Rajasthan

Kota

CC/360/2013

Tikam Chand jaliya - Complainant(s)

Versus

Sachiv, Nagar Vikas Nyas - Opp.Party(s)

Abdul Hamid Khan

24 Feb 2016

ORDER

    टीकम चन्द्र जेलिया बनाम  नगर विकास न्यास, कोटा 
परिवाद संख्या 360/2013


24.02.2016        दोनों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी का संक्षेप में यह सेवा-देाष बताया है कि डा. अम्बेडकर काॅलोनी कुन्हाड़ी, कोटा में उसे आवंटित प्लाट नं. 246 (त 8) के सामने स्थित भू-पट्टी को आवंटित करने हेतु 16.03.1998 को आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया गया तथा विपक्षी के पत्र के अनुसार निरीक्षण-फीस रू 100/- जमा कराये एंव नक्शे की 4 प्रतियां भी 19.02.2003 को प्रस्तुत की। बार-बार संम्पर्क करने पर भी लम्बे समय तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। विपक्षी ने पत्र दिनांक 11.11.2009 से भू-पट्टी (990 वर्गफुट अर्थात 92 वर्ग मीटर) की राशि 5,52,000/-रूपये एवं अवेध कब्जे की शास्ती 55200/- रूपये एक माह में जमा कराने के निर्देश दिये। विपक्षी ने मनमाने एवं गलत रूप से उक्त भू-पट्टी की दर आवेदन-पत्र के वर्ष 1998 के बजाय वर्ष 2009 की लगाकर तथा शास्ती भी गलत लगाकर सेवा में कमी की है जिससे उसे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ है। 
विपक्षी के जवाब का सार है कि परिवाद में दिनांक 11.11.2009 के पत्र को 07.11.2013 को परिवाद प्रस्तुत करके चुनौती  दी है जो मियाद बाहर है। परिवादी को कोई वादकारण भी नहीं है क्योंकि मात्र आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने से भू-पट्टी के आवंटन का कोई अधिकार उत्पन्न नहीं होता है। नियमानुसार 900 वर्गफुट से अधिक क्षेत्रफल की भू-पट्टी आवंटित नहीं हो सकती  है। परिवादी राजकीय सेवा में है इसलिये वह अतिक्रमण का अधिकारी नहीं है। परिवादी ने 11.11.2009 के पत्र के अनुसार नियत अवधि में कोई राशि भी जमा नहीं कराई। विपक्षी का कोई सेवा-दोष नहीं है। 
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा भू-पट्टी हेतु आवेदन-पत्र, निरीक्षण-फीस, अदायगी रसीद, नक्शे, पत्र दिनांक 11.11.09 एवं विपक्षी को प्रेषित पत्र 16.11.09, 27.11.09, उनके कार्यालय की विभिन्न टिप्पणी आदि दस्तावेजात की प्रतियां प्रस्तुत की हैं। विपक्षी ने साक्ष्य में परमानंद गोयल, लेखाधिकारी का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया है। 
हमने विचार किया। 
परिवादी ने विपक्षी द्वारा पत्र दिनांक 11.11.09 में बताई गई राशि व शास्ति को चुनौती दी है तथा इसके लिये परिवाद 07.11.13 को प्रस्तुत किया है जबकि वादकारण उत्पन्न होने से दो वर्ष की अवधि मंे ही परिवाद प्रस्तुत हो सकता था। परिवादी को यदि कोई वादकारण उत्पन्न भी हुआ है तो वह 11.11.2009 का पत्र मिलते ही हो गया। परिवादी ने मियाद में हुई देरी को क्षमा करने के लिये भी कोई विधिक कार्यवाही नहीं की है। इसलिये हम पाते हैं कि परिवाद मियाद बाहर है तथा इसी आधार पर खारिज होने योग्य है। 
जहां तक गुण-दोष का प्रश्न है, भू-पट्टी को आवंटित कराने का परिवादी का विधिक अधिकारी नहीं है। इसके अलावा विपक्षी ने स्पष्ट किया  है कि नियमों के अनुसार 900 वर्गफुट से अधिक क्षेत्रफल की भू-पट्टी आवंटित ही नहीं हो सकती।  इसलिये गुण-दोष पर भी परिवादी को कोई वादकारण उत्पन्न नहीं हुआ है। इस कारण भी परिवाद खारिज होने योग्य है।  
                   अतः परिवाद खारिज किया जाता है।
आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।

 

(हेमलता भार्गव)               (महावीर तॅंवर)               (भगवान दास)
   सदस्य                      सदस्य                    अध्यक्ष

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