राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-५९७/२०१५
(जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-३३८/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७-०१-२०१५ के विरूद्ध)
१. बैंक आफ बड़ौदा, जोनल आफिस यू.पी. एण्ड उत्तराखण्ड जोन, जीवन भवन ४५, हजरतगंज लखनऊ द्वारा जोनल मैनेजर।
२. ब्रान्च मैनेजर बैंक आफ बड़ौदा काशीपुर मेन ब्रान्च, बाजपुर रोड, काशीपुर, जिला ऊधम सिंह नगर।
..................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
१. साधू प्रिधनानी पुत्र स्व0 होत चन्द्र प्रिधनानी, निवासी शंकर भवन, मॉडल हाउस, नया गॉव(पूर्व), लखनऊ।
२. रमेश प्रिधनानी पुत्र स्व0 होत चन्द्र प्रिधनानी, प्रौपराइटर मोडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज, रजिस्टर्ड कार्यालय शंकर भवन, मॉडल हाउस, नया गॉव(पूर्व), लखनऊ।
.................... प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण।
समक्ष:-
१- मा0 उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री राजीव जायसवाल विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :२६-०२-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-३३८/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७-०१-२०१५ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार वह मै0 मोडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज, काशीपुर का गारण्टर है। उसने दिनांक १५-१२-१९८७ को अपीलार्थी सं0-२ बैंक से ०६.०० लाख रू० का डिमाण्ड ड्राफ्ट पुरेवाल एण्ड एसोसिएट्स लि0 के पक्ष में अपने कैश क्रैडिट एकाउण्ट से जारी करने हेतु कहा था। कस्टम अधिकारियों से अपने आयातित कच्चे माल को पुरेवाल एण्ड एसोसिएट्स लि0 के माध्यम से छुड़वाने हेतु दिनांक २१-१२-१९८७ को परिवादी ने पुन: अपीलार्थी सं0-२ के यहॉं ०६.०० लाख रू० मुक्त
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करने हेतु आवेदन किया था, किन्तु अपीलार्थी बैंक द्वारा यह धनराशि मुक्त नहीं की गयी, जबकि २५.०० लाख रू० की नगद ऋण सुविधा परिवादी को अनुमन्य थी। परिवादी के भाई ने ०६.०० लाख रू० का डिमाण्ड ड्राफ्ट बैंक में सुरक्षित रखे एफ0डी0आर0 के विरूद्ध जारी किए जाने का अनुरोध किया था। अपीलार्थी सं0-२ ने दिनांक २१-१२-१९८७ को डिमाण्ड ड्राफ्ट संख्या-९२३२५७ अंकन ०६.०० लाख रू० पुरेवाल एण्ड एसोसिएट्स लि0 के नाम जारी किया। अपीलार्थीगण ने मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज के खाते का विवरण परिवादी को प्राप्त नहीं कराया। परिवादी को यह आभास था कि डिमाण्ड ड्राफ्ट को बैंक में सुरक्षित एफ0डी0आर0 के विरूद्ध जारी किया गया है। दिनांक २०-१०-२००७ को परिवादी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज के खाते का विवरण मांगा, जिसे अपीलार्थीगण ने दिनांक ०८-११-२००७ को प्राप्त कराया, जिससे परिवादी को यह ज्ञात हुआ कि ०६.०० लाख रू० परिवादी के नगद ऋण खाते से काट लिए गये हैं। इस प्रकार अपीलार्थी बैंक द्वारा डिमाण्ड ड्राफ्ट मु0 ०६.०० लाख रू० से सम्बन्धित धनराशि दो बार काटी जाना अनुचित व्यापार प्रथा कारित करते हुए सेवा में त्रुटि की गयी। अत: ०६.०० लाख रू० अपीलार्थी बैंक से मय ब्याज वापस दिलाये जाने हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया।
अपीलार्थीगण के कथनानुसार मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 को २५.०० लाख रू० की सीमा तक नगद ऋण सुविधा उपलब्ध करायी गयी थी। मु0 ०६.०० लाख रू० के एफ0डी0आर0 की धनराशि का भुगतान मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 के खाते से अपीलार्थी बैंक द्वारा किया गया। अपीलार्थीगण का यह कथन है कि बैंक ने बैंकर्स लियन के अपने अधिकार के अन्तर्गत एफ0डी0आर0 की धनराशि का समायोजन परिवादी की बैंक के प्रति देनदारी के परिप्रेक्ष्य में किया। इसकी सूचना परिवादी को दिनांक २१-१२-१९८७ से पहले ही दे दी गयी। यह तथ्य महत्वहीन है कि एफ0डी0आर0 बैंक में बन्धक थे अथवा सिक्योरिटी के रूप में जमा किए गये थे।
विद्वान जिला मंच ने परिवाद को स्वीकार करते हुए अपीलार्थीग को यह निर्देशित किया कि इस निर्णय की तिथि से ०६ सप्ताह के अन्दर प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को ०६.०० लाख रू० मय ०९ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज दिनांक २१-१२-१९८७ से सम्पूर्ण
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धनराशि की अदायगी तक अदा करें। इसके अतिरिक्त अपीलार्थीगण को यह भी निर्देशित किया गया कि वे प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को मानसिक क्लेश की बाबत् २०,०००/- रू० तथा ५,०००/- रू० वाद व्यय स्वरूप अदा करेंगे। निर्धारित अवधि में यह धनराशि अदा न किए जाने की स्थिति में ब्याज की दर १२ प्रतिशत होगी। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजीव जायसवाल को तथा प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
यह अपील प्रश्नगत आदेश दिनांकित २७-०१-२०१५ के विरूद्ध दिनांक २६-०३-२०१५ को योजित की गयी है। इस प्रकार यह अपील विलम्ब से योजित की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विलम्ब का कोई उचित स्पष्टीकरण अपीलार्थीगण की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया है।
उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी ने अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु परिसीमा अधिनियम की धारा-५ के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है तथा प्रार्थना पत्र के समर्थन में श्री राजेश कुमार अरोड़ा, ए.जी.एम. बैंक आफ बड़ौदा, ए.आर.एम. ब्रान्च विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ का शपथ पत्र प्रस्तुत किया है। शपथ पत्र के अनुसार निर्णय दिनांक २७-०१-२०१५ की प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक १३-०२-२०१५ को प्राप्त हुई। प्रश्नगत परिवाद की कार्यवाही श्रीमती ऊषा चावला अधिवक्ता द्वारा जिला मंच के समक्ष संचालित की जा रही थी। उन्होंने निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त कर अपीलार्थी बैंक को दिनांक २३-०२-२०१५ को बिना पत्रावली के प्राप्त करायी। श्रीमती ऊषा चावला से मामले की पत्रावली वापस करने को कहा गया, किन्तु उन्होंने पत्रावली वापस नहीं की। अत: वर्तमान अधिवक्ता श्री राजीव जायसवाल से परिवाद एवं प्रतिवाद पत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने हेतु कहा गया, क्योंकि वह बैंक के रिकार्ड में उपलब्ध नहीं थे, जिनकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने हेतु श्री जायसवाल ने दिनांक १६-०३-२०१५ को प्रार्थना पत्र प्रेषित किया। ये प्रमाणित प्रतिलिपियॉं दिनांक २०-०३-२०१५ को श्री जायसवाल को प्राप्त हुईं। प्रमाणित प्रतिलिपियॉं प्राप्त करने
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के उपरान्त अपील तैयार करके योजित की गयी। शपथ पत्र में उल्िलखित उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि अपीलार्थी बैंक ने जानबूझकर अपील के प्रस्तुतीकरण में विलम्ब नहीं किया है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का सन्तोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों, जिनका उल्लेख इस निर्णय में आगे किया जायेगा, के अनुसार अपील में बल प्रतीत हो रहा है, अत: ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किए जाने योग्य है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किया जाता है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच को प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं था। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि वाद कारण उत्पन्न होने के ०२ वर्ष के भीतर परिवाद योजित न किए जानेके कारण परिवाद कालबाधित था। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के विरूद्ध अपीलार्थी बैंक द्वारा सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही किए जाने के कारण परिवाद उपभोक्ता मंच में पोषणीय नहीं था। इन तथ्यों की ओर ध्यान न देते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है, अत: प्रश्नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण है।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन करने के उपरान्त प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। परिवाद से सम्बन्धित वाद कारण जिला मंच, लखनऊ के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ तथा वाद कारण उत्पन्न होने के ०२ वर्ष के अन्दर परिवाद योजित किया गया।
उल्लेखनीय है कि अपलार्थी बैंक ने प्रश्नगत परिवाद के सन्दर्भ में जिला मंच अपीलार्थी संख्या-२ द्वारा प्रेषित किए गये प्रतिवाद पत्र की प्रति की सत्यप्रति संलग्नक-२, अपीलार्थी बैंक द्वारा जिला मंच के समक्ष साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत श्री सोमानाथ सिन्हा ए.जी.एम. बैंक आफ बड़ौदा, ए.आर.एम. ब्रान्च विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ के शपथ पत्र की सत्यापित फोटोप्रति, रिट याचिका सं0-३८४०५/२००९ मै0 मॉडर्न
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टाइम्स इण्डस्ट्रीज बनाम ऋण बसूली अधिकरण इलाहाबाद में मा0 उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांकित ०२-०८-२०११ की प्रमाणित प्रतिलिपि की फोटोप्रति दाखिल की हैं। श्री सोमनाथ सिन्हा द्वारा प्रेषित किए गये शपथ पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी बैंक द्वारा दिये गये ऋण का पूर्ण उपयोग किया, किन्तु इस ऋण की अदायगी प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा न किए जाने के कारण बकाया धनराशि की वसूली हेतु अपीलार्थी बैंक ने प्रत्यर्थी/परिवादी के विरूद्ध वाद सक्षम दीवानी न्यायालय में योजित किया। यह वाद दिनांक ३०-०९-१९९१ को डिक्री हुआ। तद्नुसार डिक्री के निष्पादन की कार्यवाही की गयी। ऋण बसूली अधिकरण बन जाने के उपरान्त निष्पादन वाद ऋण बसूली अधिकरण में स्थानान्तरित किया गया, जिसके द्वारा मौडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज ऋण प्राप्तकर्ता एवं गारण्टर्स के विरूद्ध बसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया। इसके उपरान्त परिवादी ने एक रिकाल प्रार्थना पत्र दिनांक १२-०९-२००३ को प्रेषित किया, जो दिनांक ०९-०५-२००६ को परिवादी की अनुपस्थिति के कारण निरस्त हो गया। तदोपरान्त प्रेषित दूसरा रिकाल प्रार्थना पत्र भी दिनांक १२-०९-२००६ को निरस्त हो गया। अपीलार्थीगण का यह कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक रिट याचिका माननीय उच्च न्यायालय में योजित की। यह रिट याचिका मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा स्वीकार की गयी तथा यह निर्देशित किया गया कि रिकॉल प्रार्थना पत्र दिनांक १२-०९-२००३ का गुणदोष पर निस्तारण किया जाय। ऋण बसूली अधिकरण ने अपने आदेश दिनांक १५-१२-२००६ द्वारा निष्पादन वाद को पुनर्स्थापित कर दिया। जब यह कार्यवाही लम्बित थी, इसी मध्य अपीलार्थी बैंक ने सरफेसी एक्ट की धारा-१३(२) के अन्तर्गत मोडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज को नोटिस जारी किया, जिसका उत्तर उनके द्वारा नहीं दिया गया। मोडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज द्वारा ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष प्रार्थना पत्र दिनांक १०-०१-२००७, ११-०१-२००७ एवं १५-०३-२००७ प्रेषित किए गये। ये प्रार्थना पत्र ऋण बसूली अधिकरण द्वारा निरस्त किए गये, जिसके विरूद्ध अपील, अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत की गयी। अपीलीय प्राधिकरण द्वारा अपील इस निर्देश के साथ स्वीकार की गयी कि प्रार्थना पत्र दिनांक १५-०३-२००७ का निस्तारण १५ दिन के अन्दर किया जाय तथा यह भी निर्देश दिया गया कि इस आदेश का लाभ उस स्थिति में ही प्रदान किया जायेगा, जब अपीलार्थी १५.००
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लाख रू० जमा करेगा। इस आदेश के विरूद्ध मोडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज द्वारा रिट याचिका योजित की गयी। इस याचिका में पारित आदेश के अनुसार १५.०० लाख रू० धनराशि को घटाकर ०५.०० लाख रू० कर दिया गया तथा ०५.०० लाख रू० की यह धनराशि एक सप्ताह में जमा करने हेतु निर्देशित किया गया, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह धनराशि भी जमा नहीं की। तदोपरान्त सरफेसी एक्ट की धारा-१३(४) के अन्तर्गत नोटिस जारी की गयी। इस नोटिस का जवाब दाखिल किया गया तथा ऋण बसूली अधिकरण द्वारा पारित आदेश दिनांक ३०-१०-२००८ द्वारा यह निर्णीत किया गया कि वह कार्यवाही कालबाधित नहीं है। ऋण बसूली अधिकरण द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध योजित अपील अपीलीय अधिकरण द्वारा अपील निरस्त की गयी। अपीलीय अधिकरण द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध रिट याचिका माननीय उच्च न्यायालय में योजित की गयी। यह रिट याचिका माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक ०२-०८-२०११ द्वारा निरस्त की गयी।
अपीलार्थी द्वारा अपील के साथ प्रस्तुत किए गये अभिलेखों के अवलोकन से यह भी विदित होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने सरफेसी एक्ट की धारा-१७ के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र भी ऋण बसूली अधिकरण, लखनऊ में प्रेषित किया है। अपीलार्थीगण की ओर से प्रेषित उपरोक्त अभिलेखों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत ऋण की बसूली के सन्दर्भ में की गयी कार्यवाही के तथ्यों को छिपाते हुए प्रश्नगत परिवाद योजित किया है। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका सं0-९९५/२०१२, हरिनन्दन प्रसाद बनाम स्टेट बैंक आफ इण्डिया में पारित निर्णय दिनांकित ३१-०५-२०१२, २०१३(१) सीपीसी १७६ (एनसी) में सरफेसी एक्ट की धारा-३४ पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया गया है कि सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही किए जाने के उपरान्त उपभोक्ता मंच में परिवाद पोषणीय नहीं होगा। ऐसी स्थिति में इस मामले में राज्य आयोग द्वारा परिवाद निरस्त किया गया। राज्य आयोग द्वारा पारित आदेश की पुष्टि माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा की गयी।
पुनरीक्षण सं0-१६५३/२०१३ इण्डियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस बनाम हरदयाल सिंह में दिये गये निर्णय दिनांक २५-११-२०१३ में सिविल अपील सं0-१३५९/२०१३ यशवन्त घेसास बनाम बैंक आफ महाराष्ट्र के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये
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निर्णय दिनांक ०१-०३-२०१३ पर विचार करते हुए माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि सरफेसी एक्ट की धारा-३४ के अन्तर्गत उपभोक्ता मंच का क्षेत्राधिकार सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही लम्बित रहने की स्थिति में प्रतिबन्धित किया गया है।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यह स्पष्ट है कि मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0, जिसका प्रत्यर्थी/परिवादी गारण्टर है, पर प्रश्नगत ऋण की अदायगी से सम्बन्धित विवाद सरफेसी एक्ट के प्राविधान के अन्तर्गत ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष चल रहा है।
अपीलार्थी का कहना है कि प्रश्नगत मामले से सम्बन्धित एफ0डी0आर0 की धनराशि का समायोजन उपरोक्त ऋण की अदायगी में अपीलार्थी बैंक द्वारा किया गया है, जिसका अपीलार्थी बैंक को बैंकर्स लियन अधिकार के अन्तर्गत अधिकार प्राप्त था। अपीलार्थी बैंक का यह कथन है कि एफ0डी0आर0 की धनराशि का भुगतान उपरोक्त ऋण की अदायगी में किये जाने के तथ्य की सूचना वर्ष १९८७ में ही प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को उपलब्ध करायी गयी थी। अपीलार्थीगण ने विद्वान जिला मंच के समक्ष अपने प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों में यह स्पष्ट किया है कि मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 को दिये गये ऋण की बसूली के सम्बन्ध में योजित कार्यवाही के परिप्रेक्ष्य में खाते का विवरण परिवादी को प्राप्त कराया गया था। जब प्रश्नगत एफ0डी0आर0 से सम्बन्धित धनराशि का समयोजन मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 पर बकाया ऋण के भुगतान में अपीलार्थी बैंक द्वारा किया गया तथा उक्त ऋण की बसूली के सन्दर्भ में सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष की जा रही हो, तब प्रत्यर्थी/परिवादी इस सन्दर्भ में अपना पक्ष ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सकते थे।
ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से उपरोक्त वर्णित निर्णयों/विधि व्यवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य में प्रश्नगत परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोषणीय नहीं था। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 के विरूद्ध की गयी कार्यवाही के तथ्य को छिपाते हुए परिवाद योजित किया है। हमारे विचार से उपरोक्त अधिनियम के अन्तर्गत की जा रही कार्यवाही को निष्प्रभावी करने के
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उद्देश्य से वस्तुत: परिवाद योजित किया गया। विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों तथा अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रस्तुत की गयी साक्ष्य पर विचार न करते हुए सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत की जा रही कार्यवाही के तथ्यों का प्रश्नगत निर्णय में उल्लेख न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। हमारे विचार से प्रश्नगत परिवाद पोषणीय न होने के कारण प्रश्नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण है।
जहॉं तक परिवाद के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-२४(ए) के अन्तर्गत निर्धारित परिसीमा के अन्तर्गत योजित न किए जाने का प्रश्न है, उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने वाद कारण को निरन्तर प्रकृति का बताते हुए दिनांक०८-११-२००७ को पुन:वाद कारण उत्पन्न होना बताया है, जब कथित रूप से प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत खाते का विवरण प्राप्त कराया गया, तब उन्हें सर्वप्रथम इस तथ्य की जानकारी हुई कि ०६.०० लाख रू० का डिमाण्ड ड्राफ्ट नगद ऋण खाते से न बनाकर एफ0डी0आर0 से बनाया गया।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत एफ0डी0आर की धनराशि से डिमाण्ड ड्राफ्ट की धनराशि ०६.०० लाख रू० का समायोजन दिनांक २१-१२-१९८७ को किया जाना बताया गया है। उक्त तिथि को ही प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने ०६.०० लाख रू० मय ब्याज वापस दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है। यद्यपि परिवाद के अभिकथनों में परिवादीगण ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि प्रश्नगत एफ0डी0आर0 की परिपक्वता की तिथि क्या थी। किन्तु यह नितान्त अस्वाभाविक है कि वर्ष १९८७ में एफ0डी0आर0 में निवेषित धनराशि के परिपक्वता पर उस धनराशि के भुगतान के विषय में कोई जानकारी प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण द्वारा परिपक्वता की तिथि पर नहीं प्राप्त की गयी। अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत किए गये अभिलेखों से यह स्पष्ट है कि मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 पर बकाया ऋण की बसूली हेतु दीवानी न्यायालय एवं ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष कार्यवाही अपीलार्थीगण द्वारा की गयी। सरफेसी एक्ट की धारा-१७ के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रसतुत किया गया। ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण का यह कथन अस्वाभाविक एवं अविश्वसनीय है कि एफ0डी0आर0 की धनराशि का मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 के
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खाते से सम्बन्धित ऋण की अदायगी में समायोजन की उन्हें सर्वप्रथम जानकारी दिनांक ०८-११-२००७ को हुई। अपीलार्थीगण का यह कथन अधिक स्वाभाविक प्रतीत होता है कि इस सन्दर्भ में जानकारी प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण को वर्ष १९८७ में प्राप्त करा दी गयी थी।
प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण द्वारा वर्ष २००७ में सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत प्रस्तुत किए गये प्रार्थना पत्र के आधार पर स्वत: परिसीमा विस्तारित नहीं मानी जा सकती। हमारे विचार से मामले की परिस्थितियों के आलोक में वाद कारण निरन्तर प्रकृति का होना तथा वर्ष २००७ में सर्वप्रथम उत्पन्न होना स्वीकार नहीं किया जा सकता। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य है कि प्रश्नगत परिवाद वर्ष १९८७ में वाद कारण उत्पन्न होने के उपरान्त ०२ वर्ष के अन्दर परिवाद योजित न होने के कारण कालबाधित था। हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने परिवाद को कालबाधित न होना मानकर त्रुटि की है।
यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत एफ0डी0आर0 अपीलार्थी सं0-२ बैंक आफ बड़ौदा काशीपुर मेन ब्रान्च, बाजपुर रोड, काशीपुर, जिला ऊधम सिंह नगर में सुरक्षित रखा जाना प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण ने बताया है। अपीलार्थी सं0-२ ने इन एफ0डी0आर0 की धनराशि का मै0 मॉडर्न टाइम्स इण्डस्ट्रीज लि0 के बकाया ऋण में समायोजन करना बताया है। ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से वाद कारण अपीलार्थी सं0-२ स्थित ऊधम सिंह नगर, जो उत्तराखण्ड प्रदेश में स्थित है, के विरूद्ध ही उत्पन्न होना माना जा सकता है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि एक राज्य से उत्पन्न वाद कारण का प्रसंज्ञान दूसरे राज्य के उपभोक्ता मंच द्वारा नहीं लिया जा सकता। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा Union Bank of India Vs. Sepporally O.Y., III (1999) C.P.J. 10 (II) के मामले में दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। इस निर्णय का हमने अवलोकन किया। प्रस्तुत मामले में भी जनपद ऊधम सिंह नगर, जो उत्तराखण्ड प्रदेश में स्थित है, में वाद कारण उत्पन्न हुआ है, अत: उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित उपभोक्ता फोरम द्वारा परिवाद का प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से प्रश्नगत परिवाद
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जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत नहीं माना जा सकता।
उपरोक्त तथ्यों एवं विवेचना के आधार पर हमारे विचार से यह अपील स्वीकार किए जाने योग्य है तथा प्रश्नगत निर्णय विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण होने के कारण अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-३३८/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७-०१-२०१५ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस अपील के व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है। पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.