जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 50/2014
अक्षय कुमार पुत्र श्री भैंरूलाल, जाति-ब्राह्मण, निवासी- निम्बडी, मकराना, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. मालिक/प्रबन्धक- राॅयल कैरियर एकेडमी गिंगोली रोड, गणेश काॅलोनी, परबतसर, जिला-नागौर, (राज.)।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री सुरेन्द्र कुमार ज्याणी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री दिनेश हेडा, अधिवक्ता वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे श दिनांक 03.11.2015
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि अप्रार्थी बेरोजगार युवाओं को रोजगार हेतु व प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलतापूर्वक चयन कराने हेतु राॅयल कैरियर एकेडमी के नाम से कोचिंग क्लासेज चलाते हैं, सशुल्क कोचिंग का व्यवसाय करते हैं।
प्रार्थी को यह कहा गया था कि प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की गारंटी देते हैं। अध्यापन व हाॅस्टल में रहने की उतम व्यवस्था की भी गारंटी दी और प्रार्थी से कुल 45,000/- रूपये जमा कर लिये। परिवादी को यह भी आश्वासन दिया कि यदि सरकारी सेवा में चयन नहीं होता है तो फीस लौटाई जाएगी। प्रार्थी को एडमिशन के बाद पता चला कि अध्यापन व हाॅस्टल के सुविधाओं के सम्बन्ध में जैसा प्रचार-प्रसार किया गया, उस तरह का ना तो अध्यापन था और ना ही हाॅस्टल में रहने व खाने-पीने की कोई उचित व्यवस्था थी। जब मैनजमेंट से इस बात की शिकायत की गई तो यह कहा कि जैसा हम कहते हैं वैसा ही करना होगा। परिवादी से हाॅस्टल में झाडू निकलवाते, समय पर खाना-खुराक नहीं देते और ना ही समय पर पढाई करवाते। इस प्रकार से अप्रार्थी का यह कृत्य सेवा दोष व अनफेयर टेªड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है।
प्रार्थी को अप्रार्थी ने इतना तंग व परेशान किया कि प्रार्थी कोचिंग छोडकर चला जाये ताकि अप्रार्थी को यह बहाना मिल जाये कि प्रार्थी स्वयं ने संस्था छोडी है। प्रार्थी को कोचिंग से निकाल दिया।
जब परिवादी ने अधिवक्ता के मार्फत अप्रार्थी को नोटिस दिया कि उसके द्वारा जमा कराई गई राशि मय ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के साथ अदा की जावे। इसके बावजूद भी अप्रार्थी ने कोई ध्यान नहीं दिया।
2. अप्रार्थी का जवाब में मुख्य रूप से यह कहना है कि प्रार्थी ने अपनी मर्जी से एडमिशन लिया। अप्रार्थी की संस्थान की अच्छी साख है। पढाई की अच्छी व्यवस्था है। हाॅस्टल में रहने की पूर्ण सुविधा है। परिवादी ने अपनी मर्जी से 45,000/- रूपये जमा करवाये। प्रार्थी ने अपने परिवाद-पत्र में जो भी आरोप लगाये हैं उन सभी से इनकार किया है और यह कहा है कि मामला सिविल न्यायालय में विचारणीय है। उसकी संस्था से पिछले तीन-चार वर्षों में करीब 150 छात्र-छात्राओं का विभिन्न सरकारी सेवाओं में चयन हुआ है। किसी को भी कोई शिकायत नहीं रही है। प्रार्थी ने 16.06.2013 को प्रवेश लिया और उसके बाद लगातार अक्टूबर, 2013 तक नियमित रूप से संस्थान में ही अध्ययनरत रहा। दीपावली के अवकाश दिनांक 27.10.2013 से दिनांक 05.11.2013 तक अनुपस्थित रहा। इस प्रकार से इकरारनामा की इस शर्त का उल्लंघन किया कि पांच दिन से अधिक अनुपस्थित रहने पर उसे संस्था से निकाला जा सकता है। अतः परिवादी का परिवाद दस हजार रूपये की काॅस्ट के साथ खारिज किया जावे।
3. बहस उभयपक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। पत्रावली से यह निर्विवाद है कि परिवादी ने अप्रार्थी कोचिंग संस्थान में एवं उक्त संस्थान के हाॅस्टल में प्रवेश लिया और 45,000/- रूपये परिवादी ने जमा कराये। केवल चार माह ही परिवादी अप्रार्थी संस्थान में रहा। अप्रार्थी की ओर से परिवादी के विरूद्ध ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया है कि परिवादी ने कोई अनुशासनहीनता की हो। परिवादी उक्त चार माह की अवधि में कभी कोचिंग संस्थान में नहीं गया हो। स्वाभाविक है कि कोई भी विद्यार्थी इतनी बडी 45,000/- रूपये की रकम खर्च कर अपना भविष्य उज्जवल करने के लिए तथा नौकरी का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए किसी भी संस्था में प्रवेश लेता है जैसा अप्रार्थी संस्था में परिवादी ने प्रवश लिया। प्रार्थी के इस सशपथ कथन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि परिवादी को अप्रार्थी द्वारा हाॅस्टल में उचित सुविधाएं नहीं दी गई। उसे अनावश्यक श्रम करवाया गया। इस प्रकार से परिवादी ने उक्त संस्थान को मजबूरीवश छोड दिया। अप्रार्थी के सेवा दोष के कारण उसका अपने उद्देश्य से भटकाव हो गया। अप्रार्थी ने उसकी संस्था से 150 छात्र-छात्राओं को सरकारी सेवाओं में चयन होना बताया है परन्तु एक का भी नाम नहीं बताया है ना ही कोई नियुक्ति-पत्र प्रस्तुत किये हैं, जिससे की उसके कथनों पर विश्वास किया जा सके।
इस प्रकार से अप्रार्थी का सेवा दोष रहा है और परिवादी, अप्रार्थी के विरूद्ध अपना परिवाद -पत्र साबित करने में सफल रहा है। परिवादी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेश दिया जाता है किः-
आदेश
4. परिवादी ने अप्रार्थी के यहां जो 45,000 रूपये की राशि जमा कराई थी, उसमें से प्रार्थी जिन चार माह अप्रार्थी संस्था में अध्ययनरत रहा उस बाबत् 4,000 रूपये इसमें से कम कर शेष रकम 41,000/- रूपये परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख से तारकम वसूली 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याजदर से अप्रार्थी, परिवादी को अदा करे। अप्रार्थी परिवादी को 2,500/- रूपये परिवाद-व्यय के एवं 1,500/- रूपये मानसिक क्षतिपूर्ति के भी अदा करें।
आदेश आज दिनांक 03.11.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या