Rajasthan

Kota

CC/136/2010

Dhasilal mahajan - Complainant(s)

Versus

Sachiv, Kota Sahkari Bhumi Vikas Bank ltd. - Opp.Party(s)

Nand Lal Sharma

09 Sep 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:-136/2010

01.    घांसी लाल जैन पुत्र कान्हा
02.    बनमाला देवी पत्नी घंासी लाल
03.    गजेन्द्र कुमार पुत्र स्व. घांसी लाल
04.     राजमति पुत्री स्व. घांसी लाल
05.    सुमन  पुत्री स्व. घांसी लाल
06.    शकुन्तला पुत्री स्व. घांसी लाल
07.    अजीत कुमार पुत्र स्व. घांसी लाल
    निवासीगण बनियानी, जिला कोटा ।             -परिवादीगण

                    बनाम

सचिव कोटा सहकारी भूमि विकास बैंक सांगोद, जिला कोटा राजस्थान।                                          -विपक्षी

समक्ष:-
भगवान दास     ः    अध्यक्ष    
हेमलता भार्गव    ः    सदस्य
    परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01.    श्री दिनेशराय द्विवेदी, अधिवक्ता, परिवादीगण की ओर से। 
02.    श्री एस.पी.सोरल, अधिवक्ता, विपक्षी की ओर से। 
 

            निर्णय             दिनांक 09.09.2015
         
     यह प्रकरण मूल रूप से घांसी लाल ने विपक्षी के विरूद्ध दिनांक 30.03.10 को प्रस्तुत किया, प्रकरण के लंबित रहते हुये उसकी मृत्यु हो जाने के कारण उसके-विधिक उतराधिकारी परिवादीगण रिकार्ड पर आये है। 

    परिवादी पक्ष का संक्षेप में यह केस है कि  विपक्षी से ट्रेक्टर हेतु ऋण लिया था जिसके पेटे दिनांक 22.07.02 को उसके सचिव मुकेश सक्सेना को 50,000/- रूपये की राशि दी गई, जिसकी रसीद नहीं दी गई। खातें में इंद्राज करने के बाद में परिवादी को सूचित किये बिना वह इन्द्राज गैर कानूनी रूप से काट दिया। उसने ऋण की अंतिम अदायगी दिनांक 04.04.08 को की तब उक्त बात की जानकारी हुई, इसके अलावा अमानत राशि 42, 975/- रूपये उसी समय नहीं लौटाकर लगभग 9 माह की देरी से लौटाई गई, जिसका ब्याज नहीं दिया गया। विपक्षी को अधिवक्ता के जरिये नोटिस भेजा गया तब भी सुनवाई नहीं की गई, इस प्रकार परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ। 

    विपक्षी के जवाब का सार है कि परिवादी द्वारा सचिव मुकेश सक्सेना को ऋण के पेटे दिनांक 29.06.02 को 50,000/- रूपये की राशि अदा की गई जिसकी उसे रसीद दी गई, जिसके आधार पर परिवादी ने ऋण खाते में उसी समय इन्द्राज करा लिया, वह राशि वसूल करने वाले सचिव ने वसूली में व्यवस्त होने के कारण दिनांक 22.07.02 को जमा कराई थी, जिसका इन्द्राज भी जमा  की डे बुक में उस रोज कर दिया गया। फाइनल एकाउन्ट तैयार करते समय यह त्रुटि सामने आई कि परिवादी से वसूली गई राशि 50,000/- रूपये का इन्द्राज पुनः 22.07.02 को भी हो गया है जबकि दिनांक 29.06.02 को एक बार ही उससे 50,000/- रूपये वसूल किये थे। दिनांक 22.07.02 को परिवादी ने  50,000/- रूपये पुनः अदा नहीं किये थे। इसलिये इस भूल का संशोधन किया गया इस  की सूचना भी परिवादी को उसी समय दे दी गई। वर्ष 2008 में केन्द्रीय सरकार की ऋण राहत योजना की जानकारी परिवादी ने प्राप्त की तो छूट के पश्चात बकाया राशि 2,86,000/- रूपये दिनांक 04.04.08 को जमा कराई। उसने नो ड्यूज मांगा उसे स्पष्ट किया गया कि खाते में आडिट फाइनल होने पर ही दिया जा सकेगा। उसने अपनी अत्यन्त आवश्यकता बताई, इसलिये ऋण राहत योजना की छूट राशि 42,975/- रूपये परिवादी ने अमानत के तौर पर जमा कराई, इस पर उसे उसी समय नो ड्यूज दे दिया गया तथा वह राशि खाता फाइनल होने पर लौटाने के लिये कह दिया गया। यह राशि उक्त सहमति के आधार पर ही परिवादी ने अमानत के तौर पर जमा कराई थी आडिट होने व खाता फाइनल होने पर दिनांक 28.01.09 को वह राशि परिवादी को वापस लौटा दी गई, इसलिये इस राशि पर ब्याज पाने का अधिकारी नहीं है। सेवा में कोई कमी नहीं की गई। 

    परिवादी की ओर से साक्ष्य में मूल परिवादी घांसी लाल के शपथ-पत्र के अलावा उसके उतराधिकारीगण में से किसी ने  भी शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं किया है इसके अलावा जमा राशि की रसीद, दिनांक 29.06.02, ऋण खाता विवरण, विपक्षी को प्रेषित नोटिस, पोस्टल रसीद आदि दस्तावेज की प्रति प्रस्तुत की गई। 

    विपक्षी की ओर से साक्ष्य में गिरराज प्रसाद सोनी (सचिव) के शपथ-पत्र के अलावा परिवादी के खाते का सम्पूर्ण विवरण, समय-समय पर उसके द्वारा जमा कराई गई राशि की रसीदे आदि दस्तावेज की प्रति पेश की गई। 

     हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया। 
    विचारणीय प्रश्न है कि क्या परिवादी ने विपक्षी को दिनांक 22.07.02 को नकद 50,000/- रूपये जमा कराये जिसका इन्द्राज खाते में करक,े बाद में गैर कानूनी रूप से काटा गया एवं क्या परिवादी की अमानतशुदा राशि देरी से लौटाई गई और उसका ब्याज नहीं दिया गया ?
    स्वयं परिवादी के अनुसार उसने 22.07.02 को जो 50,000/- रूपये की राशि जमा कराई उसकी कोई रसीद उसे नहीं दी गई जो असामान्य एवं अस्वीकार्य कहानी है। परिवादी ने स्वयं प्रकट किया है कि दिनांक 29.06.02 को जमा कराई गई राशि की उसे रसीद दी गई थी। उसका ऋण खाता वर्ष 99 से चालू है तथा अंतिम अदायगी परिवादी के अनुसार 04.04.08 को की गई है।  उसका ऐसा केस नही है कि उस ऋण खाते में समय-समय पर जमा कराई गई अन्य राशियों  की उसे कोई रसीद नहीं दी गई हो, इससे स्पष्ट है कि यदि दिनांक 22.07.02 को भी उसके द्वारा अलग से 50,000/- रूपये जमा कराये जाते तो जमा की उसे रसीद दी जाती। इस बारे में उसने दिनांक 04.04.08 को अंतिम अदायगी करते समय जानकारी होना भी बताया है लेकिन तत्समय भी उसके द्वारा विपक्षी को इस बारे में लिखित में या मौखिक शिकायत करना प्रकट नहीं किया है और ना ही कोई दस्तावेजी-प्रमाण पेश किया है। विपक्षी ने स्पष्ट किया है कि परिवादी ने दिनांक 29.06.02 को सचिव को 50,000/- रूपये अदा किये, जिसकी उसे रसीद दी गई, उस रसीद के आधार पर उसका इन्द्राज कर लिया गया, वसूली करने वाला सचिव दिनांक 22.07.02 को वसूली कार्य से लौटा तब उसने वह वसूली हुई राशि बैंक में जमा कराई तब भूलवश पुनः परिवादी के खाते में जमा डे बुक में दर्ज करली गई, जिसकी आडिट में जानकारी होने पर  इन्द्राज को संशोधित किया, इसकी जानकारी परिवादी को दे दी गई। जिसका कोई खंडन परिवादी की ओर से नहीं किया गया। इसलिये हम पाते है कि परिवादी इस कहानी को सिद्ध नहीं कर सका है कि उसने विपक्षी बैंक को दिनांक 29.06.02 के अलावा दिनांक 22.07.02 को भी 50,000/- रूपये नकद अदा किये थे। 
    जहाॅ तक अमानत राशि 42,975/- रूपये को 9 माह की देरी से लौटाने की कहानी है इसका भी विपक्षी बैंक ने खुलासा किया है कि परिवादी ने तत्काल नो ड्यूज की आवश्यकता बताई तब उसे स्पष्ट किया गया कि वह छूट की राशि को अमानत के तौर जमा करा दे तो उक्त राशि उसे आडिट होने पर खाता फाइनल होने के पश्चात् लौटा दी जायेगी, जिसकी परिवादी ने सहमति दी, इसलिये वह राशि अमानत के तौर पर जमा की गई तथा आडिट होने एवं खाता फाईनल होने के पश्चात परिवादी को लौटा दी गई , इसलिये कानूनन इस राशि पर भी परिवादी कोई ब्याज पाने का अधिकारी  नही माना जा सकता। विपक्षी बैंक ने परिवादी को ब्याज अदा नही करके, कोई सेवा-दोष नहीं किया है। 
    उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते है कि परिवाद सारहीन है इसलिये खारिज होने योग्य है।   
                         आदेश 
    परिवादीगण का परिवाद विपक्षी के खिलाफ खारिज किया जाता है। खर्चा परिवादी पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।        


      (हेमलता भार्गव)                            (भगवान दास)  
         सदस्य                                    अध्यक्ष
 
    निर्णय आज दिनंाक 09.09.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
     सदस्य                                           अध्यक्ष           

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