Ramchandra mishra filed a consumer case on 19 Jan 2016 against Resional Head, Bhavishya Nidhi Office in the Kota Consumer Court. The case no is CC/252/2011 and the judgment uploaded on 20 Jan 2016.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या- 252 /11
रामचन्द्र मिश्रा पुत्र कमलेश्वर मिश्रा उम्र 61 वर्ष जाति ब्रहामण निवासी म.नं. 1646, बसंत बिहार, कोटा, राजस्थान। -परिवादी।
बनाम
01. क्षैत्रीय भविष्य निधि आयुक्त, उप क्षैत्रीय कार्यालय, कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय, निधि भवन, विज्ञान नगर, कोटा-5
02. क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त (प्रथम), निधि भवन, कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय, विद्युत मार्ग, ज्योति नगर, जयपुर, राजस्थान। -विपक्षीगण
समक्ष
भगवान दास - अध्यक्ष
महावीर तंवर - सदस्य
हेमलता भार्गव - सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1 परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं ।
2 श्री एच.एम. सारस्वत, प्रतिनिधि, विपक्षीगण की ओर से।
निर्णय दिनांक 19.01.16
परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह दोष बताया है कि वह विपक्षी का सदस्य है जिसका नं. आरजे-515/5983 है उसने पेंशन हेतु आवेदन-पत्र सभी औपचारिकताऐं पूरी करते हुये दिनांक 19.05.06 को प्रस्तुत किया था जिसे विपक्षीगण द्वारा दिनांक 31.05.06 को यह सूचित करते हुये लौटा दिया गया कि पूर्व में परिवादी को 20,394/- रूपये की राशि का अधिक भुगतान हो चुका है वह राशि जमा कराने के बाद पेंशन हेतु पुनः फार्म प्रस्तुत किया जावे। विपक्षीगण द्वारा गलत रूप से उक्त राशि की मांगी की जा रही है उसका कोई आधार भी नहीं बताया गया है। अन्त में यह बताया गया कि 26.10.90 को उनके कर्मचारियों की लापरवाही से 5,000/- रूपये के भुगतान को बेलेन्स में कम करने से रह गया जो राशि ब्याज सहित 20,394/- रूपये है। परिवादी ने 10.08.07 को 5,000/- रूपये जमा करने का आवेदन-पत्र दिया, लेकिन विपक्षीगण ने उसके आवेदन-पत्र पर कोई कार्यवाही नहीं की। विपक्षीगण को अधिवक्ता के जरिये नोटिस भेजा गया तब भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। विपक्षीगण के विरूद्ध स्थाई लोक अदालत, कोटा, में आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया गया वहाॅ भी गलती मानने के बावजूद राजीनामा नहीं किया गया। उसका पेंशन आवेदन-पत्र गलत खारिज किया गया है जिससे उसे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ है।
विपक्षीगण के जवाब का सार है कि भूलवश परिवादी के खाते में वर्ष 90-91 में उसके द्वारा प्राप्त की गई अग्रिम राशि 5,000/- रूपये का अंकन नहीं हो पाया जिस भूल को परिवादी ने जानकारी होने के बाद भी उसे सही नहीं कराया तथा राशि विपक्षीगण को अदा नहीं की, जिसे ब्याज सहित अदा करने का उसका दायित्व है ब्याज की राशि माफ करने का कोई प्रावधान नहीं है। परिवादी को वर्ष 96-97 के पश्चात् वार्षिक लेखा पर्ची बेलेन्स सूचना प्रेषित नहीं की गई क्योंकि संस्थान 11.09.97 से बंद है जिसकी रिटर्न प्राप्ति नहीं हो रही है। परिवादी से नियमानुसार ही राशि की मांग की गई है जिसकी अदायगी करने व पेंशन संबंधित आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने पर पेंशन का निर्धारण किया जावेंगा। सेवा में कोई कमी नहीं की गई।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी संस्था से प्राप्त पत्र दिनांक 31.05.06, विपक्षीगण को प्रेषित पत्र दिनांक 10.08.07, उनको प्रेषित कानूनी नोटिस दिनांक 24.08.07, पोस्टल रसीद, स्थाई लोक अदालत, कोटा के समक्ष प्रस्तुत आवेदन-पत्र एवं कार्यवाही आदि की प्रतियां प्रस्तुत की है।
विपक्षीगण की ओर से साक्ष्य में कोई शपथ-पत्र या दस्तावेजात प्रस्तुत नहीं किया गया हंै।
अन्त में बहस की स्टेज पर परिवादी की ओर से 05.01.16 एवं 08.01.16 को कोई उपस्थित नहीं हुआ। विपक्षीगण की ओर से बहस सुनी गई। पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
परिवाद में यह वाद कारण बताया गया है कि 31.05.06 को विपक्षीगण ने उसका पेंशन आवेदन-पत्र गलत तौर पर निरस्त किया। यह भी वादकारण उत्पन्न होना बताया है कि स्थाई लोक अदालत में उसके आवेदन-पत्र का निर्णय दिनांक 14.07.11 को हुआ। हम पाते हैं कि स्थाई लोक अदालत में कार्यवाही लंबित होने या वहाॅ से निर्णय होने को वादकारण उत्पन्न होना नहीं माना जा सकता। विपक्षीगण ने उसका पेंशन आवेदन 31.05.06 को खारिज किया उससे 2 वर्ष की अवधि में ही मंच के समक्ष परिवाद प्रस्तुत हो सकता था । परिवादी ने मंच के समक्ष परिवाद 16.08.11 को प्रस्तुत किया है जो निश्चित रूप से मियाद बाहर है। इसी आधार पर परिवाद खारिज होने योग्य है।
जहाॅ तक गुण-दोष का प्रश्न है परिवादी ने परिवाद में ही स्वीकार किया है कि उसे 26.10.90 को 5,000/- रूपये की राशि का विपक्षीगण ने भुगतान किया जो उसके बेलेन्स में कम नहीं हो सकी थी अर्थात इस राशि की अदायगी करने का परिवादी का दायित्व था। परिवादी ने बिना ब्याज उक्त राशि जमा करने का विपक्षीगण को प्रस्ताव दिया जिसे विपक्षीगण ने इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि ब्याज माफ करने का कोई प्रावधान नहीं है ।
हम पाते हैं कि विपक्षीगण का यह व्यवहार किसी प्रकार से सेवा-दोष नहीं है। विपक्षीगण कानून के अनुसार ही ब्याज माफ कर सकते हैं। यदि कानून में ब्याज माफ करने का कोई प्रावधान नहीं है, तो इसे सेवादोष नहीं माना जा सकता है। इसलिये गुण-दोष के आधार पर भी परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
अतः परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगें।
(महावीर तंवर) (हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनंाक 19.01.16 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
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