जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
देवीलाल पुत्र श्री नंद लाल ,आयु- 41 वर्ष, निवासी- ग्राम जौला तहसील- पीपलू, जिला-टोंक हाल चालक, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, अजमेर आगार( केन्द्रीय कार्यषाला, अजमेर )
- प्रार्थी
बनाम
1. राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम जरिए महाप्रबन्धक, अजमेर पुलिया के पास, चांैमू हाउस, परिवहन मार्ग, जयपुर ।
2. राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, अजमेर आगार जरिए मुख्य प्रबन्धक, जयपुर रोड, अजमेर ।
3. रिलायंस जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिए मण्डल प्रबन्धक, 60,ओखला इण्डस्ट्रीयल एस्टेट, फेज-3, स्टेट बैंक आफ इण्डिया के पास, नई दिल्ली- 110020
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 193/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री राकेष धाभाई, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री अमर सिंह, अधिवक्ता अप्रार्थी सं 1 व 2
3. श्री तेजभान भगतानी, अधिवक्ता अप्रार्थी सं.3
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-29.07.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि अप्रार्थी रोडवेज के अधीनस्थ चालक के पद पर कार्यरत रहते हुए दिनंाक 23.5.2007 को हुई दुर्घटना के फलस्वरूप उसके बांए पैर को घुटने के नीचे से काट दिया गया जिससे प्रार्थी को 70 प्रतिषत स्थायी अपंगता हो गई । प्रार्थी का अप्रार्थी रोडवेज के माध्यम अप्रार्थी संख्या 3 के यहां दिनंाक 4.7.2006 से 3.7.2007 तक की अवधि के लिए सामूहिक बीमा दुर्घटना हो रखा था इसलिए उसने अप्रार्थी रोडवेल के माध्यम से नियमानुसार बीमा क्लेम राषि के भुगतान हेतु समस्त औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए क्लेम पेष किया । अप्रार्थी रोडवेज ने उसका क्लेम दिनांक 13.4.2010 को अप्रार्थी संख्या 3 के पास क्लेम के ष्षीघ्र निस्तारण हेतु प्रेषित कर दिया । किन्तु अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी के बावजूद कई तकाजों के क्लेम राषि का भुगतान नहीं किया और अन्त में दिनांक 24.4.2012 को क्लेम राषि अदा करने से इन्कार कर दिया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी का उक्त कृत्य सेवा में कमी की परिभाषा में आता है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत करते हुए उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । प्रार्थी ने परिवाद की पुष्टि में स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रार्थी का उनके अधीनस्थ चालक के पद पर नियुक्त होने के तथ्य को स्वीकार करते हुए आगे कथन किया है कि प्रार्थी द्वारा भरे गए प्रपोजल फार्म को उन्हांेने अप्रार्थी संख्या 3 को भिजवा दिया था । ष्षेष कथनों से इन्कार करते हुए परिवाद खारिज किए जानेे की प्रार्थना की है ।
3. अप्रार्थी संख्या 3 ने प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है कि परिवाद मियाद बाहर होने से व अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के मध्य जो दस्तावेज निष्पादित हुए वे जयपुर में होने से मंच को परिवाद सुनने की क्षेत्राधिकारिता नहीं होने से परिवाद निरस्त होने योग्य है । प्रार्थी द्वारा दुर्घटना से संबंधित मोटर दुर्घटना वाद न्यायाधिकरण, टौंक से क्षतिपूर्ति प्राप्त कर ली है इसलिए एक ही दुर्घटना के संबंध में प्रार्थी दो बार क्लेम प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । अपने पैरावाईज जवाब में भी इन्हीं तथ्यों को दोहराते हुए कथन किया है कि प्रार्थी ने किस दिनांक को क्लेम प्रपत्र व दस्तावेजात मय बीमा पाॅलिसी के उत्तरदाता को प्रस्तुत किए,। प्रार्थी ने अपने परिवाद में कहीं उल्लेख नहीं किया है अप्रार्थी संख्या 2 ने दिनांक 13.4.2010 को प्रार्थी का दावा षीघ्र निस्तारण किए जाने हेतु निवेदन किया गया हो, यह तथ्य भी असत्य है । प्रार्थी को पाॅलिसी दिनंाक
4.7.2006 से 3.7.2007 तक के लिए जारी की गई थी जिसकी अवधि समाप्त हो चुकी है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
4. प्रार्थी पक्ष का तर्क है कि दिनांक 23.5.2007 को दुर्घटना के कारण आई गम्भीर चोटों के कारण उसके बाएं पैर को घुटने से नीचे काटकर अलग कर दिए जाने के कारण स्थायी अपंगता होने पर एमएसीटी, टोंक द्वारा पारित क्लेम के अलावा रोडवेज द्वारा उसका सामूहिक बीमा करवाए जाने की स्थिति में वह बीमा कम्पनी से पूरा कलेम प्राप्त करने का अधिकारी है क्योंकि दुर्घटना के बाद कार्यग्रहण करने के साथ ही उसके द्वारा अपने नियोक्ता रोडवेज के माध्यम से बीमा कम्पनी को समयावधि में क्लेम प्रस्तुत कर दिया गया था । इस प्रकार अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा जो क्लेम खारिज किया गया है, वह अनुचित व्यापार व्यवहार का परिचायक है । परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है ।
5. अप्रार्थी रोडवेज ने प्रार्थी का अपने यहां नियोजन में होने व उसका क्लेम /प्रपोजल फार्म अप्रार्थी बीमा कम्पनी को भिजवा दिया जाना बताया । अन्य अनुतोष के संदर्भ में स्वयं की कोई जिम्मेदार नहीं होना बताया ।
6. अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से विद्वान अधिवकता ने परिवाद की पोषणीयता पर प्रष्नचिन्ह लगाते हुए इसे अवधि बाधित बताते हुए एवं एमएसीटी ,टोंक द्वारा क्लेम पारित किए जाने के बाद बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम की राषि को नहीं दिए जाने हेतु अधिकृत बताते हुए प्रस्तुत नजीरों के संदर्भ में प्रार्थी को क्लेम प्राप्त करने का हकदार नहीं होना बताया । उनका यह भी तर्क रहा है कि कथित दुर्घटना के लिए प्रार्थी स्वयं जिम्मेदार रहा है जैसा कि एमएसीटी, टौंक द्वारा उनके निर्णय से स्पष्ट है । अपने तर्को के समर्थन में उन्होने हमारा ध्यान निम्नलिखित विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों की ओर दिलाया:-
1ण् थ्।व् छवण् 3721ध्2011 व्तपमदजंस प्देनतंदबम ब्व स्जक टे डपजसमेी ंदक व्जीमते व्तकमत क्ंजमक 22ण्3ण्2016 भ्पही ब्वनतज व िच्नदरंइ ंदक भ्ंतलंदं
2ण् च्मजपजपवद छवण् 75ध्2001 ;छब्द्ध डच् न्दपजपमक च्वसलचतवचलसमदम स्जक टे व्तपमदजंस प्देनतंदबम ब्व स्जक व्तकमत क्ंजम 11.07.2002
3.2014 ैज्च्स्;ॅमइद्ध2059;छब्द्ध ैनदपजं टे डंदंहपदह क्पतमबजवतए त्मसपंदबम ळमदमतंस प्देनतंदबम ब्व स्जक ंदक व्ते
4. 2012 क्छश्र;ब्ब्द्ध15;छब्द्ध क्मूंदजप क्मअप टे छंजपवदंस प्देनतंदबम ब्व स्जक
7. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलखों के साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का आदरपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
8. पत्रावली में उपलब्ध अभिलेख एवं अप्रार्थी पक्षकारों की स्वीकारोक्ति को ध्यान में रखते हुए यह सिद्व रूप से प्रकट हुआ है कि प्रार्थी राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, अजमेर आगार में चालक के पद पर दिनंाक 23.5.2007 से प्रार्थी नियुक्त था तथा दिनांक 23.5.2007 हुई दुर्घटना के फलस्वरूप उसके दोनों पैरों में गम्भीर चोटंे अंाई । उसके द्वारा एमएसीटी टोंक के समक्ष क्षतिपूर्ति हेतु दावा प्रस्तुत किया गया, जो उसके पक्ष में अभिनिर्धारित हुआ । अब महत्वपूर्ण प्रष्न प्रकरण के मियाद बाहर होने से संबधित है । अप्रार्थी बीमा कम्पनी का इस संबंध मंें तर्क है कि दिनांक 23.5.2007 को प्रार्थी दुर्घटना मंे घायल हुआ है तथा उसके द्वारा दिनंाक 4.4.2013 को परिवाद प्रस्तुत हुआ है, जो समय सीमा के बाहर है । उनका यह भी तर्क रहा है कि प्रार्थी टौंक जिले का रहने वाला है तथा क्षेत्राधिकारिता टौंक है । यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ने अपने नियोक्ता राजस्थान रोडवेज, अजमेर के माध्यम से सामूहिक बीमा करवाया है तथा इस बात की पुष्टि प्रस्तुत अप्रार्थी बीमा कम्पनी की बीमा पाॅलिसी की प्रति व मुख्य प्रबन्धक, अजमेर आगार, रोडवेज के पत्र क्रमषः दिनांक 7.7.2008, 1.10.2008, 14.08.2008, 26.2.2010, 8.4.2010, 7.10.2010, 30.9.2010 से पुष्टि होती है । रोडवेज अजमेर द्वारा सर्वप्रथम अप्रार्थी बीमा कम्पनी को दिनंाक 7.3.2008 को लिखे पत्र से यह भी स्पष्ट रूप से सामने आया है कि प्रार्थी द्वारा दुर्घटना की सूचना रोडवेज, अजमेर को दी गई थी तथा उक्त दुर्घटना की सूचना रोडवेज, अजमेर द्वारा बीमा कम्पनी के कार्यालय को भेज दी गई थी । दुर्घटना दिनंाक 23.5.2007 को हुई है । रोडवेज के पत्र दिनंाक 7.3.2008 के अनुसार क्लेम हेतु प्रपोजल फार्म व प्रार्थना पत्र, पाॅलिसी आदि अप्रार्थी बीमा कम्पनी को भिजवाए दिए गए थे , जो एक वर्ष की अवधि में भिजवाए गए हैं । अतः प्रार्थी द्वारा रोडवेज के जरिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी को समयावधि में दुर्घटना की सूचना दे दी गई थी, यह सिद्व पाया गया है । जो विनिष्चय परिसीमा के संबंध में अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत हुए है, वे तथ्यों की भिन्नता के कारण उनके लिए सहायक नहीं है । विनिष्चय के तथ्य हस्तगत प्रकरणों के तथ्यों से कतई मेल नहीं खाते हैं ।
9. जहां तक बीमाधारक की गलती का प्रष्न है, सामूहिक बीमा योजना के तहत ली गई पाॅलिसी का यह कोई आधार नहीं है कि यदि बीमाधारक पक्ष की किसी प्रकार की गलती पाई जाती है तो क्लेम का हकदार नहीं होगा । प्रस्तुित पाॅलिसी में बीमित व्यक्तियों की इंजरी का उल्लेख है, में व्दम म्दजपतम थ्ववज को देखते हुए यदि हम प्रार्थी की इंजरी व उसके द्वारा पूर्व में दायर आपराधिक मामले में संघारित किए गए चिकित्सा प्रमाण पत्र, जिसमें 70 प्रतिषत अपंगता का उल्लेख किया गया है, पर विचार करंें तो यह इंजरी/अपंगता ।दल सिवजंजपवदे की सीमा में मानी जा सकती है । दुर्घटना में आई चोटों की स्थिति को देखते हुए यह इंजरी 100 प्रतिषत अपंगता के रूप में कही जा सकती है क्योंकि उसके द्वारा अपने अधिकारों के तहत एमएसीटी, टोंक के समक्ष आई इंजरी बाबत् क्षतिपूर्ति चाही गई है, साथ ही रोडवेज कर्मी होने के कारण सामूहिक बीमा के तहत नियोक्ता द्वारा उसका बीमा करवाया गया है । अतः अलग अलग बीमा कम्पनियां होने के कारण वह इस संबंध में अलग अलग क्लेम प्रस्तुत करने का अधिकारी है । हम अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत तर्को से सहमत नहीं है कि एक बार एममसीटी, टोंक द्वारा पारित क्लेम के बाद उन्हीं तथ्यों के आधार पर दूसरी पालिसी के तहत प्रार्थी क्लेम प्राप्त नहीं कर सकता । फलस्वरूप इस बाबत् उठाए गए तर्क सारहीन होने के कारण स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है ।
10. कुल मिलामकर सार यह है कि जिस प्रकार की स्थिति सामने आई है, के अनुसार प्रार्थी द्वारा दुर्घटना के तुरन्त बाद अपने नियोक्ता के माध्यम से बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम प्रस्तुत किया गया है व क्लेम की ष्षर्तो के अनुसार उसका मामला सुदृढ़ बनना पाया जाता है । फलस्वरूप प्रार्थी क्लेम की राषि प्राप्त करने का अधिकारी है । मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
(1) प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी से बीमा क्लेम राषि रू. 2,00,000/- मय 9 प्रतिषत वार्षिक ब्याज दर सहित दिनंाक 7.2.2008 से तदायगी प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(2) प्रार्थी अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी से मानसिक क्षतिपूर्ति के पेटे रू. 1,00,000/- ( अक्षरे रू. एक लाख मात्र) एवं परिवाद व्यय के पेटे रू. 2500/- भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(3) क्रम संख्या 1 लगायत 2 में वर्णित राषि अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी प्रार्थी को इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावे ।
आदेष दिनांक 29.07.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
ं