राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२२५७/२०१२
(जिला उपभोक्ता फोरम गोरखपुर के द्वारा परिवाद सं0-५३/२००८ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक ०७/०९/२०१२ के विरूद्ध)
यूनियन आफ इंडिया द्वारा जनरल मैनेजर नार्थ इस्टर्न रेलवे गोरखपुर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
एस0एन0 अग्निहोत्री पुत्र श्री बालादीन अग्निहोत्री निवासी टी-५/१२ जजेज कालोनी नियर डीआईजी निवास सिविल लाईन्स जिला गोरखपुर। प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1- मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी सदस्य।
अधिवक्ता अपीलार्थीगण: श्री एम0एच0 खान विद्वान अधिवक्ता ।
अधिवक्ता प्रत्यर्थी: कोई नहीं।
दिनांक ३०/१२/२०१४
मा0 अशोक कुमार चौधरी पीठासीन न्यायिक सदस्य द्वारा उद्घोषित।
निर्णय
अपीलार्थी ने यह अपील विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम गोरखपुर के द्वारा परिवाद सं0-५३/२००८ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक ०७/०९/२०१२ के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें विद्वान जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। परिवादी के दिनांक २८/१०/२००७ को गोरखनाथ एक्सप्रेस ट्रेन सं0-५००७ से यात्रा करने के दौरान खिडकी का शीशा गिर जाने के कारण परिवादी की उंगली में जो चोट आई है, उसके संबंध में परिवादी विपक्षी से २८०००/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी इस धनराशि पर दिनांक २८/१०/२००७ से धनराशि के अंतिम वसूली तक विपक्षी से ०९ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी प्राप्त करने का अधिकारी है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय व आदेश के दिनांक से एक माह के अन्तर्गत मय ब्याज परिवादी को प्रदान करे अथवा बैंक
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ड्राफ्ट के माध्यम से मंच में जमा करे, जो परिवादी को दिलाई जा सके। नियत अवधि में आदेश का परिपालन न किए जाने के स्थिति में विपक्षी से समस्त धनराशि मय ब्याज विधि अनुसार वसूल की जाएगी।’’
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवदी दिनांक २८/१०/२००७ को गोरखनाथ एक्सप्रेस गाडी सं0-५००७ से कोच सं0-एस १ की आरक्षित शायिक सं0-२ मीडिल बर्थ पर पीएनआर नं0 २१४ २९३२११७ टिकट नं0 ६४५३७१५८ द्वारा गोरखपुर से लखनऊ यात्रा कर रहा था, उक्त ट्रेन के चलने के बाद परिवादी चल टिकट परीक्षक की प्रतीक्षा कर रहा था एवं सोने की तैयारी कर रहा था। परिवादी खिडकी के बगल में शायिक सं0-१ पर बैठे हुए थे, कोच के शीशे वाली खिडकी व लोहे की खिडकी खुली हुई थी। परिवादी अपना दाहिना हाथ खिडकी के हत्थे पर रखे था कि अचानक ट्रेन चलने पर झटक लगने से खिडकी का शीशा गिर गया जिससे परिवादी के दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में गंभीर चोट लग गई, जिससे खून बहने लगा और काफी दर्द होने लगा। किसी तरह खोजने पर उक्त ट्रेन में चल टिकट परीक्षक मिले तो घटना से अवगत कराया गया एवं अपना परिचय परिवादी ने बताया । टी0टी0 ने परिवादी को प्राथमिक चिकित्सा दिलाई एवं परिवाद पुस्तिका में इस घटना की प्रविष्टि २८/२९-१०-२००७ को की गई। लखनऊ पहुंचने पर परिवादी ने भाउ राव देवरस संयुक्त चिकित्सालय में टिटबैक एवं अन्य दवायें चिकित्सक के सलाह से ली एवं आवश्यक कार्य निपटा कर किसी तरह वापस दूसरे दिन गोरखपुर आया परन्तु उंगली में दर्द बना रहा। परिवादी ने दिनांक ३१/१०/२००७ को अवकाश लिया एवं लगभग नवम्बर एवं पूरा दिसम्बर २००७ का महीना अर्जित अवकाश एवं आकस्मिक अवकाश में व्यतीत किया। १८ दिन के अर्जित अवकाश लेने के कारण परिवादी को २३०००/-रू0 की आर्थिक क्षति हुई है। चिकित्सक का मत है कि उंगली की तंत्रिका कट गई है, कार्य करने में असुविधा एवं परेशानी हो रही है जो रेलवे प्रशासन की सेवा में कमी है। इस प्रकार परिवादी ने कुल मदों में २८०००-रू0 विपक्षी से दिलाए जाने के लिए परिवाद प्रस्तुत किया है।
विपक्षी ने अपने उत्तर पत्र में यह कहा है कि गाडी सं0-५००७ में शायिक कोच सं0-१ गोरखपुर से लखनऊ यात्रा के दौरान दिनांक २८/१०/२००७ को नहीं लगी थी। गाडी सं0-५००७/५००८ लखनऊ से गोरखपुर दिनांक २७/१०/२००७ को उसका अनुरक्षण मुकम्मल चेक किया गया था, एवं खिडकी एवं दरवाजे सही पाये गये थे।
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चेकिंग में सं0-१ कोच की शायिक सं0-२ में लगी खिडकियों एवं शीशे सही पाए गए थे, जिसकी रिपोर्ट विभाग के वाशिंग फिट पर गाडी की देख रेख में दिनांक २७/१०/२००७ को ५००७ श्री यसपाल सिंह जे0ई0-१ एवं द्वारिका प्रसाद कारपेन्टर द्वारा किया गया था एवं दिनांक २९/१०/२००७ को गाडी वाशिंग फिट पर अनुरक्षण हेतु प्लेस हुई जिसका अनुरक्षण कार्य मो0 नसीम जे0ई0-२ एवं मो0 जुबेर कारपेंटर द्वारा किया गया, अनुरक्षण के दौरान कथित यान सं0-एस/८९२०२ जी0एस0सी0एन0 की बर्थ २ में लगा शीशा वाली खिडकी ठीक व कार्यरत पायी गई एवं उसमें कोई खराबी नहीं पाई गयी। परिवादी को खिडकी गिरने से नहीं बल्कि कहीं अन्य स्थान पर पर चोट लगी होगी, परिवादी द्वारा गलत दावा प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी के द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। उपरोक्त आधारों पर परिवाद खारिज होने योग्य है।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान के तर्कों को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्वान जिला मंच ने अपीलकर्ता/विपक्षी की ओर से जो शपथपत्र दाखिल किए थे उन पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं किया है एवं प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अपीलकर्ता की ओर से श्री जुबेर, श्री मो0 असीम जेई एवं अमरीश स्टेशन मास्टर तथा मनोज जैन का शपथपत्र दाखिल किया गया है जिसकी फोटो प्रतियां अपीलकर्ता द्वारा दाखिल की गयी हैं । श्री जुबेर द्वारा यह बताया गया है कि जब उसने अन्य मो0 नसीम जेई द्वितीय के साथ कथित यान सं0-८९२०२ जीएससीएन की बर्थ २ से लगी शीशा वाली खिडकी ठीक व कार्यरत पायी गयी तथा इसमें कोई खराबी नहीं पायी गयी । मो0 नईम द्वारा भी इसकी पुष्टि की गयी । अमरीश स्टेशन मास्टर द्वारा अपने शपथपत्र में यह बताया गया है कि घटना की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गयी। इसके अतिरिक्त मनोज जैन ने अपने शपथपत्र में यह बताया है कि उसे कक्ष सं0- बी 1 में वादी मिले थे और उन्होंने रूमाल हटाकर अपने हाथ की उंगली दिखायी थी।
अपीलकर्ता की ओर से श्री यशपाल सिंह का शपथपत्र दाखिल किया गया है जो कि दिनांक २७/१०/२००७ को अपने अधीनस्थ कर्मचारी द्वारिका प्रसाद के साथ
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ड्यूटी पर तैनात था और अनुरक्षण के दौरान यान सं0-८९२०२ जीएससीएन की बर्थ से लगी शीशा वाली खिडकी ठीक व कार्यरत पायी गयी और कोई खराबी नहीं पायी गयी।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा कोई निष्पक्ष सहयात्री का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। एक्सरे एवं उपचार की फोटोप्रति दाखिल की गयी है। एक्सरे में कोई बाडी इंजरी नहीं पायी गयी है। अत: ऐसी परिस्थिति में परिवादी/प्रत्यर्थी ने बढ़ाचढ़ाकर अपने न्यायिक अधिकारी के पर होने का लाभ लेते हुए गलत परिवाद दाखिल किया है।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि विद्वान जिला मंच ने बिना किसी ठोस आधार के अत्यधिक क्षतिपूर्ति दिलाए जाने का आदेश पारित किया है। चूंकि परिवादी अपर जिला जज के पर कार्यरत है, इसलिए उसने अपने पद का लाभ लेकर अपीलकर्ता/विपक्षी से गलत पैसे वसूलने के कारण परिवाद प्रस्तुत किया है और यदि परिवादी ने अवकाश लिया है तो अवकाश किन कारणों से लिया है जिसके लिए हुई आर्थिक क्षति के लिए अपीलकर्ता/विपक्षी उत्तरदायी नहीं है। अत: प्रश्नगत निर्णय निरस्त किए जाने योग्य है।
अपीलकर्ता/विपक्षी द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र की धारा १८ में यह लिखा गया है कि कथित यान बर्थ सं0-२ में लगी शीशे वाली खिडकी ठीक पायी गयी तथा उसमें कोई खराबी नहीं पायी गयी। इस संबंध में यशपाल सिंह जेई प्रथम तथा द्वारिका प्रसाद कारपेंटर द्वारा रिपोर्ट की गयी थी एवं अनुरक्षण कार्य मो0 नसीम तथा मो0 जुबेर कारपेंटर द्वारा किया गया था। इन सभी लोगों ने अपने शपथपत्र में प्रतिवाद पत्र में दिए गए तथ्यों को दोहराया है। प्रतिवाद पत्र की धारा १९ में निम्नवत लिखा गया है :-
वादी को यदि कोई चोटें लगीं तो वह ट्रेन की खिडकी गिरने से नहीं बल्कि उसे किसी अन्य स्थान पर लगी होगी। संभवत: वह वादी के आवास से स्टेशन आने में कार के गेट से हाथ में चोट लगी है, और वादी उक्त घटना को वादी ने तुरन्त वाद सृजित करने के उद्देश्य से घटना को सिफ्ट करके गाडी के अन्दर कोच में दिखाकर गलत व बेबुनियाद वाद गलत तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत कर दिया है तथा कथित रूप से वादी मुकामी जिला में अपर जिला जज के पद पर कार्यरत है, उसका अनुचित लाभ लेकर विपक्षी से गलत पैसा वसूलना चाहते हैं, वादी ने यदि
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कोई अवकाश लिया है तो वह अपने दूसरे व्यक्तिगत कारणों से लिया होगा और ट्रेन में चोट लगने का आधार लिया होगा। इसलिए उन्हें अर्जित अवकाश लेना किन्हीं कारणों से उनकी मजबूरी रही होगी और उससे उनका वेतन कट जाता उस क्षतिपूर्ति की भरपाई करने के लिए एक गलत व बेबुनियाद वाद विपक्षी पर प्रस्तुत कर दिया है।
प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
परिवादी ने अपने परिवाद में यह बताया है कि दिनांक २८/१०/२००७ को जब वह गोरखनाथ एक्सप्रेस से गोरखपुर की यात्रा कर रहा था तो कोच के शीशे वाली खिडकी व लोहे की खिडकी खुली हुई थी। परिवादी अपना दाहिना हाथ खिडकी के हत्थे पर रखे था कि अचानक ट्रेन चलने पर झटक लगने से खिडकी का शीशा गिर गया जिससे परिवादी के दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में गंभीर चोट लग गई, जिससेखून बहने लगा और काफी दर्दहोने लगा। किसी तरह खोजने पर उक्त ट्रेन में चल टिकट परीक्षक मिले तो घटना से अवगत कराया गया एवं अपना परिचय परिवादी ने बताया । टी0टी0 ने परिवादी को प्राथमिक चिकित्सा दिलाईएवं परिवाद पुस्तिका में इस घटना की प्रविष्टि २८/२९-१०-२००७ को की गई। लखनऊ पहुंचने पर परिवादीने भाउराव देवरस संयुक्त चिकित्सालय में टिटबैक एवं अन्य दवायें चिकित्सक के सलाहसे ली एवं आवश्यक कार्य निपटा कर किसी तरह वापसदूसरे दिन गोरखपुर आया परन्तु उंगली में दर्दबना रहा।
परिवादी ने जिला मंच के समक्ष २८/११/२००८ के एक शपथपत्र इस आशय का दिया था कि दिनांक २८/१०/२००७ को घटना की सूचना गाडी में चल रहे चल टिकट परीक्षक को दी गयी थी और परिवादी ने गाडी में उपलब्ध पुस्तिका पर शिकायत दर्ज की थी, इसलिए २८/२९-१०-२००७ की शिकायत पुस्तिका की फोटोप्रति प्रस्तुत किए जाने के लिए विपक्षी को निर्देशित किया जाए। जिला मंच के द्वारा फर्स्ट एड लिस्ट/रजिस्टर एवं शिकायत पुस्तिका प्रस्तुत किए जाने का आदेश दिया गया था किन्तु अपीलकर्ता/विपक्षी द्वारा वह प्रस्तुत नहीं किया गया क्योंकि उस पर परिवादी के हस्ताक्षर मौजूद रहे होंगे, इसलिए इस संबंध में भी अपीलकर्ता/विपक्षी के विरूद्ध यह तथ्य प्रमाणित होता है कि जानबूझकर अपीलकर्ता/विपक्षी ने आवश्यक तथ्यों को छिपाने के लिए अभिलेख मंच के समक्ष
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प्रस्तुत नहीं किए । इसके अतिरिक्त दिनांक २८/१०/२००७ को गोरखपुर एक्सप्रेस फर्स्ट एड लिस्ट/रजिस्टर जिस पर वादी के हस्ताक्षर हैं को भी तलब कर लिया जाए किन्तु अपीलकर्ता/विपक्षी की ओर से उक्त रजिस्टर की प्रति प्रस्तुत नहीं की गयी। शपथकर्ता मनोज जैन ने यह बताया है कि परिवादी ने उसको बी 1 कोच में रूमाल हटाकर अपने हाथ की उंगली दिखायी थी। इससे यह स्पष्ट है कि परिवादी दिनांक २८/१०/२००७ को यात्रा कर रहा था।
परिवादी/प्रत्यर्थी ने जिला चिकित्सालय गोरखपुर तथा भाउराव देवरस संयुक्त चिकित्सालय महानगर लखनऊ में हुए उपचार की रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिससे यह प्रमाणित होता है कि परिवादी को उपरोक्त घटना में चोट आयी थी। पत्रावली में गोरखपुर एक्सप्रेस से यात्रा करनेकी टिकट की फोटोप्रति भी दाखिल की गयी है जिसमें अस्पष्ट हस्ताक्षर किए गए प्रतीत होते हैं जो कि सामान्यत: संबंधित यान के टीटीई के द्वारा टिकट चेकिंग के दौरान किए जाते हैं। इन अभिलेखों एवं मेडिकल साक्ष्य से यह पूर्णत: सिद्ध होता है कि परिवादी ने गोरखपुर एक्सप्रेस से दिनांक २८/१०/२००७ को यात्रा की और यात्रा के दौरान उसे खिडकी का शीशा टूट जाने के फलस्वरूप उंगली में गंभीर चोट आयी ।
जहां तक अपीलकर्ता/विपक्षी का यह तर्कहै कि परिवादी/प्रत्यर्थी चूंकि अपर जिला जज के पद पर तैनात हैं, इसलिए अपनेपद का लाभ लेकर अपीलकर्ता/विपक्षी से गलत पैसे वसूलना चाहते हैं, यह अवांछनीय एवं अकारण तर्क प्रस्तुत किया गया है क्योंकि कोई भी सामान्य उपभोक्ता चाहे वह न्यायिक अधिकारी ही क्यों न हो यदि उसके साथ इस प्रकार की कोई घटना घटित हो जाती है तो उसे यह पूर्ण अधिकार है कि वह अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत उपभोक्ता न्यायालय में अपना प्रतिवाद प्रस्तुत कर सकता है। इसमें किसी भी परिवादी पर पद के लाभ का दुरूपयोग करने की जो आपत्ति की गयी है वह किसी भी प्रकार से मानने योग्य नहींहै।
विद्वान जिला मंच ने अपने निर्णय में अवधारित किया है कि परिवादी अपने साक्ष्य से प्रमाणित कर दिया है कि विपक्षी की लापरवाही व सेवा में कमी के कारण विपक्षी के ट्रेन के कोच में स्थित खिडकी में दोष होने के कारण ट्रेन में लगा शीशा परिवादी की उंगली पर गिर गया और परिवादी की उंगली में अत्यधिक
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चोट आई और जिसके कारण ही परिवादी उपरोक्त वर्णित समय में सुचारू रूप से अपना न्यायिक कार्य नहीं कर सका और उसे अवकाश प्राप्त करना पडा। साक्ष्य से यह भी प्रमाणित है कि विपक्षी ने उपरोक्त वर्णित ट्रेन के कोच के खिडकी को ठीक प्रकार से रखरपरोक्त्िपार्िी्पीलार्थीगणै ।खाव नहीं किया। विपक्षी द्वारा जो कर्मचारियों के शपथपत्र प्रस्तुत किए गए हैं उपरोक्त वर्णित कारणों से विश्वसनीय नहीं हैं। परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य पूर्णतया विश्वसनीय पाया जाता है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों को अपने शपथपत्र एवं अभिलेखीय साक्ष्य से पूर्णतया प्रमाणित किया है। परिवादी ने मु0 २८ हजार रू0 की क्षतिपूर्ति दिलाए जाने के लिए आवेदन किया है। मंच के विचार से परिवादी के समस्त साक्ष्य से प्रमाणित होता है कि परिवादी २८ हजार रू0 की क्षतिपूर्ति विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी है। विपक्षी विभाग द्वारा तथ्यों से प्रारम्भ से इंकार किए जाने के कारण मंच के विचार से इस दुर्घटना के दिनांक से अंतिम वसूली तक इस धनराशि पर परिवादी ०९ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी है। विद्वान जिल मंच ने उभयपक्ष के द्वारा प्रस्तुत किए गए शपथपत्रों एवं चिकित्सीय साक्ष्य का अवलोकन करने के पश्चात प्रश्नगत आदेश विधि अनुसार पारित किया है जिसमें कोई हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम गोरखपुर के द्वारा परिवाद सं0-५३/२००८ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक ०७/०९/२०१२ की पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को निर्णय की सत्यापित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(अशोक कुमार चौधरी) (बाल कुमारी)
पीठा0सदस्य सदस्या
सत्येन्द्र
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