Madhya Pradesh

Seoni

CC/74/2013

AMIT KUMAR - Complainant(s)

Versus

S.S. MOTERS - Opp.Party(s)

03 Dec 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)


प्रकरण क्रमांक- 74-2013                              प्रस्तुति दिनांक-02.09.2013


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

अमित कुमार, आत्मज जे0पी0एस0 तिवारी,
उम्र 31 वर्श निवासी गली नंबर-3 द्वारका
नगर सिवनी, तहसील व जिला सिवनी(म0प्र0)।..........आवेदकपरिवादी।


                
        :-विरूद्ध-: 

(1)    एस.एस.मोटर्स, प्रोपरार्इटर षैलेन्द्र बघेल
    अधिकृत डीलर टाटा मोटर्स कार्यालय 
    श्रीमाया ढ़ाबा के सामने जबलपुर रोड, सिवनी, 
    तहसील व जिला सिवनी (म0प्र0)।
(2)    ऐरिया सर्विस मैनेजर (म0प्र0) अपर ग्राउड़ फलोर
    बी-2 राजगढ़ कोढ़ी आपोलो ट्रेड सेन्टर र्इथ
    भवन स्कोयर आगरा-मुम्बर्इ रोड, इंदौर-452001
(3)    ऐरिया सर्विस मेनेजर, टाटा मोटर्स प्रायवेट
    लिमिटेड प्रीमों हाउस दूसरा माला 1610 रार्इट
    टाउन, जबलपुर, तहसील व जिला जबलपुर
    (म0प्र0)।
(4)    टाटा मोटर्स प्रायवेट लिमिटेड द्वारा, प्राधिकृत
    अधिवक्ता, कस्टूमर ऐसीसीरिज सेन्टर 20एच
    फलोर टावर 2, वन इंडिया विल्स सेन्टर,
    841 सेनापति वापट मार्ग मुम्बर्इ 400013
(5)    ए.वी.एस.सेल्स मेनेजर, गली नंबर-2 छोटी ग्वाल
    टोली लसोदिया मोरी, देवासनाका, ए.बी.रोड, 
    इन्दौर, तहसील व जिला इंदौर।
    452007..........................................................अनावेदकगणविपक्षीगण। 


                    
                 :-आदेश-:

     (आज दिनांक- 03.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके क्षतिग्रस्त हुये वाहन-डम्फर माडल नंबर-एल.पी.के. 1613 का कम्प्लीट केबिन बदलने हेतु अनावेदक क्रमांक-1 के पास दिनांक-02.07.2013 को जरिये चेक 2,70,700-रूपये जमा कर देने पर भी वाहन में कम्प्लीट केबिन लगाकर न देने को अनावेदकों द्वारा की गर्इ सेवा में कमी होना कहते हुये, उक्त राषि व वाहन खड़े रहने से हुर्इ नुकसानी व अन्य हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)        यह स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक क्रमांक-4 टाटा मोटर्स की कम्पनी के उक्त डम्फर-ट्रक माडल नंबर-एल.पी.के.1613 का परिवादी रजिस्टर्ड स्वामी है, जिसका रजिस्ट्रेषन नंबर-एम0पी0 22जी 2763 है। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक क्रमांक-4 की कम्पनी के अनावेदक क्रमांक-2 और 3 एरिया मैनेजर हैं और अनावेदक क्रमांक-1 उक्त कम्पनी के वाहन व पार्ट का नगर सिवनी में अधिकृत विक्रेता है। यह भी विवादित नहीं कि-24 मर्इ-2013 को परिवादी के उक्त डम्फर के दुर्घटनाग्रस्त होकर, वाहन का केबिन पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाने पर, वाहन का कम्प्लीट केबिन बुलाने हेतु परिवादी को मोटर मैकेनिकों के द्वारा सलाह दी गर्इ, तो परिवादी ने, अनावेदक क्रमांक-1 से संपर्क किया और अनावेदक क्रमांक-1 ने, परिवादी से 2,70,700-रूपये का दिनांक-02.07.2013 को चेक प्राप्त कर, कम्पनी के कार्यालयों में आर्डर बुक किया। यह भी विवादित नहीं कि- दिनांक-20.08.2013 को परिवादी ने र्इ-मेल के द्वारा, अनावेदक क्रमांक-4 टाटा मोटर्स से कम्प्लीट केबिन प्राप्त न होने बाबद षिकायत भेजा था और फिर भी कम्प्लीट केबिन परिवादी को उपलब्ध न कराये जाने पर, परिवादी ने दिनांक-02.09.2013 को यह परिवाद पेष किया है। 
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- अनावेदक क्रमांक-1 से संपर्क करने पर उसके द्वारा यह कहा गया था कि- नगद राषि जमा करनी होगी और राषि जमा होने पर सात दिन के अंदर कम्प्लीट केबिन उपलब्ध करा दिया जायेगा और अनावेदक क्रमांक-2 और 3 से संपर्क कर, अनावेदक क्रमांक-1 ने निर्धारित रेट सूची के अनुसार, कम्प्लीट केबिन की कीमत 2,70,700-रूपये बतार्इ थी, जिसे अगि्रम जमा करने कहा, तो परिवादी ने अपने बैंक खाते के दो चेक के द्वारा कुल 2,70,700-रूपये के चेक उपलब्ध करा दिये थे, फिर भी संपूर्ण कीमत अगि्रम प्राप्त करने के बावजूद, उक्त अवधि में परिवादी को कम्प्लीट केबिन उपलब्ध नहीं कराया गया और चेक जमा करने के 20 दिन बाद, अनावेदक ने केबिन आ जाने की सूचना परिवादी को दिया, तो जाकर देखा, वह कम्प्लीट केबिन नहीं था, बलिक काउल अकेला था, पूछने पर, अनावेदक क्रमांक-1 ने कहा कि-उसने तो कम्प्लीट केबिन का आर्डर दिया था, किन्तु उसके उक्त आर्डर पर यही भेज दिया है, इसलिए वह उसे बदलवाकर दे- देगा। फिर दस-बारह दिन बाद संपर्क करने पर, अनावेदक क्रमांक-1 ने कहा कि-वह कम्प्लीट केबिन नहीं दिलवा सकता है, परिवादी द्वारा स्वयं कम्पनी से बात करने कहा गया, तो अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा उपलब्ध कराये गये फोन नंबर पर अनावेदक क्रमांक-2 व 3 से संपर्क किया, तो पहले हीलाहवाली की जाती रही, बाद में उनके द्वारा व्यक्त किया गया कि- वाहन का कम्प्लीट केबिन कम्पनी के द्वारा नहीं बनाया जाता है, इसलिए कम्प्लीट केबिन प्राप्त नहीं हो सकता है। फिर दिनांक-20.08.2013 को र्इ- मेल से भी टाटा मोटर्स कम्पनी को षिकायत दर्ज करार्इ गर्इ, तो हीलाहवाली की जाती रही, परिवादी ने संपूर्ण रकम लौटाये जाने का अनुरोध किया, पर उसे न रकम लौटार्इ गर्इ और न ही उक्त सामान केबिन दिया जा रहा है, जो कि-वाहन, केबिन के आभाव में खड़ा रहने से परिवादी को फायनेंस कम्पनी को अतिरिक्त ब्याज देना पड़ रहा है और अनावेदक क्रमांक-1 को अदा की गर्इ राषि पर भी ब्याज का नुकसान हो रहा है, जो कि-वाहन अनावेदकों की गलती से खड़ा है, जिससे 75,000-ेरूपये व्यवसायिक नुकसानी भी हो रही है। अत: केबिन हेतु जमा करार्इ गर्इ राषि ब्याज सहित वापस दिलाने और हर्जाना दिलाने का अनुतोश चाहा गया है। 
(4)        अनावेदक क्रमांक-2, 3 और 5 का पृथक से कोर्इ जवाब पेष नहीं, उनकी ओर से पृथक से कोर्इ अधिवक्ता-पत्र भी पेष नहीं।
(5)        अनावेदक क्रमांक-4 टाटा कम्पनी के जवाब का सार यह है कि-परिवादी ने उक्त वाहन-डम्फर-ट्रक को वाणिजियक प्रयोजन के लिए खरीदा है और वह स्वरोजगार के लिए खरीदी होने का परिवाद का मामला नहीं, इसलिए परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (डी) के तहत उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आता, इसलिए परिवाद संधारणीय नहीं है, जबकि-विपक्षीगण के मध्य आपसी संबंध प्रिंस्पल-टू-प्रिंस्पल के आधार पर हैं, इसलिए अन्य विपक्षियों के किसी त्रुटि के लिए अनावेदक कम्पनी जिम्मेदार नहीं है, जो कि-अनावेदक के पास परिवादी के उक्त दुर्घटनाग्रस्त वाहन के केबिन की डिमांड आर्इ थी, अनावेदक द्वारा निर्मित किये गये सभी पार्टस के नंबर, पार्टस केटलाग में दिये गये हैं, जिसमें केबिन के नाम से कोर्इ भी नंबर पार्टस हेल्प लार्इन पर व पार्टस केटलाग में उपलब्ध नहीं था, जो कि-हेल्प लार्इन में काउल का नंबर मिला, अत: केबिन की बजाय काउल पार्टस प्राप्त हुआ, इसलिए कम्पनी द्वारा डीलर को काउल पार्टस भेज दिया गया और काउल के उपर केबिन का निर्माण किया जा रहा है, निर्माण हो जाने पर, केबिन प्राप्त हो जाने पर, परिवादी को उपलब्ध करा दिया जायेगा, जो कि-काउल पर निर्माण कर, उसे केबिन में बदलने पर, जो डिफ्रेंस राषि आर्इगी, उसे परिवादी, अनावेदक को देने के लिए उत्तरदायी होगा, जो कि-अनावेदक क्रमांक-4 द्वारा ऐसा कोर्इ कृत्य नहीं किया गया है, जो सेवादोश की श्रेणी में आता हो।
(6)        अनावेदक क्रमांक-1 के जवाब का सार यह है कि-अनावेदक क्रमांक-1 ने, परिवादी को कम्प्लीट केबिन की राषि 4,57,413-रूपये बतार्इ थी, इनमें से परिवादी ने मात्र 2,70,000-रूपये की ही राषि जमा करार्इ, षेश राषि 1,86,713-रूपये परिवादी पर टाटा कम्पनी की षेश राषि बची हुर्इ है, जो कि-अनावेदकगण द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 के माध्यम से परिवादी को कम्प्लीट केबिन दिनांक-15.10.2013 को उपलब्ध कराकर पावती प्राप्त की गर्इ है, जो कि-अपनी संतुशिट योग्य कम्प्लीट केबिन प्राप्त करने के बावजूद भी, परिवादी द्वारा, अनावेदकों को षेश राषि अदा नहीं की गर्इ है और परिवादी द्वारा झूठा परिवाद डालकर, षेश राषि प्रदान करने में हीलाहवाली की जा रही है। अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी से प्राप्त चेक 2,70,700-रूपये के टाटा मोटर्स के संबंधित व्यकितयों को तत्काल पहुंचाकर आर्डर दे-दिया गया है, परिवादी के प्रति- कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है। और परिवादी ने झूठे व मनगढ़ंत आधारों पर परिवाद पेष किया है, जो निराधार होने से निरस्त योग्य है।
(7)        तर्क में परिवादी-पक्ष द्वारा भी अनावेदक क्रमांक-1 से नया केबिन प्राप्त कर, पावती दे-दिया जाना स्वीकार किया गया है।
(8)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में होकर, उसका
            परिवाद उपभोक्ता फोरम में संधारणीय है?
        (ब)    क्या अनावेदकों द्वारा, परिवादी को नया केबिन 
            उपलब्ध कराने में अनुचित विलम्ब कर, परिवादी 
            के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है?
        (स)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(9)        न्यायदृश्टांत-2009 (भाग-2) सी0पी0जे0 402 (माननीय राश्ट्रीय आयोग) मीरा इण्डस्ट्रीज बनाम मोडर्न कन्ट्रक्षन्स 2012 (भाग-2) सी0पी0जे0 350 (राश्ट्रीय आयोग) गुरूवक्स लाजिसिटक इंडिया बनाम एक्षन कान्स्टक्षन इकिवपमेन्ट लिमिटेड व अन्य तथा अन्य बहुत सारी माननीय राश्ट्रीय आयोग की लगातार प्रतिपादनाओं में यह विनिष्चत किया गया है कि-किसी भी वाणिजियक मालवाहन का उपयोगकत्र्ताक्रेता जिसके द्वारा, उक्त माल का उपयोग धन कमाने के प्रयोजन से किया जा रहा हो या किया जाना हो, वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता की परिभाशा से बाहर होगा, बषर्ते कि-उसके द्वारा, उक्त माल सेवा को स्वानियोजन से परिवार के भरण-पोशण मात्र के लिए न किया जा रहा हो, जो कि-वाहन की सिथति में उपयोगकत्र्ता के द्वारा, अन्य ड्रायवर को नियोजित न कर, स्वानियोजन के तहत वाहन को स्वयं ड्रार्इव किया जाता हो और उससे मात्र परिवार के भरण-पोशण योग्य आय प्राप्त होती हो, जो कि-वही आय परिवार के भरण-पोशण का साधन हो और इन संबंध में परिवाद में तथ्यात्मक उल्लेख कर, उसे साक्ष्य से प्रमाणित करने का भार परिवादी-पक्ष पर है।
(10)        परिवादी का उक्त वाहन-डम्फर ट्रक के रूप में वर्गीकृत वाहन है, यह प्रदर्ष सी-3 की रजिस्ट्रेषन की प्रति से स्पश्ट है और वह मालयान है, जिसके लिये प्रदर्ष सी-1 का फिटनेष प्रमाण-पत्र भी परिवादी-पक्ष की ओर से पेष किया गया है, तो परिवादी का उक्त वाहन, मालयान होकर, लाभ कमाने के लिए व्यवसायिक प्रयोजन से उपयोग किये जाने वाला वाहन है, परिवादी के पास अन्य कितने वाहन हैं, आय के अन्य कितने साधन हैं, इस संबंध में परिवादी-पक्ष की ओर से कोर्इ भी तथ्य न तो परिवाद में दर्षाये गये हैं, न ही इस बाबद कोर्इ साक्ष्य पेष हुर्इ है। उक्त वाहन चलाने के लिए ड्रायवर कौन रहा है और परिवादी के पास कोर्इ ड्रायविंग लायसेंस है या नहीं, ऐसा कुछ भी न तो परिवाद में वर्णित है, न ही ऐसा कोर्इ परिवादी-पक्ष का साक्ष्य है। तो परिवादी उक्त वाहन का वाणिजियक उपयोगकत्र्ता है और इसलिए वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में समिमलित व्यकित होना स्थापित नहीं पाया जाता है। और इसलिए उसकी ओर से पेष यह परिवाद उपभोक्ता फोरम में संधारणीय होना नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(11)        परिवाद के अनुसार, परिवादी का उक्त डम्फर 24 मर्इ-2013 को दुर्घटनाग्रस्त हुआ, जो कि-ऐसे यान का मालिक होने से यह सामान्य तथ्य निषिचत रूप से उसकी जानकारी में रहा है कि-किसी भी व्यवसायिक यान निर्माता कम्पनी द्वारा, बड़े वाहन-ट्रक, बस, डम्फर आदि के केबिन या कोच वा लकड़ी से निर्मित होने वाले भाग का निर्माण नहीं किया जाता है, जो कि-निर्माता मोटर कम्पनी से काउल खरीदकर, उस पर केबिन या षेश चेचिस का निर्माण उपयोगकत्र्ता ही अपने अनुसार आर्डर देकर करवाता है।
(12)        स्वयं परिवाद से यह स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-1 ने, अनावेदक क्रमांक-2 व 3 से फोन पर चर्चा कर, परिवादी को 2,70,700- रूपये, उक्त नये मोटर पार्टस बाबद बताया था, परिवादी ने उक्त हेतु दिनांक-02.07.2013 को 2,70,700-रूपये का चेक अनावेदक क्रमांक-1 को प्रदान किया और अनावेदक क्रमांक-1 ने टाटा मोटर्स कम्पनी में उक्त हेतु आर्डर भेजा, तो लगभग 20 दिन के अंदर ही कम्पनी से काउल आ गया था, जिसकी सूचना भी परिवादी को दी गर्इ, हालांकि अनावेदक क्रमांक-1 ने उक्त तथ्य से इंकार किया है, लेकिन अनावेदक क्रमांक-4 की ओर से पेष जवाब से यह सिथति स्पश्ट है कि-कम्पनी के द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को काउल समुचित समय में उपलब्ध करा दिया गया था और अनावेदक क्रमांक-4 ने अपने जवाब में यह सिथति भी स्पश्ट की है कि- उनकी मोटर कम्पनी द्वारा, केबिन निर्माण नहीं किया जाता, बलिक मोटर पार्ट के रूप में मात्र काउल विक्रय किया जाता है, जो कि-पार्ट केटलाग में भी हैल्प लार्इन के माध्यम से खोजने पर काउल का ही नंबर मिला था, इसलिए डीलर, अनावेदक क्रमांक-1 को काउल पार्ट ही भेज दिया गया था, जो कि-प्रदर्ष सी-2 से मात्र यह लेख है कि-कम्प्लीट केबिन हेतु परिवादी से 2,70,700-रूपये जरिये चेक प्राप्त हुये, लेकिन मात्र उतनी राषि में ही कम्प्लीट केबिन विक्रय किये जाने की कोर्इ संविदा परिवादी और अनावेदक क्रमांक-1 की रही हो, ऐसा प्रदर्ष सी-2 या परिवादी की ओर से पेष अन्य कोर्इ दस्तावेज में उल्लेख नहीं। परिवाद से दर्षित होता है कि-जो 2,70,700-रूपये मूल्य की जानकारी अनावेदक क्रमांक-1 ने, परिवादी को दी, वह कम्पनी को मेनेजिंग कार्यालयों (अनावेदक क्रमांक-2 व 3 के कार्यालय) से प्राप्त की गर्इ सूचना के आधार पर बताये गये थे, जो वास्तव में काउल का ही मूल्य था, जबकि-स्वयं परिवादी की ओर से उसे प्रदर्ष सी-4 का जो एक स्टीमेंट पेष किया गया है, उसमें क्रमांक-43 पर कम्प्लीट वाडीसेल ही 3,87,000-रूपये का अनुमानित होना और 20,000-रूपये उसके स्थापित किये जाने का लेबर चार्ज होना अनुमानित किया गया है।
(13)        प्रदर्ष सी-9 की परिवादी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-4 कम्पनी को 20 अगस्त-2013 को भेजी षिकायत में भी परिवादी की ओर से यही कहा गया है कि-अनावेदक क्रमांक-2 और 3 से चर्चा करने पर उनके द्वारा, कम्पनी द्वारा, केबिन उपलब्ध या विक्रय न किया जाना कहा गया है। और परिवादी को केबिन की मांग की अनदेखी की जा रही है, जो कि- षीघ्रतम केबिन की मांग परिवादी द्वारा की गर्इ, जबकि-यह परिवादी भी जानता था कि-काउल के उपर केबिन के निर्माण किये जाने में कुछ समय तो लगेगा, जो कि-दिनांक-20.08.2013 को परिवादी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-4 की कम्पनी को भेजी गर्इ षिकायत के बाद परिवादी ने कभी पुन: अनावेदक कम्पनी या उसके किसी मेनेजिंग आफिस में जानकारी लिया हो अथवा षीघ्र केबिन निर्माण न करने पर परिवाद पेष करने की कोर्इ चेतावनी दी हो, ऐसा दर्षित नहीं, बलिक 20 अगस्त-2013 को उक्त प्रदर्ष सी-9 का मैसेज भेजने के बाद, 12 दिन में ही यह परिवाद दिनांक-02.09.2013 को परिवादी-पक्ष की ओर से पेष कर दिया, तो प्रदर्ष सी-9 का अनावेदक क्रमांक-4 की कम्पनी को भेजी गर्इ परिवादी की षिकायत स्वयं में कोर्इ पर्याप्त वाद-कारण होना दर्षित नहीं है। जबकि-दिनांक-15.10.2013 को परिवादी को कम्प्लीट केबिन की डिलीवरी दे-दिया जाना प्रदर्ष आर-4 की परिवादी की रसीद से स्पश्ट है और उसके साथ में पी.एम.आर्इ. कोचस प्रायवेट लिमिटेड के टेक्स इनवार्इस दिनांक-04.10.2013 प्रदर्ष आर-2 जो उक्त कोच कम्पनी द्वारा आर्डर देने वाले अनावेदक क्रमांक-1 को भेजा गया है, उससे स्पश्ट है कि-दिनांक-04.10.2013 तक उक्त कोच, निर्माण कम्पनी द्वारा, काउल पर केबिन का निर्माण कर लिया गया था और अनावेदक क्रमांक-1 को भेज दिया गया था, तो किसी भी तरह से कोर्इ अनुचित विलम्ब काउल पर केबिन का निर्माण कर, परिवादी को भिजवाने बाबद दर्षित नहीं, परिवादी के कहने पर ही, अनावेदक क्रमांक-1 ने काउल पर उक्त केबिन निर्माण करने का आर्डर भेजा, जो कि-उक्त कोच निर्माण कम्पनी द्वारा दिये गये टेक्स इनवार्इस का बिल प्रदर्ष आर-2 जो अनावेदक क्रमांक-1 को प्राप्त हुआ, वह मामले में पेष किया गया है। 
(14)        स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-1 मात्र परिवादी की ओर से आर्डर देने वाला व्यकित रहा है, परिवादी और अनावेदक क्रमांक-1 के बीच कोर्इ भी अनुबंध किसी निषिचत मूल्य पर केबिन निर्माण कर दिये जाने का रहा होना दर्षित नहीं, जो कि-काउल का मूल्य और उस पर केबिन निर्माण के बिल की राषि अदा करने के दायित्व से परिवादी मात्र इस आधार पर नहीं बच सकता कि-अनावेदक क्रमांक-1 ने षुरू में उसको टाटा मोटर्स कम्पनी के किसी कार्यालय में फोन पर चर्चा कर, 2,70,700-रूपये मूल्य बता दिया है।
(15)        स्पश्ट है कि-केबिन उपलब्ध कराने में अनावेदक-पक्ष द्वारा, परिवादी को कोर्इ अनुचित विलम्ब कारित किया जाना या परिवादी से कोर्इ अनुचित मूल्य की मांग किया जाना और इस तरह परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी या अनुचित व्यापार-प्रथा को अपनाया जाना प्रमाणित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।  
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):- 
(16)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में न होने से परिवाद संधारणीय होना नहीं पाया जाता है और अन्यथा भी गुण-दोशों पर भी परिवाद निरस्त योग्य होना पाया जाता है।
(17)        तो मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
        (अ)    परिवादी का यह परिवाद संधारणीय न होने और
            गुण-दोशों पर भी संधारणीय न होने से निरस्त
            किया जाता है।
        (ब)    परिवादी स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और
            अनावेदक क्रमांक-1 व 4 में-से प्रत्येक को कार्यवाही
            व्यय के रूप में 2,000-2,000-रूपये (दो-दो हजार
            रूपये) अदा करेगा।
        (स)    उक्त अदायगी आदेष दिनांक से तीन माह की अवधि
            के अंदर की जावे।                                
   मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
      सदस्य                                        अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी              

            (म0प्र0)                                        (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

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