राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-299/2024
डॉ0 कविता गर्ग, गेटवेल हॉस्पिटल एण्ड अल्ट्रासाउण्ट प्रा0लि0 बाईपास रोड, जिला शामली-247776
बनाम
सचिन कुमार पुत्र श्री रणपाल निवासी मौहल्ला रेलपार, तहसील व जिला शामली व एक अन्य
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री हरिशंकर
प्रत्यर्थीगण के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 21.3.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/डॉ0 कविता गर्ग द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, शामली द्वारा परिवाद सं0-20/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.12.2023 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी पत्नी श्रीमती पूनम को डिलीवरी के लिए दिनांक 06.11.2014 को अपीलार्थी/विपक्षीगण के हॉस्पिटल में सुबह 6.50 बजे भर्ती कराया और डॉक्टर अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने जांच करके बताया कि डिलीवरी नॉरमल हो जायेगी और जच्चा व बच्चा सही स्थिति मे हैं। उपचार के कुछ समय पश्चात प्रसव पीड़ा होने लगी और प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को दर्द बढ़ता रहा। उसकी परेशानी देखकर प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजन अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 से मिले तो उसने उत्तर दिया कि दर्द होना स्वाभाविक है लेकिन पूनम की
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स्थिति नॉरमल नहीं थी, उसकी पीड़ा बढ़ती जा रही थी। कुछ समय बाद अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने कहा कि आपकी पत्नी का तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ेगा, बच्चा सीजेरियन है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपनी पत्नी की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी तथा प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों ने अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 को ऑपरेशन की हामी भर दी और अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने ऑपरेशन की तैयारी शुरू कर दी। प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी पीडा से तड़पती रही परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 डॉक्टर एक अन्य मरीज के ऑपरेशन में जुट गई तथा लगभग 1.00 बजे उसकी पत्नी का ऑपरेशन किया और बताया कि बच्चे के दिमाग में आक्सीजन की कमी है और हालत नाजुक है और उसे तुरन्त रेफर करना पड़ेगा। इस पर प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों ने अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 डाक्टर से कहा कि आपने तो जच्चा व बच्चा स्वस्थ बताये थे और अब बच्चे की हालत नाजुक बता रही हो तथा जच्चा की हालत भी ठीक नहीं बता रही हो। इस पर अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों का डाट दिया और कहा कि तुम मेरी बात नहीं मानोगें तो अपने मरीज को यहां से ले जाओं।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपने बच्चे को श्री साई अस्पताल सरकुलर रोड मुजफ्फरनगर में डॉ0 गिरीश कुमार के यहां भर्ती कराया गया, जहां बच्चे का इलाज चला। दिनांक 10.11.2014 को प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को विपक्षीगण ने डिस्चार्ज कर दिया परन्तु मांगने पर भी इलाज खर्च की रसीद नहीं दी। अगले दिन प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को पीडा होने लगी और उसकी पट्टी से बदबू आ रही थी तब दिनांक 12.11.2014 को अपीलार्थी/विपक्षी सं0-
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1 को दिखाया तो उसने दवाइयॉ दी और 2-3 दिन बाद आने को कहा परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी की तबियत ठीक नहीं थी और दिनांक 13.11.2014 को फिर अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 को दिखाया और अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने पस कल्चर टैस्ट कराया और उसने दवाइयां दी और 2-3 दिन बाद आने को कहा।
प्रत्यर्थी/परिवादी अपनी पत्नी को लेकर दिनांक 15.11.2014 को पुनः अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के अस्पताल पहुंचा और आवश्यक उपचार देने के बाद अपीलार्थी/विपक्षी ने 03 दिन बाद पुनः आने को कहा। इस दौरान प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा दिये गये आवश्यक दिशा-निर्देश के अनुसार दवा का प्रयोग करती रही। दवा प्रयोग करने के बाद भी प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी स्वयं को ठीक अनुभव नहीं कर रही थी। परिवादी अपनी पत्नी को लेकर दिनांक 19.11.2014 को पुनः अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के अस्पताल में गया और अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 से मिला और कहा कि मैडम मेरी पत्नी ठीक क्यों नहीं हो रही है। यदि आपको समझ नहीं आ रहा है तो किसी दूसरे डाक्टर की सहायता ले लो, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं मुझ पर विश्वास रखों कभी-कभी मरीज को ठीक होने में समय लग जाता है तथा अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने कुछ और आवश्यक टेस्ट कराये और प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों के विनती किये जाने पर परिवादी की पत्नी को भर्ती किया।
परिवादी की पत्नी का इलाज चल रहा था कि अगले दिन 20.11.2014 को अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 की चिकित्सीय लापरवाही व उपेक्षा के चलते एक महिला की अस्पताल में मृत्यु हो गई और मरीजों को अस्पताल प्रशासन ने आनन-फानन में रेफर कर दिया।
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जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी पूनम भी थी, जिसे सुभारती मेडिकल कालेज मेरठ में रेफर किया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऑपरेशन तथा अस्पताल के अन्य खर्च के संबंध में पुनः रसीद मांगी परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के अस्पताल प्रबन्धन ने रसीद देने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि तुम्हें ऐसी स्थिति में रसीद की पड़ी है, यहॉ जान बचानी मुश्किल हो रही है।
प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों ने पूनम को ले जाकर सुभारती मेडिकल कालेज, मेरठ में भर्ती कराया। जांचोपरान्त डाक्टर्स ने प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों को बताया कि पूनम के ऑपरेशन में घोर लापरवाही बरती गई है जिस कारण मरीज की हालत नाजूक है, इसका तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ेगा। क्योंकि मरीज की जान को गंभीर खतरा इंफेक्शन का बना हुआ है। यह सुनकर प्रत्यर्थी/परिवादी व उसके परिजनों को बड़ा मानसिक आघात पहुंचा। दिनांक 22.11.2014 को सुभारती के चिकित्सकों ने पूनम का ऑपरेशन किया और इस दौरान पूनम 17 दिन उक्त अस्पताल में भर्ती रही तथा एक अन्य ऑपरेशन दिनांक 01.04.2015 को किया गया। इस दौरान पूरम 24 दिन अस्पताल में भर्ती रही और गंभीर पीड़ा झेली। प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी पूनम का अभी भी इलाज चल रहा है और बच्चे का भी इलाज चल रहा है। समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी का बच्चा मानसिक अपंगता का शिकार हुआ है तथा डाक्टर ने लगभग 20-25 प्रतिशत दिमाग काम नहीं करना बताया है। इस प्रकार सही समय पर सही इलाज नहीं देकर अपीलार्थी/विपक्षीगण ने घोर लापरवाही व उपेक्षा कर सेवा में कमी की है, जिसके लिए विपक्षीगण पूर्णरूपेण जिम्मेदार हैं अत्एव
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क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख क्षतिपूर्ति का अनुतोष दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता नहीं है। माननीय न्यायालय को परिवाद के श्रवण व निस्तारण करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। श्रीमती पूनम पहले किसी अनक्वालिफाईड डाक्टर के यहॉ गई थी।
यह भी कथन किया कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 डॉक्टर द्वारा नॉरमल डिलीवरी के लिए कोशिश की गई, लेकिन जांच के समय मरीज को पेशाब नहीं आ रहा था इसलिए नली डालकर पेशाब कराया गया श्रीमती पूनम में इनफैक्शन था और प्रतिरोधक क्षमता काफी कम थी। अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने पूनम की नॉरमल डिलीवरी के लिए प्रयत्न किया और ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया, बच्चे की डिलीवरी चल रही थी लेकिन बच्चा पूनम की कमजोरी की वजह से नीचे आकर फंस गया तब अपीलार्थी/विपक्षी व अन्य तिमारदारों को बताकर मरीज के परिजनों की सहमति से पूनम व बच्चे को बचाने के लिए ऑपरेशन किया गया और ऑप्रेशन के समय बाल रोग विशेषज्ञ उपस्थित था और उसने ही उचित समय पर बच्चे के कमजोर होने की वजह से अन्य बाल रोग विशेषज्ञ डा० ग्रीस कुमार के पास बच्चे को रेफर किया था। इसमें कोई लापरवाही नहीं की गई है।
यह भी कथन किया गया कि श्रीमती पूनम को बिल्कुल ठीक हालत में डिस्चार्ज किया गया था परन्तु दिनांक 12.11.2014 को जब
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पूनम दोबारा आयी तो कुछ मवाद थी, जो उसकी रोग निरोधक क्षमता की कमी के कारण थी। दिनांक 19.11.2014 को जब पूनम को दोबारा भर्ती किया गया तो उसने बताया कि उसका पति उसके साथ हम विस्तर हुआ था और दिनांक 20. 11.2014 को उसके पति बिना बताये पूनम को उठाकर ले गये। पूनम के इलाज में पूरी सतर्कता व सावधानी बरती गई और अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 ने कोई लापरवाही नहीं की। परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है। परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है एवं परिवाद खारिज होने योग्य है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया अत्एव जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से अग्रसारित की गई।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादी का परिवाद विरुद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश तिथि से 45 दिन के अंदर श्रीमती पूनम के इलाज में की गई चिकित्सीय लापरवाही व असावधानी के लिए अंकन-1,50,000 (एक लाख पचास हजार) रूपये तथा शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु अंकन-50,000 (पचास हजार) रूपये एवं अंकन-10,000 (दस हजार) रूपये परिवाद व्यय परिवादी को भुगतान करने हेतु इस आयोग में जमा करें। विपक्षी-1 के इस कृत्य के लिए
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भारतीय चिकित्सा परिषद को आदेश की प्रति विपक्षी-1 के विरूद्ध आवश्यक कार्यवाही किये जाने हेतु प्रेषित की जाये।
निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किये जाने पर विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-71 व 72 के अन्तर्गत कार्यवाही की जायेगी।"
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 डॉक्टर की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है। यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी के अभिकथनों पर विचार न करते हुए जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह अनुचित है।
यह भी कथन किया गया है कि अपीलार्थी/डॉक्टर द्वारा नॉरमल डिलीवरी के लिए कोशिश की गई, लेकिन मरीज की प्रतिरोधक क्षमता काफी कम थी, परन्तु फिर भी नॉरमल डिलीवरी का प्रयत्न किया गया, परन्तु बच्चा मरीज की कमजोरी के कारण नीचे आकर फंस गया तब अपीलार्थी/डॉक्टर व अन्य तिमारदारों को बताकर मरीज के परिजनों की सहमति से पूनम व बच्चे को बचाने के लिए ऑपरेशन किया गया।
यह भी कथन किया गया कि आपरेशन के समय बाल रोग विशेषज्ञ उपस्थित थे और उनकी ही सलाह पर उचित समय पर बच्चे के कमजोर होने की वजह से अन्य बाल रोग विशेषज्ञ डॉ0 ग्रीस कुमार के पास बच्चे को रेफर किया था, जिसमें अपीलार्थी द्वारा कोई लापरवाही नहीं की गई है।
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यह भी कथन किया गया कि यह भी कथन किया गया कि मरीज/श्रीमती पूनम को बिल्कुल ठीक हालत में डिस्चार्ज किया गया था, परन्तु चूंकि उनके शरीर में रोग निरोधक क्षमता में कमी थी इस कारण दोबारा आने पर उनके घाव में कुछ मवाद पाया गया, जो कि पेट पर दबाव या खिंचाव पडने के कारण सम्भव है।
यह भी कथन किया गया कि दिनांक 19.11.2014 को जब मरीज/श्रीमती पूनम को अपीलार्थी/डॉक्टर के यहॉ दोबारा भर्ती किया गया तो उनको बताया कि उसका पति उसके साथ हम विस्तर हुआ था तथा दिनांक 20. 11.2014 को मरीज का पति/प्रत्यर्थी बिना अपीलार्थी को बताये मरीज/श्रीमती पूनम को उठाकर ले गये। यह भी कथन किया गया कि इस कथन का विरोध प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख नहीं किया गया है।
यह भी कथन किया गया कि पूनम के इलाज में अपीलार्थी द्वारा पूरी सतर्कता व सावधानी बरती गई और अपीलार्थी/डॉक्टर द्वारा कोई लापरवाही नहीं की गई है।
यह भी कथन किया गया कि परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है एवं प्रत्यर्थी/परिवादी कोई अनुतोष पाप्त करने का अधिकारी नहीं है।
यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा ऊपर उल्लिखित तथ्यों की अनदेखी करते हुए जो निर्णय/आदेश पारित किया है, वह अनुचित है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा अपील को स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
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मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता को विस्तार पूर्वक सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 डॉक्टर द्वारा मरीज के इलाज में चिकित्सीय लापरवाही व असावधानी बरती गई है और मरीज के स्वास्थ्य में सुधार नहीं होने पर उसे हायर सेंटर भी रेफर नहीं किया गया है तथा हालत खराब होने पर प्रत्यर्थी को अपनी पत्नी को सुभारती अस्पताल, मेरठ में भर्ती करना पड़ा, जहॉ पर प्रत्यर्थी/परिवादी को अपनी पत्नी श्रीमती पूनम का दो बार आपरेशन कराना पड़ा और श्रीमती पूनम को असहनीय पीड़ा उठानी पड़ी जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी व उसकी पत्नी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति भी हुई जिसके लिए अपीलार्थी/विपक्षी-1 डॉक्टर निश्चित रूप से उत्तरदायी है और उक्त तथ्य प्रमाणित भी होता है अत्एव विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा विधिक सिद्धांतों पर बिन्दुवार विवेचना करने के उपरांत जो निष्कर्ष अपने निर्णय में अंकित किया गया है, वह पूर्णत: उचित एवं विधि सम्मत है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलीय स्तर पर नहीं पायी गई, तद्नुसार प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर ही अपील निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें।
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प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1