Paradise properties. filed a consumer case on 26 Feb 2015 against SBI Bank Commercial. in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/779/2012 and the judgment uploaded on 16 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
डाॅ.अलका शर्मा,सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-779/2012 (पुराना परिवाद संख्या 588/2009)
मैसर्स पैराडाईज प्रोपर्टीज, 407, पैराडाईज, सी-61-ए, सरोजनी मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर (राजस्थान) जरिये प्रार्टनर श्री पंकज साबू पुत्र श्री प्रभा शंकर साबू, निवासी-401, विष्णु अपार्टमेन्ट, ए-8, सरदार पटेल मार्ग, जयपुर ।
परिवादी
बनाम
भारतीय स्टेट बैंक, काॅमर्शियल शाखा- अनुकम्पा टावर, चर्च रोड, जयपुर जरिये मुख्य प्रबन्धक ।
विपक्षी
उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री लोकेश अत्रे/श्री पुष्पेन्द्र मिश्रा, एडवोकेट
विपक्षी बैंक की ओर से श्री अनिल कुमार शर्मा, एडवोकेट
निर्णय
दिनांकः- 26.02.2015
यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक के विरूद्ध दिनंाक 21.04.2009 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादी फर्म एक भागीदारी फर्म हैं जो रजिस्ट्रार आॅफ फर्मस कार्यालय में विधिवत रूप से रजिस्टर्ड हैं । परिवादी फर्म द्वारा प्लाॅट संख्या ए-1, 2, 11 व 12, मेटल काॅलोनी, सीकर रोड, मुख्य मार्ग, भवानी निकेतन स्कूल के सामने, जयपुर पर पर होटल पैराडाईज के नाम से एक होटल का निर्माण किया गया है । इस होटल के निर्माण के लिए परिवादी फर्म को रूपयों की आवश्यकता होने पर परिवादी फर्म ने विपक्षी बैंक के यहां 18 करोड़ रूपये के ऋण के लिए आवेदन किया । और विपक्षी बैंक द्वारा पत्र दिनांकित 21.06.2007, 29.06.2007 एवं 18.09.2007 के माध्यम से चाहे गये स्पष्टीकरण, दस्तावेजात विपक्षी बैंक को उपलब्ध करवाने के साथ-साथ अन्य सभी औपचारिकताओें की भी पूर्ति कर दी और दिनंाक 30.07.2007 को 4,25,000/-रूपये प्रोसेसिंग फीस भी जमा करवा दी । लेकिन इसके बावजूद विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म द्वारा बार-बार निवेदन करने के बावजूद उसे ऋण राशि उपलब्ध नहीं करवाई और प्रोसेसिंग फीस की राशि 4,25,000/-रूपये भी वापस नहीं लौटाई । और अंत में अपने पत्र दिनंाकित 09.08.2008 के माध्यम से प्रोसेसिंग फीस की राशि को प्रोसेस की प्रि-रिक्वीजीट मानते हुए उसे त्मनिदकंइसम नहीं माना और परिवादी को प्रोसेसिंग फीस लौटाने से साफ तौर पर मना कर दिया । इस पर परिवादी फर्म ने विपक्षी बंैंक को 05.01.2009 को अपने विधिक नोटिस भी दिया । इसके बाद परिवादी फर्म ने विपक्षी बैंक के यहां प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर ही अन्य बैंकर बैंक आॅफ बड़ौेदा से अपने उक्त प्रोजेक्ट के लिए 18 करोड़ रूपये का ऋण प्राप्त कर लिया हैं ।
इस प्रकार विपक्षी बैैंक ने परिवादी को आवेदित ऋण स्वीकृत नहीं करके और प्रोसेसिंग फीस राशि उसे वापस नहीं लौटाकर सेवादोष कारित किया हैं । इस कारण परिवादी फर्म अब विपक्षी बैंक से प्रोसेसिंग फीस राशि 4,25,000/-रूपये प्राप्त करने के साथ-साथ परिवाद के मद संख्या 25 के अन्तर्गत अन्य सभी अनुतोष भी प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षी बैंक की ओर से दिये गये जवाब में परिवादी फर्म द्वारा होटल प्रोजेक्ट के लिए ऋण प्राप्त करने हेतु विपक्षी बैंक के यहां आवेदन प्रस्तुत करने का तथ्य स्वीकार हैं । विपक्षी बैंक द्वारा निर्धारित प्रक्रिया अपनाकर ही ऋण स्वीकृति की कार्यवाही की जाती हैं । परिवादी फर्म द्वारा कभी भी यह नहीं कहा गया कि उसे ऋण अतिशीघ्र दिया जावें । विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी फर्म को एक माह में ऋण उपलब्ध करवाने का कभी कोई आश्वासन नहीं दिया गया । परिवादी फर्म ने मांगे गये स्पष्टीकरण विपक्षी बैंक को उपलब्ध नहीं करवाये । इस कारण ऋण स्वीकृति के संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी और परिवादी फर्म के ऋण प्रार्थना पत्र पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका । परिवादी फर्म के ऋण प्रस्ताव पर बहुत अधिक कार्य किया जा चुका था । विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी फर्म के प्रोजेक्ट पर प्रोसेसिंग में जो समय एवं श्रम व्यय किया गया उसके कारण ही परिवादी फर्म से अपफ्रन्ट फीस ली गई और वह प्रोसेस की प्रि-रिक्वीजीट होने से रिफण्ड योग्य नहीं हैं । इसलिए विपक्षी बैंक ने कोई सेवादोष कारित नहीं किया है । अतः परिवाद, परिवादी फर्म निरस्त किया जावें ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी फर्म की ओर से श्री पंकज साबू का शपथ पत्र एवं प्रदर्श-1 से प्रदर्श -9 दस्तावेज कुल 21 पृष्ठों में प्रस्तुत किये गये। जबकि विपक्षी बैंक की ओर से जवाब के तथ्यों की पुष्टि में श्री अनुकूल भटनागर एवं श्री पंकज कडवाल के शपथ पत्र एवं कुल 14 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किये गये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी फर्म ने विपक्षी बैंक से होटल बनाने के लिए ऋण की मांग की तो विपक्षी बैंक ने अपने पत्र दिनांकित 21.06.2007 को परिवादी फर्म को अपफ्रन्ट फीस के रूप में 4,25,000/-रूपये जमा कराने की सलाह दी । जो परिवादी फर्म ने विपक्षी बैंक को दिनांक 30.07.2007 को चैक संख्या 709806 यू.टी.आई. बैंक लिमिटेड के माध्यम से जमा करवा दी । और इस राशि के जमा होने के खण्डन में विपक्षी बैंक ने कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं किये हैं । बल्कि अपने जवाब के मद संख्या 11 में उपरोक्त चैक परिवादी फर्म द्वारा जारी किये जाने और इस राशि को प्राप्त करने के संबंध में कोई तथ्य विवादित नहीं होना कहा हैं । इस प्रकार उपरोक्त 4,25,000/-रूपये की राशि विपक्षी बैंक ने अपफ्रन्ट फीस के रूप में वसूल की हैं । जबकि स्वयं विपक्षी बैंक द्वारा प्रस्तुत पत्र दिनांकित 20.07.2007 के क्रम संख्या 6 पर यह अंकित हैं किः-
श्ल्वनत चतवचवेंस ूपसस इम बवअमतमक नदकमत ज्तंकमते ठवदंद्रं ैबीमउम चतमेमदजसल पद वचमतंजपवद ंदक ंे ेनबी 50ः व िजीम दवतउंस चतवबमेेपदह बींतहमे ूपसस इम समअपमकण्श्
इस प्रकार इस पत्र में .25 प्रतिशत प्रोसेसिंग फीस के स्थान पर विपक्षी बैंक को परिवादी से .12.5 प्रतिशत प्रोसेसिंग फीस के रूप में 2,12,500/-रूपये की राशि ही वसूल करनी चाहिये थी । जिसके स्थान पर विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म से 4,25,000/-रूपये की राशि प्रोसेसिंग फीस के रूप में वसूल की है । जो विपक्षी बैंक द्वारा नियमों के विपरीत प्रोसेसिंग फीस वसूल करने का कृत्य हैं । और विपक्षी बैंक ने उक्तानुसार परिवादी से अधिक अपफ्रन्ट फीस वसूल करके सेवादोष कारित किया हैं ।
इसके अतिरिक्त अब हमें देखना यह है कि आया विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म से प्रोसेसिंग फीस के जो 4,25,000/-रूपये वसूल किये हैं उसके क्रम में क्या-क्या कार्यवाही अमल में लाई गई थी ? इस संबंध में विपक्षी बैंक ने अपने जवाब के मद संख्या 17 में प्रोजेक्ट की स्टडी के लिए दल बनाने, विशेषज्ञ रिपोर्ट तैयार करवाने आदि के तथ्य अंकित किये हैं । लेकिन विपक्षी बैंक ने विशेषज्ञ दल की कोई रिपोर्ट और उनके द्वारा किये गये कार्य के संबंध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की हैं जिससे यह प्रमाणित होता हो कि विपक्षी बैंक ने वाकई में परिवादी फर्म के प्रोजेक्ट पर गम्भीरतापूर्वक जांच करवाई थी । इसलिए सारगर्भित तथ्यों के अभाव में यह नहीं माना जा सकता कि विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म से 4,25,000/-रूपये की जो राशि अपफ्रन्ट फीस के रूप में वसूल की थी उसकी अनुपालना में परिवादी फर्म को ऋण दिलाये जाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया था । इसलिए ऐसे सारगर्भित तथ्यों के अभाव में यह नहीं माना जा सकता कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी फर्म से अपफ्रन्ट फीस के रूप में 4,25,000/-रूपये की राशि वसूल किये जाने के बाद कोई कार्यवाही की गई थी । इसलिए उपरोक्त तथ्यों के अभाव में यह प्रमाणित नहीं है कि विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म को ऋण उपलब्ध कराये जाने के संबंध में कोई अध्ययन दल गठित किया था ओर विशेषज्ञ रिपोर्ट प्राप्त की थी । और ऐसी परिस्थितियों के अभाव में विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म से जो 4,25,000/-रूपये प्रोसेसिंग फीस के रूप में प्राप्त किये हैं उसको जब्त ;वित पिजद्ध करने का कोई उचित कारण विपक्षी बैंक के पास उपलब्ध हो, यह नहीं कहा जा सकता । इसलिए विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म को 17 करोड़ रूपये का ऋण उपलब्ध कराने के लिए जो 4,25,000/-रूपये अपफ्रन्ट फीस के रूप में वसूल किये थे उसे जब्त ;वित पिजद्ध करने का कोई कारण नहीं हैं ।
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर विपक्षी बैंक ने परिवादी फर्म द्वारा जमा करवाई गई यह अपफ्रन्ट फीस की राशि 4,25,000/-रूपये जब्त ;वित पिजद्ध करके सेवादोष कारित किया । और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी फर्म अब विपक्षी बैंक से अपफ्रन्ट फीस के रूप में जमा करवाई गई राशि 4,25,000/-रूपये वापस प्राप्त करने की अधिकारिणी हैं । परिवादी फर्म इस 4,25,000/-रूपये की राशि पर विपक्षी बैंक से परिवाद प्रस्तुत करने के दिन से वसूली के दिन तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगी । परिवादी फर्म को विपक्षी बैंक के इस सेवादोष से हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये पृथक से दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी फर्म स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि परिवादी फर्म विपक्षी बैंक से अपफ्रन्ट फीस के रूप में जमा करवाई गई राशि 4,25,000/-रूपये वापस प्राप्त करने की अधिकारिणी अअहैं । परिवादी फर्म इस 4,25,000/-रूपये की राशि पर विपक्षी बैंक से परिवाद प्रस्तुत करने के दिन से वसूली के दिन तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगी । परिवादी फर्म को विपक्षी बैंक के इस सेवादोष से हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये पृथक से दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं ।
विपक्षी बैंक को आदेश दिया जाता है कि वह उक्त समस्त राशि परिवादी फर्म के पते पर जरिये डी.डी./रेखांकित चैक इस आदेश के एक माह की अवधि में उपलब्ध करायेगा ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 26.02.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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