राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-214/2006
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम,द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या-110/2002 में पारित आदेश दिनांक 14.12.2005 के विरूद्ध)
- शाखा प्रबन्धक, यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा बदायूँ रोड, गगनदीप काम्प्लेक्स, 148-सिविल लाईन्स (आज प्रदेस के सामने) बरेली।
- मण्डलीय महाप्रबन्धक, यूनियन बैंक आफ इण्डिया-ए/29-ए, खण्डारी क्रासिंग, आगरा जनपद आगरा, उ0प्र0।
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
संतोष कुमार सिंह पुत्र श्री प्रेम कुमार सिंह, निवासी सैनिक कालोनी, निकट सुरेश शर्मा नगर, थाना इज्जतनगर, बरेली पर0 व तह0 बरेली।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चढ्ढा।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए0 के0 मिश्रा।
दिनांक: 29-10-2015
माननीय श्रीमती बाल कुमारी सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी ने प्रस्तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या-110/2002 में पारित एवं आदेश दिनांक 14.12.2005 के विरूद्ध प्रस्तुत की है। विवादित आदेश निम्नवत् है :-
''परिवाद स्वीकार किये जाकर आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षी बैंक को निम्नप्रकार आदेशित किया जाता है :-
- परिवादी के विरूद्ध जारी की गयी प्रश्नगत ऋण वसूली की प्रक्रिया अवैध है इसे तात्कालिक प्रभाव से वापिस लेवें।
- परिवादी को स्वीकृत 40,000/-रू0 का वास्तविक भुगतान ऋणपत्र की शर्तों के अनुसार करे अथवा विकल्प में परिवादी द्वारा जमा मार्जिन मनी अंकन 10,000/-रू0 को परिवादी को आज से 15 दिनों में वापिस करें।
- परिवादी को क्षतिपूर्ति व वाद व्यय के लिए 25,000/-रू0 की धनराशि का भुगतान आज से 15 दिनों में अतिरिक्त करें।
इस निर्णय की प्रति बैंक के मुख्यालय को प्रेषित की जाये कि विस्तृत जॉंच कराये जाकर कदाचारी कर्मचारी विशेषकर तत्कालीन शाखा प्रबन्धक श्री सियाराम शर्मा के विरूद्ध दंडात्मक कार्यवाहीकरें तथा उक्त 65000/-रू0 कदाचारी बैंक कर्मी के वेतन से काटे जावें।''
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने वर्ष 2000 में स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना के अन्तर्गत यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा बदायूँ रोड, सिविल लाईन्स, बरेली में इलैक्ट्रिकल समान की दुकान हेतु ऋण के लिए आवेदन किया तदानुसार ऋण आवेदन पत्र में बैंक द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुरूप समस्त औपचारिकताऍं पूर्ण कर दी। दिनांक 28-02-2000 को विपक्षी बैंक द्वारा 40,000/-रू0 का ऋण स्वीकृत किया गया। इस प्रकार ऋण स्वीकृत होने के बाद शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक ऑफ इंण्डिया के निर्देशानुसार बिजली सामान व्यवसाय करने हेतु कोटेशन व बिल ''संगत ट्रेडर्स'' के लगाए। इसी प्रकार उक्त फर्म के स्वामी देवी नन्दन द्वारा प्राप्त कोटेशन व बिल लेकर समस्त औपचारिकताऍं पूर्ण करने के बाद अपने स्वीकृत ऋण धनराशि की मांग की तो बैंक के शाखा प्रबन्धक द्वारा टालमटोल की गयी। वादी के अनुरोध करने पर विपक्षी बैंक ने परिवादी से सादे कागजात व स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर कराये और ऋण की धनराशि देने हेतु कहा। लेकिन ऋण की धनराशि आज तक नहीं दी इसलिए यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षी बैंक की ओर से उत्तर पत्र दाखिल किया गया तथा बचाव में कहा गया कि परिवादी को अंकन 40,000/-रू0 का ऋण स्वीकार किया गया। अंकन 10,000/-रू0 मार्जिन मनी के रूप में जमा किये गये स्वरोजगार योजना में परिवादी को संगत ट्रेडर्स से माल खरीदना था और उनका बिल प्राप्त होनेपर तथा परिवादी के माल प्राप्त करने पर अंकन 50,000/-रू0 का चेक संगम ट्रेडर्स को दिया गया जो आद्रित होकर संगम ट्रेडर्स को भुगतान हो गया। परिवादी ने ऋण की अदायगी नहीं की, इसलिए वसूली की कार्यवाही प्राप्त की गयी। परिवादी स्वयं डिफाल्टर है, परिवाद गलत तथ्यों से प्रस्तुत किया गया है, इसलिए खारिज किया जाये।
उभयपक्ष को सुनकर विद्धान जिला मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बिना ऋण उपलब्ध कराये वसूली की कार्यवाही करना सेवा में त्रुटि है। परिवादी बैंक से जमाशुदा मार्जिन मनी 10,000/-रू0 भी वापस पाने का अधिकारी है तथा क्षतिपूर्ति भी प्राप्त करने का अधिकारी है। तथा मानसिक कष्ट भी पाने का अधिकारी है।
पीठ के समक्ष अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री राजेश चढ्ढा तथा प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री ए0 के0 मिश्रा उपस्थित।
उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी एवं उनके तर्क के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली का परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला मंच ने तथ्यों तथा विधि विरूत्र आदेश पारित किया है तथा अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अंकन 40,000/-रू0 का ऋण परिवादी की स्वरोजगार योजना में स्वीकार हुआ। जो संगत ट्रेडर्स से माल खरीदना था उनका बिल प्राप्त होने पर तथा परिवादी के माल प्राप्त करने पर अंकन 50,000/-रू0 का चेक संगत ट्रेडर्स को दिया गया जो आद्रित होकर संगत ट्रेडर्स को भुगतान हो गया। परिवादी डिफाल्टर है इसलिए वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया जिसे रोकने का क्षेत्राधिकार जिला फोरम को नहीं है तथा प्रत्यर्थी/परिवादी और बैंक के बीच संधि के आधार पर ऋण स्वीकार किया गया था अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम के आदेश को निरस्त किया जाए।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला मंच ने सभी तथ्यों तथा पत्रावली का गहनतापूर्वक अवलोकन करके विधि अनुकल आदेश पारित किया गया है। वास्तव में परिवादी को माल नहीं मिला और न ही ऋण। ऋण पत्र की शर्त (1) के अनुसार स्वरोजगार में जो माल खरीदा जाये उसका बैंक के नाम बंधक होना आवश्यक है। ऐसी कोई हाईपीथिकेशन नहीं हुआ इसका अर्थ है कि माल खरीदा ही नहीं गया और संगत ट्रेडर्स के नाम से फर्जी चेक काटकर ऋण की राशि अंकन 50,000/-रू0 बैंक कर्मचारीगण द्वारा हड़प ली गयी। परिवादी को कोई ऋण नहीं प्राप्त हुआ अत अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
पत्रावली का परिशीलन यह भी दशार्ता है कि परिवादी संतोष कुमार सिंह व बैंक के बीच संधि पत्र कागज संख्या-29 लगायत 34 के आधार पर उसे ऋण स्वीकृत किया गया इस संधि पत्र पर परिवादी के हस्ताक्षर है और इसी संधि पत्र के अनुसार ऋण स्वीकार करते हुए बैंक द्वारा रसीद मु0 50,000/-रू0 को सही मानते हुए बैंक/अपीलार्थी ने संगत ट्रेडर्स के नाम 50,000/-रू0 ऋण के प्रदान कराये तथा परिवादी ने आर0सी0 जारी होने के बाद परिवाद दाखिल किया है। परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा कि बैंक के कर्मचारी व एजेन्ट ने मिलकर धोखाधड़ी करके बैंक से ऋण फर्जी तरीके से निकाल लिया इस आधार पर भी जिला मंच को इस परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है और न वसूली की कार्यवाही रोकन का क्षेत्राधिकार है। जिला फोरम ने अपने क्षेत्राधिकार से परे आदेश पारित किया है जो निरस्त होने योग्य है एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या-110/2002 में पारित एवं आदेश दिनांक 14.12.2005 निरस्त किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
( राम चरन चौधरी ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-5 प्रदीप मिश्रा