जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
बृजराज सिंह पुत्र श्री पूरनसिंह, जाति-जाट, उम्र-58 वर्ष, निवासी- 2/64, पंचषील नगर,माकडवाली रोड, अजमेर ।
प्रार्थी
बनाम
के.के.गोयल हाल षाखा प्रबन्धक, स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर षाखा, प्लाट नं.बी-8, पंचषील, माकडवाली रोड, अजमेर ।
अप्रार्थी
परिवाद संख्या 127/2014
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. विजेन्द्र कुमार मेहता सदस्य
3. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री राजेष चैधरी, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री सुनील विजय, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः- 11.02.2015
1. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस तरह से है कि प्रार्थी अजमेर अरबन काॅ आपरेटिव बैंक लिमिटेड, में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत था । प्रार्थी ने इस बैंक में लगभग 32 वर्ष नौकरी की तथा नौकरी से डिषमिष होने के बाद उसकी 10 लाख ग्रेच्युटी की राषि व रू. 6 लाख अवकाष नगदीकरण के जमा थी । प्रार्थी की भविष्य निधी राषि जो भविष्य निधी कार्यालय, जयपुर द्वारा रू. 16,26,328/- अप्रार्थी बैंक भारतीय स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर( जो इस निर्णय में आगे मात्र बैंक ही कहलाएगा) में दिनंाक 21.2.2014 को जमा करवाई गई । यह भविष्य निधी की राषि प्रार्थी की वह राषि है जिसे किसी भी रूप में किसी विभाग द्वारा काटी नहीं जा सकती एवं इस राषि पर प्रार्थी का पूर्ण रूप से अधिकार है किन्तु दिनंाक 22.2.2014 को जब अप्रार्थी बैंक के यहां संघारित खाता संख्या 61210074582 से करीब रू. 11 लाख संग्रहण करने आया तो अप्रार्थी ने उक्त राषि देने से मना कर दिया और कहा कि अरबन काॅ आपरेटिव बैंक के प्रबन्ध संचालक ने उसे सूचित किया है कि प्रार्थी के खातें में से ऋण राषि रू. 6,52,681/- व ब्याज काट कर बैंक को देवे इस पर प्रार्थी ने अप्रार्र्थी बैक को बतलाया कि यह राषि भविष्य निधि की राषि है, जो काटी नहीं जा सकती तथा अरबन काॅ आपरेटिस बैंक के यहां जमा ग्रेच्युटी राषि रू. 10 लाख व अवकाष नगदीकरण की राषि रू. 6 लाख में से यदि उस पर कोई ऋ़ण बकाया है तो उक्त राषि में से काट सकते है । परिवाद में आगे दर्षाया है कि उसके बडे पुत्र की सास जिसका ब्रेन हेमरेज हो गया है और जो गोहाटी अस्पताल में भर्ती है , के इलाज के लिए उक्त राषि की आवष्यकता है इस संबंध में उसने अप्रार्थी बैंक के यहां मेडिकल प्रमाण पत्र भी पेष किया लेकिन अप्रार्थी बैंक ने राषि का भुगतान नहीं कर सेवा में कमी कारित की है । प्रार्थी ने इस संबंध में अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भी अप्रार्थी बैंक को भिजवाया । तत्पष्चात् अप्रार्थी बैंक ने दिनांक 24.2.2014 को प्रार्थी से कहा कि वह एक षपथपत्र इस आषय का पेष करें कि उसके यहां जमा राषि पीएफ की राषि है तब प्रार्थी ने रू. 10/- के स्टाम्प पर इस आषय का ष्षपथपत्र भी पेष कर दिया एवं प्रार्थी को कहा गया कि आज केष बन्द हो गया है वह कल राषि का चैक लगा द राषि का भुगतान कर दिया जावेगा । प्रार्थी को अपने पुत्र की सास के इलाज हेतु राषि भेजनी थी अतः उक्त राषि की व्यवस्था अपने मित्र राजेष चैधरी से उधार ली एवं राजेष चैधरी को एक चैक रू. 11 लाख का दिया । राजेष चैधरी ने उक्त चैक कलेेक्षन हेतु अप्रार्थी बैंक को भिजवाया तो उक्त चैक की राषि का भुगतान अप्रार्थी ने नहीं किया एवं चेक को अनादरित कर दिया । इस प्रकार अप्रार्थी बैंक ने भुगतान नहीं करने के कृत्य को सेवा में कमी दर्षाते हुए यह परिवाद पेष किया है एवं अनुतोष चाहा है कि अप्रार्थी बैंक प्रार्थी के भविष्य निधि की राषि करीब 7 लाख 24 प्रति ब्याज सहित भुगतान करें व अन्य अनुतोष की भी मांग की है ।
2. अप्रार्थी बैंक की ओर से जवाब पेष हुआ जिसमें दर्षाया कि प्रार्थी के खाते में दिनंाक 21.2.2014 को रू. 16,36,328/- जमा हुए थे ष्षेष कथनों को अस्वीकार किया है । आगे जवाब में दर्षाया है कि प्रार्थी जब दिनंाक 22.2.2014 को अप्रार्थी बैंक में आया तब उसे जानकारी दे दी गई थी कि अरबन को आपरेटिव बैंक के प्रबन्ध संचालक ने अपने पत्र दिनंाक 14.2.2014 के द्वारा सूचित किया कि प्रार्थी के खाते में जब भी राषि जमा हो तो उसके खाते से रू. 6,52,681/- व ब्याज की राषि का उन्हें करें साथ ही पत्र के साथ न्यायालय प्रबन्ध निदेषक अधिषाषी अधिकारी के नोटिस भी संलग्न कर भेजे । इस प्रकार अप्रार्थी बैंक को उक्त न्यायालय द्वारा प्रार्थी को राषि का भुगतान करने से रोका गया था । जवाब में आगे दर्षाया कि उक्त नोटिस राजस्थान सहकारी सेवा अधिनियम, 2007 के तहत वसूली एव ंकुर्की हेतु जारी किए गए है । इस तरह से अप्रार्थी बैंक का जवाब है कि अप्रार्थी बैंक को न्यायालय प्रबन्ध निदेषक अधिषाषी अधिकारी द्वारा प्रार्थी को भुगतान करने से रोक जारी की थी चूंकि अप्रार्थी बैंक किसी भी वाद में पडना नहीं चाहता था इसलिएं उक्त न्यायालय के आदेष से राषि का भुगतान नहीं किया एवं सेवा में कोई कमी कारित नहीं की है । विषेष कथन में यह दर्षाया है कि प्रार्थी ने को आपरेटिव बैंक जो इस वाद में आवष्यक पक्षकार ह,ै उसे पक्षकार नहीं बनाया अतः परिवाद चलने योग्य नही ंहै ।
3. प्रार्थी ने अपने जवाब के समर्थन में स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया व अप्रार्थी बैंक की ओर से अपने जवाब के समर्थन में षाखा प्रबन्धक का षपथपत्र पेष हुआ है । प्रार्थी की ओर से विभिन्न दस्तावेजात पेष किए एवं अप्रार्थी बैंक द्वारा भी अपने कथनों के समर्थन में दस्तावेज पेष किए ।
4. हमने बहस सुनी एवं पत्रावली का अनुषीलन किया । प्रार्थी की ओर से लिखित तर्क भी पेष किए गए ।
5. हमारे समक्ष निर्णय हेतु निम्नांकित बिन्दु तय करने के लिए है:-
(1) क्या प्रार्थी के अप्रार्थी बैंक में संघारित खाता संख्या 61210074582 में जमा राषि रू. 16,36328/- भविष्य निधि लाभ की है एवं यह राषि रोके जाने योग्य नहीं है एवं अप्रार्थी बैंक द्वारा इस राषि का भुगतान करने से मना किया जाना सेवा में कमी है ?
(2) क्या अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी के खाते में जमा राषि का भुगतान करने से न्यायालय उप रजिस्ट्रार, सहकारी समिति, अजमेर के आदेष जो राजस्थान सहकारी समिति अधिनियम, 2007 की धारा 1 के अन्तर्गत है, से मना किया है जो सही रूप से मना किया है ?
(3) अनुतोष
6. उपरोक्त निर्णय बिन्दुओं पर हमने पक्षकारान की बहस सुनी । अधिवक्ता प्रार्थी ने लिखित बहस पेष की साथ ही अपनी बहस में बतलाया कि प्रार्थी की यह राषि भविष्य निधि लाभ की है । यह तथ्य कार्यालय भविष्य निधि संगठन, जयपुर के प्रामाण पत्र दिनंाक 29.9.2012 से स्पष्ट हो रहा है । प्रार्थी अधिवक्ता की बहस है कि प्रार्थी की यह राषि जो भविष्य निधि की है उक्त राषि राजस्थान सहकारी समिति अधिनियम, 2007 की धारा 53(2)(सी) में वर्णित अनुसार किसी के द्वारा न तो रोकी जा सकती है और ना ही किसी के द्वारा वसूल की जा सकती है और ना ही कुर्क की जा सकती है । अधिवक्ता प्रार्थी ने इस संबंध में दृष्टान्त रिवीजन आवेदन संख्या 77/04 माननीय उच्च न्यायालय, गुजरात वल्लभ भाई चिमनभाई बनाम दूध सागर डेयरी एम्पाईज क्रेडिट एण्ड सप्लाई को आपरेटिस सोसायटी लिमिटेड निर्णय दिनंाक 27.01.2011 पेष किया एवं दर्षाया कि इस निर्णय में प्रतिपादन के अनुसार पी.एफ की राषि के भुगतान को रोकने अथवा उक्त राषि को कुर्क करने आदि कृत्य अवैध एव विधि विरूद्व है ।
प्रार्थी ने अपने तर्को के समथर्न में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय ब्पअपस ।चचमंस छवण् 6770ध्13 ैजंजम व िश्रींताींदक - व्ते टे श्रमजमदकतं ज्ञनउंत ैतपअंेजंअं व्तकमत क्ंजमक 14ण्8ण्2013 पेष किया । उक्त निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रतिपादित किया है कि किसी कर्मचारी के पेंषन, ग्रेच्युटी की राषि को रोका नहीं जा सकता एवं ऐसी राषि प्राप्त करने का उसे सवैधानिक अधिकार है । इस प्रकार अधिवक्ता प्रार्थी की बहस रही है कि प्रार्थी का खाता जिसका नम्बर परिवाद की चरण संख्या 1 में दिया हुआ है, में प्रार्थी की जमा राषि जो उसकी पी.एफ की राषि है, को प्रार्थी द्वारा मांगने पर उसे भुगतान नहीं किया जाना सेवा में कमी है साथ ही अप्रार्थी बैंक द्वारा उक्त राषि को काॅ आपरेटिव बैंक के निर्देष से रोका जाना भी अवैध व गलत है तथा सेवा में कमी है ।
7. अप्रार्थी अधिवक्ता की बहस है कि प्रार्थी के खाते में दिनांक 21.2.2014 को रू. 16,26,328/- जमा हुए तथा यह राषि पी.एफ की राषि हो उसे ज्ञात नहीं है । इसके अतिरिक्त अप्रार्थी बैंक को न्यायालय उप रजिस्ट्रार सहकारी समिति, अजमेर के आदेष क्रमांक 3930 दिनांक 26.2.2014 प्राप्त हुआ उक्त आदेष से अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी के इस खाते में से किसी तरह की राषि के भुगतान करने से रोक लगाई गई थी । इस तरह से अप्रार्थी बैंक का प्रार्थी को राषि का भुगतान नहीं करने का कृत्य मनमाना एवं आधारहीन नहीं है एवं इसके पूर्व अप्रार्थी काॅ आपरेटिव बैंक के पत्र क्रमांक 161 दिनांक 14.2.2014 से प्रार्थी की इस राषि को रोके जाने का आदेष प्राप्त हुआ है । अधिवक्ता की आगे बहस है कि काॅ आपरेटिव बैंक, अजमेर द्वारा प्रार्थी के विरूद्व को आपरेटिव सोसायटी अधिनियम, 2001 की धारा 99 के अन्तर्गत कार्यवाही की जिसका नोटिस प्रार्थी को भेजा गया उस नोटिस की प्रति अप्रार्थी बैंक को भी प्राप्त हुई है । अतः इसी आधार पर एवं इसी कारण से ही प्रार्थी के इस खाते में से राषि का भुगतान नहीं किया जा रहा है । अधिवक्ता अप्रार्थी की यह भी बहस है कि इस संबंध में प्रार्थी को सूचित किया गया कि वे इस संबंध में न्यायालय उप रजिस्ट्रार सहकारी समिति, अजमेर से अथवा सक्षम न्यायालय से भुगतान करने का आदेष प्राप्त कर प्रस्तुत करें ताकि उसे राषि का भुगतान किया जा सके किन्तु प्रार्थी ने कोई आदेष प्राप्त कर पेष नहीं किया । इस प्रकरण में अरबन काॅ आपरेटिव बैंक एक आवष्यक पक्षकार है जिसे प्रार्थी ने पक्षकार नहीं बनाया है । अधिवक्ता प्रार्थी ने अपने तर्को के समर्थन जो में दृष्टान्त पेष किए है उनके तथ्य हस्तगत प्रकरण के तथ्यों के विपरीत है एवं परिवाद खारिज होने योग्य बतलाया है ।
8. हमने बहस पर गौर किया तथा जो दृष्टान्त पेष हुए उनका भी अध्ययन किया । हम कायम किए गए दोनो निर्णय बिन्दुओं का निर्णय एक साथ करना उचित समझते है ।
9. प्रार्थी का इस संबंध में परिवाद के पैरा संख्या 2 में वर्णित अनुसार कथन है कि उसके बैंक खाते में जमा राषि रू. 16,26,328/- भविष्य निधि की राषि है जो भविष्य निधि विभाग द्वारा जमा करवाई गई थी तथा इस राषि को किसी भी रूप में किसी विभाग द्वारा कटौती नहीं की जा सकती और ना ही इस राषि पर रोक लगाई जा सकती है और प्रार्थी का इस राषि पर पूर्ण रूप से अधिकार है । प्रार्थी के विरूद्व उप रजिस्ट्रार सहकारी समिति के समक्ष अरबन काॅ आपरेटिव बैंक द्वारा एक वाद ऋण की बकाया राषि रू. 6,47,556/- एवं एक अन्य ऋण खाता की राषि रू. 5,125/- की वसूली हेतु लाया गया था एवं उक्त वाद के नोटिस भी प्रार्थी को इस परिवाद के पेष करने से पूर्व जारी हो चुके थे । तत्पष्चात् उक्त न्यायालय उप रजिस्ट्रार सहकारी समिति द्वारा पारित दिनंाक 6.1.2014 के आदेष से अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी के इस खाते को कुर्क किया
गया है । प्रार्थी ने न्यायालय उप रजिस्ट्रार की इस कार्यवाही के विरूद्व क्या कार्यवाही की गई, नहीं दर्षाया है और ना ही इन तथ्यों का उल्लेख परिवाद में प्रार्थी ने किया है ।
10. उपरोक्त विवचन अनुसार प्रार्थी द्वारा एक तरह से इस परिवाद के द्वारा उसके विरूद्व उपर वर्णित न्यायालय द्वारा की गई कार्यवाही को चुनौती दी है । अप्रार्थी बैंक के अधिवक्ता ने इस संबंध में यह भी बहस की है कि यह मंच या कोई भी अन्य सिविल न्यायालय राजस्थान सहाकारी अधिनियम के अन्तर्गत चल रही ऐसी कार्यवाही में हस्तक्षेप करने में सक्षम नहीं है । उनकी आगे यह भी बहस है कि उक्त न्यायालय द्वारा प्रार्थी का खाता कुर्क करते हुए अप्रार्थी बैंक को भुगतान नहीं करने हेतु रोका गया है अतः अप्रार्थी बैंक ऐसा भुगतान करने में सक्षम नहीं है एवं अप्रार्थी बैंक ने अपने स्तर पर भुगतान नहीं करने या राषि रोकने का कृत्य नहीं किया गया है ।
11. उपरोक्त विवेचन से हमारे मत में अप्रार्थी बैंक ने जिन कारणों से भुगतान नहीं किया को देखने से उसके विरूद्व सेवा में कमी का बिन्दु सिद्व नहीं है । उन्होने भुगतान करने से अपने स्तर पर मना नहीं किया बल्कि एक सक्षम न्यायालय द्वारा पारित आदेष से खाता कुर्क हो जाने से भुगतान में असमर्थता दर्षाई है है ।
12. अगला बिन्दु निर्णय हेतु यह है कि क्या प्रार्थी की यह राषि जो भविष्य निधि की थी, को किसी तरह से कुर्क किए जाने या रोके जाने योग्य नहीं है ? प्रार्थी के इस इस कथन के समर्थन में हमारी विवेचना है कि प्रथमतः प्रार्थी को यह चाहिए था कि न्यायालय उप रजिस्ट्रार, काॅ आपरेटिव सोसायटी के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर उपयुक्त आदेष प्राप्त करने थे । इसके अतिरिक्त प्रार्थी अधिवक्ता ने इस संबंध में को-आपरेटिस सोसायटी एक्ट, 2001 की धारा 53(2)(सी) के अनुसार ऐसी राषि कुर्क होने योग्य नहीं होगी, का कथन किया है किन्तु धारा 53 को देखने से यह पाया गया है कि प्रत्येक को-आपरेटिव सोसायटी को अपने कर्मचारियों के हित लिए एक कन्ट्रीब्यूटरी फण्ड की स्थापना करनी होगी एवं इस फण्ड में जमा राषि को उक्त सोसायटी अपने व्यवसाय के काम में नहीं लेगी और यह राषि सोसायटी की सम्पति का हिस्सा नहीं होगी तथा ऐसी राषि कुर्क होने योग्य भी नहीं होगी । चूंकि प्रार्थी की अप्रार्थी बैंक के यहां उसके खाते में जमा राषि भविष्य निधि की अवष्य रही होगी किन्तु कार्यालय कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के प्रमाण पत्र दिनंाक 29.9.2014 के अनुसार अब इस राषि का भुगतान कार्यालय कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा प्रार्थी को किया जा चुका है तथा यह राषि प्रार्थी के खाते में इसी अनुरूप जमा हुई है । हमारे विनम्र मत में अब यह राषि भविष्य निधि की राषि नहीं होकर प्रार्थी के खाते में है एवं विभाग के नियन्त्रण में नहीं है । परिणामस्वरूप यह राषि भविष्य निधि की राषि नहीं कही जा सकती । स्वयं प्रार्थी द्वारा पेष दृष्टान्त रिवीजन आवेदन संख्या 77/04 माननीय उच्च न्यायालय, गुजरात वल्लभ भाई चिमनभाई बनाम दूध सागर डेयरी एम्पाईज क्रेडिट एण्ड सप्लाई को- आपरेटिव सोसायटी लिमिटेड में वर्णित ’’ प्ज पेए ीवूमअमतए वचमद वित जीम तमेचवदकमदज जव जंाम ंचचतवचतपंजम ंबजपवद वदबम जीम ंउवनदज पे तमसमंेमक ंदक चंपक जव जीम चमजपजपवदमत प्रतिपादन अनुसार एवं दृष्टान्त में विवेचित अनुसार भविष्य निधि राषि जब तक विभाग के पास है , कुर्क होने योग्य नहीं है एवं किसी को भुगतान योग्य नहीं होगी किन्तु उक्त राषि का भुगतान ज्योहीं ही कर्मचारी को हो जाता है तो ऐसी राषि भविष्य निधि की राषि नहीं होगी एवं उसे विभाग के कब्जे में होना नहीं कहा जा सकता एवं ऐसी राषि भुगतान योग्य हो जाती है ।
13. उपरोक्त विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि प्रथमतः अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी का यह खाता उप रजिस्ट्रार, सहकारी समिति द्वारा कुर्क कर लिए जाने से एवं उसके आदेष से भुगतान में असमर्थता अप्रार्थी बैंक ने बताई है । दूसरा अब यह राषि भविष्य निधि की राषि के रूप में विभाग के पास नही ंहै बल्कि भविष्य निधि विभाग द्वारा प्रार्थी को भुगतान करते हुए उसके खाते में जमा करा दी है । हमारे विनम्र मत में उपरोक्त दोनों कारणो से अप्रार्थी बैंक के विरूद्व सेवा में कमी का बिन्दु सिद्व नहीं है ।
14. प्रार्थी द्वारा पेष माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय ब्पअपस ।चचमंस छवण् 6770ध्13 ैजंजम व िश्रींताींदक - व्ते टे श्रमजमदकतं ज्ञनउंत ैतपअंेजंअं व्तकमत क्ंजमक 14ण्8ण्2013 के तथ्य हस्तगत प्रकरण के तथ्यों से भिन्न है । इस दृष्टान्त के अनुसार माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचारण हेतु यह बिन्दु था कि क्या किसी कर्मचारी के विरूद्व विभागीय जांच या आपराधिक कार्यवाही के लम्बित रहने के प्रक्रम पर उसकी पेंषन व ग्रेच्युटी की राषि या उसका कोई भाग रोका जा सकता है या नहीं जबकि हस्तगत प्रकरण में भविष्य निधि राषि का भुगतान हो चुका है एंव मामला भी अप्रार्थी बैंक के विरूद्व सेवा में कमी को लेकर लाया गया है ।
15. उपर हुए विवेचन एवं अभिनिर्णित अनुसार हम प्रार्थी के इस परिवाद के स्वीकार होने योग्य नही ंपाते है । अतः आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
16. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
(विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
17. आदेष दिनांक 11.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
सदस्य सदस्या अध्यक्ष