Rajasthan

Kota

CC/113/2009

Radhakishin dagar - Complainant(s)

Versus

Sachiv, Nagar Vikas Nyas - Opp.Party(s)

Rajendra Mathur

09 Oct 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा (राज)।
पीठासीन अधिकारी:-श्री नन्दलाल षर्मा,अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।

प्रकरण संख्या-113/2009
    
राधाकिशन डागर पुत्र श्री केसरी लाल डागर,निवासी-1584.।  रामकृष्णपुरम,कोटा (राज0)।
                                                                -परिवादी।
                         बनाम  

नगर विकास न्यास,कोटा जरिये सचिव,नगर विकास न्यास,ब्।क् ब्पतबसम,कोटा (राज0)।
                                                               -विपक्षी।

     परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थिति-

1    श्री कल्याण सिंह,अधिवक्ता ओर से परिवादी।
2    श्री गुलाब सिंह,अधिवक्ता ओर से विपक्षी।                                        
                 
                     निर्णय                     दिनांक 08.10.2015    


यह पत्रावली जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, कोटा में पेष की गई तथा निस्तारण हेतु जिला मंच झालावाड केम्प कोटा को प्राप्त हुई है।

      प्रस्तुत परिवाद ब्च् ।बज 1986 की धारा 12 के तहत दिनांक 09-04-2009 को परिवादी ने इन अभिवचनों के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी द्वारा दिनांक 27-01-1997 को जरिये आबंटन पत्र एक आवास 1584.।  रामकृष्णपुरम में आबंटित किया गया था जिसकी कुल कीमत 2,70,000/-रूपये बतायी गई थी। परिवादी ने पंजीयन के समय 15,000/-रूपये दिनंाक 10-04-1996 को जमा करायी थी और 2,55,000/-रूपये बाकाया थी। आबंटन पत्र जारी होने के बाद दिनंाक 05-02-1997 को 40,000/-रूपये 31-05-1997 को मय ब्याज व 25/-रूपये साईट प्लान के कुल 42,505/-रूपये दूसरी सीडमनि के रूप में जमा किये और तदुपरान्त शेष राशि का भुगतान 3,042/-रूपये की मासिक किश्तों में अदा करना था और किश्तें अप्रेल 1999 से लागू मानी थी। आर्थिक स्थिति 
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सही नहीं होने से किश्तें समय पर अदा नहीं कर सका और परिवादी ने दिनंाक 03-03-2006 को 70,000/-रूपये जमा कर दिये। विपक्षी ने अखबार में विज्ञप्ति जारी की कि जो व्यक्ति किश्तों की अदाएगी में डिफाॅल्टर हो गये हैं उन्हें ब्याज में 60 प्रतिशत व पेनल्टि में छूट दी जायेगी,यदि वे एकमुश्त राशि जमा कराते हैं तो। तत्पश्चात् परिवादी ने इस आशय का एक पत्र विपक्षी को दिया और मार्च 2008 में एक चैक 1,05,000/-रूपये का विपक्षी को सौंपा। लेकिन विपक्षी ने तीन माह निकलने के उपरान्त दिनंाक 04-08-2008 को उक्त राशि जमा की। तत्पश्चात् परिवादी ने 1,00,000/-रूपये दिनंाक 26-08-2008 को प्रार्थना पत्र के साथ जमा किये जिन्हें विपक्षी ने 27-08-2008 को जमा किया और विपक्षी ने तीनों राशियों के पेटे ब्याज में छूट नहीं दी। विपक्षी ने डिमांड नोट में 3,10,752/-रूपये आवास के पेटे बकाया बताकर दिनंाक 31-08-2008 तक जमा करने का नोटिस जारी कर दिया। इस प्रकार परिवादी द्वारा आवास के पेटे अब तक की बकाया राशि एक मुश्त जमा कराने के बाद भी ब्याज व शास्ति में 40 प्रतिशत छूट दिये जाने की स्वीकृति प्रदान नहीं की गई और विपक्षी ने जमा राशि को मुजरा नहीं किया है। इसके उपरान्त भी विपक्षी ने डिमाण्ड नोट दिनंाक 19-12-2008 द्वारा दिसम्बर 2008 तक 2,41,077/-रूपये बकाया बताकर जमा कराने का आदेश दिया जो पूर्णतया अवैध था। परिवादी को विपक्षी ने दिनंाक 06-03-2009 को 2,58,347/-रूपये 31-03-2009 तक जमा कराने का आदेश जिसके विरोधस्वरूप एक नोटिस दिनंाक 06-03-2009 को दिया और संशोधित डिमाण्ड नोट जारी करते हुए परिवादी के हक में रजिस्ट्री कराने की माँग की लेकिन विपक्षी अपनी जिद पर अड़ा रहा। जिस पर परिवादी ने बैंक से लोन लिया और विरोधस्वरूप दिनंाक 12-03-2009 को 2,58,347/-रूपये जमा किये और दिनंाक 26-03-2009 को आवास का पंजीयन अपने पक्ष में कराया। विपक्षी ने परिवादी से 2,33,549/-रूपये की राशि अधिक जमा करवाली है जिसे मय ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।

     विपक्षी ने परिवाद का यह जवाब दिया है कि परिवादी ने नियमानुसार राशि जमा करायी है। परिवादी से कोई अवैध राशि प्राप्त नहीं की गई है। परिवादी के पक्ष में विपक्षी द्वारा दिनंाक 25-03-2009 को रजिस्ट्री करवा दी गई है। परिवादी ने उस समय तक कोई 
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आपत्ति नहीं की इसलिए वह अब इस सम्बन्ध में आपत्ति नहीं उठा सकता है। विपक्षी ने कोई सेवामें कमी नहीं की है। परिवादी कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है। 

     परिवाद के समर्थन में परिवादी ने स्वयं का षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.24 दस्तावेज तथा विपक्षी की ओर से जवाब के समर्थन में श्री ओमप्रकाश मीणा लेखाधिकारी का शपथपत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में एक म्गक.1 लगायत म्गक.8 दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं।  
    उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-
1    क्या परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है ?

    परिवादी का परिवाद,षपथ-पत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता प्रमाणित पाया जाता है। 
2    क्या विपक्षी ने सेवामें कमी की है ?

उभयपक्षों को सुना गया, पत्रावली का अवलोकन किया गया तो यह तथ्य उभयपक्षों द्वारा स्वीकृत है कि परिवादी ने विपक्षी के यहाँ मकान एलाॅटमेण्ट के लिए प्रार्थना पत्र पेष किया। इस आधाार पर मध्यम आय वर्ग का आवास 1584.।  रामकृष्णपुरम में आवंटित किया गया जिसकी कुल कीमत 2,70,000/-रूपये बतायी। दिनंाक 10-06-1996 को पंजीयन के 10,000/-रूपये जमा कराये, दिनंाक 05-02-1997 को 40,000/-रूपये जमा कराये, दिनंाक 31-05-1997 को ब्याज और साइट प्लान के 42,597/-रूपये जमा कराये। तत्पष्चात् षेश रही राषि को 3,042/-रूपये की मासिक किष्तों में अदा करना था। लेकिन परिवादी किष्तें जमा कराने में डिफाल्टर हो गया। इसी दौरान दिनंाक 08-10-2008 को राज्य सरकार ने डिफाल्टर लोगों के लिए छूट की घोशणा की और दिनंाक 31-03-2009 तक डिफाल्टर लोग यदि एकमुष्त राषि जमा करावें तो ब्याज और षास्ति में 40 प्रतिषत छूट दिये जाने का प्रावधान रखा। 
    इसके आगे उभयपक्षों में मतभेद है। जहाँ परिवादी कहता है कि निर्धारित राषि से ज्यादा राषि जमा करवा ली और मुझे छूट का लाभ नहीं दिया, वहीं विपक्षी कहता है कि 
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हमने नियमानुसार जो छूट देनी थी वह दे दी और दिनंाक 13-03-2009 को 2,58,347/-रूपये जमा करा दिये और परिवादी के पक्ष में रजिस्ट्री करवा दी। अब चूँकि परिवादी ने बिना आपत्ति के जो राषि जमा करा दी, उसके खिलाफ अब नहीं कह सकता। उभयपक्षों में मुख्य विवाद इस बिन्दु का है कि परिवादी घोशणा के अनुसार छूट चाहता है और विपक्षी कहता है कि घोशणानुसार छूट प्रदान कर दी गई है। पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेजात का चिन्तन और मनन करने के पष्चात् हमारा निर्णय निम्नानुसार है:-

विपक्षी ने जवाब के पैरा नंबर 3 में अंकित कर रखा है कि राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रस्तुत याचिका में आदेष पारित हुआ उस आदेष की अनुपालना में परिवादी ने दिनंाक 03-03-2006 को 70,000/-रूपये जमा कराये। फिर षेश राषि जमा कराने के लिए परिवादी ने निवेदन किया लेकिन प्रकरण अदालत में होने के कारण राषि जमा नहीं की ओर यह राषि जिला कलेक्टर से निवेदन करने के बाद जमा करवायी। दिनंाक 07-06-2008 को मण्डल की बैठक में निर्णय लिया गया उसके अनुसार दिनंाक 21-08-2009 तक 3,10,752/-रूपये जमा कराने थे लेकिन 1,00,000/-रूपये जमा करवाये। तत्पष्चात् दिनंाक 12-03-2009 को 2,58,357/-रूपये जमा करवाकर रजिस्ट्री करवा ली। अब प्रष्न आता है कि परिवादी को घोशणानुसार 40 प्रतिषत की छूट दी गई या नहीं ? पत्रावली में संलग्न चार्टेड एकाउण्टेण्ट का स्टेटमेण्ट है जिसके अनुसार 1,05,245/-रूपये ज्यादा जमा करवा लिये। इस स्टेटमेंट के खण्डन में परिवादी ने न तो कोई दस्तावेज पेष किया है और न ही स्वयं ने यह स्टेटमेण्ट पेष किया कि परिवादी को घोशणानुसार इस प्रकार छूट दे दी गई जिससे यह स्पश्ट होता कि 40 प्रतिषत छूट देने के बाद परिवादी ने जो रकम जमा करवायी, वह वैध और नियमित थी परन्तु विपक्षी ने मंच के समक्ष ऐसा कोई प्रमाण पेष नहीं किया जिससे घोशणानुसार 40 प्रतिषत छूट देने के बाद षेश राषि परिवादी ने जमा करायी थी। यदि विपक्षी यह कहता है कि परिवादी ने जो पैसा जमा करवाया और रजिस्ट्री करवायी उस समय कोई आपत्ति नहीं की इसलिएि वह अन्यथा कहने के लिए पाबन्द है, यह तथ्य तो विष्वास का था। यदि परिवादी ने विपक्षी के कहे अनुसार राषि जमा करवा दी ओर उसे छूट का प्रावधान नहीं दिया तो परिवादी किसी भी प्रकार से पाबन्द नहीं है। इस प्रकार 

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विपक्षी ने 40 प्रतिषत छूट की घोशणा के अनुसार कितनी छूट कब दी ऐसा कोई स्टेटमेण्ट पेष नहीं किया है, ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेण्ट अखण्डित है ओर उस पर अविष्वास किये जाने का कोई कारण नहीं है। परिणामतः विपक्षी का सेवादोश यथाविधि प्रमाणित है। 
3    अनुतोश ?

    प्रार्थी का परिवाद खिलाफ विपक्षी आंषिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है परन्तु तथ्यों ओर परिस्थितियों को दृश्टिगत रखते हुए परिवादी छूट की राषि 1,05,245/-रूपये पर ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी नहीं पाया जाता है। 
                               आदेष  
       परिणामतः परिवादी का परिवाद खिलाफ अप्रार्थी आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है:-
1    अप्रार्थी प्रार्थी को छूट की राषि 1,05,245/-रूपये अदा करें।
2    अप्रार्थी प्रार्थी को 5,000/-रूपये मानसिक और षारीरिक क्षति के और 2,000/-रूपये परिवाद व्यय के अदा करें। 
3    अप्रार्थी आदेषित राषि को दो माह में अदा करना सुनिष्चित करें अन्यथा ताअदाएगी सम्पूर्ण भुगतान 9ः वार्शिक ब्याज दर से ब्याज भी अदा करने के लिए दायित्वाधीन होगा।


     (महावीर तंवर)                    (नन्द लाल षर्मा)  
           सदस्य                            अध्यक्ष

 

       निर्णय आज दिनंाक 09.10.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 

    (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)
       सदस्य                                        अध्यक्ष

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