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SHIVA PARTE filed a consumer case on 05 Mar 2014 against RELIANCE LIFE INSURANCE COMPANY LMT. in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/06/2014 and the judgment uploaded on 16 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 06-2014 प्रस्तुति दिनांक-01.01.2014
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
षिवा, उम्र लगभग 30 वर्श, आत्मज
धानूलाल परते, जाति-गौंड, निवासी-
ग्राम ताखलाखुर्द, पोस्ट धोबीसर्रा, तहसील
बरघाट, जिला सिवनी (म0प्र0)।................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
क्षेत्रीय प्रबंधक,
भारतीय जीवन बीमा निगम कार्यालय
मदनमहल, नागपुर रोड, जबलपुर
जिला जबलपुर (म0प्र0)।...........................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 05.03.2014 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, तेन्दूपत्ता संग्रहकों के लिए अनावेदक द्वारा जारी समूह जीवन बीमा, मास्टर पालिसी नंबर-69878 के तहत परिवादी की पतिन की मृत्यु पर, बीमा क्लेम की राषि 3,500-रूपये का भुगतान साधारण मृत्यु मानकर किये जाने को और दुर्घटना मृत्यु के लिये देय 25,000-रूपये की राषि का भुगतान न किये जाने को अनुचित व सेवा में कमी बताते हुये, दुर्घटना मृत्यु क्लेम की अंतर की राषि 21,500- रूपये व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी की पतिन तेन्दूपत्ता संग्रहक थी, जिसकी दिनांक-21.08.2011 को कुएं में गिरने से मृत्यु हो गर्इ थी, मध्यप्रदेष षासन की योजना के तहत तेन्दूपत्ता संग्रहकों के लिए अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, समूह बीमा योजना, मास्टर पालिसी नंबर-69878 जारी की गर्इ थी, जिसमें तेन्दूपत्ता संग्रहक की साधारण मृत्यु पर 3,500- रूपये व दुर्घटना में मृत्यु पर 25,000-रूपये की राषि नामिनी को देय रही है। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि-पतिन की मृत्यु पष्चात, परिवादी के द्वारा, प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति, बरघाट को दुर्घटना बीमा राषि दिलाने आवेदन, दस्तावेजों के साथ पेष किये गये थे, जो नोडल अधिकारी द्वारा, दिनांक-26.07.2012 को दावा स्वीकृति हेतु अनावेदक के कार्यालय में प्रेशित किया गया था। और अनावेदक के कार्यालय से साधारण मृत्यु हेतु देय 3,500-रूपये की राषि का चेक दिनांक-13.12.2012 को परिवादी को भुगतान हेतु प्रेशित किया गया था।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-परिवादी ने दावा आवेदन के साथ एफ0आर्इ0आर0, पी0एम0 रिपोर्ट, नक्षा पंचायतनामा और अंतिम जांच प्रतिवेदन आदि दस्तावेज प्रेशित किये थे, फिर भी अनावेदक द्वारा साधारण मृत्यु पर देय दावा राषि का ही भुगतान किया गया, जो अनुचित होकर, सेवा में कमी है। अत: अंतर की राषि व हर्जाना चाहा गया है।
(4) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-अनावेदक को परिवादी के द्वारा, साधारण मृत्यु दावा के प्रपत्र प्राप्त हुये थे, जिस पर तुरन्त कार्यवाही कर, दिनांक-13.12.2012 को 3,500-रूपये के चेक से राषि भुगतान कर दी गर्इ थी और संबंधित नोडल अधिकारी को दुर्घटना हितलाभ की षेश राषि 21,500-रूपये के भुगतान हेतु पुलिस के अंतिम अन्वेशण प्रतिवेदन भेजे जाने हेतु टीप, चेक पावती पत्र पर अंकित कर सूचित कर दिया गया था, लेकिन परिवादी या नोडल अधिकारी द्वारा, पुलिस के अंतिम अन्वेशण प्रतिवेदन अनावेदक को प्रेशित नहीं किये गये, इसलिए दुर्घटना हितलाभ का भुगतान नहीं किया गया था, जो कि-पुलिस की अंतिम प्रतिवेदन दिनांक-07.03.2013 की प्रति परिवाद के संमंस के साथ भेजे दस्तावेजों में दिनांक-16.01.2014 को प्राप्त हुर्इ, जिसके आधार पर त्वरित कार्यवाही कर, दिनांक-18.01.2014 को षेश राषि 21,500- रूपये का चेक इस जिला उपभोक्ता पीठ के नाम पर जारी कर, दिनांक- 26.01.2014 को इस पीठ में जमा करा दिया गया है। अत: उक्त तथ्यों के आधार पर, परिवादी को ब्याज व अन्य देयता स्वीकार नहीं, अनावेदक के द्वारा दावा निराकरण में कोर्इ विलम्ब नहीं किया गया, न ही कोर्इ व्यवसायिक दुराचार किया गया और न ही कोर्इ सेवा में कमी की गर्इ है।
(5) क्योंकि अनावेदक के द्वारा, दिनांक-29.01.2014 को बीमा क्लेम की षेश राषि 21,500-रूपये का चेक परिवादी को भुगतान हेतु इस पीठ के नाम पर जमा करा दिया है, तो निराकरण हेतु निम्न विचारणीय प्रष्न षेश हैं:-
(अ) क्या अनावेदक के द्वारा, दुर्घटना बीमा क्लेम के
लिए देय अंतर की राषि का भुगतान करने में
अनुचित विलम्ब कारित कर, परिवादी के प्रति-
सेवा में कमी की गर्इ है?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) अनावेदक द्वारा जो दिनांक-13.12.2012 का 3,500-रूपये के चेक से भुगतान परिवादी को किया गया, वह स्वीकृत तथ्य भी है और अनावेदक-पक्ष से पेष प्रदर्ष आर-1 व आर-2 व स्वयं परिवादी-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष सी-3 के क्लेम भुगतान पत्र से स्थापित है। जो कि- प्रदर्ष सी-3 (प्रदर्ष आर-2) के पत्र में ही यह टीप लेख है कि-एफ0 आर्इ0आर0 में कुएं में गिरने से मृत्यु लिखा है, पुलिस की फायनल रिपोर्ट भी नहीं, इसलिए सामान्य मृत्यु के लिए भुगतान किया जा रहा है।
(7) परिवादी ने बीमा क्लेम के आवेदन के साथ पुलिस के अंतिम निश्कर्श की रिपोर्ट की प्रति भी भेजने का जो परिवाद में उल्लेख किया है, वह किसी भी तरह सही होना संभव नहीं, जहां कि-परिवादी द्वारा पेष प्रदर्ष सी-1 के प्राथमिक वनोपज समिति के पत्र की प्रति से ही स्पश्ट है कि-जुलार्इ-2012 में परिवादी के क्लेम प्रकरण को जिला युनियन के माध्यम से अनावेदक के कार्यालय में प्रथम बार भेजा गया था और पुलिस की अंतिम निश्कर्श रिपोर्ट न होने के कारण, सामान्य दावा मानकर, दिनांक-13.12.2012 के 3,500-रूपये का चेक जारी कर, परिवादी को भुगतान कर दिया गया।
(8) और फिर परिवादी की मांग के अनुसार, दुर्घटना दावा प्रकरण के निराकरण के लिए पुलिस के अंतिम निश्कर्श की रिपोर्ट वनोपज समिति द्वारा प्राप्त की जाकर, जिला युनियन को प्रस्तुत किया गया है, जो कि-पुलिस अधीक्षक के प्रतिवेदन की प्रति प्रदर्ष सी-2 से स्पश्ट है कि-वह दिनांक-07.03.2013 की है, तो जुलार्इ-2012 में क्लेम आवेदन भेजते समय उक्त रिपोर्ट परिवादी के पास उपलब्ध ही नहीं थी। और जहां परिवादी की पतिन की कुएं में डूबने से मृत्यु का मामला रहा है, तो उक्त मृत्यु दुर्घटनाजन्य होना पुलिस जांच के अंतिम प्रतिवेदन से ही स्पश्ट हो सकता था, तो दुर्घटना हितलाभ की राषि के भुगतान के लिए पुलिस के अंतिम जांच प्रतिवेदन की अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा मांग किया जाना किसी भी तरह अनुचित या अनावष्यक रहा होना नहीं कहा जा सकता।
(9) अनावेदक-पक्ष के जवाब में यही आधार है कि-पुलिस अधीक्षक के उक्त प्रतिवेदन दिनांक-07.03.2013 नोडल अधिकारी, जिला युनियन, लघु वनोपज से अनावेदक बीमा कम्पनी को कभी भी प्राप्त नहीं हुआ, जो कि- जिला युनियन से अनावेदक बीमा कम्पनी के कार्यालय को पुलिस अधीक्षक का अंतिम अन्वेशण रिपोर्ट का वास्तव में प्रेशण किया गया हो, ऐसा दर्षाने परिवादी-पक्ष की ओर से कोर्इ भी प्रमाण जिला युनियन का प्रेशण-पत्र, डाक रजिस्टर व पोस्टल रसीद के कोर्इ दस्तावेज पेष नहीं किये गये, तो प्राथमिक वनोपज समिति द्वारा, परिवादी को प्रदर्ष सी-1 के पत्र के द्वारा प्रेशित जानकारी के पत्र में दिनांक-28.03.2013 को जिला युनियन के पत्र के साथ पुलिस की अंतिम रिपोर्ट भेज देने की जो लिखित सूचना परिवादी को दी गर्इ, तो ऐसी सूचना स्वयं में पुलिस के अंतिम रिपोर्ट के प्रेशण का कोर्इ प्रमाण नहीं है। और सूचना के सत्यता के संबंध में प्रेशण के आधार दस्तावेज-डाकबुक व पोस्टल रसीद न तो परिवादी ने जिला युनियन से प्राप्त कर पेष की, न ही जिला युनियन (नोडल अधिकारी) को मामले में पक्षकार बनाया। और स्वयं परिवाद में परिवादी का ऐसा कथन नहीं है कि- जिला युनियन द्वारा, दिनांक-28.03.2013 को या अन्य कभी पुलिस की अंतिम जांच प्रतिवेदन अनावेदक को प्रेशित की गर्इ, बलिक परिवाद में परिवादी द्वारा अंतिम जांच प्रतिवेदन आदि दस्तावेज अनावेदक को प्रेशित कर दिये जाने का आधारहीन, मनमाना उल्लेख कर दिया गया, जिसके संबंध में पुलिस के अंतिम जांच प्रतिवेदन के प्रेशण के कोर्इ दस्तावेज ही परिवादी-पक्ष की ओर से पेष नहीं। अत: परिवाद पेष करने के पूर्व परिवादी या नोडल एजेन्सी द्वारा, अनावेदक बीमा कम्पनी को पुलिस के अंतिम जांच प्रतिवेदन वास्तव में भेजा जाना ही स्थापित नहीं है, इसलिए दुर्घटना हितलाभ की राषि का भुगतान करने में अनावेदक की ओर से कोर्इ अनुचित विलम्ब किया जाना और परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(10) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक द्वारा इस पीठ में जमा कराये गये दुर्घटना
हितलाभ की बीमा राषि 21,500-रूपये (इक्कीस
हजार पांच सौ रूपये) परिवादी प्राप्त करे।
(ब) अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में
कमी किया जाना स्थापित नहीं, इसलिए परिवादी,
अनावेदक से अन्य कोर्इ हर्जाना पाने का अधिकारी
नहीं। और उभयपक्ष अपना-अपना कार्यवाही-व्यय
वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
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(म0प्र0) (म0प्र0)
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