Rajasthan

Ajmer

CC/69/2014

SHIVNATH YOGI - Complainant(s)

Versus

RSRTC - Opp.Party(s)

ADV S.P GANDHI

06 Apr 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/69/2014
 
1. SHIVNATH YOGI
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. RSRTC
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Vinay Kumar Goswami PRESIDENT
  Naveen Kumar MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण,         अजमेर

श्री षिवनाथ योगी  पुत्र श्री कैलाषनाथ, निवासी- आदर्षनगर, रेल्वे स्टेषन, नन्दिनी स्कूल केे पास, विज्ञान नगर, अजमेर  मृतक जरिए -
1.  श्रीमति गंगा देवी  पत्नी स्व. श्री षिवनाथ योगी  पुत्र श्री कैलानाथ, निवासी- आदर्षनगर, रेल्वे स्टेषन, नन्दिनी स्कूल केे पास, विज्ञान नगर, अजमेर  
                
                                                -      प्रार्थीया

                            बनाम

1. मुख्य प्रबन्धक, अजयमेरू आगार, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, अजमेर 
2. रीजनल प्रोविडेन्ट फण्ड कमिष्नर, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, क्षेत्रीय कार्यालय, निधि भवन, ज्योतिनगर, जयपुर ।
3. राजस्थान राज्य  पथ परिवहन  निगम जरिये इसके प्रबन्ध निदेषक, जयपुर 

                                               -       अप्रार्थीगण 
                 परिवाद संख्या 69/2014
   

                            समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी       अध्यक्ष
                 2. श्रीमती ज्योति डोसी       सदस्या
3. नवीन कुमार               सदस्य


                           उपस्थिति
                  1.श्री सूर्यप्रकाष गांधी एवं श्री  नवनीत तिवारी, 
                   अधिवक्तागण, प्रार्थीया
                  2.श्री अमर सिंह,अधिवक्ता अप्रार्थी सं. 1 व 3 
                  3. श्री राजेन्द्र सिंह राठौड,अधिवक्ता, अप्रार्थी सं. 2

                              
मंच द्वारा           :ः- निर्णय:ः-      दिनांकः-06.04.2016

1.    जिला मंच के आदेष दिनांक 14.07.2010 से क्षुब्ध होकर प्रार्थी ने एक  अपील  माननीय राज्य आयोग, जयपुर में प्रस्तुत की । तत्पष्चात् माननीय राज्य आयोग ने अपने निर्णय दिनांक 16.5.2013 के द्वारा हस्तगत प्रकरण को उपभोक्ता विवाद मानते हुए उसे गुण-दोषों के आधार पर निर्णय करने  के निर्देष के साथ  जिला मंच को पुनः प्रतिप्रेषित किया ।
 
2.           प्रार्थीया (जो  इस परिवाद में आगे चलकर उपभोक्ता कहलाएगी) ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम , 1986 की धारा 12 के अन्तर्गत अप्रार्थी संख्या 1 लगायत 3 (जो  इस परिवाद में आगे चलकर अप्रार्थी  सं. 1 व 3रोडवेज व अप्रार्थी  सं. 2 भविष्य निधी विभाग  कहलाएंगे)  के विरूद्व संक्षेप में इस आषय का पेष किया है कि  उसके पति श्री षिवनाथ योगी (अब मृतक) अप्रार्थी  राजस्थान रोडवेज के यहां दिनांक 12.3.1969 को परिचालक के पद पर नियुक्त होकर दिनांक 31.1.2005 कसे  सहायक यातायत निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए । अप्रार्थी रोडवेज के अधीनस्थ विभिन्न आगारों में पदस्थापन के दौरान कर्मचारी पेंषन योजना के अन्तर्गत  उसके वेतन से कटौती की जाती रही और पेंषन योजनाओं के तहत 10 वर्ष तक नियमित कटौती के पष्चात् कर्मचारी पेषन का हकदार हो जाता है । इसी योजना के तहत उसने  सेवानिवृत्ति के पष्चात् पारिवारिक पेंषन के लिए  समस्त वांछित दस्तावेजात के साथ निर्धारित प्रोर्फामा में पारिवारिक पेंषन भुगतान हेतु  अप्रार्थी रोडवेज को  आवेदन किया। तत्पष्चात्   उसने अप्रार्थी भविष्य निधि संगठन को निवेदन किए जाने पर उन्होने अपने पत्र दिनांक 13.3.2006 के द्वारा  पेंषन प्रकरण के निष्पादन की कार्यवाही करने का  निर्देष दिया  । उसने दिनांक 7.1.2008 को  नोटिस भी  दिया । जिसके प्रत्युत्तर में अप्रार्थी रोडवेज ने  दिनांक 21.1.2008 के द्वारा सूचित किया कि  उसका पेंषन सैट आवष्यक पूर्ति कर  अप्रार्थी भविष्य निधि संगठन को दिनांक 21.3.2006 को भेजा गया है  तत्पष्चात् अप्रार्थी भविष्य निधि संगठन से जानकारी करने पर उन्हांेने प्रकरण अण्डर प्रोसेस होना बतलाया ।  उसने दिनांक 27.6.2008 को पुनः नोटिस दिया ।  किन्तु उसका न तो जवाब दिया  और ना ही  पेषन राषि का भुगतान किया । जबकि  उपभोक्ता के साथ कार्यरत अन्य सहायक यातायत निरीक्षक श्री सुरेष वमार्,  जिसका खाता संख्या 3891/ 2494 है, को  पेंषन का भुगतान किया जा रहा है । इस प्रकार अप्रार्थीगण ने उसे पेंषन राषि का भुगतान नहीं कर सेवा में कमी कारित की है । उपभोक्ता ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया । 
3.       अप्रार्थी  रोडवेज ने  परिवाद का उत्तर प्रस्तुत कर दर्षाया है कि  उपभोक्ता केवल कर्मचारी भविष्य निधि योजना का सदस्य था । कर्मचारी पेषन योजना 1971 में ष्षुरू की गई थी और जो कर्मचारी इससे पूर्व कर्मचारी भविष्य निधि के सदस्य थे उनसे  कर्मचारी परिवार पेषन योजना का सदस्य बनने हेतु समय समय पर विकल्प मांगे गए थे  और जिन कर्मचारियों ने अपना विकल्प प्रस्तुत किया, वे ही इस योजना के सदस्य बने । किन्तु  उपभोक्ता ने कर्मचारी परिवार पेंषन योजना, 1971 के तहत अपना विकल्प प्रस्तुत नहीं किया । इसी कारण  उपभोक्ता का  नाम उनके कार्यालय आदेष दिनांक 28.3.1985 को जारी विकल्प न देने वालों की सूची में क्रम संख्या 1260 पर अंकित है । सहवन से सितम्बर, 1986 से नवम्बर, 1995  तक उपभोक्ता के वेतन से अंषदान की कटौती की जाकर अप्रार्थी भविष्य निधि विभाग को भेजी जाती रही । परिवार  पेंषन योजना, 1971  के तहत परिवार पेंषन कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मृत्यु हो जाने की स्थिति में ही परिवार को देय होती है और यदि कर्मचारी सेवा से सेवानिवृत्त होता है तो  उसे उक्त योजना के तहत कोई पेंषन देय नहीं होती है । उपभोक्ता  ने 26.7.1995 को प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करते हुए स्वयं को ईपीएम, 1971 का सदस्य न होने  और कर्मचारी परिवार पेंषन योजना, 1995 के तहत पेंषन लेने का विकल्प  देने का इच्छुक न होना  तथा सीपीएफ का ही विकल्प रखे जाने हेतु  व भविष्य में पेंषन की मांग नहीं करने का  निवेदन किया ।  सहवन से जो कटौतियां की गई हंै वह 10 वर्ष से कम हंै । अपने  अतिरिक्त कथन में यह दर्षाया है कि  यदि उपभोक्ता  किसी भी पेंषन योजना का सदस्य होता तो भी उसके भुगतान की जिम्मेदारी अप्रार्थी भविष्य निधि विभाग की होती। उत्तरदाता अप्रार्थी का इस संबंध में कोई लेना देना नहीं है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब के समर्थन में श्री जयदेव सांखला, , मुख्य प्रबन्धक ने अपना ष्षपथपत्र पेष किया ।  
4.    अप्रार्थी भविष्य निधि विभाग  ने  उत्तर प्रस्तुत कर  दर्षाया है कि  उपभोक्ता भविष्य निधि  का सदस्य 13.3.69 को बना और परिवार पेंषन योजना 1.3.1971 से आरम्भ हुई जिसे स्वीकार करने के लिए उपभोक्ता ने कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं  करना उसके नियोक्ता ने अपने पत्र दिनांक 21.3.2006 के द्वारा सूचित किया   और उपभोक्ता  के नियोक्ता द्वारा उसको  परिवार पेंषन योजना का सदस्य नहीं बताने के कारण उत्तरदाता ने पत्र दिनांक  20.4.2006 के द्वारा उपभोक्ता का पेषन दावा  फार्म संख्या 10 -घ  वापस लौटा दिया । जिसकी सूचना उसको भी दी गई । इसके बावजूद उसके नियोक्ता  व उसने उक्त पत्र का कोई जवाब नहीं दिया । उपभोक्ता  ने जिस अन्य सदस्य का परिवाद में उल्लेख किया है वह परिवार पेंषन योजना, 1971 का सदस्य था और उसने पेंषन योजना का लगातार अंषदान दिया था ।  उपभोक्ता के नियोक्ता द्वारा  उसके वेतन से परिवार पेंषन अंषदान की जो कटौती की गइर्, वह 10वर्ष से कम थी  और गलती से काटी गई राषि भुगतान योग्य होने के कारण उपभोक्ता के नियोक्ता को राषि लौटाए जाने का  निर्देष दे दिया गया । चूंकि उपभोक्ता कर्मचारी पेंषन योजना, 1995 व कर्मचारी परिवार पेंषन योजना, 1971 का सदस्य नहीं था, इसलिए प्रार्थी  कोई भी पेंषन  प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अन्त में परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब के समर्थन में श्री जानकी लाल मीणा, प्रवर्तन अधिकारी ने अपना षपथपत्र पेष किया । 
5.    हस्तगत मामले में  पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर विवाद है कि क्या मंच को हस्तगत प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार  प्राप्त है ? यदि है, तो क्या  मामलें में गुणावगुण के आधार पर उपभोक्ता वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है ?
6.    उपभोक्ता के विद्वान अधिवक्ता ने प्रमुख रूप से  क्षेत्राधिकारिता  के संदर्भ में तर्क प्रस्तुत किया है कि जब एक बार माननीय राज्य आयोग द्वारा  उनके निर्णय  दिनांक 16.5.2013  के द्वारा भविष्य निधि राषि व इससे जुडे मामले को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(जी) के तहत उपभोक्ता मामला मानते हुए उपभोक्ता मंच  को मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार होना निर्धारित कर दिया है, तो इन हालात में अब इस बिन्दु  पर अप्रार्थीगण को यह अधिकार  नहीं है कि वह पुनः इस बिन्दु को उठावें । अपने तर्को के समर्थन में इनकी ओर से विनिष्चय प्प् ;2009द्धब्च्श्र 282 ।उइं क्ंेे डवींद  ैीपदकम टे ज्ञंबीतन थ्ंापतं च्ंहंतम - व्ते पर अवलम्बन लिया गया है । 
7.    खण्डन में रोडवेज के विद्वान अधिवक्ता ने दलीलंे प्रस्तुत की हंै कि क्योंकि माननीय राज्य  आयोग के निर्णय के बाद माननीय उच्चतम न्यायालय  ने 2014;1द्ध त्स्ॅ 315 ;ैब्ब्द्ध क्तण् श्रंहउपजजंत ैंपद ठींहंज टे क्पतमबजवत भ्मंसजी ैमतअपबमेए भ्ंतलंदं- व्ते    में यह अभिनिर्धारित कर दिया है कि  एक सरकारी कर्मचारी अपनी सेवा षर्तो या अपने अंषादान के भुगतान हेतु या पीएफ व सेवानिवृत्ति संबंधी परिलाभों के बाबत् उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत किसी भी मंच के समक्ष कोई भी विवाद नहीं उठा सकता । सरकारी कर्मचारी  इस अधिनियम की धारा  2(1)(घ)(।।) के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं  आता है । 
8.    उपभोक्ता के विद्वान अधिवक्ता ने विनिष्चय प्प्;2014द्धब्च्श्र 102;छब्द्ध व्छळब् स्जक - व्ते टे त्मेमंतबी ब्वदेनउमत  म्कनबंजपवद ैवबपमजल  - व्तेपर अवलम्बन  लेते हुए यह भी बताया  है कि  माननीय राष्ट्रीय आयोग ने इस विनिष्चय में यह अभिनिर्धारित कर दिया है कि  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 के अन्तर्गत अद्र्वषासकीय  संस्थाओं /संगठनों में काम करने वाले कर्मचारी पेंषन मामलों को मंच के समक्ष उठा सकते है । 
9.    जहां तक माननीय राज्य आयोग द्वारा पारित इस मामले की अपील में दिषा निर्देष  दिए जाने का प्रष्न है, स्वीकृत रूप से हस्तगत प्रकरण में  इस विवाद को उपभोक्ता मामला मानते हुए इस मंच को क्षेत्राधिकार होना बताया है । हालांकि इस निर्णय के विरूद्व माननीय राष्ट्रीय आयोग में कोई अपील प्रस्तुत नहीं की गई है, किन्तु माननीय राष्ट्रीय आयोग  ने अपने व्छळब् स्जक - व्ते वाले मामले में पेंषन से संबंधित मामलो को उपभोक्ता मंच के क्षेत्राधिकार का होना माना है । जो माननीय उच्चतम न्यायालय वाले विनिष्चय क्तण् श्रंहउपजजंत ैंपद ठींहंज   उद्वरित  हुआ है, में माननीय उच्चतम न्यायालय ने ’’सरकारी कर्मचारी’’ को सेवानिवृत्ति संबंधी परिलाभांे के बाबत या भविष्य निधि राषि के अंषदान के भुगतान हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम  के तहत किसी भी मंच के समक्ष विवाद उठाने से वंचित किया है,  व सरकारी कर्मचारी को अधिनियम की धारा 2(1)(घ)(।।) के अन्तर्गत उपभोक्ता की परिभाषा के अन्तर्गत नहीं माना है।  हालांकि  अप्रार्थी रोडवेज की ओर से उनके पक्षकारों को भारतीय संविधान के अन्तर्गत ’’राज्य’’ की परिभाषा  में होना बताया है ।   किन्तु जब माननीय राज्य आयोग व माननीय राष्ट्रीय  आयोग ने यह अभिनिर्धारित  कर दिया है कि हस्तगत प्रकरण मंच के क्षेत्राधिकार का है  तो इन हालात में इस मंच की राय में हस्तगत मामला इस मंच के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत पाया जाता है ।  वैसे भी उपभोक्ता सरकारी कर्मचारी की परिभाषा में नहीं आता है । अतः यह विनिष्चय भी तथ्यों की भिन्नता लिए हुए है ।
10.    यहां यह उल्लेखनीय है कि माननीय राज्य आयोग ने अपने विनिष्चय में माननीय उच्चतम न्यायालय के दृष्टान्त प्प्;2008द्धब्च्श्र 9 ैब् त्महपवदंस च्तवअपकमदज थ्नदक ब्वउउपेेपवदमत टे ठींअंदप   में पारित दिषा निर्देषों से स्वयं को आबद्व होते हुए, ऐसा पाया है ।  अप्रार्थी रेाडवेज के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि व्छळब् स्जक - व्ते वाले मामले के विरूद्व माननीय उच्चतम न्यायालय में ैस्च् दायर की गई है जो लम्बित है। अतः इसके दिषा-निर्देष जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, मानने योग्य नहीं है ।   चूंकि व्छळब् स्जक - व्ते वाला मामला माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा तय किया जा चुका है ।  अतः ऐसी परिस्थितियों में  इस मंच की  राय में यदि माननीय राज्य आयोग द्वारा पारित अपील में दिषा निर्देषों के साथ साथ माननीय राष्ट्रीय आयोग  द्वारा  अभिनिर्धारित दिषा निर्देषों की पालना की जाती है तो इसमें किसी प्रकार की कोई अवैधानिकता नहीं है । एक अन्य विनिष्चय 2014 क्छश्र;;ब्ब्द्ध3 ।देंस  च्तवचमतजपमे - प्दतिंेजतनबजनतम स्जक - व्ते टे ैंदरंल ळनचजं - व्ते  भी उपभोक्ता की ओर से प्रस्तुत हुआ है जिसमें  भी माननीय राष्ट्रीय आयोग ने इस मंच की क्षेत्राधिकारिता में पेंषनर को उसके पेंषन व भविष्य निधि राषि के लिए उपभोक्ता माना है । 
11.    अब हम इस बिन्दु पर विचार करते हंै कि क्या उपभोक्ता वांछित अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी है ?
12.    अप्रार्थी भविष्य निधि विभाग की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि वे किसी प्रकार से उपभोक्ता को पेंषन अथवा भविष्य निधि राषि के भुगतान के लिए उत्तरदायी नहीं हंै क्योंकि उपभोक्ता द्वारा सीधे उनके पास किसी प्रकार का कोई अंषदान जमा नहीं करवाया गया है अपितु अंषदान अप्रार्थी रोडवेज द्वारा अपने संबंधित कार्मिकों की ओर से जमा करवाया गया है । अतः अप्रार्थी रोडवेज का यह दायित्व है कि यदि उसने  किसी भी कार्मिक के अंषदान की राषि प्राप्त की है तो वह उसे तदानुसार भुगतान करें । 
13.    अप्रार्थी रोडवेज के विद्वान अधिवक्ता ने अपनी दलीलो में उपरोक्त तर्को का खण्डन किया है, व बतलाया है कि स्वयं उपभोक्ता ने अपने पत्र दिनांक 26.7.1996  द्वारा कर्मचारी  पारिवारिक पेंषन  नियम , 1995 के तहत पेंषन लेने के लिए विकल्प देने  का इच्छुक नहीं होना बताया है । अतः अब वह उक्त विकल्प  की बैषाखी  के सहारे  पैंषन अथवा  भविष्य निधि की राषि प्राप्त करने का अधिकारी नही ंहै । यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि उपभोक्ता ने  पूरे 10 वर्ष की अवधि का अंषदान जमा नहीं करवाया है । अतः वह इस मद में भी किसी प्रकार का कोई भुगतान अथवा लाभ प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । 
14.    खण्डन में उपभोक्ता  के विद्वान अधिवक्ता ने  कर्मचारी पारिवारिक पेंषन योजना, 1971 के अन्तर्गत काटी गई अंषदान राषि की फोटोप्रतियों की ओर मंच का ध्यान आकर्षित करते हुए बताया है कि स्वयं अप्रार्थी रोडवेज ने उपभोक्ता के  माह- 9/1986 से 12/1996  तक  की राषि  भविष्य निधि विभाग में वाउचर के जरिए जमा करवाई है । अतः इस आधार पर भी वह पेंषन व भविष्य निधि राषि प्राप्त करने का अधिकारी है । 
15.    हमने उपरोक्त तर्कों पर भी उपलब्ध अभिलेख के संदर्भ में विचार किया । 
16.     यह स्वीकृत स्थिति है कि उपभोक्ता ने अपने पत्र दिनांक 26.7.1996  के द्वारा पेंषन लेने का विकल्प नहीं दिया है, मात्र सीपीएफ का विकल्प  ही रखा है । इस तथ्य को अधिवक्ता उपभोक्ता ने बहस के दौरान स्वीकार भी किया है ।  हालांकि उनका यह तर्क रहा है कि इस विकल्प के दे दिए जाने के बाद भी अप्रार्थी रोडवेज  ने उसके वेतन से अंषदान की राषि काटी जाकर भविष्य निधि विभाग को भिजवाई है ।  अतः इन हालात में भी वह उक्त पेंषन व अंषदान की राषि प्राप्त करने का अधिकारी है। यह मंच उनकी इन दलीलांे से सहमत नहीं है । मंच की राय में जब एक बार लिखित में उपभोक्ता ने विकल्प दे दिया है  और यदि इसके बाद अप्रार्थी रोडवेज ने उसके वेतन से अंषदान काटते हुए भविष्य निधि विभाग  को राषि भिजवाई  है , भले ही वह विकल्प नहीं दिए जाने के बाद भेजी है । ऐसे हालात में उपभोक्ता मात्र अपनी जमा की गई राषि  ही प्राप्त करने का हकदार है, न कि पेंषन अथवा इससे संबंधित परिलाभ प्राप्त करने का । 
17.    जहां तक अप्रार्थी भविष्य निधि विभाग की जिम्मेदारी का प्रष्न ह,ै  चूंकि  उनके समक्ष अप्रार्थी रोडवेज द्वारा अंषदान की राषि जमा करवाई गई है । अतः वे इस राषि को नियमानुसार  अप्रार्थी रोडवेज को लौटाने के लिए जिम्मेदार हंै । 
18.    यह स्वीकृत तथ्य सामने आया है कि  उपभोक्ता षिवनाथ योगी  का निधन हो चुका है  तथा उनके वारिसान कायम मुकाम में सामने आए हैं । अप्रार्थी रोडवेज ने उपभोक्ता की अंषदान की राषि  माह-सितम्बर,1986 से दिसम्बर,1996  तक काटी जाकर भविष्य निधि विभाग में जमा करवाई है । इस राषि को प्राप्त करने का उपभोक्ता अधिकारी पाया जाता है ।   लम्बी अवधि बाद अनुतोष प्रदान किए जाने के संबंध में क्षतिपूर्ति राषि दिलाए जाने बाबत् उपभोक्ता की ओर से  विनिष्चय प्;2016द्धब्च्श्र 108;छब्द्ध त्महपवदंस  च्तवअपकमदज थ्नदक ब्वउउपेेपवदमत - ।दतण् टे टण् ळवअपदकंद  ंदक प्ट;2015द्धब्च्श्र 1634;छब्द्ध त्महपवदंस  च्तवअपकमदज थ्नदक ब्वउउपेेपवदमत - ।दतण् टे ैींदांत न्ण्क्ीउाम - ।दत       के प्रस्तुत किए गए हंै । हमने इनमें प्रतिपादित सिद्वान्तों का भी अवलोकन कर लिया है । उक्त प्रतिपादित सिद्वान्तों व  उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों के प्रकाष में उपभोक्ता का परिवाद आंषिक रूप से  स्वीकार किए जाने योग्य पाया जाता है ।  अतः आदेष है कि 
                        :ः- आदेष:ः-
19.            (1)  उपभोक्ता अप्रार्थी  भविष्य निधि  विभाग से उसके वेतन से माह- सितम्बर,1986 से दिसम्बर, 1996  तक काटी गई भविष्य निधि की राषि  उनके यहां जमा रहने की अवधि अर्थात माह- सितम्बर,1986 से दिसम्बर, 1996 तक  तत्समय प्रचलित ब्याज दर सहित प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी। साथ ही  उपभोक्ता अप्रार्थी रोडवेज विभाग से  जनवरी, 1997 से तअदायगी  12 प्रतिषत वार्षिक ब्याज भी उक्त राषि पर प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी । 
               (2)  उपभोक्ता अप्रार्थी रोडवेज से मानसिक क्षतिपूर्ति के पेटे रू. 10,000/- एवं परिवाद व्यय के पेटे रू. 2500/- भी प्राप्त करने की अधिकारणी होगी । 
                (3)   क्रम संख्या 1 लगायत 2 में वर्णित राषि अप्रार्थीगण     उपभोक्ता को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें   अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से उपभोक्ता के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।  
          आदेष दिनांक 06.04.2016 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

                
(नवीन कुमार )        (श्रीमती ज्योति डोसी)      (विनय कुमार गोस्वामी )
      सदस्य                   सदस्या                      अध्यक्ष    

 
 
[ Vinay Kumar Goswami]
PRESIDENT
 
[ Naveen Kumar]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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