जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 08/2016
षिवकुमार गौड, जयनारायण व्यास काॅलोनी, नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. रेलीगेयर हैल्थ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, डी 3 पी 3 बी डिस्टीक सेंटर साकेत, नई दिल्ली।
2. इण्डसइंड बैंक लिमिटेड ( कोरपोरेट एजेन्ट, रेलीगेयर हैल्थ इंष्योरेंस) नागौर, षाखा नकाष गेट, सुजान होटल के पास, नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री नटवर लाल गौड, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री मामराज गुणपाल एवं श्री सुनील डागा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 13.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 1 से एक हैल्थ बीमा निष्चित प्रीमियम देकर लिया। इस दौरान अप्रार्थी ने अपने चिकित्सक से परिवादी के स्वास्थ्य की पूरी जांच की तथा उसकी बाद ही दिनांक 20.02.2014 को पाॅलिसी संख्या 10078004 जारी की गई। उक्त पाॅलिसी के तहत पाॅलिसी की वैधता अवधि तक होने वाली प्रत्येक बीमारी व ईलाज के खर्चे का अदा करने हेतु अप्रार्थी कम्पनी ने अपना दायित्व स्वीकार किया। वैसे भी 45 वर्श से उपर के व्यक्ति की हैल्थ पाॅलिसी मेडिकल जांच के बाद ही जारी की जाती है तथा परिवादी की आयु बीमा के वक्त 59 साल थी। इस मामले में भी पाॅलिसी जारी करते समय परिवादी की चिकित्सकीय जांच बीमा कम्पनी द्वारा की गई। उस समय प्रार्थी पूर्ण स्वस्थ था। परिवादी के स्वास्थ्य से संतुश्ट होने के बाद ही अप्रार्थी ने राषि जमा करके पाॅलिसी जारी की थी। इस बीच परिवाद अपनी पत्नी सहित दिनांक 25.05.2014 को रेल से चैन्नई के लिए रवाना हुआ। वहां रहते दिनांक 05.06.2014 को सुबह 8 बजे परिवादी के सीने में दर्द हुआ। जिस पर परिवादी चिकित्सकीय सलाह लेकर अपोलो हाॅस्पीटल पहुंचा। जहां उसका इलाज षुरू किया गया तथा सारी जांचें आदि करवाने पर ब्लाॅक आने पर इलाज जारी रखा गया। इसके बाद अच्छी तरह से पूछताछ कर तस्सली होने पर परिवादी ने अपना इलाज एमआईओटी हाॅस्पीटल में चालू करवाया। वहां पूर्ण इलाज के बाद परिवादी को दिनांक 05.07.2014 को डिस्चार्ज किया गया। परिवादी को इस इलाज में 3,03,003/- रूपये खर्च करने पडे। जिस पर परिवादी ने अप्रार्थी के यहां क्लेम किया मगर अप्रार्थी ने बीमा क्लेम को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि चिकित्सक के अनुसार आप रंद, 2014 से बीमार थे। इस तरह बीमा कम्पनी ने अनुचित रूप से क्लेम को खारिज कर दिया। परिवादी ने इस पर बीमा कम्पनी को बताया कि चिकित्सक द्वारा उससे बीमारी के सम्बन्ध में जो सवाल पूछे गये थे उसमें उसने तकलीफ रनद से होना बताया लेकिन सम्भवतः सुनने में फर्क आ जाने अथवा स्लीप आॅफ पेन से जून की बजाय रंद अंकित हो गया हो। उसने कम्पनी के समक्ष यह भी स्पश्ट किया कि वह जनवरी में पूरी तरह से स्वस्थ था तथा जनवरी, 2014 से मार्च, 2014 तक राजकीय सेवा में राजकोश नागौर में कार्यरत रहा है। इस दौरान उसने स्वास्थ्य के कारण या अन्य कारण से भी कोई अवकाष नहीं लिया था। परिवादी के अनेक बार बीमा कम्पनी में चक्कर लगाने पर भी उसकी बात नहीं सुनी गई और न ही कोई ऐसा दस्तावेज उसे दिखाया गया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा दोश की परिधि में आता है।
अतः परिवादी को उसके इलाज में खर्च राषि 3,03,003/- रूपये मय ब्याज के दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाया जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी की ओर से परिवादी के पक्ष में बीमा पाॅलिसी जारी करना स्वीकार करते हुए मुख्य रूप से यह आपति की है कि परिवादी द्वारा बीमा हेतु प्रपोजल फार्म भरते समय स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रष्नों एवं आदतों के बारे में पूछे जाने पर वास्तविक तथ्यों को छिपाया गया तथा सही तथ्य प्रकट नहीं किये गये। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा बताया गया है कि परिवादी से चिकित्सक द्वारा प्रष्न पूछे जाने पर सही तथ्य नहीं बताये गये जबकि परिवादी उस समय ह्दय रोग से पीडित था लेकिन परिवादी द्वारा असत्य कथन किये जाने के कारण प्रपोजल फार्म भरते समय उसकी बीमारी के सम्बन्ध में कोई परीक्षण नहीं किया गया था। अप्रार्थी पक्ष द्वारा बताया गया है कि एमआईओटी इंटरनेषनल हाॅस्पीटल, चैन्नई द्वारा जारी डिस्चार्ज समरी दिनांकित 05.07.2014 में बीमारी से सम्बन्धित हिस्ट्री में स्पश्ट अंकित किया गया है कि जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह से परिवादी की छाती में बांयी तरफ दर्द था। इसी प्रकार इसी अस्पताल द्वारा जारी नर्सिंग एससमेंट आॅन एडमिषन में भी परिवादी का 2 जनवरी, 2014 से ह्दय रोग से पीडित होना प्रकट किया गया है। अप्रार्थी ने बताया है कि उपर्युक्त तथ्यों से स्पश्ट है कि परिवादी प्रपोजल फार्म भरने की दिनांक 06.02.2014 से लगभग एक माह पूर्व जनवरी, 2014 से ही ह्दय रोग से पीडित था लेकिन परिवादी द्वारा प्रपोजल फार्म एवं मेडिकल परीक्षण फार्म भरे जाते समय उपर्युक्त तथ्यों को छिपाया गया। अप्रार्थी पक्ष द्वारा यह भी बताया गया है कि परिवादी द्वारा क्लेम प्रस्तुत किये जाने के पष्चात् अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी से आवष्यक दस्तावेज मांगे गये लेकिन परिवादी द्वारा उपलब्ध नहीं कराये गये, ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी द्वारा स्वयं के स्तर पर अनुसंधान किये जाने पर ज्ञात हुआ कि परिवादी द्वारा प्रपोजल फार्म भरे जाने से पूर्व की अपनी बीमारी के तथ्य को छिपाया गया था। ऐसी स्थिति में बीमा पाॅलिसी के क्लोज 6.1 की षर्त अनुसार परिवादी का क्लेम नियमानुसार खारिज किया गया। ऐसी स्थिति में परिवादी का परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से परिवाद में अंकित तथ्यों को जानकारी के अभाव में अस्वीकार करते हुए अतिरिक्त रूप से यह कथन किया है कि इस मामले में अप्रार्थी संख्या 2 के यहां मात्र बचत खाता होने से उसने अप्रार्थी संख्या 1 एवं परिवादी के बीच फारवर्डिग एजेंसी का कार्य किया है। जबकि परिवादी ने उसे गलत पक्षकार बनाया है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।
4. बहस सुनी जाकर पत्रावली का अवलोकन किया गया। परिवादी ने अपने आवेदन के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही बैंक खाता की फोटो प्रति प्रदर्ष 1, बीमा कम्पनी द्वारा जारी स्वास्थ्य बीमा कार्ड प्रदर्ष 2, अपोलो अस्पताल की जांच रिपोर्ट दिनांक 05.06.2014 प्रदर्ष 3, अपोलो अस्पताल की जांच रिपोर्ट प्रदर्ष 4, कोरोनेरी एंजियोग्राम प्रदर्ष 5, कार्डियक लेबोट्री की रिपोर्ट एवं बिल प्रदर्ष 6, एमआईओटी अस्पताल की डिस्चार्ज समरी प्रदर्ष 7, परिवादी की जांच रिपोर्ट प्रदर्ष 8, क्लेम आवेदन प्रदर्ष 9, बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को जारी नोटिस प्रदर्ष 10, परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी को लिखा पत्र प्रदर्ष 11, कोशाधिकारी कार्यालय, नागौर द्वारा परिवादी की उपस्थिति बाबत् जारी प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 12, परिवादी का लिखित बयान प्रदर्ष 13, बीमा कम्पनी के एजेंट महेन्द्र बालोटिया द्वारा की गई रिपोर्ट प्रदर्ष 14 एवं अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम खारिज करने का पत्र प्रदर्ष 15 की फोटो प्रतियां भी पेष की गई है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि प्रपोजल फार्म भरे जाने से पूर्व परिवादी कभी भी ह्दय रोग या किसी अन्य बीमारी से पीडित नहीं रहा है तथा न ही परिवादी द्वारा बीमा पाॅलिसी हेतु प्रपोजल फार्म भरे जाते समय अथवा स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रष्न पूछे जाने के समय परिवादी ने किसी तथ्य को छिपाया था लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बिना किसी आधार के परिवादी का क्लेम खारिज कर सेवा दोश किया है। अतः परिवाद स्वीकार किया जाकर परिवादी के इलाज में खर्च हुई राषि के साथ-साथ परिवाद व्यय एवं अन्य खर्चा दिलाया जावे।
5. अप्रार्थीगण द्वारा अपने जवाब के साथ षपथ-पत्र प्रस्तुत किये गये हैं। अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से प्रपोजल फार्म प्रदर्ष ए 1, बीमा पाॅलिसी की षर्तें प्रदर्ष ए 2, बीमा कम्पनी द्वारा जारी पत्र प्रदर्ष ए 3, प्रदर्ष ए 4 व प्रदर्ष ए 5, एमआईओटी से जारी डिस्चार्ज समरी प्रदर्ष ए 6, बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को जारी पत्र क्रमष प्रदर्ष ए 7 व प्रदर्ष ए 8, परिवादी का क्लेम आवेदन प्रदर्ष ए 9, एमआईओटी अस्पताल से जारी नर्सिंग एससमेंट आॅन एडमिषन प्रदर्ष 10, परिवादी का क्लेम खारिज करने सम्बन्धी परिवादी को भेजे पत्र प्रदर्ष ए 11 व प्रदर्ष ए 12, अन्वेाण/सत्यापन रिपोर्ट प्रदर्ष ए 13 एवं मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्ष दिनांकित 18.02.2014 प्रदर्ष ए 14 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि एमआईओटी अस्पताल से जारी डिस्चार्ज समरी प्रदर्ष ए 6 तथा नर्सिंग एससमेंट आॅन एडमिषन प्रदर्ष ए 10 के आधार पर स्पश्ट है कि परिवादी जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह से ही ह्दय रोग से पीडित था लेकिन परिवादी ने प्रपोजल फार्म प्रदर्ष ए 1 भरे जाते समय एवं दिनांक 18.10.2014 को स्वास्थ्य परीक्षण प्रदर्ष ए 14 के समय पूछे गये प्रष्नों के सही उतर न देकर वास्तविक तथ्यों को छिपाया था। ऐसी स्थिति में बीमा पाॅलिसी की षर्ताें अनुसार परिवादी का क्लेम सही रूप से खारिज किया गया है। उनका तर्क है कि महज अप्रार्थीगण को तंग परेषान करने की नियत से परिवादी द्वारा झूठा परिवाद पेष किया गया है जो मय खर्चा खारिज किया जावे।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर पक्षकारान मंे यह स्वीकृत स्थिति है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी स्वास्थ्य बीमा का कार्य करती है तथा परिवादी से आवष्यक षुल्क राषि/प्रीमियम प्राप्त कर दिनांक 20.02.2014 को परिवादी के पक्ष में बीमा पाॅलिसी जारी की थी। पक्षकारान में इस तथ्य पर भी कोई विवाद नहीं है कि परिवादी ने अस्वस्थ होने के कारण अपोलो अस्पताल एवं एमआईओटी इंटरनेषनल अस्पताल से इलाज करवाया था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा यह भी स्वीकार किया गया है कि परिवादी ने अपने इलाज में हुए खर्चे बाबत् क्लेम आवेदन बीमा कम्पनी के समक्ष पेष किया था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी की मुख्य आपति यही रही है कि परिवादी ने स्वास्थ्य बीमा पाॅलिसी प्राप्त करने हेतु प्रपोजल फार्म भरते समय एवं स्वास्थ्य परीक्षण के समय चिकित्सक द्वारा पूछे गये प्रष्नों के सही उतर न देकर वास्तविक तथ्यों को प्रकट नहीं किया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को जारी पत्र दिनांक 05.10.2015 प्रदर्ष ए 12 में बताया गया है कि परिवादी का क्लेम तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए खारिज किया जाता है। इसी अनुक्रम में बीमा कम्पनी द्वारा जारी पत्र दिनांकित 02.12.2015 में बताया गया है कि बीमा पाॅलिसी के क्लोज 6.1 की षर्तों अनुसार सही तथ्य प्रकट न करने के कारण क्लेम खारिज किया गया है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा ही जारी पत्र दिनांकित 04.11.2015 प्रदर्ष 10 में बताया गया है कि परिवादी जनवरी, 2014 से ही ह्दय रोग से पीडित था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत अन्वेशण/सत्यापन रिपोर्ट प्रदर्ष 13 में यही बताया गया है कि परिवादी के डिस्चार्ज कार्ड आदि में अंकित परिवादी की पूर्व हिस्ट्री अनुसार जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह से ही परिवादी की छाती में बांयी तरफ दर्द था। अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यही तर्क रहा है कि परिवादी जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह से ही ह्दय रोग से पीडित था लेकिन बीमा हेतु प्रपोजल फार्म भरते समय स्वास्थ्य सम्बन्धी पूछे गये प्रष्नों का सही उतर नहीं दिया गया, ऐसी स्थिति में परिवादी का क्लेम सही रूप से खारिज किया गया है।
7. अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन कर सुसंगत विधि का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से परिवादी का क्लेम खारिज करने बाबत् जो आधार लिये गये हैं, उन्हें साबित करने का पूर्णभार बीमा कम्पनी का ही रहा है। इस सम्बन्ध में बीमा कम्पनी ने अपने अन्वेशण कर्ता की रिपोर्ट एवं एमआईओटी अस्पताल से प्राप्त परिवादी की डिस्चार्ज रिपोर्ट तथा नर्सिंग एससमेंट आॅन एडमिषन के प्रलेख ही पेष किये हैं। लेकिन उपर्युक्त दस्तावेजात को साबित करने के लिए अन्य किसी प्रकार की कोई स्पश्ट साक्ष्य पेष नहीं की गई है। यहां तक कि इस सम्बन्ध में किसी चिकित्सक या सम्बन्धित अस्पताल के किसी कर्मचारी का षपथ-पत्र भी पेष नहीं किया गया है। जबकि यह सुस्थापित विधि है कि अस्पताल से जारी डिस्चार्ज समरी रिपोर्ट तथा नर्सिंग एससमेंट आॅन एडमिषन की फोटो प्रतियों को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत ऐसे दस्तावेजात के आधार पर यह तथ्य साबित नहीं माना जा सकता कि परिवादी जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह से ही ह्दय रोग से पीडित रहा हो तथा उसने स्वास्थ्य बीमा का लाभ प्राप्त करने के उद्देष्य से दुराष्य की भावना से प्रपोजल फार्म भरते समय सही तथ्यों को प्रकट न किया हो। न्यू इण्डिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मोहिन्द्र कौर 2008 सीटीजे 780 (सीपी) (एससीडीआरसी) वाले मामले के तथ्य भी हस्तगत मामले से मिलते झुलते थे, जिसमें माननीय राज्य आयोग ने आदेष के पैरा संख्या 5 में अभिनिर्धारित किया है कि ष्। उमतम ीपेजवतल हपअमद पद जीम ीवेचपजंस पेचव ंिबजव पे व िदव बवदेमुनमदबम ंे ीपेजवतल ंसवदम बंददवज इम जतमंजमक ंे अंसपक हतवनदक जव तमचनकपंजम ं बसंपउए ूीपसम पज पे ं ेमजजसमक संू जींज पद बंेम व ितिंनकनसमदज ेनचचतमेेपवद व िउंजमतपंस पदवितउंजपवद वदने ीमंअपसल तमेजे वद जीम चंतजल ंससमहपदह तिंनकण्ष्
8. माननीय राज्य आयोग द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णय वाले मामले में अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में हस्तगत मामले के तथ्यों एवं पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी परिवादी की डिस्चार्ज समरी रिपोर्ट या नर्सिंग एससमेंट आॅन एडमिषन में अंकित परिवादी की पूर्व हिस्ट्री अनुसार जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह में परिवादी की छाती की बांयी तरफ दर्द होने मात्र के उल्लेख के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी जनवरी, 2014 के प्रथम सप्ताह से ही ह्दय रोग से पीडित रहा हो एवं परिवादी ने दुराषय की भावना से प्रपोजल फार्म भरते समय सही तथ्यों को प्रकट न किया हो। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने दिनांक 13.02.2014 से 12.02.2015 की अवधि हेतु परिवादी के पक्ष में स्वास्थ्य बीमा पाॅलिसी जारी कर रखी थी तथा परिवादी ने बीमार होने पर बीमित अवधि में ही कराये गये अपने इलाज बाबत् हुए खर्चे को प्राप्त करने के लिए ही अप्रार्थी बीमा कम्पनी के वहां क्लेम आवेदन पेष किया था, जिसे अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बिना किसी युक्तियुक्त आधार के खारिज कर सेवा दोश किया है। पत्रावली के अवलोकन पर यह भी स्पश्ट है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम आवेदन प्रस्तुत करते समय परिवादी ने अपने इलाज में खर्च हुई समस्त राषि का पूर्ण विवरण भी प्रस्तुत किया है लेकिन इसके बावजूद अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बिना किसी उचित कारण के परिवादी का क्लेम खारिज कर दिया है। ऐसी स्थिति में परिवादी को न केवल मानसिक एवं आर्थिक परेषानी हुई बल्कि उसे उचित अनुतोश प्राप्त करने हेतु यह परिवाद भी पेष करना पडा। ऐसी स्थिति में परिवादी को हुई मानसिक एवं आर्थिक क्षति की पूर्ति हेतु भी अनुतोश दिया जाना न्यायोचित होगा।
9. जहां तक अप्रार्थी संख्या 2 का प्रष्न है तो पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि बैंक मात्र बीमा कम्पनी के एजेंसी के रूप में कार्य करता है तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम स्वीकृत कर राषि जमा कराये जाने की स्थिति में ही बैंक द्वारा परिवादी को क्लेम राषि अदा करनी थी। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि अप्रार्थी संख्या 2 बैंक का कोई सेवा दोश नहीं रहा है। परिणामतः अप्रार्थी संख्या 2 की हद तक परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
10. परिवादी षिवकुमार गौड द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का अप्रार्थी संख्या 1 रेलीगेयर हैल्थ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के विरूद्ध स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि परिवादी के पक्ष में जारी बीमा पाॅलिसी अनुसार परिवादी के इलाज में खर्च हुई राषि 3,03,003/- रूपये अप्रार्थी बीमा कम्पनी परिवादी को अदा करें। उपर्युक्त राषि पर वसूली होने तक परिवादी परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 30.12.2015 से 9 प्रतिषत साधारण वार्शिक की दर से ब्याज प्राप्त करने का भी अधिकारी होगा। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के सेवा दोश के कारण परिवादी को हुई मानसिक परेषानी बाबत् 20,000/- रूपये अदा करने के साथ ही परिवाद व्यय के रूप में 5,000/- रूपये भी अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
11. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अप्रार्थी संख्या 2 की हद तक खारिज किया जाता है।
12. आदेष आज दिनांक 13.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या