Rajasthan

Ajmer

CC/552/2013

SHAKUNTALA DEVI - Complainant(s)

Versus

RSRTC - Opp.Party(s)

DR. SATISH KUMAR

23 Mar 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/552/2013
 
1. SHAKUNTALA DEVI
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. RSRTC
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Gautam prakesh sharma PRESIDENT
  vijendra kumar mehta MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

 


जिला    मंच,      उपभोक्ता     संरक्षण         अजमेर

श्रीमति षकुन्तला पत्नी  डा. सतीष कुमार,आयु- लगभग-59 वर्ष, जाति-माली, निवासी- कायस्थ मौहल्ला, पोस्ट आॅफिस के सामने, किषनगढ- 305802, अजमेर(राजस्थान)
                                                       प्रार्थीया

                            बनाम

1.    अध्यक्ष एवं प्रबन्ध निदेषक, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम,जयपुर । 
2.   मुख्य प्रबन्धक, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, आबू रोड डिपो, आबूरोड,
  (सिरोही)
3.  किषोर कुमार, ड्राईवर, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, आबू रोड डिपो, आबूरोड,(सिरोही) की बस संख्या 0033(दिनाक 03.10.2013 को प्रातः 9.25 बजे अजमेर से आबूरोड के लिए रवाना )
 
                                                        अप्रार्थीगण 
                    परिवाद संख्या 552/2013

                            समक्ष
                   1.  गौतम प्रकाष षर्मा    अध्यक्ष
            2. विजेन्द्र कुमार मेहता   सदस्य
                   3. श्रीमती ज्योति डोसी   सदस्या

                           उपस्थिति
                  1. डा. सतीष कुमार,प्रतिनिधि, प्रार्थीया
                  2.श्री अमर सिंह, अधिवक्ता अप्रार्थी 
                              
मंच द्वारा           :ः- आदेष:ः-      दिनांकः- 01.04.2015

1.       परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि  प्रार्थीया  ने  अप्रार्थी राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम(जो इस निर्णय में आगे मात्र निगम ही कहलाएगा )  की बस संख्या 2233 के द्वारा दिनांक 3.10.2013 को  अपनी पुत्री व दोहिता के साथ अजमेर से सिरोही तक की  यात्रा टिकिट संख्या 000110 से की । अप्रार्थी निगम द्वारा  किराये की राषि के साथ रू. 5/- भी  बीमा राषि  की वसूल की गई थी ।  अप्रार्थी निगम  के बस चालक द्वारा  सेदडा(पाली)  से पूर्व अचानक ब्रेक लगाने से उसका मुंह आगे की सीट के लोहे से टकरा गया जिससे उसके नीचे के होंठ की दाहिनी तरफ घाव हो गया और उसमें से खून निकलने लगा ।  प्रार्थीया का सेंदडा के राजकीय अस्पताल  में प्राथमिक उपचार भी किया गया किन्तु खून निकलना बन्द नही ंहुआ ।  सोजत सिटी(पाली) में राजकीय चिकित्सालय में उसके घाव पर टांका लगाया गया ।
जिसके उपचार का पत्र संख्या 145639 है । प्रार्थीया द्वारा दर्द  से कहराते हुए इसी बस  से सिरोही तक की यात्रा की । चोट लगने से उसे बोलने एवं खाने में तकलीफ हुई । प्रार्थीया पुनः दिनांक 6.10.2013 को  सिरोही से किषनगढ तक की यात्रा कर अपने निवास स्थान पर प्रातः 8.00 बजे पहुंची   जिसका टिकिट नं. 000012 है ।  प्रार्थीया का टांका दिनंाक 10.10.2013 को राजकीय चिकित्सालय, किषनगढ में खोला गया जिसका उपचार पत्र संख्या 29831 है । प्रार्थीया ने परिवाद प्रस्तुत कर  परिवाद में वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2.    अप्रार्थी निगम की ओर से जवाब पेष हुआ ।  जिसमें अप्रार्थीया द्वारा दर्षाया है कि तथाकथित बस संख्या 0033 से दुर्घटना होने का तथ्य प्रार्थीया साक्ष्य  से सिद्व करें क्योंकि ऐसी कोई दुर्घटना उक्त बस में नहीं हुई है और ना ही अप्रार्थी निगम द्वारा किराए की राषि के साथ बीमा राषि ली जाती है ।  प्रार्थीया  जिस जगह से चोट लगना बता रही है वहा पर लोहा नहीं लगा हुआ था बल्कि प्लास्टिक का कवर लगा हुआ था  एवं  तथाकथित चेाट प्रार्थीया को स्वयं उसकी लापरवाही  एवं गलती से अन्यत्र आई है । 
    अप्रार्थी निगम का  आगे कथन है कि मंच को परिवाद सुनवाई का क्षेत्राधिकार नही ंहै क्योंकि  तथाकथित घटना   सेंदडा, जिला-पाली में होना प्रार्थीया ने दर्षाया  है । अपने अतिरिक्त कथन में अप्रार्थी निगम ने दर्षाया है कि बस में  50 यात्री सवार थे और अचानक ब्रेक लगने से प्रार्थीया के अलावा अन्य यात्रियों को भी चोट लगना स्वाभाविक था  किन्तु किसी ने भी इस तरह की कोई षिकायत नहीं की है । अतः प्रार्थीया को कथन स्वविरोधी एवं अन्र्तविरोधी होने से  अस्वीकार होना अप्रार्थी निगम ने दर्षाया है । प्रार्थीया ने बस में अंकित नम्बरों पर अप्रार्थी निगम के किसी भी उच्चाधिकारी को  घटना के संबंध में षिकायत नहीं की है ।  और ना ही परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व किसी भी प्रकार की लिखित षिकायत अथवा नोटिस आदि ही दिया है । अप्रार्थी निगम का आगे कथन है कि इस प्रकार की घटना के लिए मोटर यान अधिनियम की धारा 165 के तहत सिर्फ एम.ए.सीटी न्यायालय में ही परिवाद पेष किया जा सकता है एवं मंच को  सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है । प्रार्थीया ने गन्तव्य स्थान तक  सकुषल यात्रा पूर्ण की है । इस प्रकार उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी नहीं की गई अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए  जाने की प्रार्थना की है । 
3.    हमने उभय पक्ष को सुना एवं पत्रावली का अनुषीलन किया । 
     
4.    प्रार्थीया के प्रतिनिधि ने अपनी बहस में बतलाया कि  उसकी पत्नी ने इस  बस से यात्रा के संबंध में जारी टिकिट प्रस्तुत किया है । यह दुर्घटना ब्यावर से निकलते ही सेंदडा से पूर्व हुई है एवं दुर्घटना का कारण बस के चालक अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा बस को लापरवाहीपूर्वक चलाते हुए अचानक ब्रेक लगाना रहा है । दुर्घटना से प्रार्थीया के  नीचे के होंठ के दायी ओर घाव हो गया जिसका उपचार स्वास्थ्य केन्द्र, सेंदडा में कराया  और जब खून नहीं रूका तब सोजत के राजकीय चिकित्सालय में इलाज करवाया  और प्रार्थीया के होंठ पर टांके लगाए गए ।  जिसके इलाज की पर्ची पत्रावली पर  पेष की है ।प्रतिनिधि की आगे बहस है कि  प्रार्थीया ने रोडवसेज  की सेवाए इस यात्रा के लिए उपयुक्त टिकिट प्राप्त कर ली है । अतः प्रार्थीया अप्रार्थी निगम की उपभोक्ता है तथा अप्रार्थी निगम के चालक का दायित्व था कि वह बस को सावधानीपूर्वक चलावे किन्तु   उसने बस को लापरवाहीपूर्वक चलाया जिससे  प्रार्थीया के होंठ पर चोट आई । अतः अप्रार्थीगण  के विरूद्व सेवा में कमी का मामला बखूबी सिद्व है ।  उनकी यह भी बहस है कि उनकी ओर से रोडवेज को षिकायत भी की गई थी लेकिन रोडवेज ने कोई कार्यवाही नही ंकी । अतः यह परिवाद पेष किया गया है । 
5.    अधिवक्ता अप्रार्थी निगम की बहस है कि यह दुर्घटना सेंदडा के पास हुई है एवं उक्त क्षेत्र पाली जिले में आता है । अतः इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है । इसके अतिरिक्त उन्होने दृष्टान्त 1995;2द्धैब्ब् 479 ब्ींपतउंदए ज्ीपतनअंससनअंतए ज्तंदेचवतज ब्वतचवतंजपवद टे ब्वदेनउमत च्तवजमबजपवद ब्वनदबपस पेष किया एवं दर्षाया कि  प्रार्थीया का यह  कथन कि बस के चालक ने बस को लपरवाही से चलाया जिससे यह दुर्घटना हुई  तब यह दुर्घटना मोटर यान दुर्घटना की तारीफ में आती है एवं मोटर यान दुर्घटना के फलस्वरूप कोई क्षति आदि होती है तो  ऐसा परिवाद एमएसीटी न्यायालय में ही लाया जा सकता हे । इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं माना । अधिवक्ता की आगे बहस है कि प्रार्थीया स्वयं के षपथपत्र के अलावा अन्य साक्ष्य से लापरवाही का तथ्य सिद्व नहीं कर पाई है । अतः गुणावगुण पर भी प्रार्थीया का कथन स्वतन्त्र साक्ष्य के अभाव में नहीं माना जा सकता एवं परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया ।  अधिवक्ता ने अपने तर्को के समर्थन में।प्त् 2000 ज्ञमतंसं 192 डंसंचचनतंउ क्पेजतपबज च्तपअंजम ठने व्चमतंजवते ष्।ेेवबपंजपवद  टे डण्च्ण् डवींद ंदक व्जीमते   भी पेष किया । 
6.    हमने  बहस पर गौर किया एवं प्रस्तुत  किए गए दृष्टान्तों का भी अध्ययन किया । 
7.    परिवाद में आए अभिवचन एवं अप्रार्थी निगम का जो जवाब है, के अध्ययन से प्रार्थीया की ओर से उसने इस यात्रा हेतु उपयुक्त राषि अदा कर टिकिट कय किया एवं यात्रा की । अतः उसने अप्रार्थी निगम की सेवाएं लेना दर्षाया एवं स्वयं को अप्रार्थी निगम की उपभोक्ता होना भी बतलाया । वहीं दूसरी ओर अप्रार्थी निगम के जवाब एवं अप्रार्थी  निगम के कथन व उनकी ओर से प्रस्तुत दृष्टान्त 1995;2द्धैब्ब् 479 (उपरोक्त) में प्रतिपादन अनुसार चूंकि प्रार्थीया के चोटंे वाहन चालक द्वारा  वाहन को लापरवाही एवं उतावलेपन से चलाते हुए अचानक ब्रेक लगाए जिससे प्रार्थीया का मुंह आगे की सीट पर लोहे के डण्डे से टकराया एवं उसके होंठ पर चोट आने से मामला मोटर वाहन दुर्घटना का होना बतलाया  एवं ऐसा मामला मोटर यान न्यायाधिकरण द्वारा ही सुनवाई योग्य  होना दर्षाया है एवं इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं होना दर्षाया है ।  अतः सबसे पहले हम यह तय किया जाना उचित  समझते है कि परिवादी द्वारा लाया गया विवाद इस मंच द्वारा सुनवाई योग्य है अथवा नहीं ?
8.    दृष्टान्त 1995;2द्धैब्ब् 479 (उपरोक्त) के तथ्य हस्तगत प्रकरण के तथ्यों  से हूबहु मेल खाते हैं । दृष्टान्त के तथ्योंनुसार दृष्टान्तवाले  मामले में बस चालक ने एक बैलगाडी को ओवरटेक करते  वक्त बैलगाडी के बैल बिदक गए । अतः ड्राईवर  ने बस को बांयी ओर मोडा जिससे बस रोड साईड में खडे एक पेड से जा भिडी । इस प्रकार चालक ने अचानक  ब्रेक लगाए एवं बस में आहत के. कुमार अपनी सीट से उछल कर अपने आगे की सीट के लोहे के उण्डे से टकराया एवं उसके सिर पर चोटंे आई । माननीय उच्चतम न्यायालय ने  अपने निर्णय के पैरा संख्या 6 में माना कि उक्त आहत के वे चोंटे बस के संबंध में उपर वर्णित हुई दुर्घटना के परिणामस्वरूप आई थी  एवं ऐसे मामले  को  धारा 165 मोटर यान अधिनियम  के प्रावधान अनुसार गठित क्ले्मस ट्राईब्युनल  को ही सुनवाई का अधिकारी माना ।  इसी निर्णय में माननीच उच्चतम न्यायालय ने प्रतिपादित किया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक जनरल लाॅ है जबकि मोटर यान अधिनियम, 1988 एक स्पेषल एक्ट है । अतः विधिक स्थिति अनुसार जो मामले विषिष्ठ  अधिनियम के अन्तर्गत सुनवाई योग्य हो उनकी सुनवाई जनरल एक्ट के प्रावधान अन्तर्गत नही ंकी जा सकती । 
9.    हस्तगत प्रकरण में भी वाहन चालक ने अचानक ब्रेक लगाए जिससे प्रार्थीया अपने आगे की सीट से टकराई एवं आगे की सीट के लोहे के डण्डे  से उसकी दायीं ओर के होंठ के अन्दर चोट आई । माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने उपरोक्त निर्णय के पैरा 6 में दृष्टान्त के  प्राथी्र द्वारा अप्रार्थी की सेवाएं प्रतिफल देकर लेने एवं उसका उपभोक्ता होने के संबंध में भी विवेचना  इस प्रकार की है-  श्ज्ीमतमवितमए ंज इमेज पज बंद इम ेंपक जीम बवउचसंपदज पद ुनमेजपवद तमसंजमक जव जीम ेमतअपबम ीपतमक वत ंअंपसमक व िइल जीम कमबमंेमकण् ज्ीम बवउचसंपदज पद जीम पदेजंदज बंेम बंददवज इम ेंपक जव इम पद तमसंजपवद जव ंदल ेमतअपबम ीपतमक वत ंअंपसमक व िइल जीम बवदेनउमत इमबंनेम जीम पदरनतल ेनेजंपदमक इल जीम बवदेनउमत ींक दवजीपदह जव कव ूपजी जीम ेमतअपबम चतवअपकमक वत ंअंपसमक व िइल ीपउ इनज जीम ंिजंस पदरनतल ूंे जीम कपतमबज तमेनसज व िजीम ंबबपकमदज वद ंबबवनदज व िूीपबी ीम ूंे जीतवूद वनज व िीपे ेमंज ंदक कंेीमक ंहंपदेज ंद पतवद ींदकसम व िजीम ेमंज पद तिवदज व िीपउण् ॅम ींअमण् ज्ीमतमवितमए पद उंददमत व ि व िकवनइज जींज जीपे बंेम ेुनंतमसल मिसस ूपजीपद जीम ंउइपज व िैमबजपवद 165  व िजीम 1988 ।बज ंदक जीम ब्संपउे ज्तपइनदंस  बवदेजपजनजमक जीमतमनदकमत वित जीम ंतमं पद ुनमेजपवद ींक रनतपेकपबजपवद जव मदजमतजंपद  जीम ेंउमण्श्    के दृष्टिगत हम पाते है कि  हस्तगत प्रकरण में प्रार्थीया के जो चोटे आई है वे वाहन दुर्घटना से आना पाई जाती है एवं वाहन दुर्घटना के मामले में  क्षतिपूर्ति हेतु धारा 165 मोटर यान अधिनियम के प्रावधान अनुसार मोटर यान अधिकरण के समक्ष ही वाद प्रस्तुत किया जा सकता है एवं माननीय उच्चतम  न्यायालय द्वारा  उपर वर्णित निर्णय में  प्रतिपादन अनुसार हमारे विनम्र मत में इस मंच को इस परिवाद की सुनवाई का अधिकार नहीं रहता है ।
 
10.    हस्तगत परिवाद इस मचं में सुनवाई योग्य नहीं  पाया गया है । अतः हम परिवाद के अन्य बिन्दुओं यथा गुणावगुण  पर विवेचना  व विनिष्चय करना उचित नहीं समझते । परिणामस्वरूप् प्रार्थीया का परिवाद इस मंच में चलने योग्य नहीं  होने से अस्वीकार होने योग्य है । अतः आदेष है कि 

                          :ः- आदेष:ः-
11.    प्रार्थीया की ओर से लाया गया यह परिवाद इस मंच द्वारा सुनवाई योग्य नहीं होने से बिना गुणावगुण पर विनिष्चय के अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । 
    प्रार्थीया इस विवाद को सक्षम मंच/न्यायालय में प्रस्तुत  कर सकेगा  एवं इस परिवाद की सुनवाई में जो समय इस मंच में लगा है वह मियाद के उद्ेष्य से  सम्मिलित नहीं होगा । 
    पक्षकारान खर्चा अपना अपना स्वयं वहन करेगें । 

      (विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी)   (गौतम प्रकाष षर्मा)
            सदस्य                  सदस्या                अध्यक्ष    
12..        आदेष दिनांक 01.04.2015 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।

           सदस्य                   सदस्या                   अध्यक्ष

 
 
[ Gautam prakesh sharma]
PRESIDENT
 
[ vijendra kumar mehta]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.