जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
हरिसिंह रावत पुत्र श्री सिघा सिंह रावत, जाति- रावत, निवासी- ग्राम बीर गुदली,पुलिस थाना-श्रीनगर, जिला-अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
1. रिलायंस जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिए प्रबन्धक, जिस्टर्ड आॅफिस 19, रिलायन्स सेंटर, वालचंद हीराचंद मार्ग, बलाड़ एस्टेट, मुम्बई-400001 हाल रिलायन्स इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, के.सी. काॅम्पलेक्स, अजमेर ।
2. रिलायंस इंण्डिया इंष्योरेंस कम्पनी जरिए इनके स्थानीय प्रबन्धक, क्वीन्स रोड़, वैषालीनगर, जयपुर ।
3. कोटक महेन्द्रा बैंक लिमिटेड, जयपुर जरिए प्रबन्धक, कोटक महेन्द्रा बैंक लिमिटेड, तृतीय फ्लोर, कृष्णा टाॅवर, 57, सरदारपटेल मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर- 302001
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 452/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री भंवर सिंह गौड़, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री तेजभान भगतानी, अधिवक्ता अप्रार्थी बीमा कम्पनी
3. श्री दिवाकर, अधिवक्ता, अप्रार्थी संख्या 3
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 2.11.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसका वाहन संख्या आर.जे. 01.आर.ए 1542 जो अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां दिनंाक 27.1.1.2009 से 26.112010 तक जरिए बीमा कवर नोट संख्या 109000991798 के बीमित था और उक्त वाहन अप्रार्थी संख्या 3 बैंक के यहां उनसे ऋण प्राप्त कर हाईपोथिकेटेड था, दिनांक 2.7.2010 को प्रातः 7.00 बजे चोरी हो गया। जिसकी काफी तलाष किए जाने व आस पास के लोगों से पूछताछ किए जाने के उपरान्त जब कुछ पता नहीं चला तो उसने पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 87/2010 दिनंाक 19.7.2010 को दर्ज करवाई और पुलिस द्वारा एफआर संबंधित न्यायालय में पेष कर दी । तत्पष्चात् उसने अप्रार्थी बीमा कम्पनी व बैंक को वाहन चोरी की सूचना देते हुए चोरी से संबंधित दस्तावेजात भी उपलब्ध करा दिए जाने के बावजूद भी उसे बीमित राषि का भुगतान नहीं कर सेवा में कमी कारित की है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में प्रार्थी ने स्वयं का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्तियों मे ंदर्षाया है कि प्रार्थी ने प्रष्नगत वाहन के चोरी हो जाने की सूचना तुरन्त प्रभाव से बीमा कमपनी को नहीं देकर बीमा पाॅलिसी की आज्ञापक ष्षर्तो का उल्लंघन किया है । प्रार्थी ने परिवाद में यह नहीं दर्षाया है कि उसने उत्तरदाता को वाहन चोरी की सूचना कब दी । उत्तरदाता को न तो क्लेम फार्म प्रस्तुत किया है और ना ही दस्तावेजात उपलब्ध कराए है । आगे मदवार जवाब में इन्हीं तथ्यों का समावेष करते हुए दर्षाया है कि प्रार्थी का वाहन कतई चोरी नही ंहुआ है बल्कि उसे बेचान कर वाहन चोरी की झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई है । प्रार्थी ने वाहन चोरी दिनंाक 2.7.2010 की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 19.7.2010 को दर्ज करवाई है । इस प्रकार उसने बीमा पाॅलिसी की ष्षर्तो का उल्लंघन किया है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में श्री प्रदीप पाठक, प्रबन्धक विधि का ष्षपथपत्र पेष किया है ।
3ण् अप्रार्थी बैंक ने जवाब प्रस्तुत कर प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है कि प्रार्थी ने उसे हैरान परेषान करने की नियत से पक्षकार बनाया है इसलिए उसका वाद चलने योग्य नहीं है । प्रार्थी का प्रष्नगत वाहन उनके यहां से ऋण लिए जाने के कारण हाईपोथिकेटेड है । प्रार्थी वाहन चोरी हो जाने के कारण अपने ऋण चुकारे के दायित्व से मुक्त नहीं हो जाता । अभी तक उसका ऋण बकाया है । अपने अतिरिक्त कथन में परिवाद परिसीमा से बाधित होना बताते हुए परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
4. प्रार्थी का तर्क रहा है कि वाहन के बीमित होने, बीमित अवधि में चोरी होने, थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाए जाने व इस आषय की सूचना अप्रार्थीगण को दिए जाने व उन्हें संबंधित दस्तावेजात उपलब्ध करवाए जाने के बावजूद उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिए जाने व बीमित चोरी गए ट्रेक्टर की बीमा राषि का भुगतान नहीं किया जाना उनकी सेवाओं में कमी का परिचायक हेै। परिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए ।
5. अप्रार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने खण्डन में प्रमुख रूप से तर्क दिया है कि प्रार्थी द्वारा पाॅलिसी की अज्ञापक षर्तो का पालन नहीं किया गया है । उसके द्वारा तथाकथित चोरी के तुरन्त बाद पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई गई है, यहां तक कि बीमा कम्पनी को भी न तो सूचित किया गया है और ना ही क्लेम फार्म प्रस्तुत किया गया है । अतः बीमा षर्तो के उल्लंघन में वह किसी प्रकार का कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । अपने तर्को के समर्थन में उनकी ओर से त्मअपेपवद च्मजपजपवद छ0 2957ध्2012 ;छब्द्धछमू प्दकपं प्देनतंदबम ब्व स्जक टे डंीं ैपदही व्तकमत क्ंजमक 07.05.2014 ए 2015छब्श्र201;छब्द्ध त्ंउमीेी ब्ींदकतं डकहीूंदेीप टे ज्ीम व्तपमदजपंस प्देनतंदबम ब्व स्जक ंदक2015छब्श्र1;छब्द्ध ैीपतंउ ळमदमतंस प्देनतंदबम ब्व स्जक टे डंीमदकमत श्रंज विनिष्चयों पर अवलम्ब लिया गया है ।
6. अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से तर्क प्रस्तुत किया है कि चूंकि अप्रार्थी बैंक व प्रार्थी के मध्य हाईपोथिकेडेट अनुबन्ध निष्पादित कर ऋण लिया गया था अतः प्रार्थी उक्त अप्रार्थी संख्या 3 का उपभोक्ता नहीं है ।
7. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित न्यायिक दृष्टान्तों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
8. प्रार्थी के अभिवचनों से यह स्वीकृत रूप से स्पष्ट होता है कि उसने प्रष्नगत वाहन के दिनंाक 27.11.2009 से 26.11.2010 तक तथाकथित बीमित रहने के दौरान दिनंाक 2.7.2010 को इसके चोरी हो जाने के बाद दिनंाक 19.7.2010 को इसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है । देरी का कारण उसने वाहन काफी तलाष करने व आस-पास के लोगों से पूछताछ करना बताया है किन्तु इस प्रतिवाद का कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं हुआ है । अतः यह सिद्व रूप से प्रकट हुआ है कि उसके द्वारा उक्त तथाकथित चोरी की सूचना 17 दिन बाद पुलिस थाने में दी गई । प्रार्थी द्वारा बीमा कम्पनी व कोटक महिन्द्रा बैंक को भी चोरी की सूचना देना बताया है व चोरी हो जाने संबंधी समस्त दस्तावेजात भी अप्रार्थी संख्या 1 को उपलब्ध करवाया जाना बताया है किन्तु इसके समर्थन में भी उसकी ओर से ऐसा कोई प्रलेख प्रस्तुत नहीं हुआ है जो इस तथ्य को सिद्व करता हो कि उसके द्वारा उक्त तथाकथित चोरी के बाद ऐसी निष्चित तिथि अथवा समय पर अप्रार्थीगण को सूचना दे दी गई थी । जो विनिष्चय अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत हुए है, मे ंयही प्रतिपादित किया गया है कि चोरी की सूचना थाने के साथ-साथ अप्रार्थी बीमा कम्पनी को अगले 48 घण्टे के अन्दर अन्दर सूचित किया जाना चाहिए और यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह बीमा पाॅलिसी की ष्षर्तो का उल्लंघन होगा । तदनुसार यदि बीमा कम्पनी इस आधार पर क्लेम खारिज करती है तो यह षर्तो के उल्लंघन में उचित माना जाएगा । इसके अलावा भी प्रार्थी द्वारा यह सिद्व नहीं किया गया है कि उसने कब अप्रार्थी बीमा कम्पनी को सूचित किया व क्या क्या दस्तावेजात उपलब्ध कराए।
9. फलतः बीमा कम्पनी के तर्को एवं प्रस्तुत नजीरों में प्रतिपादित सिद्वान्तों से सहमति व्यक्त करते हुए मंच यह पाता है कि प्रार्थी द्वारा बीमा पाॅलिसी की षर्तो का उल्लंघन किया गया है ।
10. जहां तक अप्रार्थी संख्या 3 बैंक का आवष्यक पक्षकार नहीं होने बाबत् तर्क प्रस्तुत हुआ है, के संबंध में हमारा मत है कि चूंकि प्रष्नगत वाहन उक्त बैंक में हाईपोथिकेटेड रहा है, जैसा कि अभिवचनों से प्रकट होता है । अतः उक्त बैंक इन हालात में आवष्यक पक्षकार माना जा सकता है । यदि बीमित वाहन के संदर्भ में लिए गए ऋण का समय पर चुकारा नहीं किया जाता है तो ऐसी स्थिति में बैंक विधि के अनुसार वसूली की कार्यवाही हेतु सक्षम माना जाएगा ।
11. सार यह है कि यदि प्रार्थी द्वारा बीमा कम्पनी को समय पर सूचित नहीं किया गया है अथवा क्लेम संबंधी दस्तावेजात उन्हें उपलब्ध करा दिए गए हो, ऐसा सिद्व नहीं किया गया है तथा ऐसी स्थिति में अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा यदि किसी प्रकार का कोई जवाब नहीं दिया जाता है अथवा क्लेम का भुगतान नहीं किया जाता है तो इसमें उनकी कोई सेवा में कमी बाबत् दोष सामने नहीं आता है । परिवाद इन्हीं विवेचन के प्रकाष में स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है एवं खारिज होने योग्य है । अतः आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
12. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 02.11.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष