राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1542/2017
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या 113/2010 में पारित आदेश दिनांक 29.07.2017 के विरूद्ध)
Branch Manager, Bajaj Allianz General Insurance Company Ltd. Shop No. 4 Kash Road, Damal Bank Road, Gorakhpur.
...................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Sadanand Verma son of Sri Seema Saran Verma resident of Mungera Bazzar Police Station Caurichaura District Gorakhpur.
......................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विवेक कुमार सक्सेना,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 26.06.2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-113/2010 सदानन्द वर्मा बनाम शाखा प्रबन्धक बजाज एलियान्स जनरल इंश्योरेन्स क0लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 29.07.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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''यह परिवाद, परिवादी के पक्ष में तथा विपक्षी बजाज एलियान्स जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि इस निर्णय के पारित होने के 45 दिनो के अन्दर परिवादी को, मोटर साइकिल के बीमित धनराशि मु0 27945.00रू0 का भुगतान करे।
विपक्षी को यह भी निर्देश दिया जाता है कि परिवादी को हुए मानसिक, शारीरिक व आर्थिक पीड़ा के लिए क्षतिपूर्ति मु0 5000.00रू0 तथा वाद व्यय मु0 2000.00रू0 उक्त तिथि के अन्दर परिवादी को भुगतान करे। यदि उक्त आदेश का परिपालन समयान्तर्गत विपक्षी द्वारा नही किया जाता है तो समस्त धनराशि मु0 34945.00रू0 पर 8 प्रतिशत साधारण ब्याज, वाद योजित की तिथि से पूर्ण भुगतान की तिथि तक देय होगा।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी शाखा प्रबन्धक बजाज एलियान्स जनरल इंश्योरेन्स क0लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विवेक कुमार सक्सेना उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी
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अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसकी मोटर साइकिल बजाज डिस्कवर यू0पी0 53 ए.ए.-7948 अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 30.05.2008 से दिनांक 29.05.2009 तक की अवधि के लिए बीमित थी और वाहन का बीमित मूल्य 27945/-रू0 था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसकी मोटर साइकिल श्री राजाराम यादव पुत्र श्री जंगली यादव ने खरीदना चाहा और 25000/-रू0 उसे देकर मोटर साइकिल लेकर चले गये। उनके द्वारा यह कहा गया कि जब मोटर साइकिल का आर0टी0ओ0 से उनके नाम स्थानान्तरण हो जायेगा शेष धनराशि अदा कर दी जायेगी, परन्तु मोटर साइकिल उक्त राजाराम यादव के मकान देवीपुर थाना-चौरीचोरा से चोरी हो गयी, जिसकी रिपोर्ट राजाराम यादव द्वारा थाना चौरीचोरा में दर्ज करायी गयी तथा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उक्त मोटर साइकिल चोरी होने की सूचना दिनांक 27.11.2008 को अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को दी गयी और बीमित धनराशि की मांग की गयी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी को मोटर साइकिल के सम्पूर्ण कागजात उपलब्ध करा दिये फिर भी उसे क्षतिपूर्ति अपीलार्थी/विपक्षी ने अदा नहीं किया।
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परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी ने पत्र दिनांक 01.07.2009 के माध्यम से मोटर साइकिल के रजिस्ट्रेशन का कागज मांगा जबकि उसे पहले ही रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र उपलब्ध करा दिया गया था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने मनमाने ढंग से दिनांक 05.11.2009 को प्रत्यर्थी/परिवादी के पास पत्र प्रेषित किया कि उसका दावा नो क्लेम कर दिया गया है। अत: क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और बीमित धनराशि तथा क्षतिपूर्ति व वाद व्यय की मांग की है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपरोक्त मोटर साइकिल का पंजीकृत स्वामी है और उसकी मोटर साइकिल कथित चोरी के समय बीमित थी, परन्तु इसके साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने लिखित कथन में कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 28.10.2008 को राजाराम यादव को मोटर साइकिल 25000/-रू0 में बेच दिया है और सेल लेटर लिखकर भौतिक स्थानान्तरण कर दिया है। तदोपरान्त मोटर साइकिल चोरी होने के सम्बन्ध में राजाराम यादव द्वारा एफ0आई0आर0 पुलिस में दिनांक 03.11.2008 को दर्ज करायी गयी है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने कहा है
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कि दिनांक 28.10.2008 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की बिक्री राजाराम यादव को कर दी थी और वह वाहन के भौतिक स्वामी चोरी की कथित घटना के समय नहीं थे। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद ग्राह्य नहीं है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी या राजाराम यादव द्वारा वाहन के विक्रय के सम्बन्ध में बीमा कम्पनी को कोई सूचना नहीं दी गयी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि मोटर साइकिल प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम बीमित थी और मोटर साइकिल उसके नाम पंजीकृत थी। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी मोटर साइकिल की बीमित धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से पाने का अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया है, जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि चोरी की कथित घटना के पहले प्रत्यर्थी/परिवादी मोटर साइकिल राजाराम यादव को बेच चुका था और मोटर साइकिल में उसका बीमा हित निहित नहीं था। अत: वह मोटर साइकिल की बीमित धनराशि पाने का अधिकारी नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि राजाराम यादव ने पालिसी इण्डियन मोटर टैरिफ के
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प्राविधान के अनुसार अपने नाम अन्तरित नहीं करायी है। अत: बीमा कम्पनी मोटर साइकिल की कथित चोरी से हुई क्षतिपूर्ति की भरपाई हेतु उत्तरदायी नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्नलिखित नजीरें प्रस्तुत की हैं:-
1. मुस्ताक मो0 व अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लि0, I (2013) CPJ 64 (NC)
2. पुनरीक्षण याचिका संख्या-3732/2017 वी0ए0 श्रीकुमार बनाम सीनियर डिवीजनल मैनेजर, न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0लि0 आदि में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांक 30.01.2018
मैंने अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने पुनरीक्षण याचिका संख्या-3732/2017 वी0ए0 श्रीकुमार बनाम सीनियर डिवीजनल मैनेजर, न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0लि0 आदि में पारित निर्णय दिनांक 30.01.2018 में पुनरीक्षण याचिका संख्या-1347/2008 न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0लि0 बनाम श्रीमती बिमलेश में पारित निर्णय दिनांक 03.09.2014 का उल्लेख किया है और अपने इस पूर्व निर्णय का निम्न अंश उद्धरित किया है:-
“13. In our view, when the owner of a vehicle sells the said vehicle to another person, and executes a sale letter, without in any manner
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postponing the passing of title/property in the vehicle, the ownership in the vehicle passes to the purchaser on execution of the sale letter itself. The delivery of the vehicle only reinforces the title which the purchaser gets to the vehicle on execution of the sale letter in his favour. As far as transfer of the vehicle in the name of the purchaser in the record of the RTO is concerned, that is a requirement for the purpose of the Motor Vehicle Act but that does not postpone the transfer of the ownership in the vehicle to the purchaser till the time the vehicle is transferred in his name in the purchaser in the record of the concerned RTO.”
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने वी0ए0 श्रीकुमार बनाम सीनियर डिवीजनल मैनेजर, न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0लि0 आदि के उपरोक्त निर्णय में यह माना है कि वाहन बीमित स्वामी द्वारा दूसरे व्यक्ति को अन्तरित किये जाने पर वाहन की चोरी या दुर्घटना होने पर बीमित व्यक्ति बीमा पालिसी के अन्तर्गत वाहन की क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है भले ही वाहन क्रय करने वाले व्यक्ति का नाम आर0टी0ओ0 कार्यालय में अन्तरण के बाद दर्ज न हुआ हो।
परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी
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ने अपनी प्रश्नगत मोटर साइकिल को राजाराम यादव को 25000/-रू0 में बिक्री कर दिया था और मोटर साइकिल राजाराम यादव लेकर गये थे। मोटर साइकिल उनकी अभिरक्षा में थी तभी मोटर साइकिल की कथित चोरी की घटना घटित हुई है।
प्रश्नगत वाहन की चोरी के सम्बन्ध में राजाराम यादव ने जो स्थानीय थाना चौरीचोरा में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी है उसमें स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रश्नगत मोटर साइकिल का पंजीयन प्रत्यर्थी/परिवादी सदानन्द वर्मा के नाम था। उसने उनसे प्रश्नगत मोटर साइकिल 25000/-रू0 नगद देकर एक सप्ताह पूर्व खरीदा था तथा गाड़ी का पेपर व सेल लेटर प्राप्त कर लिया था। अत: यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी प्रश्नगत मोटर साइकिल राजाराम यादव को बेच दी थी और उनके पक्ष में सेल लेटर निष्पादित करते हुए गाड़ी एवं गाड़ी के कागजात उनके सुपुर्द कर दिया था। ऐसी स्थिति में माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त वर्तमान वाद के तथ्यों पर पूरी तरह से लागू होता है और प्रत्यर्थी/परिवादी मोटर साइकिल की कथित चोरी हेतु प्रश्नगत बीमा पालिसी की बीमित धनराशि पाने का अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को मोटर साइकिल की बीमित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करने हेतु आदेशित किया है, वह तथ्य और विधि के विरूद्ध है। जिला फोरम का निर्णय
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दोषपूर्ण है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है। जिला फोरम ने जो क्षतिपूर्ति व वाद व्यय दिलाया है, वह भी उचित नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1