जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-148/2008
दिलीप कुमार गुप्ता पुत्र परमेष्वर दीन गुप्ता निवासी हंसा स्वीट्स नवीन मण्डी के सामने देव नगर कालोनी रायबरेली रोड परगना हवेली अवध तहसील सदर जनपद फैजबाद।
.................. परिवादी
बनाम
1. भारतीय स्टेट बैंक आफ इण्डिया षाखा चैक फैजाबाद द्वारा षाखा प्रबन्धक भारतीय स्टेट बैंक षाखा चैक फैजाबाद।
2. उ0प्र0 सरकार द्वारा जिलाधिकारी कलेक्टर महोदय, फैजाबाद।
3. उ0प्र0 सरकार द्वारा तहसीलदार सदर फैजाबाद। .............. विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 28.08.2015
उद्घोशित द्वारा: श्री विश्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना में रुपये 95,000/- का ऋण दिनांक 25.01.2002 को 60 मासिक किष्तों की अदायगी पर लिया था जिसकी अदायगी 24.01.2007 तक को होनी थी। उक्त ऋण का खाता संख्या 10539043584 है। परिवादी के द्वारा बीमारी के कारण किष्त न जमा किये जाने पर परिवादी का ऋण खाता अनियमि हो गया जिसके लिये विपक्षी संख्या 1 ने परिवादी को नोटिस दिनांक 28.11.2007 दिया जिसमें बकाया धनराषि रुपये 50,945.87 बताया जिस पर ब्याज भी देय बताया। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा क्यों कि बैंक ने कहा कि दिनांक 17.12.2007 तक परिवादी के विरुद्ध वसूली प्रमाण पत्र जारी हो जावेगा। इस सम्बन्ध में परिवादी को यदि कुछ कहना हो तो वह अपनी स्थिति स्पश्ट करे। परिवादी ने दिनांक 31.10.2007 से दिनांक 27.12.2007 तक रुपये 6,000/- विपक्षी बैंक में जमा किया। परिवादी समस्त अदायगी करने विपक्षी बैंक गया तो विपक्षी बैंक ने रुपये 50,954.87 पर रुपये 13,500/- अतिदेय ब्याज की मंाग की। मगर हिसाब मांगने पर हिसाब नहीं दिया। दिनांक 21.11.2007 को परिवादी ने बैंक मंे प्रार्थना पत्र दिया कि परिवादी बैंक का समस्त रुपया जमा कर के खाता बन्द करना चाहता है। उसी दिन बैंक ने परिवादी से रुपये 45/- ले कर रुपये 10/- के तीन स्टाम्प पेपर मंगाये और उन पर अंग्रेजी में कुछ लिख कर परिवादी से जबरन हस्ताक्षर करवाये। दिनांक 29.02.2008, 16.03.2008 व 28.03.2008 को कुल रुपये 5,000/- परिवादी ने और जमा किया। परिवादी दिनांक 29.02.2008 को रुपये 55,000/- ले कर बैंक का हिसाब चुकता करने पहुंचा तो प्रबन्धक बैंक ने अंतिम कार्य दिवस होने के कारण रुपये ऋण खाते में जमा करने से मना कर दिया और कहा कि बचत खाते में जमा कर दो। परिवादी का बचत खाता 5 वर्श से संचालन न करने पर सीज हो चुका था तो उसमें भी रुपये नहीं जमा किये जा सके तो परिवादी रुपये 2,000/- अपने खाते में जमा कर के चला आया। दिनांक 28.03.2008 को परिवादी रुपये जमा करने पहुंचा तो विपक्षी बैंक ने बाद में आना कह कर मना कर दिया तब परिवादी रुपये 1,500/- जमा कर के लौट आया। दिनांक 15.05.2008 को सदर अमीन वसूली प्रमाण पत्र ले कर पहुंचे तो पता लगा कि वसूली प्रमाण पत्र दिनांक 05.03.2008 को ही जारी हो चुका था। दिनांक 19-05-2008 को परिवादी ने अमीन को रुपये 11,000/- दिये तो उन्होंने परिवादी को रुपये जमा करने का मौका दिया। परिवादी को भेजी गयी आर.सी. दिनांक 05.03.2008 में परिवादी के ऊपर दिनांक 29-02-2008 तक मूल धन रुपये 45,543.53 पैसे तथा ब्याज रुपये 11,734.45 पैसे की मांग की। बैंक ने पत्र दिनांक 25.05.2008 में 25.05.2008 तक मूल धन रुपये 33,143.53 पैसे एवं ब्याज रुपये 7,983.47 पैसे बकाया बताया। इस प्रकार बैंक की बेईमानी प्रमाणित होती है। परिवादी ने बैंक से सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सूचना दिनांक 03.06.2008 व 07.07.2008, को मंागी जिसका उत्तर विपक्षी बैंक ने गोल मोल दिया या उत्तर ही नहीं दिया। परिवादी ने विपक्षी बैंक को दिनांक 23.08.2005 को पुनः एक पत्र दिया जिसके उत्तर मंे बकाये का जो विवरण दिया वह आर0सी0 का विरोधाभासी है। विपक्षी बैंक ने यदि भुगतान का षड्यूल दिया होता तो परिवादी दिनांक 29-02-2008 तक पूरी अदायगी कर देता। आर0सी0 के बावजूद परिवादी रुपये जमा करता रहा। इसके बावजूद विपक्षी ने परिवादी को बैंक बुला कर अपमानित किया। परिवादी को विपक्षी संख्या 1 से स्पश्ट ब्याज व मूल जोड़वा कर तीस मास की किष्त बनवा दी जाय, परिवादी के विरुद्ध जारी आर0सी0 निरस्त करवायी जाय, दिनांक 29.02.2008 के बाद की गणना व अन्य चार्जेज निरस्त किया जाय, षारीरिक, मानसिक व आर्थिक कश्ट के लिये रुपये 4,50,000/- विपक्षी संख्या 1 से दिलाया जाय।
विपक्षी संख्या 1 बैंक ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी द्वारा
प्रधानमंत्री रोजगार योजना में ऋण लिया जाना स्वीकार किया है तथा परिवादी के परिवाद के अन्य कथनों से इन्कार किया है तथा कथित किया है कि विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। उत्तरदाता ने सही ब्याय व सही बकाये की गणना की है तथा उसी के अनुसार वसूली प्रमाण पत्र भेजा गया है। प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक स्टेट स्पांसर्ड स्कीम है जिसके ऋण की वसूली पब्लिक मनी रिकवरी आफ इन्ट्रूमेंट एक्ट के तहस की जा रही है। परिवादी का परिवाद पब्लिक मनी रिकवरी आफ ड्यूज एक्ट के प्रावधानों से बाधित है और पोशणीय नहीं है। परिवादी का परिवाद उ0प्र0 जेड0 ए0 एक्ट के प्रावधानों से भी बाधित है। उपरोक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। उत्तरदाता परिवादी से विषेश हर्जा प्राप्त करने का अधिकारी है।
विपक्षी संख्या 2 व 3 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के परिवाद के कथनों से इन्कार करते हुए कहा है कि विपक्षी बैंक द्वारा वसूली प्रमाण पत्र जारी किया जाना व क्षेत्रीय संग्रह अमीन को रुपये 11,000/- अदा किया जाना स्वीकार है। बैंक द्वारा वसूली प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद नियमानुसार वसूली की कार्यवाही की गयी है। उत्तरदातागण को बिना किसी कार्यकारण के पक्षकार बनाया गया है। जो प्रत्येक दषा में निरस्त किये जाने योग्य है।
पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, विपक्षी बैंक की आर0सी0 दिनांक 28.11.2007 की छाया प्रति, परिवादी द्वारा बैंक मंे रुपये जमा किये जाने की रसीदें दिनांक 13.12.2007, 29.01.2008, 16-03-2008 तथा 28.03.2008 की छाया प्रतियां, आर0सी0 दिनांक 05.03.2008 की छाया प्रति, बैंक के पत्र दिनांक 25.05.2008 की छाया प्रति, परिवादी के जनसूचना के पत्र दिनांक 30.06.2008 की छाया प्रति, विपक्षी बैंक के सहायक जनसूचना अधिकारी के पत्र दिनांक 07.07.2008 की छाया प्रति, जनसूचना में विपक्षी बैंक के पत्र दिनांक 23.07.2008 की छाया प्रति, परिवादी का विपक्षी बैंक को पत्र दिनांक 23.05.2008 की छाया प्रति, परिवादी के विपक्षी बैंक को पत्र दिनांक 23.08.2008 की छाया प्रति, विपक्षी बैंक के पत्र दिनांक 24.07.2008 की छाया प्रति, परिवादी के पत्र दिनांक 11.08.2008 की छाया प्रति, परिवादी के बीमारी के पर्चे दिनांक 14.04.2007 की छाया प्रति, परिवादी के टेस्ट रिपोर्ट एक्सरे रिपोर्ट दिनांक 15.04.2007 की छाया प्रतियां तथा परिवादी के ब्लड टेस्ट रिपोर्ट व कल्चर रिपोर्ट दिनांक 11.05.2007 की छाया प्रतियां दाखिल की हैं, जो षामिल पत्रावली हैं। विपक्षी बैंक ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन तथा राजेन्द्र कुमार षाखा प्रबन्धक का षपथ पत्र दाखिल किया है, जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी संख्या 2 व 3 ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन दाखिल किया है, जो षामिल पत्रावली है। परिवादी ने अपने कथन में कहा है कि दिनांक 29-02-2008 तक मूल धन रुपये 45,543.53 पैसे तथा ब्याज रुपये 11,734.45 पैसे की मांग बैंक ने परिवादी से की थी और बैंक ने पत्र दिनांक 25.05.2008 में दिनांक 25.05.2008 तक मूल धन 33,143.53 पैसे एवं ब्याज 7,983.47 पैसे बकाया बताया है। विपक्षी बैंक के पत्र दिनांक 25.05.2008 का अवलोकन किया बैंक के उक्त पत्र में परिवादी पर उक्त दिनांक को रुपये 7,983.47 ब्याज, रुपये 4,113/- संग्रह व्यय तथा मूलधन रुपेय 45,240/- बकाया लिखा है जिसका योग 57,336.47 होता है, जब कि परिवादी द्वारा दिनांक 29.02.2008 को बताये गयी धनराषि का योग रुपये 57,277/- होता है जो कि परिवादी ने इसे रुपये 41,126/- बताया है जो परिवादी द्वारा बताये गये अन्तर से मेल नहीं खाता है। परिवादी ने अपने परिवाद की धारा 10 में दिनांक 25.05.2008 के पत्र में दिनांक 25.05.2008 तक मूल धन रुपये 33,143.53 पैसे बताया है, जब कि विपक्षी बैंक के पत्र दिनांक 25.05.2008 में रुपये 33,143.53 पैसे का कहीं कोेई जिक्र नहीं है। परिवादी ने वसूली से बचने के लिये अपना परिवाद दाखिल किया है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 28.08.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष