राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-876/2017
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 51/2012 में पारित आदेश दिनांक 08.03.2017 के विरूद्ध)
Shashank Srivastava Son of Late Kaushal Kumar Srivastava aged about 30 Years R/o H.No. 84/58 Zarib Chauki Sisamau, Kanpur Nagar.
...................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. Senior Divisional Operating Manager, E.C. Railway Mugalsarai Pin. 232101.
2. Station Superintendent, Anwarganj Station, Kanpur Nagar.
3. Station Superintendent Kanpur Central Station, Kanpur Nagar.
...................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजीव कुमार श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 05.09.2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-51/2012 शशांक श्रीवास्तव बनाम वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक, पूर्व मध्य रेलवे मुगलसराय मण्डल व दो अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 08.03.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद खारिज कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री संजीव कुमार श्रीवास्तव उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थीगण
की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव ने वकालतनामा प्रस्तुत किया है, परन्तु अपील की सुनवाई के समय वह उपस्थित नहीं हुए हैं।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया है। मैंने अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह एक विकलांग व्यक्ति है। उसने दिनांक 07.02.2010 को यात्रा के लिए गाड़ी सं0-2397 महाबोधि एक्सप्रेस में कानपुर से दिल्ली जाने के लिए विकलांग आरक्षण में दो सीटें आरक्षित करायीं। उसे कोच सं0-एस.डी.-1 में सीट नं0-3 और उसके सहायक मीनू श्रीवास्तव को उसी कोच में सीट नं0-4 आरक्षित की गयी। निश्चित तिथि
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दिनांक 07.02.2010 को गाड़ी निर्धारित समय से लगभग तीन घण्टे देर से कानपुर सेण्ट्रल पर आयी तब उसे यह ज्ञात हुआ कि उक्त आरक्षित कोच सं0- एस.डी.-1 उक्त गाड़ी में नहीं लगा है। तब अपीलार्थी/परिवादी ने गाड़ी में उपस्थित टी0टी0 व पूंछताछ विभाग से जानकारी की, परन्तु उसे उपस्थित कर्मियों ने सही व समुचित उत्तर नहीं दिया। तब उसने स्टेशन अधीक्षक से जानकारी की तो उन्होंने कुछ भी बताने उसे इन्कार कर दिया। अत: अपीलार्थी/परिवादी यात्रा से वंचित हो गया। दूसरे दिन दिनांक 08.02.2010 को उसका टिकट भी वापस नहीं लिया गया। उसने सूचना अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत डी0आर0एम0 इलाहाबाद मण्डल से सूचना मांगी तो सूचना हेतु शुल्क गलत बताया गया और यह बताया गया कि पोस्टल आर्डर वरिष्ठ मण्डल वित्त प्रबन्धक उत्तर मध्य रेलवे इलाहाबाद को सम्बोधित करते हुए प्रेषित करें। तब उसने वरिष्ठ मण्डल वित्त प्रबन्धक उत्तर मध्य रेलवे इलाहाबाद से सूचना मांगी तो उसे बताया गया कि गाड़ी नं0-2397 महाबोधि एक्सप्रेस में एस.डी.-1 कोच के नामांकन के विषय में मांगी गयी जानकारी का सम्बन्ध इलाहाबाद मण्डल से नहीं है। उसका सम्बन्ध रेलवे के मुगलसराय मण्डल से है। अन्त में उसे श्री सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव वरिष्ठ मण्डल कार्मिक अधिकारी सहमण्डल जनसूचना अधिकारी पूर्व मध्य रेलवे मुगलसराय द्वारा यह जानकारी उपलब्ध करायी गयी कि गाड़ी सं0-2397 में एस.डी.-1 किस क्रम में उपयोग किया गया इसकी जानकारी नहीं
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है। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार वास्तविकता यह है कि एस.डी.-1 कोच सम्बन्धित ट्रेन में लगा ही नहीं था, इसलिए उसे समुचित उत्तर नहीं दिया गया है। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार उसे गलत टिकट निर्गत किया गया है, जिससे वह अपनी यात्रा से वंचित रह गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसके बहनोई श्री विजय श्रीवास्तव दिल्ली में सिविल इंजीनियर हैं। उन्होंने अपीलार्थी/परिवादी को सलाह दी थी कि वह दिनांक 08/09.02.2010 को दिल्ली आ जाये, उन्होंने कई बड़े बिल्डरों से उसकी नौकरी की बात कर रखी है, वह नौकरी लगवा देंगे, परन्तु वह दिल्ली नहीं पहुँचा, जिससे वह नौकरी से वंचित हो गया और उसे घोर मानसिक पीड़ा हुई। अत: परिवाद प्रस्तुत कर अपीलार्थी/परिवादी ने 10,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति एवं 1000/-रू0 लिखा-पढ़ी व टिकट खर्च की मांग की है। साथ ही वाद व्यय भी दिलाये जाने का अनुरोध किया है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि गाड़ी सं0-2397 महाबोधि एक्सप्रेस गया से दिल्ली के बीच चलती है। दिनांक 07.02.2010 को विकलांग कोच गार्ड के कोच/कैबिन के साथ लगा हुआ था।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 ने कहा है कि विकलांग कोटे का किसी भी ट्रेन में अलग कोच नहीं होता है। गार्ड
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के कोच के साथ लगा हुआ कोच ही विकलांग व्यक्तियों के लिए होता है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने यह कथन गलत किया है कि उसके द्वारा टी0टी0 व स्टेशन मास्टर से कोच के सम्बन्ध में जानकारी चाही गयी तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 ने कहा है कि उसे गलत पक्षकार बनाया गया है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 ने भी अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने उससे कोई पूछताछ विकलांग कोटे के सम्बन्ध में नहीं की थी। पूछताछ कार्यालय द्वारा मात्र गाड़ी के आने व जाने के सम्बन्ध में सूचना दी जाती है। लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि स्टेशन मास्टर की ड्यूटी प्रात: 10 बजे से सायं 5 बजे तक होती है, इसलिए अपीलार्थी/परिवादी द्वारा रात में स्टेशन मास्टर से बात करने की बात असत्य और निराधार है।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 ने कहा है कि विकलांगों के लिए कोई कोच अलग नहीं लगता है। विकलांगों का कोच हमेशा गार्ड के कोच से मिला होता है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 की ओर से कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त अपने निर्णय में अपीलार्थी/परिवादी
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द्वारा प्रस्तुत सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव वरिष्ठ मण्डल कार्मिक अधिकारी पूर्व मध्य रेलवे मुगलसराय के पत्रांक सं0-कार्मिक/आर.टी.आई. एक्ट-05/429/मुगल0 दिनांकित 25.01.2011 के आधार पर यह माना है कि दिनांक 07.02.2010 को गार्ड कोच के साथ विकलांग कोच था और इसके साथ ही जिला फोरम ने यह उल्लेख किया है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में एस.डी.-1 कोच में अपना आरक्षण होना बताया गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी के कथन में विरोधाभाष है और मात्र इसी आधार पर जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष अपने दोनों आरक्षित टिकट प्रस्तुत किये हैं। अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 07.02.2010 को यात्रा के लिए गाड़ी सं0-2397 महाबोधि एक्सप्रेस में कानपुर से दिल्ली के लिए विकलांग आरक्षण में दो सीटें कोच सं0- एस.डी.-1 में आरक्षित की गयी थीं। उसकी सीट का नं0-3 था और उसके सहायक मीनू श्रीवास्तव की सीट का नं0-4 था, परन्तु ट्रेन आने पर यह कोच ट्रेन में नहीं था और उसे विकलांग कोच की जानकारी पूछताछ करने पर भी उपस्थित टी0टी0 व स्टेशन मास्टर व अन्य कर्मचारियों ने नहीं दी। इस कारण वह अपनी आरक्षित सीट नहीं पाया और वह उस दिन ट्रेन से यात्रा नहीं कर सका।
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अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि गलत कोच नम्बर से टिकट अपीलार्थी/परिवादी को रेल विभाग द्वारा जारी किया जाना अपने आप में सेवा में कमी है। जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है। अत: जिला फोरम का निर्णय अपास्त करते हुए परिवाद स्वीकार किया जाये और अपीलार्थी/परिवादी को याचित अनुतोष प्रदान की जाये।
मैंने अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-1 में दिनांक 07.02.2010 को यात्रा के लिए गाड़ी सं0-2397 महाबोधि एक्सप्रेस में कानपुर से दिल्ली जाने के लिए विकलांग आरक्षण में दो सीटें आरक्षित कराने का कथन किया है और परिवाद पत्र की धारा-2 में कहा है कि उसे कोच सं0- एस.डी.-1 में दो सीटें आरक्षित की गयीं। उसको आरक्षित सीट सं0-3 थी और उसके सहयोगी मीनू श्रीवास्तव को आरक्षित सीट सं0-4 थी। अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-4 में कहा है कि दिनांक 07.02.2010 को जब ट्रेन आयी तो उसमें एस.डी.-1 कोच नहीं था। उसने विकलांग कोटे के कोच के सम्बन्ध में जानकारी टी0टी0 व अन्य रेल कर्मचारियों से टिकट दिखाकर की, परन्तु उसे कोई जानकारी नहीं दी गयी और उसे आरक्षित सीट नहीं मिली, जिससे वह उस दिन यात्रा से वंचित रहा।
प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 ने लिखित कथन में परिवाद पत्र की धारा-1 व 2 के कथन से इन्कार नहीं किया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी
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संख्या-3 ने भी अपने लिखित कथन में परिवाद पत्र की धारा-1 व 2 के कथन से इन्कार नहीं किया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथन का खण्डन नहीं किया गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी का यह कथन स्वीकार करने हेतु उचित आधार है कि दिनांक 07.02.2010 को उसने ट्रेन सं0-2397 महाबोधि एक्सप्रेस से कानपुर से दिल्ली जाने के लिए दो सीटें आरक्षित करायी थीं, जिस पर उसे कोच सं0- एस.डी.-1 में दो सीट अर्थात् सीट नं0-3 व 4 आरक्षित की गयी थी।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण संख्या-1 व 3 ने अपने लिखित कथन में परिवाद पत्र की धारा-4 के कथन से इन्कार किया है और उन्होंने कहा है कि विकलांग कोच गार्ड के कोच से मिला हुआ ट्रेन में लगा था। दोनों ने ही अपने लिखित कथन में यह नहीं कहा है कि विकलांग कोच का नं0- एस.डी.-1 था। अपीलार्थी/परिवादी को जो टिकट रेल विभाग द्वारा जारी किया गया था उसमें कोच नं0-एस.डी.-1 अंकित है और सीट नं0-3 व 4 अंकित है। अत: यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 07.02.2010 को कोच नं0- एस.डी.-1 में दो सीटें कानपुर से दिल्ली के लिए आरक्षित की गयी थीं, परन्तु एस.डी.-1 कोच उस दिन ट्रेन में लगा ही नहीं था। अत: ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट्या प्रमाणित है कि अपीलार्थी/परिवादी को रेल विभाग द्वारा गलत कोच नम्बर के साथ टिकट जारी किया गया था, जिससे वह उस दिन अपने प्राप्त टिकट से यात्रा नहीं कर सका है और यात्रा से वंचित हो गया है। अत:
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ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के रेल विभाग की सेवा में कमी मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है।
परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी के दोनों आरक्षित टिकट का मूल्य भी उसे यात्रा न कर पाने पर वापस नहीं किया गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी को उसके दोनों टिकट का मूल्य दिनांक 07.02.2010 से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस किये जाने हेतु आदेश पारित किया जाना आवश्यक है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसके बहनोई ने दिल्ली उसे नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था और कहा था कि बड़े बिल्डरों से उसकी नौकरी की बात की है। ऐसी स्थिति में दिनांक 07.02.2010 को अपीलार्थी/परिवादी द्वारा यात्रा न कर पाने के बाद दूसरे दिन भी यात्रा की जा सकती थी और कथित नौकरी प्राप्त की जा सकती थी। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि उस दिन यात्रा न कर पाने से अपीलार्थी/परिवादी की नौकरी चली गयी है, परन्तु उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी अपना टिकट आरक्षित कराने के बाद भी टिकट में कोच नम्बर गलत अंकित किये जाने के कारण यात्रा नहीं कर पाया है। अत: ऐसी स्थिति में उसे मानसिक और शारीरिक कष्ट अवश्य हुआ है। सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/परिवादी को मानसिक और शारीरिक कष्ट हेतु 10,000/-रू0 क्षतिपूर्ति दिलाया जाना उचित है।
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अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद 2012 में प्रस्तुत किया है। करीब 07 वर्ष का समय बीत चुका है और उसे अपील प्रस्तुत करनी पड़ी है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/परिवादी को 10,000/-रू0 वाद व्यय भी दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्कर्ष के आधार पर यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्त करने का जो कारण उल्लिखित किया है, वह उचित और विधिसम्मत नहीं है और जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर गलती की है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए परिवाद अंशत: स्वीकार किया जाता है तथा प्रत्यर्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 07.02.2010 को कानपुर से दिल्ली जाने के लिए दोनों आरक्षित टिकट का मूल्य दिनांक 07.02.2010 से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस करें। इसके साथ ही वे अपीलार्थी/परिवादी को मानसिक और शारीरिक कष्ट हेतु 10,000/-रू0 क्षतिपूर्ति भी अदा करें। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण, अपीलार्थी/परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000/-रू0 और अदा करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0, कोर्ट नं0-1