राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-36/2016
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, मऊ द्वारा परिवाद संख्या 78/2014 में पारित आदेश दिनांक 02.02.2016 के विरूद्ध)
Maruti Sujuki Company A.G.R. Auto Mobile Agency Mahmoorganj, Varanasi through its Manager Mr. Rajeev Kumar Gupta. ....................पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी सं0-1
बनाम
1. Ruchi Singh W/o Sadashiv Singh R/o Village and Post Indara,
District- Mau.
2. A.R.T.O. District- MAU
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी तथा विपक्षी सं0-2
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री गौरव कुमार हसानी,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 08.03.2016
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
पुनरीक्षणकर्ता द्वारा यह पुनरीक्षण जिला उपभोक्ता फोरम, मऊ द्वारा परिवाद संख्या 78/2014 में पारित आदेश दिनांक 02.02.2016 के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है, जिसके अन्तर्गत जिला मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि जिला मंच को प्रश्नगत परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। ऐसी स्थिति में विपक्षी/पुनरीक्षणकर्ता की ओर से प्रस्तुत प्रार्थना पत्र को निरस्त किया गया और लिखित कथन हेतु तारीख नियत की गयी। उक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी की ओर से वर्तमान पुनरीक्षण योजित किया गया और मुख्य रूप से यह
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अभिवचित किया गया कि प्रश्नगत आटो मोबाइल वाराणसी में स्थित है और जिला मऊ में उसका कोई कार्यालय नहीं है। ऐसी स्थिति में जिला उपभोक्ता फोरम, मऊ को प्रश्नगत परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
जिला मंच के समक्ष परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि वर्तमान प्रकरण में वाद कारण जिला मऊ में उत्पन्न हुआ और ऐसी स्थिति में प्रश्नगत परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार जिला उपभोक्ता फोरम, मऊ को प्राप्त है।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री गौरव कुमार हसानी को विस्तार से सुना गया और प्रश्नगत आदेश एवं उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
वर्तमान प्रकरण में क्षेत्राधिकार का प्रश्न परिवाद पत्र के अभिवचन पर निर्भर करता है और वर्तमान प्रकरण में परिवाद पत्र का अभिवचन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी ने विपक्षी से दिनांक 08.03.2013 को स्वीफ्ट डिजायर (वी.डी.आई.) गाड़ी खरीदी और 1800/-रू0 एजेंसी द्वारा मांगा गया कि सात दिन के अन्दर अस्थायी रजिस्ट्रेशन करा दिया जाएगा, जिस पर परिवादिनी ने 1800/-रू0 विपक्षी के खाते में मऊ से ही बैंक के माध्यम से भेज दिया। विपक्षी एजेंसी द्वारा पैसा ले लेने के बावजूद सात दिन के अन्दर अस्थायी रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया बल्कि आठवें दिन अस्थायी रजिस्ट्रेशन करवाया, जबकि विपक्षी द्वारा पैसा प्राप्त कर लेने के उपरान्त सात दिन के अन्दर ही
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अस्थायी रजिस्ट्रेशन करवाना था। परिवादिनी ने जब गाड़ी के स्थायी रजिस्ट्रेशन हेतु ए0आर0टी0ओ0 आफिस मऊ में आवेदन किया तो परिवादिनी को 5583/-रू0 आर्थिक दण्ड देना पड़ा कि गाड़ी का रजिस्ट्रेशन सात दिन के अन्दर नहीं बल्कि आठ दिन के अन्दर हुआ है। इस प्रकार विपक्षी द्वारा पैसा प्राप्त कर लेने के उपरान्त भी सेवा में कमी एवं लापरवाही की गयी।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-11 (2) में निम्नानुसार वर्णित है:-
''(2) परिवाद किसी ऐसे जिला फोरम में संस्थित किया जायेगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय परिसीमाओं के भीतर-
(क) विरोधी पक्षकार या जहॉं एक से अधिक विरोधी पक्षकार हो वहॉं विरोधी पक्षकारों में से प्रत्येक परिवाद के संस्थित किये जाने के समय, वस्तुत: और स्वेच्छापूर्वक निवास करता है या (कारबार चलाता है या जिसका शाखा कार्यालय है, या) व्यक्तिगत रूप से अधिलाभ के लिए कार्य करता है, या
(ख) कोई विरोधी पक्षकार, जहॉं एक से अधिक हो, परिवाद संस्थित किये जाने के समय, वस्तुत: और स्वेच्छापूर्वक निवास करता है या (कारबार चलाता है या जिसका शाखा कार्यालय है, या) व्यक्तिगत रूप से अधिलाभ के लिए कार्य करता है, परन्तु ऐसी दशा में या तो जिला फोरम ने इजाजत दे दी है या यथास्थिति विरोधी पक्षकार जो वहॉं निवास न करते हों (और न ही कारबार चलाते हैं और न जिनका शाखा कार्यालय है) और न
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जो व्यक्तिगत रूप से अधिलाभ के लिए कार्य करते हैं, उस वाद के संस्थित किये जाने में उपमत हो गया है, या
(ग) वाद हेतुक पूर्णत: या भागत: पैदा होता है।''
इस प्रकार यदि आंशिक वाद कारण भी सम्बन्धित जिले में उत्पन्न होना पाया जाता है तो क्षेत्राधिकार उस जिला फोरम को प्राप्त है। परिवाद पत्र के अभिवचन को देखते हुए वर्तमान प्रकरण में जनपद मऊ में वाद कारण उत्पन्न होना पाया जाता है। ऐसी स्थिति में जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश विधि अनुकूल है और उसमें क्षेत्राधिकार सम्बन्धी कोई त्रुटि नहीं है। अत: अंगीकरण के स्तर पर ही यह पुनरीक्षण खण्डित किए जाने योग्य है।
आदेश
यह पुनरीक्षण खण्डित किया जाता है।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं०-1