// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक CC/2014/263
प्रस्तुति दिनांक 17/12/2014
विवेक छिब्बा आत्मज स्व. प्रेमनाथ छिब्बा उम्र 45 वर्ष
निवासी-4/10, नेहरूनगर (पूर्व) भिलाई,
तह. व जिला दुर्ग छ.ग.,
द्वारा-मुख्तयार खास-राधेश्याम पाण्डेय
पिता-स्व. यू.एन.पाण्डेय, उम्र 50 वर्ष,
निवासी-सांई नगर दुर्ग,
तहसील व जिला दुर्ग छ0ग0. .....आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
दक्षिण पूर्वी मध्य रेल्वे बिलासपुर
द्वारा-महाप्रबंधक, एस.ई.सी.आर. बिलासपुर
तहसील व जिला बिलासपुर छ0ग0 .........अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 02/07/2015 को पारित)
1. आवेदक विवेक छिब्बा ने अपने खास मुख्तयार राधेश्याम पाण्डेय के जरिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक रेल्वे के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक रेल्वे से यात्रा के दौरान चोरी गई राशि 2,50,000/-रू. को क्षतिपूर्ति के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक आवश्यक कार्य से दिनांक 26.08.2014 को रायपुर से टाटा नगर गया था और वापसी के लिए दिनांक 28.08.2014 को मुंबई हावडा मेल के एसी बोगी में अपना रिजर्वेशन कराया था, जहॉं उसे बोगी क्रमांक ए-1 में 33 नं. का बर्थ प्रदान किया गया, जिसमें वह टाटा नगर से दुर्ग के लिए सफर कर रहा था । उक्त ट्रेन जब सुबह करीब 7 बजे बिलासपुर पहुंची तो आवेदक पाया कि उसका सूटकेस गायब है, जिसका उसने आस-पास तलाश किया और पता नहीं चलने पर जीआपी थाना रायपुर में रिपोर्ट दर्ज कराया । आवेदक का कथन है कि ट्रेन में यात्रा के दौरान सुरक्षा की संपूर्ण जिम्मेदारी अनावेदक रेल्वे की थी, किंतु उसके द्वारा समुचित सुरक्षा प्रदान नहीं की गई, जिसके कारण उसका सूटकेस चोरी गया, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज, चेक बुक, स्टाम्प पेपर, सील, डायरी, कंपनी के फाईल एवं नगदी 2,50,000/-रू. रखा हुआ था, आगे कथन है कि रकम को छोडकर शेष सामानों की जप्ती की गई, जो उसे रेल्वे न्यायालय के आदेशानुसार सुपुर्दनामा में प्राप्त हो चुका है, अत: उसने उक्त रकम की वसूली के लिए यह परिवाद पेश करना बताया है और अनावेदक से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
3. अनावेदक रेल्वे की ओर से जवाब पेश कर परिवाद का विरोध इस आधार पर किया गया कि आवेदक द्वारा बिलासपुर स्टेशन में सूटकेस चोरी होने की रिपोर्ट नहीं लिखाई गई और न ही इस संबंध में कोच के अटेंडेंट अथवा टी.टी.ई. को जानकारी दी गई जो घटना के तथ्यों को संदिग्ध बनाता है। साथ ही कहा गया कि आवेदक अपने सूटकेस को सीट के नीचे लगे लोहे के राड से बांधकर नहीं रखा था, जो उसकी स्वयं की लापरवाही को प्रदर्शित करता है । यह भी कहा गया कि आवेदक द्वारा अपना सूटकेस स्वयं के भार साधन में वहन किया जा रहा था, जिसके भीतर क्या सामान था, यह उन्हें उदघोषित नहीं किया गया था । यह भी कहा गया कि आवेदक को हुए कथित नुकसान के लिए रेल्वे के किसी सेवक की कोई उपेक्षा शामिल नहीं है, यह भी कहा गया कि रेल्वे केवल यात्रा कर रहे व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है उसके सामानों की नहीं । साथ ही यह भी अभिकथित किया गया है कि रेल्वे दावा अधिकरण की स्थापना के बाद मुआवजा के संबंध में सुनवाई का क्षेत्राधिकार फोरम को नहीं है, उक्त आधार पर अनावेदक रेल्वे द्वारा आवेदक के परिवाद को निरस्त किए जाने का निवेदन किया गया ।
4. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
5. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदक रेल्वे से वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है \
सकारण निष्कर्ष
6. इस संबंध में कोई विवाद नहीं कि आवेदक घटना दिनांक अनावेदक रेल्वे के मुंबई हावडा मेल में बोगी क्रमांक ए-1 के बर्थ क्रमांक 33 पर टाटा नगर से दुर्ग के लिए सफर कर रहा था । यह भी विवादित नहीं कि उक्त सफर के दौरान ट्रेन के बिलासपुर पहुंचने से पूर्व आरक्षित बर्थ से आवेदक का सूटकेस चोरी हो गया, जिसकी रिपोर्ट आवेदक द्वारा जीआरपी थाना रायपुर में दर्ज कराई गई । यह भी विवादित नहीं कि चोरी गए रकम के अलावा सूटकेस की जप्ती जीआरपी थाना बिलासपुर द्वारा की गई, जो सुपुर्दगी में आवेदक को प्राप्त हो गया है ।
7. आवेदक का कथन है कि उसे सुपुर्दनामे पर प्राप्त सामानों के अलावा कुछ अन्य आवश्यक सामान तथा सूटकेस में रखे गए 2,50,000/-रू. प्राप्त नहीं हो पाया, जिसके लिए अनावेदक रेल्वे जिम्मेदार है, जिसके द्वारा उसे सफर के दौरान सुरक्षा के संबंध में उचित सेवा प्रदान नहीं की गई ।
8. इसके विपरीत अनावेदक रेल्वे का कथन है कि आवेदक द्वारा अपना सूटकेस स्वयं के भार साधन में वहन किया जा रहा था, जिसके भीतर क्या सामान था, यह उनके सामने उदघोषित नहीं किया गया था, फलस्वरूप आवेदक के साथ घटित कथित घटना के लिए अनावेदक रेल्वे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उक्त घटना में आवेदक रेल्वे के किसी सेवक की कोई उपेक्षा अथवा अवचार शामिल नहीं है, बल्कि उक्त घटना स्वयं आवेदक की लापरवाही से घटित हुई, जो अपने सामान को सीट के नीचे लगे लोहे के कडे से बांध कर नहीं रखा था । यह भी कहा गया कि रेल्वे की जिम्मेदारी केवल यात्रा कर रहे व्यक्ति की सुरक्षा की होती है न कि उनके सामान की । उक्त आधार पर अनावेदक रेल्वे प्रश्नगत मामले में सहदायी उपेक्षा का सिद्धांत लागू करने का प्रयास किया है, जबकि रेल में यात्रा के दौरान सुरक्षा के मामले में संपूर्ण दायित्व रेल्वे प्रशासन का होता है और इसमें यात्री की ओर से सहदायी उपेक्षा का सिद्धांत लागू नहीं होता ।
9.मामले में अनावेदक रेल्वे का अपने दायित्व के संबंध में कथन है कि उनके लिए प्रत्येक व्यक्ति के सामान के लिए पृथक व्यक्ति की नियुक्ति संभव नहीं । साथ ही कहा गया है कि उनके द्वारा रेल्वे सुरक्षा बल का गठन किया गया है, जो ट्रेन के डिब्बों में अपना गश्त देते हैं । अनावेदक रेल्वे के इस कथन से जाहिर होता है कि उनके द्वारा आरक्षित कोच के लिए पृथक सुरक्षा गॉर्ड की व्यवस्था नहीं की जाती । अत: इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोई भी अनाधिकृत व्यक्ति आरक्षित कोच में प्रवेश कर सकता है । जबकि यह सुनिश्चित स्थिति है कि रेल यात्री रिजर्वेशन बोगी में अतिरिक्त राशि देकर इस विश्वास के साथ सफर करता है कि रेलव द्वारा उन्हें उचित सुरक्षा प्रदान किया जावेगा, जबकि यह आरक्षित कोच में स्पेशल गॉर्ड के अभाव में संभव नहीं । अत: इस संबंध में अनावेदक का यह कथन कि आवेदक के साथ घटित कथित घटना के लिए रेल्वे के किसी सेवक की उपेक्षा अथवा अवचार शामिल नहीं था स्वीकार किए जाने योग्य नहीं ।
10. अनावेदक रेल्वे की ओर से प्रश्नगत मामले में यह आपत्ति ली गई है कि रेल्वे दावा अधिकरण की स्थापना के बाद मुआवजा के संबंध में अन्य न्यायालय अथवा फोरम को संबंधित प्रकरण में सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, तत्संबंध में यहॉं यह स्पष्ट करना उचित प्रतीत होता है कि रेल्वे विभाग द्वारा जो सुविधा प्रदान की जाती है वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत परिभाषित सेवा की परिधि में आता है तथा अधिनियम में रेल्वे में यात्रा करने वाले यात्रियों की परिस्थिति उपभोक्ता की मानी गई है, अत: यह कहना गलत होगा कि रेल्वे के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर परिवाद फोरम के समक्ष प्रचलन योग्य नहीं ।
11. आवेदक की ओर से प्रकरण में संलग्न प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं रेल्वे न्यायालय के सुपुर्दनामा आदेश के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि आवेदक द्वारा सूटकेस के साथ जिन सामानों के चोरी होने की रिपोर्ट थाना में दर्ज कराई गई थी, उसमें से रकम को छोडकर शेष सामानों की जप्ती पुलिस द्वारा की गई थी । ऐसी स्थिति में उक्त सूटकेस में अन्य सामानों के साथ 2,50,000/.रूपये होने के संबंध में आवेदक के कथन को अविश्वसनीय नहीं ठहराया जा सकता । प्रकरण में उपलब्ध सामाग्री से यह स्पष्ट होता है कि आवेदक छ.ग. डिस्टलरी में अधिकारी है और वह यात्रा के पूर्व उक्त डिस्टलरी से 2,50,000/-रू. की राशि नकद प्राप्त किया था। अत: इस संबंध में आवेदक के कथन को कम करके आंका जाना न्याय संगत नहीं होगा ।
12. अनावेदक रेल्वे को ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा के संबंध में आवश्यक कदम उठाना चाहिए और यात्रा के दौरान यात्रियों के सामानों की उठाईगिरी को रोकना चाहिए, लेकिन ऐसी व्यवस्था करने के बजाए अनावेदक रेल्वे यात्रियों पर सहदायी उपेक्षा का सिद्धांत लागू कर अपने दायित्व से इंकार नहीं कर सकता । अनावेदक रेल्वे द्वारा यात्रा के दौरान आरक्षित कोच में सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था न होना सेवा में कमी की श्रेणी के अंतर्गत आता है ।
13. उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवेदक, अनावेदक रेल्वे के विरूद्ध सेवा में कमी का मामला प्रमाणित करने में सफल रहा है, अत: आवेदक के पक्ष में अनावेदक रेल्वे के विरूद्ध निम्न आदेश पारित करते है:-
अ. अनावेदक रेल्वे, आवेदक को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर उसके चोरी गए रकम 2,50,000/.रू. (दो लाख पचास हजार रू.) की राशि अदा करेगा ।
ब. अनावेदक रेल्वे, आवेदक को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 5,000/- रू.(पॉच हजार रू.) की राशि भी अदा करेगा।
स. अनावेदक रेल्वे, आवेदक को वादव्यय के रूप में 1,000/-रू. ( एक हजार रू.) की राशि भी अदा करेगा।
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य