(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-772/2009
(जिला आयोग, बाराबंकी द्वारा परिवाद संख्या-131/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.4.2009 के विरूद्ध)
अनिल कुमार पुत्र स्व0 पुरूषोत्तम लाल, निवासी अभयनगर देवा रोड, थाना कोतवाली, जिला बारबंकी।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. शाखा प्रबंधक महोदय, भारतीय स्टेट बैंक, शाखा सट्टी बाजार, जिला बाराबंकी।
2. शाखा प्रबंधक महोदय, मेन ब्रांच, भारतीय स्टेट बैंक कचहरी के सामने, बाराबंकी।
3. भारतीय स्टेट बैंक, सामान्य बैंकिंग (महाप्रबंधक) स्थानीय प्रधान कार्यालय मोती महल मार्ग, लखनऊ।
4. श्रीमान शाखा प्रबंधक महोदय, दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कंपनी लि0, शाखा कार्यालय सिविल लाइन्स नगरपालिका के सामने बाराबंकी।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुनील कुमार गुप्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 त 3 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0-4 की ओर से उपस्थित : श्री बी.पी. दुबे के सहायक
श्री आर.सी. मिश्रा।
दिनांक: 25.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-131/2005, अनिल कुमार बनाम शाखा प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक आदि में विद्वान जिला आयोग, बाराबंकी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.4.2009 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. विद्वान जिला आयोग ने चोरी की घटना को संदिग्ध मानते हुए परिवाद को खारिज किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत दिनांक 13.12.2001 को भारतीय स्टेट बैंक, शाखा बाराबंकी से अंकन 84,000/-रू0 का ऋण प्राप्त किया था, जिसका बीमा कराया गया था। बीमा की किस्त परिवादी बैंक के पास जमा करता था, जिसे बैंक द्वारा बीमा कंपनी के पास भेजा जाता था। दिनांक 19.4.2004 की रात्रि में दुकान का शटर तोड़कर चोरी हो गई, जिसके कारण परिवादी का सारा सामान चोरी हो गया। एफआईआर कोतवाली में दर्ज कराई गई। इस घटना से परिवादी की आय का स्रोत बंद होने के कारण ऋण की किस्तें नहीं दी जा सकी। बीमा कंपनी द्वारा बीमा क्लेम नहीं दिया गया तथा यह कहा गया कि चोरी के समय बीमा नहीं था। बीमा कराने का दायित्व बैंक का था एवं परिवादी के खाते से प्रीमियम निकाला गया था।
4. विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन का सार यह है कि चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई, परन्तु विवेचना में घटना को सत्य नहीं पाया गया, इसलिए कोई बीमा क्लेम देय नहीं है, इसी कथन को विद्वान जिला आयोग द्वारा स्वीकार किया गया और परिवाद खारिज कर दिया गया।
5. अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थी सं0-4 के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी सं0-1 त 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
6. अपील के ज्ञापन में वर्णित तथ्यों एवं मौखिक बहस का सार यह है कि बीमा प्रीमियम अदा करने का दायित्व बैंक पर था, परन्तु बैंक द्वारा बीमा नहीं कराया गया, इसलिए सेवा में कमी की गई। विद्वान जिला आयोग ने प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर बीमा क्लेम निरस्त करने का गलत निष्कर्ष दिया है, क्योंकि पुलिस ने यह रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि मुल्जिम नहीं खोजे जा सके, इसलिए चोरी की घटना संदिग्ध होने का निष्कर्ष देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अत: यह निष्कर्ष अपास्त होने योग्य है।
7. प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं विवेचना की प्रति पत्रावली पर मौजूद है। अंतिम रिपोर्ट में यह निष्कर्ष नहीं है कि चोरी की कोई घटना नहीं पायी गयी, अपितु केवल यह उल्लेख है कि मुल्जिम का पता नहीं लग पाया है तथा न ही निकट भविष्य में मुल्जिम के पता लगने की संभावना है, इसलिए विवेचना समाप्त की गई है। अत: विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के विपरीत है। विवेचना अधिकारी ने चोरी को संदिग्ध नहीं माना, अतिपु चोरी में गया माल/मुल्जिम का सुराग न मिलने का कथन किया है।
8. अत: अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि परिवादी किस राशि की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
9. परिवाद पत्र में चोरी गए सामान का विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया। अनुतोष में यह मांग की गई है कि परिवादी पर जो देनदारी बनती है, वह शाखा प्रबंधक एसबीआई उस राशि को जमा करे। यह अनुतोष किसी भी दृष्टि से स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। परिवादी को परिवाद पत्र में क्षतिपूर्ति की राशि, चोरी गए सामान का उल्लेख तथा उसकी कीमत का विवरण दिया जाना चाहिए था, जो क्षति कारित हुई है, उसका आंकलन विद्वान जिला आयोग द्वारा किया जा सकता है और उस राशि को समायोजित किए जाने का आदेश दिया जा सकता है, परन्तु अनुतोष में जिस प्रकृति के अनुतोष की मांग की गई है, वह अनुतोष जारी किया जाना संभव नहीं है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में परिवादी ने चोरी गए सामान का विवरण अंकित किया है, जिसमें 14 इंची टी.सीरीज का कलर टी.वी., एक पुराना कनई का वी.सी.आर., विस्टन का एक पुराना डेक मशीन, एक आटो रिवर्स डेक, दो नया सी.डी. प्लेयर, दो पुराने सी.डी. प्लेयर, तीन रेडियो, तीन सी.डी. कार्ड, तीन सी.डी. लेंस चुराने का कथन किया है। यह रिपोर्ट दिनांक 20.4.2004 को लिखाई गई है। इनमें से अधिकतर सामान पुराने हैं, जो मरम्मत के लिए आए थे। परिवादी ने इनमें से किसी भी सामान की कीमत का उल्लेख नहीं किया है न ही शपथ पत्र से साबित किया है कि चोरी गए प्रत्येक सामान की क्या-क्या कीमत थी और इस संबंध में लिखा जा चुका है कि जिस अनुतोष की मांग की गई है, वह देय नहीं है। उपरोक्त वर्णित सामानों की कीमत केवल अनुमान के आधार पर ही इस पीठ द्वारा सुनिश्चित की जा सकती है, जो अंकन 10,000/-रू0 से अधिक नहीं बनती। अत: प्रश्नगत परिवाद इस सीमा तक स्वीकार होने योग्य है। चूंकि बैंक द्वारा बीमा नहीं कराया गया, इसलिए इस क्षतिपूर्ति की राशि के लिए बैंक उत्तरदायी है और क्षतिपूर्ति की राशि अंकन 10,000/-रू0 जिस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज की दर से ब्याज देय होगा। इसी प्रकार परिवाद व्यय के रूप में अंकन 1,500/-रू0 देय होंगे, परन्तु मानसिक प्रताड़ना की मद में इसलिए कोई राशि देय नहीं बनती कि परिवादी ने परिवाद पत्र में चोरी गए सामान का खुलासा नहीं किया, चोरी गए सामान की कीमत का भी खुलासा नहीं किया, इसलिए जिस अनुतोष की मांगी की गई, वह अनुज्ञेय नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
10. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.04.2009 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि भारतीय स्टेट बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में अंकन 10,000/-रू0 परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज के साथ अदा करे तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 1,500/-रू0 भी अदा करे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2