जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 154/2019 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-24.01.2019
परिवाद के निर्णय की तारीख:-21.01.2023
Mr Shyam Shankar Gupta aged major S/o Sri Shankar Gupta c/o Wise Care Pvt. Ltd. r/o H.No. 217, Vishnu Lok Colony, Purani Chungi, Kanpur Road, Sarojini Nagar, Lucknow-226023.
.............COMPLAINANT.
Versus
1. Renault India Private Limited (RIPL) through its Managing Director having its Head Office at ASV Ramana Towers 37-38, 4th Floor, Venkatanarayana Road, T.Nagar,Chennai-600017.
2. M/s MG Chariots Pvt. Ltd. through its Director having its office at 187, Adil Nagar, Shankar Purwa, Ring Road, Kalyanpur, Lucknow.
..............OPPOSITE PARTIES.
परिवादी के अधिवक्ता का नाम-श्री टी0जे0एस0 मक्कर।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम-श्री अंग्रेज नाथ शुक्ला।
आदेश द्वारा-श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
निर्णय
1. परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा’12 के अन्तर्गत प्रस्तुत किया है। परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद में 12,53,913.00 रूपये वाहन की लागत के साथ पंजीकरण राशि के साथ 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ दिनॉंक 08.09.2018 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपने व्यक्तिगत प्रयोग और अपने परिवार के लिये हाल ही में दिनॉंक 30 अप्रैल, 2018 को विपक्षीगण से एक नई रेनाल्ट कैप्चर कार क्रय की थी। विपक्षी संख्या 02 द्वारा कार की कीमत 11,29,113.00 रूपये के साथ-साथ रोड टैक्स, पंजीकरण शुल्क 1,24,800.00 रूपये जो लागत मूल्य के अतिरिक्त भुगतान किया गया। वाहन का रख रखाव विपक्षी द्वारा समय समय पर उचित स्थितियों में किया जा रहा था। परिवादी 07 सितम्बर, 2018 की रात लगभग 9.30 बजे उक्त वाहन द्वारा लखनऊ से आजमगढ़ की ओर जा रहा था। तभी गाडी़ में अचानक स्टेयरिंग मैंकेनिज्म फेल हो गया। वाहन लगभग 80 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से जा रहा था। तभी वाहन अचानक नियंत्रण से बाहर हो गया, परिवादी का सौभाग्य था कि वह पुल से नीचे पानी में नहीं गिरा, क्योंकि वह पुल को पार करने में कामयाब रहा और कई बार अनियंत्रित होकर एक पेड़ से टकरा गया। परिवादी के झटके के कारण सीटबेल्ट के ताले भी दुर्घटना दबाव के कारण टूट गये जो वाहन में विर्निमाण और सुरक्षा सुविधाओं के निम्न मानक गुणवत्ता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है। स्टेयरिंग फेल होने पर परिवादी ने विपक्षी पार्टी को टोलफ्री नम्बर पर काल किया और उन्हें उसके बारे में सूचित किया। तत्पश्चात परिवादी को विपक्षी द्वारा सूचित किया गया कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन की तस्बीरें तुरन्त उपलब्ध कराये गये नम्बर पर भेजे।
3. उक्त दुर्घटना के संबंध में तत्काल पुलिस को सूचित किया गया जो तत्काल निरीक्षण के लिये घटनास्थल पर पहुँच गयी। परिवादी उक्त दुर्घटना के कारण सदमें की अवस्था में चला गया और इलाज के लिये आजमगढ़ के नर्सिंग होम में चार दिन भर्ती रहा। परिवादी अभी भी विपक्षीगणों द्वारा बेची गयी कार यांत्रिक विर्निर्माण दोष के कारण हुई दुर्घटना में हुए मानसिक आघात के कारण सदमें और अवसाद के लिये नर्सिंग होम में उपचाराधीन था।
4. 29 अगस्त, 2018 को वारंटी अवधि के अन्दर विपक्षी पार्टियों के माध्यम से सर्विस Kwid 08 L को इसी तरह की समस्या के लिये वापस मंगाया था। यानी दोषपूर्ण स्टेयरिंग असेंबली स्टेयरिंग बनाने वाली विपक्षीगण द्वारा उत्पादित वाहन मुख्य रूप से विर्निर्माण दोष से ग्रस्त है। परिवादी ने क्षतिग्रस्त वाहन को विपक्षीगण के सर्विस सेन्टर पर वापस कर दिया और वाहन खरीद राशि की पूर्ण वापसी के लिये पुन: आवेदन किया। वाहन का बायॉं हिस्सा स्टेयरिंग फेल होने की कारण पेड़ से टकरा गया । वाहन की तकनीकी जॉंच, सरकार द्वारा अनुमोदित प्राधिकारी एच0सी0एम0टी0 टेक्निकल पुलिस लाइन फैजाबाद के विशेषज्ञ की रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि स्टेयरिंग फेल होने के कारण दुर्घटना हुई।
5. विपक्षी के लिखित कथन से स्पष्ट है कि परिवादी ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर परिवाद दाखिल किया है। वाहन में निर्माण संबंधी दोष था जिसमें सभी औपचारिकताओं को निर्धारित किया गया था। परिवादी दिनॉंक 07 सितम्बर 2018 को रात लगभग 9.30 बजे उक्त वाहन द्वारा लखनऊ से आजमगढ़ जा रहा था, तभी उक्त वाहन में स्टेयरिंग मैकेनिज्म फेल हो गया, जिसके कारण वाहन जो उस समय लगभग 80 किमी प्रति घंटे की गति से चलाया जा रहा था, नियंत्रण से बाहर हो गया। विपक्षी द्वारा यह स्वीकार किया गया है, कि उक्त वाहन बाजार में एक उत्पाद है और परिवादी ने वाहन की स्थिति और उसके प्रदर्शन से संतुष्ट होने के बाद ही वाहन की बिक्री ली है। डीलर और परिवादी के बीच बिक्री का लेन-देन हुआ था जिसमें सभी भौतिक आपचारिकताओं को डीलर द्वारा संकलित किया गया था।
6. परिवादी की आवश्यकता है और यह दोहराना भी प्रासंगिक है कि उत्तर देने वाले विरोधी पक्ष ने निर्माता होने के नाते कानूनी रूप से कार्य किया है और इसके संबंध में इंण्डियन आयल कारपोरेशन उपभोक्ता सुरक्षा परिषद केरला (1994) के मामले से संदर्भ लिया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पार्टियों का रिश्ता प्रिंसिपल और एजेट या प्रिंसिपल टू प्रिंसिपल के आधार पर होता है। वर्तमान मामले में तथ्यों के आधार पर माना गया था कि पार्टियों का रिश्ता मूल रूप से प्रिंसिपल और एजेन्ट के आधार पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राष्ट्रीय बीमा कम्पनी लिमिटेड में अपने प्रबंधक बाम बाबूलाल लोधी 2010 (3) सी0पी0सी0 717 में निर्माता के दायित्व के संबंध में पारित राज्य आयोग के आदेश को बरकरार रखा।
7. मा0 राज्य आयोग के समक्ष दलील थी कि उपभोक्ता व डीलर के साथ उसका अनुबंध प्रिंसिपल टू प्रिंसिपल के आधार पर था और उनके साथ परिवादी के साथ अनुबंध की कोई गोपनीयता नहीं थी। वर्तमान मामले के तथ्यों के अनुसार उनके डीलर को आपूर्ति किये गये सिलेन्डर में किसी भी दोष को स्वीकार करने से पहले सत्यापित और परीक्षण किया जाना आवश्यक है। मा0 राज्य आयोग ने माना कि निर्माता उत्तरदायी नहीं था। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कापोरेशन लिमिटेड बनाम पी.सी.एन.आर. कम्पनी 2010 (1) सी.पी.सी. 576 ने याचिका की अनुमति दी और कहा कि डीलर का दायित्व स्थापित हो गया, लेकिन निर्माता किसी भी दायित्व से मुक्त है, डीलर को संतुष्ट करने के लिये छोड़ दिया गया है, क्योंकि निर्माता और डीलर के बीच प्रमुख प्रिंसिपल टू प्रिंसिपल संबंध है।
8. यहॉं यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक है कि परिवादी ने आरोप लगाया है कि बेचा गया वाहन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 13 डी (सी) के अनुसार किसी विशेषज्ञ की राय प्रस्तुत किये बिना एक दोषपूर्ण वस्तु थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय और माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा इस संबंध में कानून को अच्छी तरह से तय किया गया है जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जब तक निर्माण संबंधी दोष साबित नहीं होता है तब तक परिवादी वाहन के प्रतिस्थापन धनवापसी का दावा करने का हकदार नहीं है।
9. परिवादी के साक्ष्य शपथ पत्र के अवलोकन से विदित है कि परिवादी ने हाल ही में 30 अप्रैल 2018 को अपने व्यक्तिगत उपयोग तथा परिवार के लिये विपक्षी से नई रेनाल्ट कैप्चर कार खरीदा था, जिसका मूल्य 11,39,113.00 रूपये था। उसके साथ-साथ रोड टैक्स, पंजीकरण शुल्क 1,24,800.00 रूपया लागत मूल्य के अतिरिक्त भुगतान किया गया था। इस प्रकार परिवादी सी.पी. 1986 के प्रावधानों के अनुसार उपभोक्ता है। वाहन का रख रखाव उचित स्थिति में किया जा रहा था तथा विपक्षीगण द्वारा दी गयी सलाह के अनुसार समय-समय पर सर्विसिंग करायी गयी थी। इस गाड़ी की अंतिम बार सर्विसिंग विपक्षी संख्या 02 के द्वारा की गयी थी। उसके पहले ही यह हादसा हो गया। परिवादी ने विपक्षी के टोल फ्री नम्बर पर काल किया और उन्हें इस बारे में सूचित किया। उक्त दुर्घटना के संबंध में तत्काल पुलिस को सूचित किया जो तत्काल निरीक्षण के लिये घटना स्थल पर पहॅुची। परिवादी जिसने मौत को अपनी ऑंखों के सामने देखा वह सदमें में चला गया जो आजमगढ़ के एक हास्पिटल में उपचाराधीन रहा।
10. परिवादी को कार के सर्वेक्षण और तकनीकी स्थिति के संबंध में विपक्षी संख्या 01 के द्वारा ई-मेल भेजा गया। क्योंकि मामला मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी से जुड़ा था। यहॉं पर यह उल्लेख करना उचित है कि परिवादी ने यह स्वीकार किया कि वह कार वापस लेने के लिये तैयार नहीं है। क्योंकि सर्विस सेंटर में अपनी कार रखने के बाद गैरेज के रूप में वर्कशाप का स्थान जैसा कि बीमा दावा से इन्कार के माध्यम से उसकी दुर्घटनाग्रस्त कार की मरम्मत के लिये मना कर दिया गया और अब तक मरम्मत या भुगतान करने की स्वीकृति नहीं दी गयी। विपक्षीगण ने कथन किया कि यह परिवादी को साबित करना है कि स्टेयरिंग टूटा जिसके कारण दुर्घटना हुई और टेक्निकल एवं मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट के कारण दुर्घटना हुई। विपक्षी संख्या 02 द्वारा कहा गया कि रेनाल्ट एक अर्न्तराष्ट्रीय कम्पनी है वह मोटर वाहन बनाकर डीलर को देती है।
11. परिवादी ने साक्ष्य शपथ पत्र एवं टैक्स इनवाइस, रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, मिस्डकाल डिटेल्स, जनरल डायरी डिटेल्स, विजय सुपर स्पेसिलिटी हास्पीटल का पर्चा, पेमेन्ट रिसीप्ट, जी-मेल की प्रति, एक्सीटेन्ट निरीक्षण रिपोर्ट एवं फोटोग्राफ आदि दाखिल किया है। विपक्षी संख्या 01 की ओर से शपथ पत्र, फोटोग्राफ, ई-मेल आदि दाखिल किये गये हैं। विपक्षी संख्या 02 की ओर से मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र, व्हीकल हिस्ट्री, बॉडीशाप प्रार्थना पत्र, पार्किंग चार्ज की लिस्ट आदि दाखिल किया है।
12. मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में परिवाद को साबित करने का भार परिवादी पर है, और परिवादी को ही साबित करना है। Punjab State Power Corporation Ltd. Vs M/s Shree Polyphase Meters (India) Pvt. Ltd. 2012 (1) CPR 58 (NC) यह पारित किया गया कि प्रिजम्शन के आधार पर मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट नहीं माना जायेगा। हानि का आंकलन प्रिजम्शन के बेसिस पर नहीं माना जायेगा। Maruti Udyog Ltd. Vs Susheel Kumar Gabgotra and Anr. में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि क्चल में समस्या हो गयी थी और बदल दिया गया तो उसमें भुगतान नहीं कराया।
13. जैसा कि परिवादी का कथानक है कि उसने एक रेनाल्ट कैप्चर कार विपक्षी संख्या 01 के शोरूम से खरीदी थी। दिनॉंक 07 सितम्बर 2018 की रात लगभग 9.30 बजे उक्त वाहन से लखनऊ से आजमगढ़ की यात्रा कर रहा था तभी स्टेयरिंग मैकेनिज्म फेल हो जाने के कारण वाहन नियंत्रण से बाहर हो गया और मुड़ा नहीं बल्कि पुल पार कर अनियंत्रित होकर पेड़ से टकरा गया। परिवादी के झटके के कारण सीटबेल्ट के ताले टूट गये जो कि वाहन के विर्निमाण और सुरक्षा कारणों के निम्न मानक गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है।
14. परिवादी ने कहा कि उक्त घटना के संबंध में उसने टोल फ्री नम्बर पर भी सूचना दी और अनेक मेल से उनके एवं उनकी पुत्र द्वारा संबंधित कम्पनी को मेल द्वारा सूचित किया गया था। इस तथ्य पर परिवादी द्वारा विपक्षी कम्पनी को नोटिस भेजा गया जिस पर उन्होंने अपने कथानक का समावेश किया। विपक्षी संख्या 02 ने नोटिस का जवाब दिया। जवाब में इस तथ्य का उल्लेख किया कि नोटिस एवं उसकी लड़की द्वारा भी मेल प्राप्त हुआ तथा यह भी जवाब दिया गया कि मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट के बारे में सूचना नहीं दी है, तथा यह भी स्वीकार किया कि अक्टूबर में दुर्घटना की सूचना प्राप्त हुई है कि स्टेयरिंग फेल हो जाने के कारण दुर्घटना हुई और उपभोक्ता संरक्षण मामले में मुकदमा करूँगा।
15. विपक्षी की ओर से राजबाला बनाम स्कोडा में माननीय राज्य आयोग द्वारा यह आदेश पारित किया गया कि मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट होना आवश्यक है और उक्त प्रकरण में मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट होना नहीं पया। इनके द्वारा विपक्षीगण द्वारा C.N. Anantharam Vs Fiat India Ltd. and Ors. में यह अवधारणा की गयी है कि जब तक मेजर इनडारेक्ट मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट नहीं होता है तब तक मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी अथवा उसका एजेन्ट बदलने के लिये बाध्य नहीं है। 17. उपरोक्त विधि व्यवस्थाओ का सार यह है कि मैनयूफैक्चरिंग एवं टेक्निकल डिफेक्ट होना चाहिए। परिवादी तब तक क्षतिपूर्ति या पैसा वापस नहीं करा सकता जब तक कि आयोग के समक्ष यह न साबित कर दें कि वाहन में टेक्निकल मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट नहीं है। Skoda Auto India Ltd. Vs Bhawesh Nanda II (2016) CPJ 217 (NC) में राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया था कि जब तक मैकेनिकल और टेक्निकल डिफेक्ट नहीं है, तब तक उपभोक्ता को भुगतान नहीं किया जा सकता।
Chandeshwar Kumar Vs Tata Engineering Loco Motive I (2007) CPJ 2 (NC) में भी यह कहा गया कि मैकेनिकल एवं टेक्निकल डिफेक्स हो वहॉं पर एक्सपर्ट की ओपिनियन होनी चाहिए।
अर्थात उपरोक्त विधि व्यवस्था का सार यह है कि जब तक तकनीकी परीक्षण में किसी विशेषज्ञ की राय नहीं आये तब तक इस पर भुगतान नहीं किया जा सकता। परिवादी ने कथानक और साक्ष्य में यह कहा कि वाहन में टेक्निकल एवं मैकेनिकल डिफेक्ट था जिसके कारण स्टेयरिंग फेल हो गया। सीट बेल्ट और ताले टूट गये जो कि निम्न मानक गुणवत्ता को परिलक्षित करता है।
16. अत: इस परिवाद में देखा जाना है कि दुर्घटनाग्रस्त परिवादी का वाहन क्या उसमें टेक्निकल एवं मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट था या नहीं।
17. परिवादी का कथानक है कि वाहन अचानक स्टेयरिंग फेल हो गया और उसके कारण वह पेड़ से टकरा गया। सीट बेल्ट के ताले भी टूट गये जो विर्निमाण एवं सुरक्षा सुविधओं के निम्न मानक गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है। परिवादी द्वारा यह भी कहा गया कि वाहन के दुर्घटना के उपरान्त एवं संबंधित थाने में सूचना दी गयी थी तथा तकनीकी परीक्षण भी कराया गया था। परिवादी द्वारा जी0डी0 लिखायी गयी है जो कि दिनॉंक 17.09.2018 में 12.45 बजे रात में लिखायी गयी है। दुर्घटना की तिथि 07.09.2018 है। अर्थात प्रोसेस्ड जी0डी0 दर्ज करायी गयी है जिसमें यह तथ्य है कि ‘इस समय श्याम गुप्ता पुत्र शंकर प्रसाद निवासी मकान नम्बर 217 विष्णुलोक कालोनी पुरानी चुंगी कानपुर रोड, थाना-सरोजनी नगर, जनपद-लखनऊ उपस्थित थाना आकर एक किता प्रार्थना पत्र हिन्दी पूर्व लिखित वदस्खती खुद के बावत दिनॉंक 07.09.2018 को समय 9.30 बजे रात्रि मैं अपनी गाड़ी संख्या UP 32 JW 0679 रिनाल्ट से लखनऊ से आजमगढ़ जा रहा था गाड़ी का चालक धीरेन्द्र कुमार पुत्र मुनेश्वर यादव निवासी रघुनाथ खेड़ा, थाना-निगोड़ा जनपद लखनऊ चला रहा था कि देवगढ़ नहर के पास गाड़ी की स्टेयरिंग फेल हो जाने के कारण दायीं तरफ पेड़ से टकरा गयी जिससे गाड़ी का बॉया हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया व पहिया जाम हो गयी है। चॅूंकि तकनीकी परीक्षण राज्य सरकार के कर्मचारी द्वारा किया गया है जो कि राज्य सरकार की संस्था है। उसने अपनी जो कि एक एक्सपर्ट होता है अपनी रिपोर्ट में तकनीकी परीक्षण संलग्नक 10 में यह लिखा है कि स्टेयरिंग की दशा फ्री है। फ्री से ही दुर्घटना हो गयी है। फ्री का मतलब टूट गया।
18. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा साक्ष्य में कहा गया कि रेनाल्ट कम्पनी के संबंध में स्टेयरिंग फेल होने की व्यापक सूचना है। इसका आधार भिन्न-2 व्यक्तियों द्वारा उनके वाहन में जो रेनाल्ट की खराबी के संबंध में सूचना दी गयी है। यद्यपि इन सब साक्ष्यों का कोई विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि इस प्रकरण के पक्षकार नहीं है, लेकिन स्टेयरिंग की समस्या का होना रेनाल्ट कम्पनी के वाहन में होता आ रहा की अवधारणा की जा सकती है। किसी नवीन वाहन का अल्पसमय में स्टेयरिंग फेल हो जाये, लॉक खुले या न खुले निश्चित रूप से यह तकनीकी और मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट की श्रेणी में आता है, और ऐसे में वाहनों को बेचना औचित्यपूर्ण नहीं है।
19. चॅूंकि मैकेनिकल एवं टेक्निकल डिफेक्ट पाया गया कि वाहन में स्टेयरिंग फ्री हो गयी थी, ऐसे में मेंरी राय से उचित होगा कि विक्रय की गयी धनराशि परिवादी को दिलायी जाए। उक्त वाहन का तकनीकी परीक्षण राज्य सरकार की संस्था द्वारा किया गया है। तकनीकी परीक्षण का अवलोकन किया। परिवादी द्वारा दाखिल किये गये साक्ष्य एवं तकनीकी परीक्षण संलग्नक 10 का अवलोकन किया, जिससे रेनाल्ट कैप्चर कार वाहन का भी तकनीकी परीक्षण किया गया, जिसमें यह लिखा है कि स्टेयरिंग की दशा फ्री है। फ्री का मतलब फ्री हो गया और इससे दुर्घटना हुई।
20. विपक्षी संख्या 01 ने भी कागज संख्या 19 की ओर ध्यान आकर्षित कराया जो कि वाहन के आब्जर्वेशन से संबंधित है, जिसमें स्टेयरिंग सिस्टम को ओ0के0 पाया गया।
21. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि वाहन विपक्षी संख्या 01 के कब्जे में है। जिस समय यह आब्जर्वेशन दाखिल किया गया है ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिसमें परिवादी वहॉं उपस्थित था और न ही उसका कहीं हस्ताक्षर है। एक्सीडेन्ट निरीक्षण रिपोर्ट परिवादी द्वारा दाखिल की गयी है। वह पुलिस द्वारा एच.सी.एम.टी. के द्वारा दाखिल की जो कि राज्य सरकार की संस्थान है। सरकारी कर्मचारी जो कार्य करते हैं वह सही तथ्यों का ऑकलन करते हैं। अत: मेरे विचार से सरकारी तंत्र की जॉच की प्रामाणिकता उचित होगी। विपक्षी संख्या 01 की जो रिपोर्ट है वह वर्तमान तथ्य पत्रावली पर साक्ष्य के आधार पर सत्य प्रतीत नहीं होते।
22. अगर एक पहलू यह भी मान लिया जाए कि विपक्षी संख्या 01 द्वारा दाखिल की गयी रिपोर्ट के अनुसार स्टेयरिंग फेल होना नहीं पाया गया है तो उनके इस तथ्य का संज्ञान है कि पुलिस द्वारा तकनीकी परीक्षण पत्रावली पर संलग्न है, जिस पर स्टेयरिंग फेल है, और अपनी बात प्रमाणित करने के लिये तीसरे विशेषज्ञ की जॉंच कराते हैं और दोनों की सत्यता तीसरे एक्सपर्ट से ले सकते हैं। विपक्षीगण द्वारा इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की गयी, तथा पुलिस को तलब कर उससे प्रतिपरीक्षण कर सकते थे परन्तु नहीं किया गया। अत: जिस तथ्य पर जिरह नहीं की जाती वह समझा जायेगा कि उसको विपक्षी द्वारा स्वीकार किया गया है। अत: पुलिस द्वारा जो तकनीकी परीक्षण किया गया है उस पर अविश्वास किया जाना विधि सम्मत नहीं है। अत: इनके द्वारा सेवा में त्रुटि मानी जायेगी, और परिवादी व डीलर में चॅूंकि प्रिंसिपल और एजेन्ट का संबंध नहीं है। प्रिंसिपल टू प्रिंसिपल का है और विपक्षी संख्या 01 भी प्रिंसिपल माना जायेगा, जिसका यह वाहन बेचा गया है। अत: भुगतान की जिम्मेदारी विक्रेता के ऊपर निर्धारित किया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है। जहॉं तक रजिस्ट्रेशन शुल्क की मॉंग की गयी है उसका भुगतान विपक्षी से कराया जाना न्यायसंगत नहीं होता है। जहॉं तक रोड टैक्स एवं पंजीकरण शुल्क के रूप में 1,24,800.00 रूपये की मॉंग की गयी है इसे वापस कराना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है क्योंकि पंजीकरण व रोड टैक्स के आधार पर उक्त वाहन का संचालन भी पूर्व में किया गया है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 01 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को कार की कीमत मुबलिग 11,29,113.00 (ग्यारह लाख उन्तीस हजार एक सौ तेरह रूपया मात्र) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ कार क्रय किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक निर्णय की दिनॉंक से 45 दिन के अन्दर अदा करेंगे। परिवादी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट व वाद व्यय के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) भी अदा करेंगें। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-21.01.2023