राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :18 /2016
सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, फैजाबाद, द्वारा परिवाद संख्या-154/2011 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-12-2015 के विरूद्ध)
1- Allahabad Bank, a body corporate duly constituted under the Banking Companies (Acquisition and Transfer of Undertaking) Act No.5, (Five) 1970 (Neneteen Hundred Seventy) having its Head office at-2, Netaji Subhas Road, Kolkata-700001 (Seven Zero Zero Zero Zero one) having other Branches all over India including one at B.K.H.M. Branch Devkali District-Faizabad, U.P. through its Branch Manager/Principal Officer Sri Ravi Prazapati.
2- Then Branch Manager, B.N. Tripathi, Allahabad Bank, BKHM, Devkali, P.S. Nagar, Pargana Havali, Oudh, Tehsil Sadar, District- Faizabad. अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम्
Roop Chandra aged about 60 years Son of Sri Nanhkuram R/o Village Saikh Allahuddin, Mauza Salehpur Neemaicha, P.S.
Ronahi, Pargana Mangalsi, Tehshil- Sohawal, District-Faizabad.
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री अवनीश पाल।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।।
- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य ।
- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
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दिनांक : 17-05-2018
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-154/2011 रूपचन्द्र बनाम् शाखा प्रबंधक इलाहाबाद बैंक व एक अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, फैजाबाद द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-12-2015 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार है कि विपक्षी संख्या-2 ने बैंक के ऋण संबंधी लेन-देन हेतु प्रतिनिधि के रूप में जगदम्बा प्रसाद को नियुक्त किया था जिसके माध्यम से वह खेतिहर किसानों से सम्पर्क कर उन्हें बैंक से ट्रैक्टर/कृषि ऋण् तथा के0 सी0 सी0 योजना के अन्तर्गत ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित करता था। इसी क्रम में दिनांक 10-12-2007 को जगदम्बा प्रसाद अंगद आटो सेल्स, मकान नम्बर-103 हनुमानगढ़ी, नाका मकबरा प्रोपराइटर विवेक जायसवाल पुत्र रामलाल के साथ परिवादी के घर आया। जगदम्बा प्रसाद ने स्वयं को विपक्षी संख्या-2 का अधिकृत प्रतिनिधि बताते हुए, विपक्षी संख्या-2/अपीलार्थी सं0-2 के माध्यम से ट्रैक्टर ऋण तथा के0 सी0 सी0 योजना का लाभ दिलाने का आश्वासन दिया और विपक्षी संख्या-2 से मिलवाया। उन्होंने कहा कि कुछ औपचारिकताऍं ऋण स्वीकृत होने के पूर्व पूर्ण करनी है, जिसके लिए तुम्हें कुछ छपे फार्मों पर हस्ताक्षर करना होगा। उसके पश्चात ऋण एवं के0 सी0 सी0 योजना का लाभ प्रदान किया जायेगा किन्तु परिवादी को कोई ऋण अथवा के0सी0सी0 योजना के अन्तर्गत किसी धनराशि का भुगतान अथवा ट्रैक्टर नहीं प्रदान किया गया और विपक्षी सं0-1 द्वारा भेजी गयी पंजीकृत नोटिस परिवादी को दिनांक 25-04-2009 को प्राप्त हुआ। उक्त नोटिस से विदित हुआ कि परिवादी के नाम से ट्रैक्टर ऋण मु0 रू0 3,25,000/- तथा के0 सी0 सी0 के अन्तर्गत रू0 1,45,000/- की धनराशि का भुगतान किया गया है और उक्त ऋण परिवादी के नाम अंकित कर दिया गया है, जब कि उसे न तो ट्रैक्टर मिला और न ही के0 सी0 सी0 के अन्तर्गत ऋण की कोई नगद धनराशि प्राप्त हुई और न ही कोई अन्य ऋण ही प्राप्त हुआ। परिवादी ने इस संबंध में बैंक अधिकारियों से सम्पर्क कर शिकायत करनी चाही तो दिनांक 08-02-2011 को अपमानित करते हुए बैंक परिसर से भगा दिया तथा परिवादी के नाम से रू0 6,54,397/- का
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वूसली प्रमाण पत्र जारी कर दिया। इससे क्षुब्ध होकर यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षीगण द्वारा जिला फोरम के समक्ष अपना प्रतिवादपत्र दाखिल किया गया।
विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में कहा कि उक्त् ऋण के परिप्रेक्ष्य में परिवादी ने स्वयं ऋण के सभी संबंधित दस्तावेजों (दृष्टिबंधनकार, बंधक पत्र, शपथ पत्र, डिमांड प्रामिजरी नोट, एम नम्बर-6 प्राप्ति रसीद, सम्पत्ति व हैसियत संबंधी रिपोर्ट व परिवाद का विवरण) को निष्पादित कर उनपर अपने हस्ताक्षर किये और उन्हें बैंक के सुपुर्द कर दिया था और ऋण की ब्याज सहित अदायगी की जिम्मेदारी ली थी। परिवादी ने अपने उक्त ट्रैक्टर ऋण खाते में रू0 15,000/- दिनांक 02-05-2008 को नगद जमा किये थे, जिससे ट्रैक्टर प्राप्त करने की बात स्वयं सिद्ध हो जाती है। इसके पश्चात परिवादी ने ऋण की एक भी किश्त बैंक में जमा नहीं की है और न ही के0सी0सी0 ऋण खाते में कोई धनराशि जमा की है। परिवादी द्वारा बैंक से प्राप्त ऋण का दुरूपयोग किया गया है।
विद्धान जिला मंच ने उभयपक्षों के विद्धान अधिवक्तागण को सुनकर तथा पत्रावली का अवलोकन कर निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’ परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार की जाती है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी से कोई भी ट्रैक्टर ऋण से संबंधित वसूली न करें तथा विपक्षीगण परिवादी को वाद व्यय के रूप में रू0 5000/- तथा मानसिक क्षतिपूर्ति के लिए रू0 10,000/- अदा करे। उक्त धनराशि निर्णय एवं आदेश की तिथि से एक माह के अंदर अदा कर दें। यदि उक्त दिये गये समय में विपक्षीगण भुगतान नहीं करते हैं तो 09 प्रतिशत ब्याज देय होगा।‘’
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपील में जो आधार लिये गये है उनमें कहा गया है कि जिला फोरम ने इस तथ्य का कोई संज्ञान नहीं लिया है कि परिवादी द्वारा परिवाद काफी विलम्ब से दायर किया गया था और वाद कालातीत था और कालातीत वाद के साथ विलम्ब का दोष क्षमा करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र भी जिला फोरम के समक्ष
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प्रस्तुत नहीं किया गया था। वसूली प्रमाण पत्र को रोकने का कोई अधिकार जिला फोरम को नहीं था। उक्त प्रमाण पत्र को रोककर विद्धान जिला फोरम ने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है। अपील में यह भी आधार लिया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2-डी के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। विद्धान जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों की अनदेखी करके त्रुटि की है तथा प्रश्नगत आदेश मनमाना विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण और तथ्यों के विपरीत है।
अपील में प्रत्यर्थी को नोटिस जारी किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ और प्रत्यर्थी को भेजा गया नोटिस अदम तामील वापस प्राप्त नहीं हुआ। अत: तत्कालीन पीठ के आदेश दिनांक 08-11-2016 के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी पर नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है।
अपील सुनवाई हेतु इस पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अवनीश पाल उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया और पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
विद्धान जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय एवं आदेश में यह अवधारित किया है कि यदि किसी ट्रैक्टर या वाहन के लिए ऋण स्वीकृत है तो ट्रैक्टर या वाहन को बंधक किया जाता है और उसे क्रय किये जाने के बाद उसका पंजीकरण आर0टी0ओ0 के यहॉं कराया जाता है, किन्तु इस प्रकरण में आर0टी0ओ0 के यहॉं कोई पंजीकरण नहीं कराया गया है और ट्रैक्टर को कोई पंजीकरण संख्या नहीं दी गयी है।
विद्धान जिला फोरम ने यह भी अवधारित किया है कि ट्रैक्टर को आर0टी0ओ0 के कार्यालय में बंधक दर्ज नहीं किया गया है। प्रश्नगत प्रकरण में बैंक ने कोई गारन्टर भी नहीं बनाया है और विद्धान जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा लिये गये ऋण और उससे संबंधित कागजात को फर्जी करार दिया है और यह अवधारित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम से अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा ऋण निर्गत किया गया लेकिन परिवादी ने कोई ऋण नहीं लिया है और जो रसीदे प्रेषित की गयी है उन्हें भी फर्जी करार दिया गया है।
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पत्रावली पर जो अभिलेख बैंक द्वारा उपलब्ध कराये गये है उनमें प्रत्यर्थी/परिवादी की भूमि पर बैंक का भार अंकित करने के लिए संबंधित तहसीलदार, जनपद-फैजाबाद को अभिलेख भेजे गये है। प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम उद्धरण खतौनी वर्ष 1413 फसली में रूपचन्द्र पुत्र ननकू राम के नाम 3.4800 हेक्टेयर भूमि अंकित है। उक्त खतौनी पर रूपचन्द्र के हस्ताक्षर है। खतौनी की प्रतिलिपि, शपथ पत्र की प्रति तथा बैंक द्वारा तहसील को भेजे गये अन्य कागजात पर प्रत्यर्थी/परिवादी के हस्ताक्षर है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की भूमि को बैंक के पक्ष में बंधक रखकर उस पर तहसील के कागजातों में प्रत्यर्थी की भूमि पर बैंक का भार अंकित किया गया है। ट्रैक्टर रूपचन्द्र के नाम से बीमित कराया गया है। बीमा कवर की छायाप्रति पत्रावली पर उपलब्ध है। इस प्रकरण में बीमा करते समय ट्रैक्टर की पंजीकरण संख्या बीमा पालिसी पर अंकित नहीं है। यह सामान्यतया प्रथा है कि जब नये ट्रैक्टर का जब बीमा कराया जाता है तो बीमा कवर नोट में ट्रैक्टर नम्बर के स्थान पर न्यू/नया लिख दिया जाता है। इस प्रकरण में भी यही हुआ है और ट्रैक्टर पंजीकरण के स्थान पर न्यू अंकित किया गया है। बीमा दिनांक 19-01-2008 से दिनांक 18-01-2009 की अवधि के लिए किया गया है। अंगद आटो सेल्स द्वारा जो इन्वाइस जारी की गयी है उसमें रूपचन्द्र का नाम है यह इन्वाइस दिनांक 10-01-2008 को निर्गत हुई है जिसमें अंगद ट्रैक्टर तथा अन्य एसेसिरीज की कुल कीमत रू0 3,80,000/- अंकित है। बैंक द्वारा उक्त ट्रैक्टर की वसूली के संबंध में समय-समय पर नोटिस प्रत्यर्थी/परिवादी को निर्गत किये गये हैं और प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बैंक की किश्ते जमा नहीं की गयी है। बैंक द्वारा वसूली प्रमाण पत्र निर्गत किया गया। इस वसूली से बचने के लिए ही प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त उल्लिखित परिवाद ऋण को फर्जी बताकर दायर किया है। विद्धान जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्य की सही प्रकार से विवेचना नहीं की है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने बैंक से रू0 3,25,000/- और किसान क्रेडिट कार्ड से रू0 1,50,000/- की धनराशि ऋण के रूप में ली, जिनका वह देनदार है। विद्धान जिला
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फोरम ने तथ्यों की अनदेखी कर प्रश्नगत आदेश पारित किया है जो त्रुटिपूर्ण है। अपीलार्थी की अपील में बल प्रतीत होता है। प्रश्नगत आदेश खण्डित होने योग्य है। परिवाद भी निरस्त किया जाता है।
आदेश
अपील स्वीकार करते हुए विद्धान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश खण्डित किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0