प्रकरण क्र.सी.सी./14/36
प्रस्तुती दिनाँक 07.02.2014
सुरेन्द्र मन्डपे आ. जगतनाथ मन्डपे, उम्र 63 वर्ष लगभग, निवासी-एल.आई.जी.-2661, एम.पी.हाऊसिंग बोर्ड प्/ई, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. रिलायंस लाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, द्वारा प्राधिकृत अधिकारी, पता-शिवनाथ काम्पलेक्स, यश बैंक के उपर, सुपेला, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. रिलायंस लाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, द्वारा प्राधिकृत अधिकारी, पता-एच.ब्लाक, पहला माला, धीरूभाई नालेज सिटी, नवी मुम्बई (महा.) 400710 - - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 03 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से अभिकथित दोनों पालिसियों की कम अदा की गई सरेण्डर राशि मय ब्याज, मानसिक पीड़ा, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी एक सीनियर सीटिजन है, उसके द्वारा अनावेदकगण से दो रिलायंस सुपर गोल्ड पाॅलिसियां प्रीमियम राशि देकर प्राप्त किया, जिसे जानी दिनांक से तीन वर्ष पश्चात् उक्त दोनों पालिसियों को सरेंडर किया जा सकता था तथा सरेंडर करने के पश्चात् जमा की गई राशि में से 10 से 20 प्रतिशत वार्षिक लाभांश जोड़ कर बीमा राशि वापस की जानी थी। परिवादी के द्वारा उक्त अभिकथित दोनों पाॅलिसियों को अनावेदकगण के समक्ष सरेण्डर करने पर अनावेदकगण द्वारा सरेंडर चार्ज की राशि काट कर जमा की गई राशि से भी कम राशि परिवादी को भुगतान कर अनावेदकगण द्वारा सेवा में कमी एवं व्यवसायिक कदाचरण किया गया है। अतः परिवादी को अनावेदकगण से अभिकथित दोनों पालिसियों की कम अदा की गई सरेण्डर राशि मय ब्याज, मानसिक पीड़ा, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक क्र.1 व 2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी को जारी पाॅलिसी संबंधी ब्राउजर अनुसार प्रथम तीन वर्ष के पश्चात् पाॅलिसी सरेंटर किये जाने पर फंड वेल्यु की राशि का 20 प्रतिशत सरेंडर चार्ज काटा जाना था तथा परिवादी द्वारा लिया गया प्लान एक मार्केट बेस्ट प्लान होने से उक्त सरेंडर वेल्यु का उस दिनांक पर मार्केट वेल्यु के आधार पर सरेंडर राशि का भुगतान किया जाना था, जिसके अनुसार परिवादी को सरेंडर राशि प्रदान की गई है। इस तरह परिवादी को पाॅलिसी मार्केट बेस्ड प्लान तथा मार्केट वेल्यु के आधार पर सरेंडर राशि पालिसी की नियम एवं शर्त अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी के द्वारा परिवादी को प्रदान कर किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है। अतः परिवादी का परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदकगण से दोनों पालिसियों की कम अदा की गई शेष राशि मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ, आदेशानुसार
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) परिवादी का तर्क है कि उसने अभिकथित दो पालिसी को जब सरेण्डर किया तो जो राशि अनावेदकगण ने अभिकथन की, वह परिवादी द्वारा जमा की गई राशि से कम थी, जबकि पालिसी लेते समय अनावेदकगण ने कथन किया था कि पालिसी जारी करने के दिनांक से तीन वर्ष पश्चात् यदि दो पालिसियों को सरेण्डर किया जाता है तो जमा की गई राशि में 10 से 20 प्रतिशत लाभांश जोड़ कर राशि वापस की जायेगी।
(7) अनावेदक का तर्क है कि अभिकथित पालिसी तीन वर्ष पश्चात् यदि सरेण्डर की जानी थी तो फण्ड वेल्यु राशि का 20 प्रतिशत सरेण्डर चार्ज काटा जाना था और उस दिनांक पर मार्केट वेल्यु के आधार पर सरेण्डर राशि का भुगतान किया जाना था, क्योंकि परिवादी द्वारा लिया गया प्लान एक मार्केट बेस्ड प्लान था और सरेण्डर वेल्यु का भुगतान मार्केट की स्थिति के आधार पर किया जाना था।
(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदकगण ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि जब एनेक्चर-1 और 2 का पालिसी शैड्यूल निष्पादित किया गया उस समय परिवादी को स्पष्ट तौर पर परिवादी द्वारा समझी जाने वाली भाषा में उसे समझाया गया था और यह अभिस्वीकृति ली गई थी कि उसे जानकारी समझ में आ गई है कि अभिकथित प्लान मार्केट बेस्ड प्लान है, यदि हम एनेक्चर-1 और एनेक्चर-2 का अवलोकन करें तो उसमें कहीं भी यह स्पष्ट शब्द में उल्लेखित नहीं है कि यदि परिवादी तीन साल में पालिसी सरेण्डर करता है तो उसे मार्केट वेल्यु के आधार पर सरेण्डर राशि प्रदान की जायेगी।
(9) निर्विवादित रूप से परिवादी सीनियर सीटिज़न है और उसके आर्थिक स्तर के आधार पर कोई भी ऐसी पालिसी लेने की कल्पना नहीं करेगा, जिसमंे जमा की गई राशि से कम राशि सरेण्डर के समय मिले। अनावेदकगण ने यह कहीं भी सिद्ध नहीं किया है कि क्या परिवादी इतना उच्च शिक्षित है कि उसे इतनी अंग्रेजी आती है कि निष्पादित प्रपत्र जो कि अंग्रेजी भाषा में है, जिसके फाॅन्ट इतने सूक्ष्म है, को सूक्ष्मता से पढ़ सके। स्वाभाविक है कि पालिसी लेने के उत्साह में ग्राहक बीमा पालिसी के बारे में जो बातें बताई जाती है उस पर सहज ही विश्वास कर लेता है, परंतु बीमा कंपनी की यह एक बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे ग्राहक को दिग्भ्रमित न कर और साफ और सरल शब्दों में बीमा पालिसी की शर्तों को अपने ग्राहक को समझाएं, यदि हम अनावेदकगण द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन करें तो कहीं भी यह सिद्ध नहीं होता है कि बीमा कराते समय अनावेदकगण ने परिवादी की यह अभिस्वीकृति ली थी कि वह मार्केट वेल्यु के आधार पर ही कोई राशि प्राप्त करने का अधिकारी होगी। यह सामाजिक चेतना का विषय है कि बीमा कंपनी ने जारी दस्तावेजों में मोटे-मोटे अक्षरों में यह अलग से उल्लेखित क्यों नहीं किया कि पाॅलिसी मार्केट वेल्यु के आधार पर है, क्योंकि पाॅलिसी का मुख्य आशय और आधार मार्केट वेल्यु ही था, जिसके द्वारा सरेण्डर होने या मैच्युरिटी पर परिवादी को वापस की जाने वाली राशि की गणना होनी थी, बीमा कंपनी को चाहिए कि अपने दस्तावेजों में प्रथमतः तो ऐसी भाषा का प्रयोग भी करें, जिसे जन साधारण समझ सके एवं दूसरा यह कि भाषा अत्यधिक तकनीकी और क्लिष्ठ न हो, बल्कि जो बीमा का आधार है, वे बातंे ब्लाॅक लेटर में लिखी जाये, ग्राहक को समझाई जाये और फिर ग्राहक ने समझा, ऐसी अभिस्वीकृति प्राप्त की जाये, यदि हम इस प्रकरण के दस्तावेजों का अवलोकन करें तो कहीं भी यह सिद्ध नहीं होगा कि परिवादी को इस बात की जानकारी स्पष्ट की गई कि मार्केट वेल्यु का आधार ही, राशि गणना का होगा, जिससे यह सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी को दिग्भ्रमित किया और अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते परिवादी को स्पष्ट रूप से नहीं समझाया कि यदि वह पालिसी सरेण्डर करेगा तो किस प्रकार की कटौती की जायेगी और किस प्रकार मार्केट वेल्यु के आधार पर गणना की जायेगी।
(10) प्रकरण के अवलोकन से यह भी स्पष्ट होता है कि अनावेदकगण अपने ग्राहक की समस्या के प्रति किसकदर उदासीन है कि उन्होंने परिवादी द्वारा अधिवक्ता मार्फत प्रेषित नोटिस एनेक्चर-7 का जवाब देना भी उचित नहीं समझा।
(11) चूंकि यह सिद्ध होता है कि अनावेदकगण ने परिवादी को पालिसी जारी करते समय समस्त जानकारी भलीभांति नहीं समझाई और न ही परिवादी जैसे वृद्ध व्यक्ति के संबंध में यह सजगता रखी कि वह अनावेदकगण द्वारा निष्पादित कराये जाने वाले प्रपत्र की भाषा की जानकारी रखता है और परिवादी को दिग्भ्रमित कर बीमा पालिसी प्रदान की, फलस्वरूप हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदकगण ने परिवादी के संबंध में घोर व्यवसायिक दुराचरण एवं सेवा में निम्नता की है।
(12) यह निर्विवादित रूप से प्रगट होता है कि अनावेदकगण द्वारा सरेंडर चार्ज की राशि काट कर पाॅलिसी क्र.1 के राशि में 73138रू. एवं पाॅलिसी क्र.2 के राशि में 77,117रू. का भुगतान परिवादी को कर दिया गया है, फलस्वरूप पाॅलिसी क्र.1 की सरेण्डर राशि 1,00,000रू. में प्राप्त की गई राशि 73138रू. के समायोजन पश्चात् शेष राशि 26,862रू. एवं पाॅलिसी क्र.2 की सरेण्डर राशि 1,00,000रू. में प्राप्त की गई राशि 77,117रू. के समायोजन पश्चात् शेष राशि 22,883रू. इस प्रकार कुल 26,862रू. $ 22,883रू. त्र 49,745रू. अनावेदकगण, परिवादी को भुगतान करने हेतु जिम्मेदार है।
(13) फलस्वरूप हम परिवादी का दावा आंशिक रूप से स्वीकार करते हैं और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-
(अ) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को अभिकथित दोनों पालिसियों में से अदा की राशि को समायोजित कर शेष राशि 26,862रू. $ 22,883रू. त्र 49,745रू. (उनचास हजार सात सौ पैतालीस रूपये) अदा करेंगे।
(ब) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को उक्त राशि पर अभिकथित पाॅलिसी जारी करने की दिनांक 12.07.2010 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करेंगे।