Rajasthan

Churu

286/2013

FULWATI - Complainant(s)

Versus

RELIANCE LIFE INS.CO. - Opp.Party(s)

SANJAY SIHAG

17 Dec 2014

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- शिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-  286/2013
फूलवती पत्नि स्व. श्री प्रताप सिंह जाति जाट उम्र 45 वर्ष निवासी मून्दीताल तहसील राजगढ़ चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थीया
बनाम
 
1.    शाखा प्रबन्धक, रिलाईन्स लाईफ इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. रजिस्टर्ड आॅफिस एच. ब्लोक प्रथम मंजिल धीरूभाई अम्बानी, नोलेज सिटी नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) 400710
2.    रोहित कुमार पुत्र परमानन्द गांव/पोस्ट ढ़ाणी मोजी तहसील राजगढ़ जिला चूरू (राजस्थान)                                                  
......अप्रार्थीगण
दिनांक- 23.04.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- शिव शंकर
1.    श्री नरेन्द्र सिहाग एडवोकेट - प्रार्थीया की ओर से
2.    श्री सुरेश कल्ला एडवोकेट व श्री जितेन्द्र पूनियां एडवोकेट - अप्रार्थीगण की ओर से
 
1.    प्रार्थीया ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थीया गांव मून्दीताल तहसील राजगढ़ जिला चूरू की निवासीनी है तथा अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी है जो जीवन रक्षा हेतु बीमा करती है तथा अप्रार्थी संख्या 2 अप्रार्थी संख्या 1 का एजेन्ट है जो अप्रार्थी संख्या 1 को बीमा उपलब्ध करवाता है। प्रार्थीया के पति स्व. प्रताप सिंह ने अप्रार्थी संख्या 2 के जरिये अप्रार्थी संख्या 1 के यहां अपने जीवन की बीमा दिनांक 05.01.2012 को करवाई जिसके पोलिसी नम्बर 19662554 है जिसका अर्द्धवार्षिक प्रीमियम 12,050 रूप्ये अप्रार्थी संख्या 2 के जरिये राजगढ़ में जमा करवाया जिसमें रिलाईन्स कैस फलो प्लान के रूप में 2,50,000 रूपये एवं एक्सीडेन्ट बेनीफिट राईटर के रूप में 2,00,000 रूपये कुल 4,50,000 रूपये की रिस्क कवर का प्रीमियम लेकर बीमा किया गया। प्रार्थीया का पति दिनांक 16.02.2012 को बीमार हो यगा जिसके कारण प्रार्थीया के पति की दिनांक 27.04.2012 को मृत्यु हो गई जिसकी तत्काल अप्रार्थीगण को सूचना दी गई तथा अप्रार्थीगण द्वारा जांच भी की गई। प्रार्थीया स्व. प्रताप सिंह की पत्नि होने तथा प्रताप सिंह की जीवन बीमा पोलिसी में नोमिनी होने से अपने पति की बीमा अवधि में मृत्यु होने से उसके क्लेम प्राप्ति हेतु निर्धारित प्रारूप में अप्रार्थी संख्या 1 के यहां दावा पेश किया तथा अप्रार्थीगण द्वारा मांगे गये सम्पूर्ण दस्तावेजात प्रार्थीया द्वारा अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा दिये गये।
2.    आगे प्रार्थीया ने बताया कि प्रार्थीया द्वारा अप्रार्थीगण द्वारा चाहे गये सम्पूर्ण दस्तावेजात अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा देने के पश्चात प्रार्थीया द्वारा अपने पति की मृत्यु के क्लेम हेतु अप्रार्थीगण से सम्पर्क कर जब भी निवेदन किया तब अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया को सही कहा जाता रहा की कार्यवाही चल रही है जल्द ही क्लेम राशि का भुगतान कर दिया जावेगा। अप्रार्थीगण द्वारा मांगे गये सम्पूर्ण दस्तावेजात प्रार्थीया द्वारा अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा देने के पश्चात तथा बार-बार लिखित एवं मौखिक निवेदन के पश्चात भी अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया के पति की मृत्यु की क्लेम दावा राशि 4,50,000 रूपये का प्रार्थीया को भुगतान नहीं करने पर प्रार्थीया द्वारा अपने अधिवक्ता के जरिये एक रजिस्टर्ड नोटिस अप्रार्थी संख्या 1 को दिनांक 31.07.2013 को दिया जो अप्रार्थी को दिनांक 05.08.2013 को प्राप्त हो गया जिसकी प्राप्ति बाबत ए.डी. रसीद प्रार्थीया को वापस प्राप्त हो गई परन्तु नोटिस प्राप्ति के बाद भी अप्रार्थीगण द्वारा ना तो कोई जवाब दिया तथा ना ही प्रार्थीया के पति की मृत्यु क्लेम राशि 4,50,000 रूपये का भुगतान किया। प्रार्थीया के पति की दिनांक 27.04.2012 को मृत्यु होते ही प्रार्थीया द्वारा तत्काल अप्रार्थीगण को सूचना देने तथा अप्रार्थीगण द्वारा मांगे गये सम्पूर्ण दस्तावेजात अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा देने के पश्चात अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया के पति की मृत्यु क्लेम राशि 4,50,000 रूपये का प्रार्थीया को भुगतान कर देना चाहिये था जो ना कर अप्रार्थीगण द्वारा सेवा में गम्भीर त्रुटि की है। इसलिए प्रार्थीया ने अपने पति के जीवन बीमा पाॅलिसी पर 4,50,000/-रू मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय दिलाने की मांग की है।
3.    अप्रार्थी ने प्रार्थीया के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश कर बताया कि That at the very outset it is submitted that after the perusal of the documents provided by the complainant and procured during the investigation, opposite party came to know through treatment documents of DLA issued by PMB Hospital, Bikaner and procured during the investigation, opposite party came to know that DLA was suffering from Ulcer flow of Mouth Problem since last 2 months and further had a history of Migraine from last 12 years. Opposite party further came to know through these documents that DLA had taken treatment from Jindal Hospital, Hisar and gone through Biopsy. DLA had taken treatment at PBM Hospital, Bikaner from 16.02.2012 to died on 27.04.2012. Hence it is crystal clear that DLA had a history of Cancer and Migraine much prior to signing of the proposal form and said fact malafidely concealed by DLA at the time of issuance of the said policy. That it is submitted that the contract of insurance including the contract of life assurance are contracts uberrima fides and every material fact must be disclosed otherwise there is good ground for rescission of the contract. In the Proposal Form. Mr. Pratap Singh had given declaration that he had made complete, true and accurate disclosure of all the facts and circumstances as may be relevant for the acceptability ol the risk and had not withheld any information as may be relevant for the acceptahility of proposal. I he following questions were answered as 'No' on page 3 in Section of LIFE STYLEQUESTIONS AND PERSONAL MEDICAL HISTORY OF THE LIFE TO BE ASSURED.
4-    It is further submitted that claim tiled by complainant being an early claim and also after perusal of the documents submitted by the Complainant, the Opposite Party got an investigation through Alpine. After the perusal of the treatment documents of DLA issued by PMB Hospital. Bikaner and procured during the in\estimation. opposite party Came to know that DLA WAS SUFFERING FROM ULEER FLOW OF MOUTH PROBLEM since last 2 months and further had a history of Migraine from last 12 years. Opposite party further came to know through these documents that DLA had taken treatment from Jindal Hospital, Hisar and gone through Biopsy. DLA had taken treatment at PBM Hospital, Bikaner from 16.02.2012 to 26.04.2012 and died on 27.04.2012. It is pertinent to mention here that questions asked related to health conditions of DLA on proposal form dated 2.01.2012 was replied as “NO”. Hence it is crystal clear that DLA was had a history of cancer and Migraine much prior to signing of the proposal form and said fact malafidely concealed by DLA at the time of issuance of the said policy. Opposite party, on the basis of documents collected during the investigation of the matter was convinced that there was non disclosure of earlier disease by DLA and DLA was suffering from Cancer and Migraine much prior to signing the proposal form. Opposite Party repudiated the claim on31.05.2013 on grounds of suppression of material facts by the DLA while filling up the Proposal Form based on which the said Policy was issued. It is submitted that there has been a willful concealment of vital information at the time of filling up the Proposal Form by the DLA i.e. non-disclosure of being an old patient of Cancer and Migraine prior to the signing of the Proposal Form which amounts to material non-disclosure. Had the Opposite Part) knew about the DLA's past medical history at the proposal stage, the policy would not ha\e been issued as proposed'.’ It is further submitted that opposite party repudiate the claim of complainant based on valid ground mentioned in the paras and there is not deficiency in service provided by the opposite party.  अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थीया का परिवाद तथ्यो से परे होने के आधार पर खारिज करने की मांग की है।
5.    अप्रार्थी सं. 2 ने जवाब पेश कर बताया कि इस प्रकरण में मैने मृतक प्रताप सिंह के जीवन की जोखिम व अन्य परिलाभो हेतु पाॅलिसी की थी जो रिलाईन्स लाईफ इन्श्योरेन्स कम्पनी के नियमो के अधिन कम्पनी के आॅफिसर्स की देखरेख मे बतौर कम्पनी प्रतिनिधि कम्पनी हित को ध्यान मे रखते हुऐ मृतक की पाॅलिसी कर नियमानुसार कार्यवाही की है फार्म से लेकर क्लेम आदि की कार्यवाही जो मेरे द्वारा की गई है वो सही की गई है। बीमा पाॅलिसी के समय मृतक प्रताप सिंह कम्पनी के समस्त मापदण्डो को पूर्ण कर रहा था अर्थात् उक्त स्वास्थ्य हैसियत आदि के अनुसंधान/जाॅच करवाई जाकर ही पाॅलिसी दी गई थी। इसलिए अप्रार्थी संख्या 2 अपनी हद तक परिवाद खारिज करने की मांग की है।
6.    प्रार्थीया ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, पत्र दिनांक 31.05.2013, फोटो प्रति फाॅर्म सी. बी. कैन्सिल चैक की प्रति, मृत्यु प्रमाण-पत्र, पोलिसी सेड्यूल, प्रस्ताव पत्र, ए.डी. रसीद, विधिक नोटिस दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी के द्वारा शिव कुमार व प्रताप सिंह का शपथ-पत्र, प्रदर्स एनेक्सर 1 से एनेक्सर 7 दस्तावेजात दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
7.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
8.    प्रार्थीया अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थीया के स्व. पति प्रताप सिंह ने अप्रार्थी संख्या 2 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 1 से एक बीमा पोलिसी संख्या 19662554 दिनांक 05.01.2012 को क्रय की थी। प्रश्नगत पोलिसी में अप्रार्थी संख्या एक के द्वारा 2,50,000 रूपये का बीमा पोलिसी धारक की मृत्यु पर एक्सीडेन्ट बेनिफिट राइडर के रूप में 2,00,000 रूपये का अतिरिक्त बीमा का प्रावधान रखा गया था। प्रार्थीया के पति की दिनांक 27.04.2012 को बीमारी के कारण मृत्यु हो गयी जिस पर प्रार्थीया ने प्रश्नगत पोलिसी में नोमिनी होने के आधार पर अप्रार्थीगण के यहां समस्त दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए क्लेम की मांग की। अप्रार्थीगण द्वारा बार-बार प्रार्थीया को क्लेम हेतु आश्वासन दिया जाता रहा परन्तु क्लेम का भुगतान नहीं किया गया जिस पर प्रार्थीया ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 31.03.2013 को एक विधिक नोटिस भी क्लेम हेतु दिया गया। उसके बावजूद भी अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया को क्लेम की अदायगी नहीं की गयी। प्रार्थीया अधिवक्ता ने यह भी तर्क अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया के क्लेम को इस आधार पर खारिज कर दिया कि प्रार्थीया के पति के द्वारा प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व दिसम्बर 2011 से कैंसर की बीमारी हेतु ईलाज लिया गया था। जिस तथ्य को प्रार्थीया के पति द्वारा प्रश्नगत पोलिसी क्रय करते समय छुपाया गया। जबकि प्रार्थीया के पति के द्वारा प्रश्नगत पोलिसी के प्रस्ताव से पूर्व कभी भी कैंसर की बीमारी के सम्बंध में कोई ईलाज नहीं लिया गया और ना ही पोलिसी धारक को प्रश्नगत पोलिसी क्रय करते समय इस तथ्य का ज्ञान रहा कि उसे कैंसर है। फिर भी अप्रार्थीगण ने गलत आधार पर प्रार्थीया का क्लेम अस्वीकार कर दिया जो अप्रार्थीगण का स्पष्ट रूप से सेवादोष है। इसलिए प्रार्थीया अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया।
9.    अप्रार्थी संख्या 1 अधिवक्ता ने अपनी लिखित बहस प्रस्तुत की है लिखित बहस में यह बताया गया है कि प्रार्थीया का क्लेम पूर्व क्लेम होने के कारण और प्रार्थीया द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के अध्यन के पश्चात अप्रार्थी ने एल्पाइन के द्वारा जांच कराई। पी.बी.एम. हाॅस्पिटल, बीकानेर द्वारा जारी डी.एल.ए. उपचार सम्बंधी दस्तावेजों एवं जांच के दौरान पाये गये दस्तावेजों के अध्ययन के पश्चात अप्रार्थी ने जाना कि डी.एल.ए. मुंह में फोड़ा होने के रोग से पिछले 2 माह से पीडि़त था और वह पिछले 12 वर्षों से माइग्रेन रोग से भी पीडि़त था, और अप्रार्थी ने इन दस्तावेजों से आगे यह जाना कि डी.एल.ए. ने जिंदल हाॅस्पिटल हिसारद से उपचार लिया था और उसकी बाॅऐप्सी भी हुई थी। डी.एल.ए. ने पी.बी.एम. हाॅस्पिटल बीकानेर से दिनांक 16.02.2012 से 26.04.2012 उपचार लिया था और उसकी मृत्यु दिनांक 27.04.2012 को हुई। पी.बी.एम. हाॅस्पिटल बीकानेर द्वारा जारी डी.एल.ए. क उपचार के दस्तावेजों की प्रति संलग्नक ओ.पी. 4 में संलग्न है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि प्रस्ताव प्रपत्र दिनांक 02.01.2012 में डी.एल.ए. के स्वास्थ्य सम्बंधी स्थिति के बारे में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर डी.एल.ए. ने ना में दिया इस प्रकार साफ तौर पर स्पष्ट है कि डी.एल.ए. प्रस्ताव प्रपत्र पर हस्ताक्षरित करने से बहुत पहले कैन्सर एवं माइग्रेन रोग से पीडि़त था और उक्त तथ्य का दुर्भावना पूर्ण इरादे से डी.एल.ए. द्वारा उक्त पाॅलिसी जारी करते समय छिपाया गया। जांच रिपोर्ट की प्रति, जांचकर्ता के शपथ-पत्र के साथ संलग्नक ओ.पी. 5 एवं ओ.पी. 6 में संलग्न है, माननीय राष्ट्रीय आयोग ने इस विशिष्ट माामले में एक विस्तृत निर्णय एक प्रकरण ‘‘श्रीमति देवम्मा बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम‘‘ की रिवीजन पेटीशन संख्या 4323/2012 में दिया जो कि न्यायमूर्ति श्री के.एस. चोधरी द्वारा घोषित किया गया, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि बीमा कम्पनी फिर भी यह मानती है कि मृत्यु का कारण कैंसर था, ना कि आत्महत्या। हालांकि यदि प्रार्थीया ने इस स्पष्टीकरण पर विश्वास किया जाये कि मृत्यु का कारण आत्महत्या थी, फिर भी पाॅलिसी धारक इस बात से दोषमुक्त नहीं हो सकता है कि उक्त पोलिसी को प्राप्ति के समय प्रार्थी को बीमा कम्पनी को सही जानकारी देने का दायित्व था।
10. आगे बहस में लिखा है कि प्रकरण की जांच के दौरान एकत्रित तथ्यों के आधार पर यह विश्वास हो गया कि डी.एल.ए. द्वारा पूर्व से चल रही बीमारी को गुप्त रखा गया था और डी.एल.ए. प्रस्ताव प्रपत्र पर बीमारी को गुप्त रखा गया था और डी.एल.ए. प्रस्ताव प्रपत्र पर हस्ताक्षर करने के बहुत पहले से सैन्स और माइग्रेन रोग से पीडि़त था। अप्रार्थी ने दिनांक 31.05.2013 को क्लेम को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि प्रस्ताव प्रपत्र भरते समय तथ्यों को छुपाया। प्रस्ताव प्रपत्र पर हस्ताक्षर करने से बहुत पहले से कैंसर एवं माइग्रेन का पुराना रोगी होने के तथ्य को छुपाया गोपनीयता की श्रेणी में आता है। यदि अप्रार्थी को प्रस्ताव पकी स्थिति में डी.एल.ए. की भूतपूर्व मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानकारी तो यह पाॅलिसी जारी नहीं की जाती। अस्वीकारोक्ति पत्र दिनांक 31.05.2013 की प्रति संलग्न ओ.पी. 1 में संलग्न है। पूर्व में हुये रोगों को छुपाया महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाने की श्रेणी में आता है, और इस प्रकार बीमा अनुबन्ध (पाॅलिसी) बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 के तहत समाप्त किये जाने योग्य है, और किसी लाभ के भुगतान योग्य नहीं है। बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 माननीय मंच के समक्ष अध्ययन हेतु प्रस्तुत है। धारा 45 इस प्रकार है- ‘‘कोई भी जीवन बीमा पाॅलिसी इस एक्ट के शुरू होने से पहले इस एक्ट के आरम्भ होने की समय सीमा 2 वर्ष के बाद प्रभावी नहीं मानी जायेगी जानबूझकर एवं दुर्भावनापूर्ण इरादें से अन्य बीमा कम्पनियों द्वारा जारी उसकों जारी पाॅलिसीयो ंके विवरण को गुप्त रखा। यह महत्वूपर्ण तथ्यों को जानबूझकर छिपानें की श्रेणी में आता है, जबकि उसे सही तथ्य की जानकारी थी।‘‘ भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 के अनुसार वैद्य अनुबन्ध का एक महत्वपूर्ण बिन्दु स्वतन्त्र सहमति है। जब करार पर सहमति धोखें या गलत विवरण के कारण ली गई हो तो अनुबन्ध का करार अमान्य योग्य है, जो कि उस पक्ष की इच्छा पर है, जिसकी सहमति इस कारण से ली गई हो क्योंकि यह स्वतन्त्र सहमति नहीं है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उक्त आधारों पर अपनी लिखित बहस के माध्यम से प्रार्थीया का परिवाद खारिज करने की मांग की। अप्रार्थी संख्या 2 अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यही दिया कि अप्रार्थी संख्या 2 ने एजेन्ट की हैसियत से कम्पनी के प्रतिनिधि के हित को ध्यान मंे रखते हुए बीमा किया था व क्लेम आदि की समस्त कार्यवाही अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा की गयी थी। बीमा पोलिसी के समय पोलिसी धारक कम्पनी के समस्त मापदण्डों को पूर्ण कर रहा था। अर्थात् पोेलिसी धारक उम्र, स्वास्थ्य, हैसियत आदि के मापदण्ड पूर्ण कर रहा था। जिसके नियमानुसार अनुसंधान जांच करवायी जाकर ही पोलिसी दी गयी थी। अप्रार्थी संख्या 2 का कोई सेवादोष नहीं है। अपनी हद तक परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
11. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थीया के स्व. पति प्रताप सिंह के द्वारा अप्रार्थीगण से प्रश्नगत पोलिसी संख्या 19662554 क्रय किया जाना, पोलिसी अवधि में ही दिनांक 27.04.2012 को पोलिसी धारक की मृत्यु होना, दिनांक 31.05.2013 के पत्र द्वारा प्रार्थीया का क्लेम अस्वीकार करना स्वीकृत तथ्य है। वर्तमान प्रकरण में विवादक बिन्दु यह है कि पोलिसी धारक ने प्रश्नगत पोलिसी क्रय करते समय अपनी पूर्व की बीमारीयों के तथ्य को छिपाया। अर्थात् पोलिसी धारक ने तात्विक तथ्यों को छुपाते हुए प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त की जो कि बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 के तहत बीमा अनुबन्ध शुन्य है। यदि बीमा कम्पनी द्वारा तात्विक तथ्यों को छुपाने के सम्बंध में कोई आधार लिया जाता है तो उक्त तथ्यों को साबित करने का भार भी विधि अनुसार अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी पर होता है। ऐसा ही मत माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने न्यायिक दृष्टान्त एल0 आई0 सी0 बनाम श्रीमति जी एम चन्ना बसीमा 1996 (3) सीपीजे पेज 8 सुप्रीम कोर्ट में दिया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने उक्त निर्णय में यह मत दिया है कि ज्ीम वदने चतवइंदकपए पद बंेमे व ितिंनकनसमदज ेनचचतमेेपवद व िउंजमतपंस ंिबजे तमेजे ीमंअपसल वद चंतजल ंससमहपदह तिंनक दंउमसल जीम पदेनतमतण् प्द जीपे तमेचमबजए जीम कमबपेपवद व िजीम भ्वदष्इसम ैनचतमउम बवनतज पद स्प्ब् अेण् ैउजण् ळण्डण् बींददंइंेमउउं ;1996;प्प्प्द्ध ब्च्श्र 8 ;ैब्द्ध उंल इम तममिततमक जव ूीमतम पज ूंे ीमंसक जींज जीम इनतकमद व िचतवअपदह जींज जीम पदेनतमक ींक उंकम ंिसेम तमचतमेमदजंजपवद ंदक ेनचचतमेेमक उंजमतपंस ंिबजे पे नदकवनइजमकसल वद जीम स्प्ब् व िपदकपंण् थ्नतजीमतउवतमए उमतम बवदबमंसउमदज व िेवउम ंिबजे ूपसस दवज ंउवनज जव बवदबमंसउमदज व िउंजमतपंस ंिबजे ंदक प िजीमतम पे तिंनकनसमदज ेनचचतमेेपवद व िउंजमतपंस ंिबजे पद जीम चतवचवेंसए जीम चवसपबल बवनसक इम अपजपंजमक वजीमतूपेम दवजण् अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी ने अपने तथ्य को साबित करने हेतु पत्रावली पर जो साक्ष्य दी है। उसमें एनेक्सर 1 बीमा प्रस्ताव पत्र, एनेक्सर 3 क्लेम फाॅर्म, एनेक्सर 4 ईलाज की रसीद, एनेक्सर 5 फाईनल रिपोर्ट दस्तावेजी साक्ष्य के रूप मंे प्रस्तुत की है। जिनका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। एनेक्सर 1 बीमा प्रस्ताव पत्र जो कि प्रार्थीया के स्व. पति द्वारा दिनांक 02.01.2012 को हस्ताक्षरित किया गया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने उस प्रस्ताव पत्र की चरण संख्या 28 व 30 के सम्बंध में तर्क दिया कि बीमित व्यक्ति ने अपनी जीवन शैली व व्यक्तिगत मेडिकल व इतिहास के प्रश्नों का उत्तर ‘‘नहीं‘‘ में दिया है। हम प्रस्ताव पत्र की चरण संख्या 28 व 30 का विवरण दिया जाना उचित समझते है। 28 इस प्रकार है- ।तम लवन बनततमदजसल जंापदह ंदल उमकपबंजपवद वत कतनहेए वजीमत जींद उपदवत बवदकपजपवदेए ;मण्हण् बवसके ंदक सिनद्धण् मपजीमत चतमेबतपइमक वत दवज चतमेबतपइमक इल ं कवबजवत वत ींअम लवन ेनििमतमक तिवउ ंदल पससदमेेए कपेवतकमतए कपेंइपसपजल वत पदरनतल कनतपदह जीम चंेज 5 लमंते ूीपबी ींे तमुनपतमक ंदल वितउ व िउमकपबंस वत ेचमबपंसप्रमक मगंउपदंजपवद ;पदबसनकपदह बीमेज ग्.तंलेए हलदमबवसवहपबंस पदअमेजपहंजपवदेए चंच ेउमंतए वत इसववक जमेजेद्धए बवदेनसजंजपवदए ीवेचपजंसप्रंजपवद वत ेनतहमतलघ् अथवा 30 इस प्रकार है- क्व लवन ेनििमत तिवउ ंदल उमकपबंस ंपसउमदजे महण् कपंइमजमेए ीपही इसववक चतमेेनतमए बंदबमतए तमेचसंजवतल कपेमंेम ;पदबसनकपदह ंेजीउंद्धए ज्ञपकदमल वत सपअमत क्पेमंेमए ैजतवामए ंदल इसववक कपेवतकमतए ीमंतज च्तवइसमउेए भ्मचंजपजपे ठ वतए ज्नइमतबनसवेपेए च्ेलबीपंजतबप क्पेवतकमतए क्मचतमेेपवदए भ्प्ट ।प्क्ै वत ं तमसंजमक पदमिबजपवदघ् अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त शर्तों के प्रपेक्ष में तर्क दिया कि पोलिसी धारक प्रस्ताव पत्र पर हस्ताक्षर करने से पूर्व कैंसर की बीमारी से पीडि़त था उसके बावजूद भी पोलिसी धारक ने प्रस्ताव पत्र में अंकित स्वास्थ्य सम्बंध उक्त प्रश्नों का उत्तर नहीं में दिया। इसी प्रकार एनेक्सर 3 क्लेम फाॅर्म प्रार्थीया के द्वारा अप्रार्थीगण के यहां प्रस्तुत किया गया है। जो आचार्य तुलसीदास कैंसर हाॅस्पिटल, बीकानेर के द्वारा जारी किया है जिसमें पोलिसी धारक को प्रथम बार दिनांक 16.02.2012 को चैक करना व उसके मुंह पर दो माह से दर्द होना अंकित किया हुआ है और पोलिसी धारक का दिनांक 16.02.2012 को प्रथम बार भर्ती किया गया। इसी प्रकार एनेक्सर 4 इस प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो जिंदल हाॅस्पिटल हिसार से दिनांक 16.02.2012 को जारी किया गया है जिसमें पोलिसी धारक की दिनांक 09.02.2012 को प्रथम बार बाॅयस्पी किया जाना अंकित किया हुआ है और बाॅयस्पी रिपोर्ट में ळतवूजी थ्सववत व िउवनजी ैफ ब्मसस ब्।ण् ळ.366ध्श्र .136 अंकित किया हुआ है। इसी प्रकार मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण-पत्र जो कि दिनांक 25.04.2012 को जारी किया गया है जिसमें प्रार्थीया के पति का अवकाश देना दिनांक 19.03.2012 से 26.04.2012 तक कुल 39 दिन का स्वीकृत किया हुआ है। एनेक्सर 5 जो कि अप्रार्थीगण के सर्वेयर नरेश द्वारा प्रार्थीया के पति के प्रकरण की विस्तृत जांच की गयी। जिसमें सर्वेयर ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि प्रार्थीया के पति को डेथ से पूर्व फरवरी 2012 में हिसार हाॅस्पिटल व पी.बी.एम. हाॅस्पिटल बीकानेर में दिनांक 19.03.2012 से 26.04.2012 तक भर्ती रखा गया। सर्वेयर ने अन्त में यह रिपोर्ट दी है कि पोलिसी धारक के द्वारा हिसार व बीकानेर हाॅस्पिटल के अतिरिक्त अन्य किसी भी हाॅस्पिटल में जांच के सम्बंध में कोई रिकाॅर्ड प्राप्त नहीं हुआ। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने उपरोक्त दस्तावेजों के आधार पर तर्क दिया कि प्रार्थीया का पति प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व कैंसर से पीडि़त रहा हैै जो कि स्पष्ट रूप से धारा 45 इन्श्योरेन्स एक्ट के अनुसार प्रार्थीया की प्रश्नगत पोलिसी शुन्य की परिभाषा में आती है अर्थात् प्रार्थीया कोई लाभ प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
12. अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी लिखित बहस में माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायिक दृष्टान्त सतवन्त कौर सन्धु बनाम न्यू इण्डिया इन्श्योरेन्स क.लि. 2009 सी.पी.जे. 8 एस.सी.सी. पेज 316 व माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय ‘‘श्रीमति देवम्मा बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम‘‘ की रिवीजन पेटीशन संख्या 4323/2012 का हवाला दिया है जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। रिवीजन पेटिशन 4323/2012 में न्यायमूर्ति श्री के.एस. चैधरी द्वारा घोषित किया गया, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि बीमा कम्पनी फिर भी यह मानती है कि मृत्यु का कारण कैंसर था, ना कि आत्महत्या। हालांकि यदि प्रार्थी ने इस स्पष्टीकरण पर विश्वास किया जाये कि मृत्यु का कारण आत्महत्या थी, फिर भी पाॅलिसी धारक इस बात से दोषमुक्त नहीं हो सकता है कि उक्त पोलिसी को प्राप्ति के समय प्रार्थी को बीमा कम्पनी को सही जानकारी देने का दायित्व था। अप्रार्थीगण अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त वर्तमान प्रकरण के तथ्येां से भिन्न होने के कारण चस्पा नहीं होते है।
13. प्रार्थीया अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यही दिया कि अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया के पति की बीमारी के सम्बंध में जो दस्तावेज प्रस्तुत किये गये है वह सभी दस्तावेज प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने के पश्चात के है अर्थात् पोलिसी क्रय करने से पूर्व पोलिसी धारक को इस तथ्य का ज्ञान नहीं था कि वह कैंसर से पीडि़त है। स्वंय अप्रार्थीगण अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज एनेक्सर 3 व 4 से यह तथ्य साबित है। हम प्रार्थीया अधिवक्ता के उक्त तर्कों से सहमत है क्योंकि अप्रार्थी अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत एनेक्सर 4 जो कि जिन्दल हाॅस्पिटल हिसार के द्वारा जारी किया गया मेडिकल रिपोर्ट है जो दिनांक 16.02.2012 की है जिसमें पोलिसी धारक की दिनांक 09.02.2012 को प्रथम बार बाॅयस्पी किया जाना अंकित है। कैंसर बीमारी का ज्ञान किसी भी व्यक्ति को तब तक नहीं हो सकता जब तक की उसका बाॅयस्पी जांच नहीं की जाती। फिर वर्तमान प्रकरण में पोलिसी धारक को कैंसर होने का ज्ञान प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व किस प्रकार हो सकता है। अप्रार्थीगण द्वारा पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह साबित हो कि प्रार्थीया के पति को प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व कैंसर की बीमारी होने का ज्ञान था। इसके अतिरिक्त स्वंय अप्रार्थी के सर्वेयर नरेश ने अपनी रिपोर्ट दिनांक 23.03.2013 के अन्त मंे यह स्पष्ट अंकित किया है कि उसके द्वारा प्रार्थीया के नजदीक के हाॅस्पिटल राजगढ़, बीकानेर, चूरू, हिसार आदि की जांच करने पर ऐसा केाई रिकाॅर्ड नहीं पाया गया जिसमें पोलिसी धारक ने प्रश्नगत पोलिसी क्रय करने से पूर्व कोई ईलाज लिया हो। इसके अतिरिक्त अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिकृत एजेन्ट अप्रार्थी संख्या 2 ने अपने जवाब व बहस में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि प्रश्नगत पोलिसी जारी करने से पूर्व बीमाधारी का चिकित्सक परीक्षण भी करवाया था और पूर्ण रूप से जांच करने के पश्चात ही प्रश्नगत पोलीसी जारी की गयी थी। इस सम्बंध में हम माननीय राष्ट्रीय आयोग के न्यायिक दृष्टान्त 3 सी.पी.जे. 2014 पेज 221 एन.सी. बजाज एलाईंस लाईफ इन्श्योरेन्स काॅरपोरेशन एण्ड अदर्स बनाम राजकुमार का हवाला देना उचित समझते है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्धारित किया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिकृत डाॅक्टर द्वारा बीमाधारी के स्वास्थ्य की जांच उपरान्त पोलिसी जारी की जाती है तो बीमा कम्पनी पूर्व बीमारी के आधार पर क्लेम खारिज नहीं कर सकती।
14. इसी प्रकार माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त 4 सी.पी.जे. 2014 पेज 580 एन.सी. आई.सी.आई.सी.आई. प्रुडेन्शियल लाईफ इन्श्योरेन्स बनाम विना शर्मा एण्ड अदर्स में राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्धारित किया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा जब तक कोई विश्वसनीय साक्ष्य पूर्व बीमारी के सम्बंध में प्रस्तुत नहीं कर दी जाती तब तक यह नहीं माना जा सकता कि बीमाधारी द्वारा तात्विक तथ्यों को छुपाया गया है। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण पर पूर्णत चस्पा होते है क्योंकि वर्तमान प्रकरण में भी अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा ऐसा कोई विश्वसनीय दस्तावेज पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया जिसमें यह साबित हो कि बीमाधारी ने प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करते समय बीमारी के सम्बंध में किसी तात्विक तथ्य को छुपाया हो। अप्रार्थीगण बीमा कम्पनी द्वारा जो दस्तावेज पत्रावली पर प्रस्तुत किये गये है वह दस्तावेज प्रश्नगत पोलिसी के क्रय करने के करीब 2 माह के पश्चात के है। इसलिए मंच की राय में अप्रार्थीगण इस तथ्य को साबित करने मंे विफल रहे है कि प्रार्थीया के पति को प्रश्नगत पोलिसी प्राप्त करने से पूर्व कैंसर की बीमारी थी। अर्थात् उसे अपने कैंसर होने के तथ्य का पूर्व में ज्ञान था। अप्रार्थीगण द्वारा प्रार्थीया के जायज क्लेम को अस्वीकार करना मंच की राय में सेवादोष है। इसलिए प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थी संख्या 1 के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है। चूंकि स्वंय प्रार्थीया ने अपने परिवाद में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उसके पति की मृत्यु बीमारी से हुई है इसलिए प्रार्थीया प्रश्नगत पोलिसी एक्सीडेन्ट बेनिफिट राईडर का लाभ प्राप्त करने की अधिकारणी नहीं है।
           अतः प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थी संख्या 1 के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाकर उसे निम्न अनुतोष दिया जा रहा है।
(क.) अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी को आदेष दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को उसके स्व. पति प्रताप सिंह द्वारा क्रय की गयी बीमा पाॅलिसी संख्या 19662554 ब्ंेम थ्सवू च्संद का बीमा धन 2,50,000 रू. (अखरे दो लाख पच्चास हजार रूपये) समस्त प्रलाभों सहित तथा उक्त राशि पर 9 प्रतिषत वार्षिक दर से साधारण ब्याज आषा गर्ग बनाम यूनाईटेड इंडिया इंष्योरेन्स कम्पनी 2005 सी0 पी0 जे0 पेज 269 एन. सी. की रोषनी में प्रार्थीया के पति की मृत्यु दिनांक 27.04.2012 के 3 माह पश्चात दिनांक 26.07.2012 से ताअदायगी तक अदा करेगी।
(ख.) अप्रार्थी संख्या 1 बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को 10,000 रू. मानसिक प्रतिकर व 5,500 रू. परिवाद व्यय के रूप में भी अदा करेगी। अप्रार्थी संख्या 2 की हद तक परिवाद अस्वीकार कर खारिज किया जाता है।  
             अप्रार्थी संख्या 1 को आदेष दिया जाता है कि वह उक्त आदेश की पालना आदेष कि दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर करेंगे।

 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                शिव शंकर
  सदस्य                 सदस्या                     अध्यक्ष                         
    निर्णय आज दिनांक 23.04.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                शिव शंकर
     सदस्य                सदस्या                     अध्यक्ष     
 

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