प्रकरण क्र.सी.सी./13/95
प्रस्तुती दिनाँक 03.05.2013
श्ंकर लाल साहू, आ. श्री. टी.आर.साहू, आयु-65 वर्ष, निवासी-कर्माभवन के पास, बजरंग पारा, कोहका, भिलाई तह व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. एस.बी.आई. लाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमि., शाखा कार्यालय-चैहान इस्टेट, चंद्रा मोर्या टाकीज के पास, जी.ई.रोड, सुपेला, भिलाई तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. एस.बी.आई.लाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमि., सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर-प्लाट नं.3/ए, सेक्टर-10, सी.बी.डी. बेलापुर, नवी मुंबई 400614
3. श्रीमती अनुसुईया मोगरे, ध.प. बी.एल.मोगरे, निवासी-29/7, राधिका नगर, भिलाई तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 02 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से निवेश की गई राशि की परिपक्वता राशि/फण्ड वेल्यू मय ब्याज दिलाये जाने, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू. वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने ऐजेंट अनावेदक क्र.3 द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर अनावेदक क्र.1 व 2 से अभिकथित बीमा पालिसी ली थी, अनावेदक क्र.3 ने विभिन्न जमा योजनाओं में रकम निवेश करने हेतु परिवादी को प्रेरित किया और यह बताया कि अभिकथित पालिसी में तीन वर्ष का लाॅकिंग प्रीरियेड और 5 वर्ष में फण्ड वेल्यू के आधार पर परिवादी जमा रकम प्राप्त कर सकता है या उक्त रकम को आगामी वर्षों के लिए नया फार्म भरकर निवेश कर सकता है। अनावेदक क्र.3 दी गई इन जानकारी पर विश्वास करते हुए परिवादी ने अभिकथित पालिसी ली और 6,00,000रू. का चेक वन टाईप इंवेस्टमेंट हेतु प्रदान किया।
(3) परिवादी का परिवाद इस आशय का भी प्रस्तुत है कि 5 वर्षों के पश्चात् दि.22.03.2012 को जब परिवादी ने अनावेदक क्र.1 के कार्यालय से सम्पर्क किया तो उसे परिवादी को पालिसी का स्टेटमेंट देने से इंकार कर दिया और कोई जानकारी नहीं दी गई कि फण्ड वेल्यू कितनी है और बाद में बताया गया कि फण्ड वेल्यू को पेंशन फण्ड में स्थानांतरित कर दिया गया है और एकत्रित राशि से केवल 33 प्रतिशत राशि ही प्राप्त कर सकते हैं उसे केवल फण्ड वेल्यू प्राप्त नहीं होगी। इस प्रकार अनावेदकगण ने परिवादी को कमीशन प्राप्त करने के आशय से आर्थिक हानि पहुंचाई, अनावेदक क्र.3 ने परिवादी को भ्रामक और गलत जानकारी देकर धन निवेश कराया और परिवादी से एकमुश्त राशि प्राप्त कर परिवादी के बिना अनुमति के प्रतिवर्ष जमा होने वाली योजना में डाल दिया, जबकि परिवादी एक वृद्ध व्यक्ति है, उसे ब्लडप्रेशर, शुगर की बीमारी है और जब परिवादी को किडनी की समस्या आई तो उसने इलाज में उसे अत्यधिक राशि लगने पर अनावेदकगण ने भी फण्ड वेल्यू प्रदान करने से इंकार कर दिया अतः इलाज हेतु रकम की व्यवस्था करने में अत्यधिक परेशानी उठानी पड़ी और परिवादी को रिश्तेदारों और परिचितों से उधार लेकर रकम की व्यवस्था कर अपना इलाज करना पड़ा, इस प्रकार परिवादी को घोर मानसिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा, जबकि परिवादी ने अपनी सेवानिवृत्ति की रकम अनावेदकगण की बातों और आश्वासन पर निवेश कर दिया था, परंतु अनावेदकगण ने अधिवक्ता मार्फत रजिस्टर्ड नोटिस के पश्चात् भी परिवादी से बिना विकल्प लिये दुर्भावनापूर्वक एकमुश्त राशि प्राप्त कर बिना परिवादी के अनुमति के प्रतिवर्ष जमा होने वाली योजना में डाल दिया, इस प्रकार अनावेदकगण द्वारा सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रथा किया गया। अतः परिवादी को अनावेदकगण से निवेश की गई राशि की परिपक्वता राशि/फण्ड वेल्यू मय ब्याज दिलाये जाने, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू. वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.1 व 2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अभिकथित पालिसी वन टाईम इन्वेस्टमेंट पालिसी नहीं थी। यूनिक, युनिक प्लान टू प्लन पेंशन की ली थी, जिसमें बीमाकर्ता व्यक्ति का काॅन्ट्रीब्यूशन पर्सनल पेमेंट एकाउण्ट एकत्र होना था और परिपक्वता के समय पासिली होल्डर को विकल्प देना था कि वह किस प्रकार का पेंशन विकल्प लेना चाहता है। उक्त पालिसी के शर्त के अनुसार बीमा होल्डर एकत्रित राशि का 33 प्रतिशत ही विड्राॅल कर कर सकता है, शेष बचत राशि को उसे अनावेदक बीमा कंपनी से एक युनिट बेनिफिट पेंशन के तहत योजना खरीदनी थी, इस प्रकार उक्त पाॅलिसी पेंशन प्लन थी और पेंशन के रूप में ही परिपक्वता राशि प्राप्त होनी थी, परिपक्वता राशि एकमुश्त वापस नहीं होना था, बल्कि उसकी केवल 33 प्रतिशत मात्र ही वापस होना था, क्योंकि बीमा कंपनी में पालिसी के तहत बीमित व्यक्ति को एन्यूटी के विभिन्न प्रकार का लोन का आॅपशन दी थी।
(5) अनावेदक का यह भी जवाब है कि दावा समयावधि से बाह्य है, क्योंकि परिवादी को पालिसी मार्च 2007 में दी गई थी और दि.22.03.2012 को पालिसी परिपक्व हुई और उसने 2013 में दावा प्रस्तुत किया है।
(6) अनावेदक क्र.1 व 2 का यह भी जवाबदावा है कि परिवादी ने प्रपोजल फार्म को हस्ताक्षर करके ही दिया था और तब बीमा पालिसी जारी की गई थी, जिसके नियम और शर्त को अब परिवादी चुनौती नहीं दे सकता है, क्योंकि परिवदाी ने प्रपोजल फार्म में यह घोषणा किया था कि वह बीमा पालिसी की शर्तों को समझ कर ही बीमा पालिसी ले रहा है और उक्त शर्त ही पक्षकारों के बीच संविदा का आधार है, परिवादी को बीमा पालिसी के शर्त के अनुसार फ्री लुक प्रीरियेड भी उपलब्ध था, परंतु परिवादी ने उस दौरान भी कोई आपत्ति नहीं उठाई।
(7) जवाबदावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि परिपक्वता के समय परिवादी को विकल्प देना था कि वह एकत्रित राशि का एक तिहाई हिस्सा प्राप्त करना चाहता है, या नहीं, शेष दो तिहाई हिस्से के संबंध में कौन से एन्यूटी का विकल्प दे रहा है, विकल्प प्राप्ति हेतु अनावेदकगण ने परिवादी को दि.20.02.2012 को स्पीट पोस्ट द्वारा भी सूचित किया था, परंतु परिवादी द्वारा एन्यूटी आॅपशन नहीं दिया और अब इस स्थिति में परिवादी द्वारा यह अभिकथन करना कि वन टाईम इंवेस्टमेंट के तहत कार्यवाही की जाये, निराधार है, क्योंकि उक्त बीमा पालिसी परिपक्वता पर पूरी रकम रिफण्ड करने की शर्त पर नहीं दी गई थी, उक्त बीमा पालिसी आई.आर.डी.ए. से एप्रूव्ड है, इस प्रकार अनावेदकगण द्वारा किया गया कृत्य सेवा में निम्नता या व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में नहीं आता है।
(8) अनावेदक क्र.3 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक क्र.3 से संपर्क किया गया व विभिन्न जमा योजनाओं की विस्तृत जानकारी ली गई व अपने पास रखे रकम को जमा योजनाओं मे जमा करने की मंशा जाहित करते हुए युनिक प्लस 2 पेंशन प्लान सूचनी में दिखाते हुए सहर्ष ही उक्त स्कीम में पैसा जमा कराया गया था। अनावेदक के द्वारा चेक क्र.972981 के माध्यम से जमा योजना के तहत पाॅलिसी दिया गया था। अनावेदक क्र.3 के द्वारा परिवादी को नोटिस का जवाब दे दिया गया था। अनावेदक क्र.3 को परिवादी के द्वारा परेशान करनें की नियत से यह झूठा परिवाद प्रस्तुत किया गया है। अनावेदक क्र.3 के द्वारा किसी प्रकार सेवा में कमी नहीं की गई, अतः प्रस्तुत दावा सव्यय निरस्त किया जावे।
(9) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदकगण से निवेशित राशि 6,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(10) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(11) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक क्र.3 अनुसुईया मोगरे को बीमा एजेंट के रूप में परिवादी ने उल्लेखित किया है। अनावेदक क्र.3 का जवाबदावा के चरण क्र.1 से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी खास कारण से अनावेदक क्र.3 ने देवेश मोगरे नामक व्यक्ति के नाम से आम मुख्तयारनामा निष्पादित किया है, अतः प्रथम दृष्टिया ही यह सिद्ध होता है कि अनावेदक क्र.3 श्रीमती अनुसुईया मोगरे वस्तुतः मात्र एजेंट के रूप में चिन्हित है, परंतु उनका कार्य देवेन्द्र मोगरे करते हैं, क्योंकि एनेक्चर-1 चैक के पीछे देवेश मोगरे का नाम उल्लेखित है, जिसमें देवेश मोगरे के हस्ताक्षर होना भी उल्लेखित है, जबकि अनावेदक क्र.1 व 2 बीमा कंपनी द्वारा जारी दस्तावेज एनेक्चर-4 में एजेंट का नाम श्रीमती अनुसुईया मोगरे उल्लेखित है, अर्थात् अनावेदक क्र.3, अनुसुईया मोगरे का प्रथमतः व्यवसायिक दुराचरण इस तथ्य से सिद्ध हो जाता है कि एजेंट का नाम वह स्वयं रखी है, परंतु वस्तुतः उनका कार्य किसी देवेश मोगरे द्वारा किया जाता है। अनावेदक क्र.1 और 2 ने इस संबंध में माॅनेटरिंग क्यों नहीं की, यह सोच का विषय है और इसी तथ्य को सिद्ध करता है कि अनावेदक क्र.1 और 2 बीमा कपंनी अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते ही सजग रूप से माॅनेटरिंग नहीं करते और इस प्रकार की सोच नहीं रखते है कि क्या उनके द्वारा नियुक्त एजेंट ही ग्राहकों से संपर्क करते है या एजेंट के नाम पर कोई अन्य व्यक्ति बीमा कराने का काम करता है, यही स्थिति अनावेदकगण के विरूद्ध घोर व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करती है।
(12) अनावेदकगण ने यह कहीं भी सिद्ध नहीं किया है कि परिवादी क्या शिक्षित है और उसे इतनी अंग्रेजी आती है कि निर्धारित बीमा कंपनी द्वारा जारी प्रपत्र एनेक्चर-4, एनेक्चर-5 और एनेक्चर-6 के दस्तावेजों जो कि अभिकथित पालिसी के विवरण प्रीमियम रिसीट, पत्राचार और पालिसी की योजना जो अंग्रेजी भाषा में है, को सूक्ष्मता से पढ़ सके, स्वभाविक है कि जब कोई ग्राहक बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त एजेंट के द्वारा दी गई जानकारी को सुनता है तो उस पर सहज ही विश्वास कर लेता है और ऐसा ही परिवादी ने किया, अन्यथा वह 6,00,000रू. जैसी बड़ी राशि को एकमुश्त अनावेदकगण के पास क्यों जमा करता? जैसा कि अनावेदकगण का तर्क है कि यह वन टाईम इंवेस्टमेंट का नहीं था, बल्कि सालाना प्रीमियम दिये जाने वाली बीमा पालिसी थी तो कोई भी व्यक्ति जिसे 6,00,000रू. प्रतिवर्ष दिया जाना है, पहले प्रीमियम की राशि 6,00,000रू. जितनी बड़ी राशि अदा नहीं करेगा, क्योंकि कम से कम उसे यह सोच तो होगी ही पहले प्रीमियम की जितनी राशि वह अदा कर रहा है वही राशि प्रतिवर्ष प्रीमियम की राशि होगी, यदि परिवादी को सही स्थिति बताई जाती तो वह प्रतिवर्ष प्रीमियम की 6,00,000रू. राशि सोच कर अनावेदकगण के पास 6,00,000रू. जमा नहीं करता, क्योंकि अनावेदकगण ने कहीं भी परिवादी का आर्थिक स्तर और सामथ्र्य ऐसा सिद्ध नहीं की है कि परिवादी 6,00,000रू. प्रतिवर्ष इस वृद्धावस्था में अनावेदकगण को प्रीमियम के रूप में अदा करने की सामर्थ रखता था। इस प्रकार प्रथम दृष्टया यह सिद्ध हो जाता है कि अनावेदकगण ने परिवादी को दिग्भ्रमित किया और उससे 6,00,000रू. वसूल किये जब कि परिवादी ने एकमुश्त इंवेस्टमेंट के हिसाब से उक्त 6,00,000रू. अनावेदकगण को दिये थे, जबकि अनावेदकगण ने परिवादी को दिगभ्रमित कर उसे परिवादी को बिना पूर्व सूचना के पेंशन फण्ड में प्रतिवर्ष प्रीमियम के आधार पर स्थानांतरित कर दिया, जो कि सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की स्थिति को सिद्ध करता है।
(13) यह एक सोच का विषय है कि बीमा कंपनी ने यह कैसे कल्पना की एक वृद्ध व्यक्ति जो कि सेवानिवृत्त हो चुका है, जिसे ब्लडप्रेशर, शुगर, किडनी की बीमारी है, वह 6,00,000रू. प्रतिवर्ष प्रीमियम की राशि अनावेदक बीमा कंपनी को अदा कर सकेगा और उस स्थिति में अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि वह परिवादी को व्यक्तिगत रूप से अपने कार्यालय में बुलाते और राशि को निवेश करने के पहले और पालिसी प्रदान करने के पहले परिवादी को भलीभांति समझाते कि उसे इस वृद्धावस्था, सेवानिवृत्ति पश्चात् एवं बीमार हालत में 6,00,000रू. प्रतिवर्ष देने में समर्थ है या नहीं, साथ ही परिवादी को पालिसी संबंध दस्तावेजों में जिसमें उसे हस्ताक्षर करने थे, नियम और शर्तों को भतिभांति समझाते कि उसे वन टाईम इंवेस्टमेंट के बारे में भ्रम तो नहीं है, क्योंकि यह राशि प्रतिवर्ष तीन साल जमा होनी है। अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि वह एक सीनियर सीटिजन से उच्च शिष्टाचार की शैली अपनाते हुए लिखित में सीधे और सरल शब्द में उसे नियम और शर्त समझाते उस भाषा में जिसमें परिवादी समझता और फिर उससे लिखित में लेते कि परिवादी 6,00,000रू. जैसे बड़ी रकम प्रतिवर्ष जमा होने वाली योजना में डाल रहा है और उसे परिपक्वता पर केवल कुल रकम का 33 प्रतिशत प्राप्त होगा और शेष रकम के बारे में एन्यूटी का विकल्प देना होगा, चूंकि अनावेदकगण ने ऐसा कुछ भी साक्ष्य में सिद्ध नहीं किया है, अतः निश्चित रूप से अनावेदकगण ने सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है।
(14) अनावेदकगण ने अपने जवाबदावा में यह उल्लेख किया है कि उन्होंने उनके द्वारा भेजी गई नोटिस एनेक्चर-सी. अनुसार दि.20.02.2012 को परिवादी से विकल्प की मांग की थी, परंतु परिवादी का तर्क है कि उक्त स्पीड पोस्ट उसे प्राप्त हीं नहीं हुआ, परिवादी द्वारा प्रकरण की कार्यवाही के दौरान अंतरिम आवेदन पत्र/आई.ए.नं.1 अंतर्गत आदेश 11 नियम 12 सी.पी.सी. प्रस्तुत कर उक्त अभिकथित नोटिस की मूल पोस्टल रसीद की अनावेदकगण से मांग की थी, परंतु अनावेदक उक्त स्पीड पोस्ट की रसीद प्रस्तुत करने में असफल रहे है, जिससे यही सिद्ध होता है कि वास्तव में अनावेदक बीमा कपंनी ने परिवादी को विकल्प हेतु कोई पत्राचार नहीं किया, जबकि अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि वे एक सीनियर सिटीज़न, सेवानिवृत्त बीमार व्यक्ति के प्रति उच्च शिष्टाचार की नीति अपनाते। अनावेदकगण ने इस संबंध में अपने एजेंट का भी स्पष्टीकरण प्राप्त नही हुआ कि परिपक्वता होने पर उसने अपने ग्राहक से विकल्प की मांग क्यों नहीं की एवं उक्त संबंध में जानकारी क्यों नहीं दी? जिससे यह सिद्ध होता है कि बीमा कंपनी अपने एजेंट को केवल अपने व्यापार बढ़ाने के लिए तो रख लेते हैं, परंतु ग्राहक की राशि की परिपक्वता तिथि आने पर अपने एजेंट के मार्फत ग्राहकों को उचित कार्यवाही करने हेतु जानकारी देने के संबंध में कोई माॅनेटरिंग नहीं करते हैं।
(15) अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि वह संबंधित एजेंट से छानबीन करते कि जब श्रीमती अनुसुईया मोगरे एजेंट थी तो अभिकथित राशि 6,00,000रू. के चेक एनेक्चर-1 के पृष्ठ भाग में एजेंट के रूप में देवेश मोगरे का नाम क्यों लिखा है और देवेश मोगरे ने क्यों हस्ताक्षर किये हैं, जबकि बीमा कंपनी द्वारा जारी दस्तावेज प्रीमियम रिसीट में एनेक्चर-4 में अनावेदक क्र.3 श्रीमती अनुसुईया मोगरे का नाम उल्लेखित है इस स्थिति से यह सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कपंनी अपना व्यापार बढ़ाने के दृष्टि से गलत तरीकों का सहारा ले रही है, जिसके कारण एजेंट अपने ग्राहकों को येनकेनप्रकारेण दिग्भ्रमित कर इतनी बड़ी-बड़ी राशि को प्राप्त कर, इस तरह की बीमा योजना में निवेश कराते है, जिसमें अधिक कमीशन प्राप्त होता है, जैसा कि परिवादी का तर्क है और परिवाद पत्र के चरण क्र.5 में अभिकथन भी है कि अनावेदकगण ने मिलीभगत करके परिवादी के वन टाईम इंवेस्टमेंट की राशि को प्रतिवर्ष के हिसाब से राशि जमा करना वर्णित कर दिया।
(16) उपरोक्त स्थिति में परिवादी के तर्कों एवं अभिकथनों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता, कि वह एक वृद्ध व्यक्ति है उसे ब्लडप्रेशर और शुगर की बीमारी है और जब उसे किडनी की समस्या आई और उसे रकम की आवश्यकता हुई तो अनावेदक से फण्ड वेल्यू प्रदान करने को कहा तो उन्होंने इंकार कर दिया, तब उसे उधार लेकर अपना इलाज कराना पड़ा, अर्थात स्पष्ट है कि अनावेदक ने पालिसी प्रदान करते समय परिवादी की वृद्धावस्था, बीमारी की अवस्था को दर किनार करते हुए अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के तहत उसके 6,00,000रू. वसूल लिये ओर उसे प्रतिवर्ष के हिसाब से जमा योजना में लगा दिये और जब परिवादी ने परिपक्वता पर अपनी रकम की मांग की तो अब बीमा कंपनी आई.आर.डी.ए से बीमा योजना अप्रूव्ड होने का बचाव लेने का आधार बना रहा है, जब कि स्वाभाविकता यह है कि कोई भी वृद्ध सेवानिवृत्ति, बीमार व्यक्ति एवं परिवादी के आर्थिक स्तर का व्यक्ति प्रतिवर्ष 6,00,000रू. प्रीमियम देने की स्थिति में रहेगा ही नहीं और यदि परिवादी यह अभिकथन करता है कि उसका किसी प्रकार से आशय प्रतिवर्ष प्रीमियम के आधार पर बीमा पालिसी लेने का नहीं था बल्कि एकमुश्त इंवेस्टमेंट का था, तो उस पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण भी नहीं प्रतीत होता है
(17) अनावेदक बीमा कंपनी ने ऐसा कोई कारण प्रस्तुत नहीं किया है कि उन्होंने परिवादी को भेजे गये स्पीड पोस्ट दि.20.02.2012 की रसीद क्यों नहीं प्रस्तुत की? जिससे यह सिद्ध होता है कि अनावेदकगण ने परिवादी को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के आशय से और अपने व्यापार को बढ़ाने के आशय से 6,00,000रू. का एनेक्चर-1 का चेक प्राप्त किया और फिर उसे गलत योजना में लगा दिया जिसके बारे में परिवादी ने बीमा पालिसी लेने का निवेदन ही नहीं किया था किसी वृद्ध और बीमार व्यक्ति और सेवानिवृत्त व्यक्ति के साथ ऐसा कृत्य किया जाना निश्चित रूप से उक्त व्यक्ति के लिए घोर मानसिक वेदना का कारण होगा कि सेवानिवृत्ति के पैसे में से एक मोटी राशि 6,00,000रू. की इस प्रकार से परिवादी वंचित हो गया जिससे उसे घोर मानसिक वेदना होना स्वभाविक है जिसके एवज में यदि परिवादी ने 50,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(18) उपरोक्त विवेचना से हम यही निष्कर्षित करते हैं कि तीनों अनावेदकगण ने परिवादी के प्रति घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया गया है। अतः अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से एनेक्चर-1 चेक के मार्फत जमा राशि 6,00,000रू. मय ब्याज के परिवादी को अदा करने के जिम्मेदार है।
(19) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-
(अ) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को जमा राशि 6,00,000रू. (छः लाख रूपये) अदा करेंगे।
(ब) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को उक्त राशि पर जमा दिनांक 22.03.2007 से भुगतान दिनांक तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000रू. (पचास हजार रूपये) अदा करेंगे।
(द) अनावेदक क्र.1, 2 एवं 3 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।