जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़उपस्थितिः-(1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-02/2009
आशीष कुमार यादव पुत्र श्री नन्द किशोर यादव निवासी अमानीगंज शहर फैजाबाद परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद ................ परिवादी
बनाम
1- स्टेट बैंक आफ इण्डिया मुख्य शाखा फैजाबाद।
2- कलेक्टर महोदय फैजाबाद।
3- उप जिला मजिस्ट्रेट सदर महोदय फैजाबाद।
4- तहसीलदार तहसील सदर फैजाबाद .............. विपक्षीगण
निर्णय दि0 10.03.2016
निर्णय
उद्घोषित द्वारा-श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आदेश पारित करके विपक्षी सं0-1 द्वारा परिवादी के विरूद्ध मु0 1,52,998=00 की ऋण वसूली की जारी आर0सी0 दि0 20.11.208 निरस्त किया जाय तथा ऋण खाते में जमा किये गये धनराशि का समायोजन किये जाने हेतु योजित किया है।
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संक्षेप में परिवादी का परिवाद इस प्रकार है कि परिवादी शिक्षित बेरोजगार युवक है। उसने हाईस्कूल अंक पत्र/सर्टीफिकेट के आधार पर रोजगार हेतु आटो रिक्शा खरीदने के लिए सन् 1998 में विपक्षी सं0-1 के पास आवेदन किया। परिवादी के ऋण आवेदन प्रार्थना-पत्र पर तथा वर्मा आटो रिक्शा एजेन्सी गुदड़ी बाजार फैजाबाद के कोटेशन के आधार पर आटो रिक्शा खरीदने के लिए परिवादी को मु0 82,850=00 का ऋण विपक्षी सं0-1 द्वारा स्वीकृत किया गया। परिवादी ने ऋण स्वीकृति के बाद वर्मा आटो रिक्शा एजेन्सी गुदड़ी बाजार फैजाबाद से आटो रिक्शा जिसका रजिस्ट्रेशन नं0-यू0पी042सी/6302 है, खरीदा। दुर्भाग्यवश आटो रिक्शा के बार-बार बिगड़ने से तथा परिवादी के अस्वस्थ हो जाने के कारण ऋण के किश्तों की अदायगी परिवादी विपक्षी सं0-1 को समय से नहीं कर सका और कई किश्तें बकाया हो गयी, जिस कारण से विपक्षी सं0-1 ने दि0 31.05.2007 को मु0 75,552=00 की वसूली हेतु आर0सी0 परिवादी के खिलाफ जारी करके उसकी वसूली हेतु आर0सी0 विपक्षीगण 2 व 3 के माध्यम से विपक्षी सं0-4 तहसीलदार सदर फैजाबाद को भेज दिया। दि0 20.11.08 के बाद परिवादी विपक्षी सं0-1 से उसके बैंक में जाकर मिला तथा उनसे सारी बात बताकर और प्रथम बार दि0 31.05.07 को भेजी गयी मु0 75,592=00 की ऋण वसूली की आर0सी0 और उसके बाद परिवादी द्वारा उसमें जमा किये गये मु0 15,900=00 की अदायगी रसीद को दिखाकर उसका समायोजन परिवादी के ऋण खाते में करने तथा शेष ऋण धनराशि की सरल किश्त बांध देने और उसी ऋण वसूली के बाबत भेजी गयी दूसरी गलत आर0सी0 दि0 20.11.08 को वापस मंगा लेने की प्रक्रिया की विपक्षी सं0-1 आज कल करता रहा और अन्तत्वोगत्वा दि0 18.12.08 को परिवादी द्वारा की गयी ऋण अदायगी की धनराशि मु0 15,900=00 का समायोजन परिवादी के ऋण खाते में करने से और ऋण अदायगी हेतु किश्त बाॅंधने से तथा गलत ढंग से भेजी गयी दूसरी आर0सी0 दि0 20.11.08 को वापस लेने से इन्कार कर दिया। परिवादी तथा विपक्षीगण के मध्य लेन-देन के कारण परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है।
विपक्षी ने अपने जवाब में कहा कि परिवादी का यह कथन नितान्त असत्य है कि वह शर्तो के अनुसार किस्तों का भुगतान करता रहा। यदि नियमित रूप से किश्तों का भुगतान करता तो वर्ष 2007 में उसके विरूद्ध बकाया राशि मु0
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75,592=00 का वसूली प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया जाता। परिवादी ने बैंक द्वारा माॅंग किये जाने के बावजूद समस्त ऋण राशि का भुगतान नहीं किया तब मजबूरन बैंक ने बकाया राशि मु0 75,592=00 के वसूली हेतु नियमानुसार वसूली प्रमाण-पत्र दि0 31.05.07 को विपक्षी सं0-2 के पास भेजा। उपरोक्त राशि के अतिरिक्त समस्त ऋण राशि के अंतिम भुगतान तक का ब्याज भी परिवादी को अदा करना होगा। उपरोक्त वसूली प्रमाण-पत्र के अतिरिक्त अन्य कोई वसूली प्रमाण-पत्र विपक्षी मुजीव ने निर्गत नहीं किया।
मैं पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी। परिवादी शिक्षित बेरोजगार का ऋण विपक्षी सं0-1 से आटो रिक्शा हेतु लिया था। परिवादी ने अनुबन्ध की शर्तो के अनुसार विपक्षी सं0-1 के पैसे की अदायगी समय से नहीं किया जिसके कारण परिवादी के विरूद्ध दि0 31.05.07 को मु0 75,592=00 की वसूली हेतु प्रमाण-पत्र कलेक्टर को जारी कर दी गयी। परिवादी ने अनुबन्ध के शर्तो का पालन नहीं किया है और विपक्षी सं0-1 से लिये गये ऋण की अदायगी नहीं किया। इस परिवाद में परिवादी की कमी है। इस प्रकार परिवादी अपना परिवाद साबित करने में असफल रहा है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 10.03.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष