसे में जबकि-परिवादी-पक्ष की ओर से कुल युनिट मूल्य के 10 प्रतिषत बुकिंग राषि के अलावा, किष्त के रूप में मात्र एक बार ही 8 जुलार्इ-2009 को प्रदर्ष सी-11 की रसीद के द्वारा किष्त की राषि अदा की गर्इ युनिट के प्रस्तावित मूल्य 29,14,000-रूपये में-से मात्र लगभग 4,00,000-रूपये ही परिवादी की ओर से अदा किये गये, जो कि-कथित फलैट के मूल्य का कोर्इ सारबान अंष का भुगतान होना कतर्इ नहीं कहा जा सकता है। न्यायदृश्टांत-2013 (2) सी0पी0आर0 89 (एन0सी0) श्री जगन्नाथ मंडल बनाम संजय घोश के मामले में पुन: यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि-पूर्ण भुगतान प्राप्त किये बिना किसी बिल्डर द्वारा, निर्माण पूर्ण किया जाना आपेक्षित है।
(14)        बहुत ही स्पश्ट है कि-स्वयं परिवादी-पक्ष उक्त फलैट वास्तव में क्रय करने के लिए गंभीर नहीं रहा है, उक्त फलैट की बुकिंग कराने के बाद, षेश किष्तें अदा करने बाबद परिवादी की ओर से कभी कोर्इ रूचि नहीं ली गर्इ, तो वास्तव में उक्त फलैट क्रय करके रहने का उसका कोर्इ इरादा दर्षित नहीं। और जब परिवादी ने फलैट के मूल्य की अधिकांष किष्तें ही अदा नहीं की हैं और 36 माह में निर्माण पूर्ण कर, दे-दिये जाने की कोर्इ निषिचत षर्त रही होना भी परिवादी-पक्ष दर्षा नहीं सका, जो कि-आबंटित फलैट के मूल्य की अधिकांष किष्तें या उसका सारबान भाग जमा करने वाले व्यकित को ही निर्माण में विलम्ब से क्षति होने का आधार प्राप्त हो सकता है, जो प्रस्तुत मामले के परिवादी के पक्ष में ऐसे आधार की कोर्इ साम्या होना स्थापित नहीं। 
(15)        स्वयं परिवादी-पक्ष की ओर से अनावेदक से उसे प्राप्त मांग- पत्र की जो प्रतियां पेष की हैं, उसमें पत्र प्रदर्ष सी-8 दिनांक-16.11.2009 में परिवादी को अनावेदक-पक्ष की ओर से षर्तों का हवाला देते हुये, यह स्पश्ट कर दिया गया था कि-प्रत्येक माह की किष्त, 15 तारिख तक भुगतान न होने पर, उक्त किष्त की राषि पर, 16वीं तारिख से 15 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज भी देय किष्त की चूक बाबद, वास्तविक भुगतान होने तक देय रहेगा। और यह भी स्पश्ट कर दिया गया था कि- अधिकतम तीन रिमायंडर ही 45 दिन में भेजे जाने पर, किष्त की राषि भुगतान न होने की सिथति में ऐसा आबंटन किसी अन्य सूचना के बिना, स्वयंमेव ही कैंसिल हो जायेगा। और दिनांक-20.09.2010 के अनावेदक के पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-3 जो परिवादी-पक्ष की ओर से पेष हुर्इ है, वह मात्र यह दर्षाने के लिए रही है कि-1 जुलार्इ-2010 या उसके बाद किये जाने वाले किष्त के सभी भुगतानों के संबंध में पत्र में दिये षेडयूल के अनुसार, सर्विस टेक्स भी देय होगा।
(15)        परिवादी ने तो यह मामला पेष करने के पूर्व के तीन वर्शों में भी देय मासिक किष्तों का कोर्इ भुगतान कभी नहीं किया, तो अब भी फलैट का कब्जा पाने और विक्रय-पत्र निश्पादित कराने बाबद कोर्इ अनुबंध प्रभावी होना परिवादी-पक्ष दर्षा नहीं सका।
(16)        परिवादी के द्वारा, अनावेदक के पास जमा की गर्इ राषियों की वापसी की मांग की गर्इ हो, ऐसा दर्षित नहीं, परिवाद में भी ऐसा अनुतोश नहीं चाहा गया है, तब अनावेदक-पक्ष के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना या परिवादी के प्रति कोर्इ अनुचित व्यापार प्रथा को अपनाया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(17)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, प्रस्तुत परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना- अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।

   मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
      सदस्य                                                       अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी          

        (म0प्र0)                                                   (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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