Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

cc/503/2013

ML Nigam - Complainant(s)

Versus

Religare Security Ltd - Opp.Party(s)

27 Feb 2017

ORDER

CONSUMER FORUM KANPUR NAGAR
TREASURY COMPOUND
 
Complaint Case No. cc/503/2013
 
1. ml nigam
ram bagh kanpur nagar
...........Complainant(s)
Versus
1. religaer ecceseries
Bhargava estate civil lines kanpur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. RN. SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Sudha Yadav MEMBER
 HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 27 Feb 2017
Final Order / Judgement

 

                                           जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।

   अध्यासीनः      डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष    
    पुरूशोत्तम सिंह.......................................वरि0सदस्य
    श्रीमती सुधा यादव........................................सदस्या


उपभोक्ता वाद संख्या-503/2013
एम0एल0 निगम वरिश्ठ नागरिक उम्र 77 वर्श निवासी 104ए/290, रामबाग कानपुर-208012।
                                  ................परिवादी
बनाम
मेसर्स रेलिगेयर सिक्योरिटी लि0 साई स्कावयर, 45 भार्गव इस्टेट सिविल लाइन कानपुर-208001
                             ...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 26.09.2013
निर्णय तिथिः 07.03.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.      परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद पत्र इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षी को आदेषित किया जाये कि वह परिवादी को परिवाद पत्र के प्रस्तर-8 में उल्लिखित तथ्यों के अनुसार परिवादी को रू0 72,636.00, जो कि उसके द्वारा परिवादी के खाते से गलत ढंग से डेबिट कर दिये गये थे, को अदा करे। दौरान मुकद्मा तायूम वसूली 15 प्रतिषत ब्याज रू0 30,000.00 अदा करे। बिना अनुमति के विजया बैंक के षेयर विक्रय करने के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 2,00,000.00 अदा करे तथा षाखा प्रबन्धक सचिन श्रीवास्तव को 2 वर्श का कारावास एवं प्रबन्धक षिवबली जो कि बिना अनुमति विजया बैंक के षेयर विक्रय करने के लिए लिप्त थे, को दो वर्श के कारावास से दण्डित किया जाये।
2.     परिवादी की ओर से परिवाद पत्र प्रस्तुत करके संक्षेप में यह कहा गया है कि विपक्षी स्टाक षेयर ब्रोकर और नेषनल डिपोजिटरी सिक्योरिटी का षेयर जारी करने का एजेंट है। परिवादी का षेयर जमा करने व षेयर व्यवसाय करने का खाता विपक्षी के यहां कोड नं0-एम.एन.-906 है और उसमें परिवादी ने रू0 35,55,651.80 के षेयर  दिनांक 01.10.12 को जमा 
............2
(2)

किया था। परिवादी उक्त एकाउन्ट के अंतर्गत षेयर क्रय-विक्रय करने का कार्य कानपुर में करता है और उनका भुगतान भी कानपुर में करता है। परिवादी को रू0 12,644.07 विपक्षी से स्टेटमेंट ऑफ एकाउन्ट दिनांक 02.11.11 के अनुसार करना था। विपक्षी की यह षर्त थी कि सभी क्रय-विक्रय समव्यवहार जो कि दिन में व्यापारिक अवधि में किये जायेंगे, वे तब तक सत्यापित नहीं माने जायेंगे जब तक सायंकाल वाणिज्यिक अवधि में उनकी पुश्टि नहीं हो जाती। दिनांक 14.06.11 को परिवादी द्वारा विपक्षी को 900 षेयर रवीकुमार डिस्टिलरी से रू0 26.00 पर षेयर करने की दर से क्रय करने का आदेष दिया गया। किन्तु विपक्षी द्वारा उक्त षेयर क्रय करने के बजाय गलत तरीके से उक्त षेयर विक्रय कर दिये गये और अपनी उक्त त्रुटि को ठीक करने के लिए विपक्षी ने पुनः परिवादी को बिना सूचित किये ही रविकुमार डिस्टिलरी के 900 षेयर क्रय कर लिये। रवीकुमार डिस्टिलरी के षेयर एक्चुअल बेसिस के आधार पर क्रय और विक्रय किया जाना था। विपक्षी द्वारा उक्त 900 षेयर क्रेता को उपलब्ध नहीं कराये गये। अतः परिणामस्वरूप नेषनल सिक्योरिटी डिस्टिलरी लि0 द्वारा बाम्बे में दिनांक 14.06.11 को उक्त षेयर की निलामी कर दी गयी और विपक्षी द्वारा उक्त षेयर को गलत ढंग से बेचने की क्षति वहन करने की बजाय दिनांक 14.06.11 को परिवादी के खाते से बिना परिवादी को पूर्व सूचित किये, जिसे रू0 22,386.00 कम (डेबिट) कर दिये गये। इस प्रकार उक्त षेयर विपक्षी द्वारा परिवादी के डी-मैट डिपोजिटरी एकाउन्ट में परिवादी को बिना सूचना दिये ही हस्तांतरित कर दिये गये। इस प्रकार विपक्षी उक्त 900 षेयर के गलत ढंग से क्रय-विक्रय का उत्तरदायी है और उक्त षेयर से हुई क्षति वहन करने का भी उत्तरदायी है। विपक्षी वितरक षिवबली सिंह के द्वारा परिवादी को दिनांक 02.11.11 को लिखित रूप से यह आष्वासन दिया गया कि वह अपने रिस्क एवं कीमत पर परिवादी के व्यापार में होने वाली क्षति की भरपाई करेंगा। किन्तु उसके द्वारा उक्त आष्वासन को पूरा नहीं किया गया। बल्कि समय-समय पर झूठा अवषेश दिखाकर परिवादी के खाते से क्षतिपूर्ति चार्ज करते रहे और एन.एस.ई. तथा बी.एस.ई. का अंतर 
..............3
(3)

भी चार्ज करते रहे और इस सम्बन्ध में परिवादी को कोई सूचना नहीं दी गयी। दिनांक 02.11.11 को षिकायत करने पर परिवादी के द्वारा यह आष्वासन दिया गया कि विपक्षी रविकुमार डिस्टिलरी के 900 षेयर जो कि परिवादी के डी-मैट एकाउन्ट में परिवादी को बिना सूचित किये ही हस्तांतरित कर दिये गये थे-को अपने रिस्क एवं क्षति के आधार पर बेंचेंगे। विपक्षी द्वारा उक्त षेयर दिनांक 03.11.11 को रू0 16.15 प्रति षेयर रू0 9.75 पैसे प्रति षेयर के हिसाब से क्षति के सहित बेंचे। विपक्षी द्वारा रू0 22,386.00, 900 षेयर के निलामी के लिए डेबिट करने की बजाय रू0 5,713.67 विलम्ब से भुगतान के लिए डेबिट कर दिये गये। यद्यपि कोई भुगतान षेश नहीं था। रू0 5,713.67 का विवरण संलग्नक-डी में दिया गया है। उपरोक्त के अतिरिक्त विपक्षी द्वारा दिनांक 03.08.12 को रू0 52.74 की दर से विजया बैंक के 385 षेयर परिवादी को बिना सूचित किये ही बेंच दिये। इस प्रकार विपक्षी के द्वारा उपरोक्त कृत्य भी सेवा में कमी की कोटि में आता है। विजया बैंक ने उपरोक्त षेयर रू0 64.34 प्रति षेयर की दर से क्रय किये गये। इस प्रकार विपक्षी को रू0 2,00,000.00 के अर्थदण्ड से तथा रू0 11.26 प्रति षेयर की क्षति के लिए रू0 4,335.10 के लिए दण्डित किया जाना चाहिए। परिवादी द्वारा विपक्षी को पंजीकरण नोटिस दिनांक 13.12.11 तथा 31.08.12 को उसके नई दिल्ली स्थित कार्यालय और कानपुर स्थित कार्यालय को उपरोक्त गलत भुगतान तथा डेबिट करने के लिए भेजी गयी, किन्तु विपक्षी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। अतः विपक्षी द्वारा उपरोक्त गलत एवं झूठा व्यापार करने के लिए परिवादी को परिवाद पत्र के प्रस्तर-5 एवं 6 में उल्लिखित धनराषि और भविश्य में दौरान मुकद्मा 15 प्रतिषत ब्याज की दर से ब्याज सहित अदा करने के लिए उत्तरदायी हैं। परिवादी द्वारा विपक्षी से भुगतान दिलाये जाने का विवरण निम्नवत् भी दिया हैः-
1.    विपक्षी द्वारा निलामी के लिए 900 षेयर 
    परिवादी के खाते से डेबिट करने के लिए        = 22,386.00

2.    दिनांक 01.08.11 से 02.08.12 के मध्य 
ब्याज के चार्जेज के रूप में डेबिट की धनराषि    =  5,713.67
............4

(4)


3.    परिवादी का क्रेडिट बैलेन्स दिनांक 06.06.11 को    = 12,644.07

4.    दिनांक 03.08.12 को रू0 52.74 प्रति षेयर की    = 24,640.00
दर से परिवादी के विजया बैंक के 385 षेयर
जो कि परिवादी द्वारा रू0 64.00 प्रति षेयर की
दर से दिनांक 29.07.11 को क्रय किये गये थे
के सम्बन्ध में।       

3.    विपक्षी की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके संक्षेप में यह कहा गया है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद झूठे एवं बनावटी तथ्यों पर प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत मामले में परिवादी एवं विपक्षी का सम्बन्ध क्रेता-विक्रेता के मध्य नहीं है। अतः प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(डी) से बाधित है। प्रस्तुत मामले में परिवादी एवं विपक्षी का सम्बन्ध संलग्न इकरारनामे के अनुसार मेम्बर एवं क्लाइन्ट का है। परिवादी द्वारा स्वयंमेव व्यापार में कारित क्षति की प्रतिपूर्ति हेतु प्रस्तुत परिवाद दाखिल किया गया है। मा0 राश्ट्रीय आयोग द्वारा न्दपज ज्तनेज वि प्दकपं टेण् ैंइपजतप क्मअप ।हंतूंस ;2000द्ध ब्च्त् 26 ;छब्द्ध में यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम स्वयमेव व्यापार की क्षति के मामले में लागू नहीं होता है। बिजय अग्रवाल बनाम निर्मल बंग सिक्योरिटी प्रा0लि0 में मा0 राज्य आयोग रायपुर के द्वारा विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि षेयर के क्रय-विक्रय के मामले में परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। मा0 राज्य आयोग तमिलनाडु के द्वारा विधि निर्णय प्प् ;1996द्ध ब्च्श्र 206 आर. रवी बनाम आर. राजू, मा0 राज्य आयोग पंजाब के द्वारा सुनीता रानी बनाम जी टेलीफिल्म लि0 के आलोक में यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि जहां किसी क्रय-विक्रय के मामले में लाभ-हानि की संभावना पर व्यापार किया गया हो, ऐसे मामले में उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम लागू नहीं होता है। ऐसे मामले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू नहीं होता है। चूॅकि प्रस्तुत मामले में परिवादी वाणिज्यिक उदेद्ष्य से षेयर क्रय-विक्रय का व्यवसाय कर रहा था। इसलिए प्रस्तुत मामले का परिवादी धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता 
...............5
(5)

है। प्रस्तुत मामले में परिवादी और विपक्षी के मध्य मेम्बर, क्लाइंट इकरारनामा निश्पादित किया गया है। उक्त इकरारनामा के अनुसार पक्षकारों ने स्वयं को उक्त इकरारनामा में उल्लिखित नियमों, उपनियमों के द्वारा रेगुलेषन ऑफ एक्सचेंज से बाधित किये हुए है और पक्षकारों के मध्य यह भी उक्त इकरारनामे में तय है कि पक्षकारों के मध्य कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो उक्त विवाद का निराकरण पक्षकार मध्यस्थता के माध्यम से करायेंगे। इसलिए प्रस्तुत परिवाद में उपरोक्त प्राविधान होने के कारण भी परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत फोरम में परिवाद योजित करके उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का बेजा इस्तेमाल किया गया है। अतः परिवादी का परिवाद भारी हर्जे के साथ निरस्त किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4.    परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 25.09.13 व दिनांकित 09.09.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में स्टेटमेंट ऑफ होल्डिंग दिनांकित 01.10.12 की प्रति, स्टेटमेंट की प्रति, स्टेटमेंट ऑफ इंट्रेस्ट चार्जेज की प्रति, फाईनेन्सियल स्टेटमेंट की प्रति, विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रेशित पत्र दिनांकित 03.08.12, 29.07.11की प्रति, नोटिस की प्रति दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5.    विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में कोई षपथपत्र दाखिल नहीं किया है। परन्तु अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में अनुबन्ध पत्र की प्रति, रिस्क के विशय में विपक्षी व परिवादी के मध्य सम्पादित दस्तावेज की प्रति, कंपनी द्वारा दी गयी बोर्ड ऑफ रेगुलेषन की प्रति दाखिल किया है।
निष्कर्श
6.    फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक परिषीलन किया गया।
..........6
(6)

    उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में विपक्षी द्वारा अन्य बिन्दुओं के अतिरिक्त प्रमुख विवाद्यक यह उठाया गया है कि प्रस्तुत मामले का परिवादी अभिकथित षेयरों का व्यवसायी है। उसके द्वारा अभिकथित षेयरों का व्यापार अपने लाभ-हानि के लिए किया गया है। अतः प्रस्तुत मामले का परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1) (डी) में दी गयी परिभाशा के अनुसार उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अतः परिवाद निरस्त किया जाये। चूॅकि उपरोक्त प्रमुख विवाद्यक विधिक प्रष्न से सम्बन्धित है। इसलिए सर्वप्रथम उपरोक्त विवाद्यक का निस्तारण किया जाना आवष्यक है। अतः इस सम्बन्ध में पत्रावली से व परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये समस्त तर्कों से स्पश्ट होता है कि इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में ही स्वयंमेव स्वीकार किया गया है कि परिवादी षेयर का व्यवसाय करता है। परिवाद पत्र में ही परिवादी द्वारा यह उल्लिखित किया गया है कि उसके द्वारा रू0 35,55,651.80 के षेयर दिनांक 01.10.12 को जमा किया गया था। आगे परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में यह कहा गया है कि परिवादी उक्त एकाउन्ट के अंतर्गत षेयर क्रय-विक्रय का कार्य कानपुर में करता है। परिवादी की ओर से किये गये उपरोक्त कथन और षेयरों के व्यवसाय में लगायी गयी उपरोक्त भारी धनराषि से स्पश्ट होता है कि षेयरों के क्रय-विक्रय का व्यवसायी है। विपक्षी द्वारा अपने कथन के समर्थन में विधि निर्णय ’’अशोक प्रसाद बनाम रेलीगेयर लि0 एवं अन्य प्रकरण सं0-347/14 (40/2012), डा0 वी0के0 अग्रवाल बनाम मेसर्स इन्फोसिस टेक्नोलॉजी लि0 एवं अन्य मूल अपील सं0-287/2001 (एन.सी.), मारवाड़ी शेयर्स एण्ड फाइनेन्स लि0 बनाम विपुल भाई ए माकवाना अपील नं0-46/2011 उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग गुजरात (अहमदाबाद), बिजय अग्रवाल बनाम निर्मल बंग सिक्योरिटी प्रा0लि0 अपील नं0-567/2010 उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग छत्तीसगढ़’’ में प्रतिपादित विधिक सिद्धांत की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। जिनमें मा0 आयोगों द्वारा यह विधित सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि  सट्टेबाजी समव्यवहार किये जाने  का कार्य उपभोक्ता 
............7
(7)

मंच के श्रवण अधिकार के क्षेत्र में नहीं आता है। उपरोक्त ’’मारवाड़ी शेयर्स एण्ड फाइनेन्स लि0 बनाम विपुल भाई ए माकवाना’’ के मामले में तथा उपरोक्त अन्य विधि निर्णयों में स्पश्ट रूप से यह विधिक सिद्धांत दिया गया है कि जहां पर परिवादी व्यवसायी के रूप में षेयर ट्रेड कर रहा हो, उन मामलों में परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। प्रस्तुत मामले के तथ्यों, परिस्थितियों से स्पश्ट होता है कि परिवादी द्वारा भारी धनराषि का प्रयोग करते हुए षेयर का व्यापार किया जाना स्वीकार किया गया। यद्यपि परिवादी की ओर से विधि निर्णय डध्ेण् प्दकपंइनससे थ्पदंदबपंस ैमतअपबमे स्जकण् - ।दतण् टेण् डतण् टंतहीमेम ैंतपं - ।दतण् 2012;2द्ध ब्च्त् 395 ;छब्द्धए क्तण् श्रण्श्रण् डमतबींदज - व्तेण् टेण् ैतपदंजी ब्ींजनतअमकपए प्प्प्;2002द्ध ब्च्श्र 8 ;ैब्द्धए ब्वसहंजम च्ंसउवसपअम ;प्दकपंद्ध स्जकण् टेण् डण्त्ण्ज्ण्च्ण्ब्वउउपेपवद - व्तेण् प्प्प्;2002द्ध ब्च्श्र 18 ;ैब्द्ध एवं विधि निर्णय  डेण् ैपउतंद डंबामत टेण् डध्ेण् क्ब्ड थ्पदंदबपंस ैमतअपबमे स्जक - व्तेण् प्;1999द्ध ब्च्श्र 654 ;ैब्द्ध राज्य आयोग चण्डीगढ़, में प्रतिपादित विधिक सिद्धांतों की ओर फोरम का ध्यान आकृश्ट किया गया है। किन्तु मा0 उच्चतम न्यायालय एवं मा0 राश्ट्रीय आयोग का सम्पूर्ण सम्मान रखते हुए स्पश्ट करना है कि उपरोक्त विधि निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत प्रस्तुत मामले की भिन्नता के कारण लागू नहीं होते हैं। अतः परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त विधि निर्णयों का लाभ परिवादी को प्राप्त नहीं होता है।
    उपरोक्तानुसार उपरोक्त प्रस्तर में उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये तर्कों के आलोक में उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों के आलोक में तथा उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये विधि निर्णयों के आलोक में दिये गये उपरोक्त निश्कर्श व उपरोक्त कारण से फोरम इस मत का है कि प्रस्तुत मामले परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1)(डी) के अंतर्गत उपभोक्ता की कोटि में नहीं आता है। जो कि एक विधित आवष्यकता है। अतः प्रस्तुत परिवाद क्षेत्राधिकार के अभाव में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। चूॅकि उपरोक्त विवाद्यक जो कि  परिवादी के विरूद्ध  उपरोक्तानुसार  निर्णीत किया जा 
............8
(8)

चुका है। अतः प्रस्तुत मामले में किसी अन्य बिन्दु पर गुण-दोश के आधार पर बिना कोई निश्कर्श दिये ही फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
7.     परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध खारिज किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।


  (पुरूशोत्तम सिंह)       ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य           सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।

    आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।


  (पुरूशोत्तम सिंह)       ( सुधा यादव )         (डा0 आर0एन0 सिंह)
     वरि0सदस्य           सदस्या                   अध्यक्ष
 जिला उपभोक्ता विवाद    जिला उपभोक्ता विवाद        जिला उपभोक्ता विवाद       
     प्रतितोश फोरम          प्रतितोश फोरम                प्रतितोश फोरम
     कानपुर नगर।           कानपुर नगर                 कानपुर नगर।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. RN. SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Sudha Yadav]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. PURUSHOTTAM SINGH]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.