( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :690/2019
एच0डी0एफ0सी0 एरगोजनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0
बनाम
रोबिन कुमार
दिनांक : 21-03-2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
वाद पुकारा गया।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री टी0जे0एस0 मक्कड उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपील त्रुटिपूर्ण है और अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा आदेश दिनांक 25-11-2022 का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया गया है और अपील में उक्त त्रुटियॉं विद्यमान है। प्रस्तुत अपील 04 वर्षों से अधिक समय से लम्बित है। मेरे द्वारा अपील पत्रावली का अवलोकन किया गया और यह पाया गया कि परिवाद संख्या-91/2015 रोबिन कुमार बनाम एच0डी0एफ0सी0 इरगो जनरल इं0कं0लि0 में जिला उपभोक्ता आयोग, बुलन्दशहर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30-04-2019 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
‘’विद्धान जिला आयोग द्वारा परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया है कि वह 30 दिन के अंदर परिवादी को उसके प्रश्नगत वाहन में हुए नुकसान के मद में 1,50,000/-रू0 का भुगतान
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करें। विपक्षी परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति हेतु रू0 2,000/- एवं वाद व्यय के रूप में रू0 1,000/- का भी भुगतान करें।“
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी वाहन ट्रक संख्या-यू0पी0-13-टी-7941 का पंजीकृत स्वामी है, जिसका बीमा परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी से कराया था जो दिनांक 06-01-2014 से 05-01-2015 तक की अवधि हेतु वैघ एवं प्रभावी था बीमा अवधि में ही परिवादी का वाहन दिनांक 18-09-2014 को सुबह 4.00 बजे ग्राम मोहन बड़याम के सामने एच.एच.57 पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। परिवादी ने घटना की सूचना दिनांक 29-09-2014 को थाना सकरी जिला मधुबनी बिहार में दर्ज करायी और उसी दिन विपक्षी बीमा कम्पनी को भी सूचित किया। विपक्षी द्वारा वाहन का सर्वे कराया गया और जिसके बाद उसने वाहन में आये खर्चें के बिल अंकन 3,20,899/-रू0 प्रस्तुत किये, किन्तु बीमा कम्पनी द्वारा बीमा क्लेम की धनराशि अदा नहीं की, परिवादी द्वारा विपक्षी को नोटिस भेजी गयी जिसका कोई जवाब विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा नहीं दिया गया जो कि विपक्षी के स्तर पर सेवा में कमी है। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए कथन किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी द्वारा सूचना दिये जाने के बाद वाहन का सर्वे, सर्वेयर से कराया गया जिसके द्वारा अपनी रिपोर्ट बीमा कम्पनी में प्रस्तुत की गयी। वाहन में हुए नुकसान के क्लेम के मामले में दावाकर्ता को सामान रिपेयर के मूल बिल उपलब्ध कराने होते हैं जिसके बाद नुकसान का आंकलन करके बीमा
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पालिसी की शर्तों के अनुसार भुगतान किया गया है विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी से रिपेयर के बिलों की मांग की गयी, लेकिन परिवादी बिल उपलब्ध नहीं करा सका। अत: विवश होकर परिवादी द्वारा दावे में सहयोग न करने के कारण उसकी पत्रावली बंद कर दी गयी, जिसकी सूचना परिवादी को दी गयी। सर्वेयर ने परिवादी के वाहन में हुए नुकसान की बावत अंकन 77,750/-रू0 अदा करने के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसको अदा करने की जिम्मेदारी बीमा कम्पनी की होती है, उनकी ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
विद्धान जिला आयोग ने उभयपक्ष को विस्तारपूर्वक सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का भली-भॉंति परिशीलन करने के उपरान्त अपने निष्कर्ष में यह मत अंकित किया है कि पक्षकारों के मध्य प्रश्नगत वाहन के बीमा होने एवं कथित दुर्घटना घटित होने की बावत विवाद नहीं है बल्कि परिवादी का मुख्य अभिकथन यह है कि उसके वाहन की मरम्मत में उसका अंकन 3,20,899/-रू0 खर्च हुआ जिसको वह विपक्षी से पाने का अधिकारी है जब कि विपक्षी का अभिकथन है कि परिवादी के वाहन में जो क्षति हुई उसका आंकलन सर्वेयर से कराया गया और सर्वेयर द्वारा परिवादी के वाहन में हुए नुकसान की बावत अंकन 77,750/-रू0 अदा करने की रिपोर्ट दी गयी है। चूंकि परिवादी ने अपने वाहन की मरम्मत संबंधी बिलों की जो छायाप्रतियॉं प्रस्तुत की है उनको निर्गत करने वाली फर्म से बिलों को सिद्ध नहीं कराया है और विपक्षी की ओर से मात्र 77,750/-रू0 का नुकसान आंकलित किया गया है। ऐसी स्थिति में जिला आयोग द्वारा परिवादी के प्रश्नगत वाहन में हुए नुकसान की बावत 1,50,000/-रू0 दिलाते हुए परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया है।
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मेरे द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
पत्रावली के परिशीलन तथा जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भली-भॉंति परिशीलन एवं परीक्षण करने के पश्चात यह पीठ इस मत की है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करते हुए विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है तदनुसार अपील निरस्त की जाती है।
इस निर्णय एवं आदेश का अनुपालन निर्णय से दो माह की अवधि में किया जाना सुनिश्चित किया जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना) (सुधा उपाध्याय)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट न0-1