जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
छोटूलाल जाट पुत्र श्री कानाराम जाट, जाति- जाट, निवासी-ग्राम फारकिया, तहसील- केकडी, जिला-अजमेर ।
प्रार्थी
बनाम
1. एस.पी.खेतीबारडी केन्द्र जरिए मालिजक/प्रभारी खिडकी गेट, केकडी, जिला-अजमेर ।
2. एस.एफ.सी.आई लिमिटेड जरिए प्रबन्धक/प्रभारी, लखनउ(उ.प्र.)
3. स्टेट फार्मस कारपोरेषन आफ इण्डिया लिमिटेड जरिए मैनेजर/प्रभारी, फार्म भवन 14-15, नेहरू पैलेस, न्यू देहली-110019
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 70/14(433/2010)
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. विजेन्द्र कुमार मेहता सदस्य
3. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री राजेन्द्र प्रसाद षर्मा, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री एस.एन.हावा, अधिवक्ता अप्रार्थी सं.1
3. श्री राजेष चैधरी, अधिवक्ता, अप्रार्थी सं.2 व 3
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः- 12.11.2014
1. यह परिवाद पूर्व में इस मंच द्वारा बाद सुनवाई दिनंाक 8.6.2011 को खारिज कर दिया गया जिसकी अपील प्रार्थी द्वारा माननीय राज्य आयोग में हुई एवं अपील के निर्णय दिनांक 23.1.2013 से प्रकरण पुनः नम्बर पर लिया गया तथा माननीय राज्य आयोग ने अपील के निर्णय में ये निर्देष दिए कि यह मंच इस प्रकरण से संबंधित तकनीकी रिर्पोट जो पत्रावली पर पेष हुई , के दृष्टिगत परिवाद को पुनः गुणावगुण पर निर्णित करें ।
2. परिवाद के संक्षिप्त तथ्य इस तरह से है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से उडद का प्रमाणित बीज टी-9 रू. 960/- में 12 किलोग्राम रसीद संख्या 9013 के क्रय किया और क्रए किए गए बीज को उसने अपने खेत में बोया और फसल उगाने के 75 दिन बाद उसमें से फाल व फलिया नहीं आई तो उसने अप्रार्थी संख्या 1 से षिकायत की जिस पर अप्रार्थी संख्या 1 ने दवा छिडकने का सुझाव दिया तो उसने अप्राथी संख्या 1 से दवाईयां लेकर फसल पर छिडकाव भी किया किन्तु कोई परिणाम नहीं निकला । तत्पष्चात् उसके द्वारा कृषि विभाग में षिकायत किए जाने पर विभाग द्वारा तकनीकी रिपार्सेट बनाई गई जिसके अनुसार बीज की किस्म अच्छी नही ंहोने के कारण फसल में फाल व फलियां नहीं आई है । इस प्रकार अप्रार्थी द्वारा खराब बीज दिए जाने के कारण उसकी 6 बीघा भूमि में पैदावर से वंचित होना पडा जिससे उसे आर्थिक नुकसान हुआ । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
3 परिवाद का उत्तर प्रस्तुत करते हुए अप्रार्थी संख्या 1 ने दर्षाया है कि भारत सरकार के संस्थान अप्रार्थी संख्या 2 व 3 द्वारा निर्मित टी-9 किस्म उडद का बीज प्रार्थी द्वारा उत्तरदाता अप्रार्थी से मांगे जाने पर सीलषुदा थैली में विक्रय किया गया।
अप्रार्थी का कथन है कि उडद एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है जिसके लिए आर्द्र एवं गर्म जलवायु की आवष्यकता होती है और 40 से 60 से.मी. वार्षिक वर्षा क्षेत्र उदड की खेती के लिए उपयुक्त होता है । चूंकि वर्ष 2010 में अधिक वर्षा होने के कारण फसलें खराब हो गई थी तथा समय पर निराई गुडाई नहीं करने व कीटनाषक व दवाईयों का समुचित मात्रा में प्रयोग नही ंकरने के कारण फसल खराब हुई और बिना कृषि अधिकारियों की सलाह के रसायनों के प्रयोग से भी फसल खराब हो जाती है और इसी कारण से प्रार्थी की पैदावर नहीं हुई है । फसल में फलियां नहीं आने या निषेचन नहीं होने के कई कारण होते है यथा जैसे क्षेत्र विषेष के लिए उपर्युक्त प्रजाति का ना होना, अधिक मात्रा में खाद का प्रयोग करना, असन्तुलित मापदण्डों पर खाद बीज की बुवाई तथा कार्यकुषलता तथा मौसमी वातावरण व जलवायु का भी असर होता है । वर्ष 2010 में लगातार अधिक वर्षा व कम तापमान के कारण इस जीन्स के पौधों में वृद्वि होती रही इस कारण फलिया कम लगी तथा बादल बने रहने, धूप नहीं निकलने के कारण प्रकाष नहीं मिलने की वजह से भी फसल पर विपरीत प्रभाव पडता है । प्रार्थी के अलावा अन्य किसी किसान ने इस किस्म के संबंध में कोई षिकायत प्रस्तुत नहीं की और ना ही प्रार्थी ने कृषि अधिकारियों को सूचित किया ओर ना ही फसल की कोई जांच कराई । परिवाद खारिज होना दर्षाया ।
4. अप्रार्थी संख्या 2 व 3 ने जवाब प्रस्तुत कर कथन किया है कि उत्तरदाता अप्रार्थीगण देष के कई प्रदेषों में विभिन्न जलवायु के अन्तर्गत प्रजनक एवं प्रमाणित बीजों का कृषि विषेषज्ञों की देखरेख में उत्पादन करते है और बीजों का उत्पादन वहां की भूमि की गुणवत्ता, जलवायु, समय पर निराई गुडाई एवं देवी आपदा पर निर्भर करता है । अप्रार्थी संख्या 1 उनका अधिकृत बीज विक्रेता नहीं है । प्रार्थी ने जब अप्रार्थी संख्या 1 से बीज क्रय किया तो उसके बैग नं, टेग नं, लाॅट नंम्बर की सूचना उत्तरदातागण को नहीं दी । प्रार्थी ने बुआई के पष्चात् आई परेषानी बाबत् अप्रार्थीगण को कभी भी सूचित नहीं किया और यदि पेरषानी बताई जाती तो अप्रार्थीगण कृषि विषेषज्ञों से परेषानी दूर करनेे के प्रार्थी को उपाय बतलाते । प्रार्थी ने अपने खेत में बीजो का किस प्रकार व किस दर से उपयोग किया यह परिवाद में अंकित नहीं किया है और ना ही भूमि का परीक्षण करवाया है । उनके स्तर पर कोई कमी नही ंरहीं है । अन्त में परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना की है ।
5. हमने पक्षकारान को सुना एवं पत्रावली का अनुषीलन किया ।
6. परिवाद की चरण संख्या 1 में वर्णितानुसार बीज प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से क्रय किया, यह तथ्य अप्रार्थी संख्या 1 के जवाब से स्वीकृतषुदा है । अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा यह बीज अप्रार्थी संख्या 2 व 3 द्वारा निर्मित व प्रमाणित किस्म का होना भी दर्षाया है । अप्रार्थी संख्या 2 व 3 ने अप्रार्थी संख्या 1 को स्वयं का अधिकृत बीज विक्रेता नही ंहोना अवष्य बतलाया किन्तु प्रष्नगत बीज टी-9 राजधानी उनका उत्पाद न हो इस तथ्य को स्पष्ट रूप से इन्कार नहीं किया है । इस तरह से प्रष्नगत बीज प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से क्रय किया एवं यह बीज अप्रार्थी संख्या 2 व 3 का उत्पाद था, तथ्य सिद्व पाए गए है । परिवाद व अप्रार्थीगण के जवाब के दृष्टिगत इस प्रकरण के निर्णय हेतु अब हमारे समक्ष निम्नांकित बिन्दु तय करने के लिए है:-
1. क्या प्रार्थी को विक्रय किए गए प्रष्नगत बीज के लिए अप्रार्थी संख्या एक ने उक्त बीज उच्च गुणवत्ता वाला एवं उसके खेत में बोने के लिए उपयुक्त होने का कथन करते हुए विक्रय किया ?
2. क्या प्रष्नगत बीज से उगी फसल में फाल व फॅलिया नहीं आई जिससे प्रार्थी अपने 6 बीघा में होने वाली फसल की आय राषि रू. 60,000/- लगभग से वंचित रहा एवं प्रार्थी ने इस बीज हेतु दी गई राषि व अन्य राषि भी खर्च की है । अत: क्या नुकसान की ये राषियां प्रार्थी अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी है ?
3. अनुतोष
7. उपरोक्त कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं पर आगे बढने से पहले हम अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा की गई बहस पर कि प्रार्थी ने उडद का यह बीज व्यावसायिक फसल उत्पाद करने हेतु लिया था एवं यह फसल एक व्यावसायिक फसल है , अतः प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है, पर गौर व विनिष्चय करना उचित समझते है । इस संबंध में हमारी विवेचना है कि अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने जवाब में ऐसा कोई एतराज नहीं लिया है । इसके विपरीत प्रार्थी ने अपने परिवाद की चरण संख्या 2 में प्रार्थी का मूलतः किसान होना व उसके व उसके परिवार की जीवकोपार्जन खेतीबाडी पर आश्रित होना बखूबी उल्लेख किया है । स्पष्टतः प्रार्थी ने यह बीज उडद की खेती करने हेतु लिया था एवं प्रार्थी ऐसी खेती अपने परिवार के जीवकोपार्जन के लिए करता है , अपने परिवाद में उल्लेख किया है । इस विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि प्रार्थी उपभोक्ता न हो , अप्रार्थी का यह कथन स्वीकार होने योग्य नहीं है ।
8. अब हम निर्णय बिन्दु संख्या 1 व 2 की ओर अग्रसर होते है । हम इन दोनो निर्णय बिन्दुओं का निर्णय एक साथ करना उचित समझते है । इस संबंध में हमने पक्षकारान के अधिवक्तागण की बहस सुनी जो उनके अभिवचनों के अनुरूप ही रही ।
9. अधिवक्ता प्रार्थी ने प्रार्थी द्वारा इस संबंध में कृषि विभाग में की गई षिकायत के संबंध में कृषि विभाग द्वारा एक कमेटी गठित कर उक्त कमेटी द्वारा दी गई तथ्यात्मक रिर्पोट जो पत्रावली पर उपलब्ध है, को आधारित करते हुए बहस की कि इस कमेटी के सभी सदस्य कृषि विषेषज्ञ थे एवं उन्होने प्रष्नगत फसल का मौके पर जाकर मुआयना किया तथा पाया कि उक्त फसल का बीज उत्तराखण्ड क्षेत्र की जलवायु के लिए उपयुक्त थी, अजमेर क्षेत्र के लिए उपयुक्त नही ंथी । अधिवक्ता प्रार्थी ने यह भी कथन किया कि पडौसी के खेत में स्वयं के उत्पादित बीज की फसल उगी हुई थी जिसमें अच्छी फलिया आई हुई थी जबकि प्रार्थी की बोई हुई इस फसल में फलियां नहीं के बराबर थी एवं तन्तु ज्यादा मात्रा में थे । अधिवक्ता प्रार्थी की बहस है कि प्रार्थी को अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा जब यह बीज विक्रय किया गया तो प्रार्थी को आष्वस्त किया गया था कि यह बीज उसका खेत जो कि अजमेर जिले में ही है, के लिए उपयुक्त है । अधिवक्ता की आगे बहस है कि अप्रार्थी संख्या 2 व 3 ने प्रष्नगत बीज को स्वयं का उत्पाद होने के तथ्य को बखूबी स्वीकार किया है । इस प्रकार प्रष्नगत बीज उच्च गुणवत्ता का न हो कर निम्न गुणवत्ता का था जिससे प्रार्थी के खेत में पूरी फसल नहीं हुई तथा वह फसल से वंचित रहा । प्रार्थी को इस बीज की राषि अदा करने के अलावा निराई गुडाई हेतु भी खर्चा करना पडा जिसे प्रार्थी सभी अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी है ।
10. अप्रार्थी संख्या 1 के अधिवक्ता की बहस रहीं है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से टी-9 राजधानी उडद के बीज की मांग की जो उसे विक्रय किया गया । इस अप्रार्थी ने प्रार्थी को यह कतई आष्वस्त नहीं किया था कि यह बीज उसके खेत हेतु उपयुक्त है और ना ही प्रार्थी ने इस अप्रार्थी से इस हेतु कूछ पूछा था । अधिवक्ता की आगे बहस है कि वर्ष 2010 में अत्यधिक वर्षा हुई थी जिससे फसलें खराब हो गई थी तथा प्रार्थी ने समय पर खेत की निराई गुडाई भी नही ंकी व आवष्यक कीटनाषक व दवाईयों का भी प्रयोग नही ंकिया जिससे भी यह फसल प्रभावित हुई है । उनकी बहस है कि जो रिर्पोर्ट पत्रावली पर है उसमें से किसी के कोई षपथपत्र पेष नहीं है । अतः यह रिर्पोट भी पढी नहीं जा सकती । अधिवक्ता की आगे बहस है कि प्रार्थी की यह फसल 15 क्विंटल हो जाती इसका कोई साक्ष्य या आधार प्रार्थी की ओर से पेष नही ंहुआ है । इस प्रकार प्रार्थी का यह परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है ।
11. अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या 2 व 3 की बहस है कि प्रष्नगत उत्पाद उनका अवष्य है किन्तु अप्रार्थी संख्या 1 उनका अधिकृत विक्रेता नही ंहै एवं यह बीज अप्रार्थी संख्या 1 ने उनके निर्देषानुसार बेचा हो ऐसा भी नहीं माना जा सकता । उनकी बहस है कि यह बीज उत्तराखण्ड क्षेत्र में बोने के लिए कृषि विषेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया है । इस तरह से अप्रार्थी संख्या 1 उनका अधिकृत विक्रेता नहीं होने से अप्रार्थीगण की कोई जिम्मेदारी नहीं है एवं स्वयं के विरूद्व परिवाद खारिज होना बतलाया ।
12. हमने बहस पर गौर किया । प्रार्थी ने प्रष्नगत बीज अप्रार्थी संख्या 1 से क्रय किया यह तथ्य स्वीकृतषुदा है तथा यह बीज अप्रार्थी संख्या 2 व 3 का है यह तथ्य भी सिद्व है । क्रय किए गए बीज से बोई हुई फसल सहीं रूप से उत्पादित नहीं होने पर प्रार्थी द्वारा की गई ष्किायत पर कृषि विभाग द्वारा जो जांच करवाई गई वह जांच कृषि विषेषज्ञों की एक समिति द्वारा की गई है तथा इस जांच रिर्पोट में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रार्थी के खेत में फसल के पौधों में फूल आने ष्षुरू हुए थे किन्तु फली बिल्कुल नहीं बन रही थी तथा तन्तु अत्यधिक रूप से पाए गए थे जबकि प्रार्थी के खेत के पडौस में ही अन्य व्यक्ति के स्वयं के उत्पादित बीज से उगाई हुई फसल में बहुत अच्छी फलियां थी व तन्तु बहुत कम थे । इसी रिर्पोट के अंतिम पैरा में यह भी उल्लेख हुआ था कि यह बीज उत्तराखण्ड तराई क्षेत्र के लिए उपयुक्त है तथा प्रार्थी का खेत जो अजमेर क्षेत्र में है, के लिए उपयुक्त नहीं होना दर्षाया है। प्रार्थी ने यह बीज रू. 960/- अदा कर क्रय किया है । प्रार्थी का इस संबंध में कथन रहा है कि अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थी को आष्वास्त किया कि यह बीज इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त है । हालांकि अप्रार्थी संख्या 1 ने इस तथ्य से इन्कार किया है लेकिन स्वाभाविक तौर पर कोई व्यक्ति अच्छी फसल प्राप्ति हेतु ही बीज क्रय करता है तो बीज की गुणवत्ता आदि के संबंध में क्रय करते वक्त विक्रेता से बीज की गुणवत्ता हेतु अवष्य पूछता भी है । अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या 1 की यह बहस कि प्रार्थी ने समय पर निराई गुडाई नहीं की, के संबंध में हमारी विवेचना है कि प्रार्थी जो कि एक प्रमाणित बीज महंगी कीमत में खरीद कर खेती करने वाला है तो उसके द्वारा समय पर निराई गुडाई नही ंकी हो, तथ्य मानने योग्य नहीं है । अधिवक्ता अप्रार्थी की यह भी बहस कि वर्ष 2010 में अत्यधिक वर्षा हुई थी जिससे यह फसल नहीं हो पाई, के संबंध में हमारी विवेचना है कि कृषि विषेषज्ञ की तथ्यात्मक रिर्पोट मे वर्णितानुसार प्रार्थी के खेत के पडोस में ही अन्य जो खेत था उसमें स्वयं के उत्पादित बीज की उडद की फसल थी जों अच्छी स्थिति में थी अर्थात यदि अत्यधिक वर्षा होती तो पडौस के खेत की फसल भी खराब होती । अप्रार्थी संख्या 2 व 3 की ओर से बहस की गई कि अप्रार्थी संख्या 1 उनका अधिकृत विक्रेता नहीं है लेकिन विवादित बीज उनका उत्पादन था इस तथ्य को अप्रार्थी संख्या 1 ने स्वीकार किया है एवं अप्रार्थी संख्या 2 व 3 ने स्पष्ट रूप से इन्कार भी नहीं किया है।
13. उपरोक्त विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से उडद का प्रमाणित बीज जो अच्छी फसल की प्राप्ति हेतु क्रय किया एवं उसकी बुआई की किन्तु उक्त बीज उच्च गुणवत्ता का नही ंहोने से प्रार्थी के उक्त बीज से कोई फसल नहीं हुई जिससे प्रार्थी फसल जो 6 बीघा में थी , उसकी आय से वंचित रहा तथा प्रार्थी को बीज विक्रय पैटे रू. 960/- खर्च करने पडे साथ ही अन्य खर्चा भी हुआ । हमारे विनम्र मत में प्रार्थी अपनी इस फसल के नहीं होने के संबंध में हुए नुकसान व अन्य व्यय की राषि अप्रार्थीगण से प्रार्थी प्राप्त करने का अधिकारी है । जहां तक फसल नहीं होने के संबंध में नुकसान कितनी राषि का हुआ इस संबंध में प्रार्थी के अनुसार 15 क्विंटल फसल होनी थी लेकिन इसका कोई आधार प्रार्थी ने नहीं बतलाया लेकिन प्रार्थी ने 12 कि.ग्रा उडद का यह बीज खरीदा है जो 5-6 बीघा की फसल हेतु आवष्यक होता है । प्रार्थी की ओर से उस वर्ष उडद की फसल के क्या भाव थे यह भी नहीं दर्षाए है लेकिन प्रार्थी ने 6 बीघा में उडद की फसल बोई यह तथ्य सिद्व हुआ है तथा इस फसल की बुआई में भी खर्चा भी हुआ, तथ्यों को देखते हुए हम प्रार्थी को अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा विक्रय किए गए बीज से कोई फसल नहीं होने के परिणामस्वरूप हुए नुकसान व फसल की बुआई आदि में हुई अन्य खर्च की एक मुष्त राषि रू. 20,000/- दिलाया जाना उचित समझते है । प्रार्थी अप्रार्थी से वाद व्यय आदि में भी समुचित राषि प्राप्त करने का अधिकारी है । अतः प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
14. (1) प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 लगायत 3 से संयुक्त व पृथक पृथक रूप से उसके खेत में में बीज जो अप्रार्थी संख्या 2 व 3 द्वारा उत्पादित था एवं अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा विक्रय किया गया था, कि बुआई उपरान्त कोई फसल नहीं होने से हुई क्षति की पूर्ति हेतु राषिरू. 20,000/- (अक्षरे रू. बीस हजार मात्र) प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(2) प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 लगायत 3 से संयुक्त व पृथक पृथक रूप से मानसिक क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय के मद में रू. 5000/- भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(3) क्रम संख्या 1 व 2 में वर्णित राषि अप्रार्थी संख्या 1 लगायत 3 प्रार्थी को इस आदेष से दो माह के भीतर अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावें ।
(4) दो माह में आदेषित राषि का भुगतान नहीं करने पर प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 1 लगायत 3 से संयुक्त व पृथक पृथक रूप से इस राषि पर निर्णय की दिनांक से तादायगी 09 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगा ।
(विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
15. आदेष दिनांक 12.11.2014 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
सदस्य सदस्या अध्यक्ष