Nirmla devi jain filed a consumer case on 09 Jul 2015 against Regional P.F Commissioner Grade 1 C/O K.S.A Nyar in the Kota Consumer Court. The case no is CC/390/2008 and the judgment uploaded on 16 Jul 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, मंच, झालावाड केम्प कोटा ( राजस्थान )
पीठासीनः-
01. नंदलाल शर्मा ः अध्यक्ष
02. महावीर तंवर ः सदस्य
परिवाद संख्या:-390/08
श्रीमती निर्मला देवी जैन पत्म्नी श्री पी के जैन आयु 58 साल निवासी एस क्यू एफ 20 जे के नगर, कोटा, राजस्थान। परिवादिया
बनाम
01. रीजनल पी एफ कमीशनर ग्रेड प्रथम द्वारा के एस ए नायर, निधि भवन, ज्योति नगर, जयपुर, क्षैत्रीय भविष्य निधि, आयुक्त, जयपुर।
02. सहायक भविष्य निधि, आयक्त (पेन्शन), उप क्षैत्रीय कार्यालय, निधि भवन, विज्ञान नगर, कोटा। अप्रार्थीगण
प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति:-
01. श्री वाई एन शर्मा, अधिवक्ता, परिवादिया की ओर से ं।
02. श्री नरेश शमा, अधिवक्ता, अप्रार्थीगण की ओर से।
निर्णय दिनांक 09.07.2015
परिवादिया का यह परिवाद जिला मंच कोटा से स्थानान्तरण होकर वास्ते निस्तारण जिला मंच, झालावाड, केम्प कोटा को प्राप्त हुआ, जिसमें अंकित किया कि उसकी नियुक्ति दिनांक 28.09.1972 में, जे के लाॅन प्राईमरी स्कूल में सहायक अध्यापिका के पद पर हुई थी। परिवादिया पी एफ की सदस्या थी और उसका खाता संख्या आर जे 515/4720 थी, जिसमें नियोजक व नियोजी का बराबर-बराबर मासिक योगदान परिवादिया के खाते में जमा होता रहा। परिवादिया के पी एफ खाता के कूट नम्बर 515 जे के सिन्थेटिक्स उद्योग का था जो 1972 से 1988 तक रहा। 1988 में प्रबधंक द्वारा श्याम हरि सिंघानिया एजुकेशन सोसायटी का गठन कर पंजीकृत करवाया गया,1988 से ही परिवादिया की पी एफ खाता संख्या आर जे 4631/02 आवंटित किया गया। परिवादिया दिनांक 31.12.05 को नियमानुसार सेवानिवृत हो गयी। परिवादिया सेवानिवृति पर भविष्य निधि अधिनियम के तहत प्रदत्त प्रावधानों के अनुसार वह उसके आश्रित पेंशन हितलाभ पाने के अधिकारी है और इन्ही प्रावधानों के अनुसार दिनांक 02.12.05 से भविष्य निधि विभाग ने परिवादिया को पेन्शन रूपये 779/- रूपये का भुगतान करना भी शुरू कर दिया, जिसका पी पी ओ नम्बर 8030 है। परिवादिया की उक्त पेंशन अप्रार्थी के पत्र दिनांक 25.04.07 द्वारा तुरन्त प्रभाव से रोक दी, उक्त पेंन्शन विभाग द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय में दायर अपील के निर्णय दिनांक 30.10.06 के द्वारा अस्वीकृत कर दिया है। अतः पेन्शन हितलाभ को आगे जारी रख पाना संभव नहीं होगा। माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णय में यह कही भी नहीं लिख रखा है कि पूर्व से पेंशन हितलाभ ले रहे है वे सदस्य पाने के अधिकारी नहीं है। परिवादिया को श्याम हरि सिंघानिया स्कूल से दिनांक 31.08.2000 को ही सेवानिवृत कर दिया था और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय दिनांक 30.10.2006 का है और उस दिनांक वह उस संस्थान की कर्मचारी नहीं थी, इसलिये माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय परिवादिया पर लागू नहीं होता। अप्रार्थीगण को परिवादिया ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कानूनी नोटिस भी दिलवाया, परन्तु अप्रार्थीगण परिवादिया की पेन्शन को चालू नहीं कर, उसकी सेवा में कमी की है, इसलिये परिवादिया की अप्रेल 07से रोकी हुई समस्त पेंशन राशि देय तिथि तक मय ब्याज से अप्रार्थीगण भुगतान करे तथा पुनः पेंशन चालू करे।
अप्रार्थीगण ने परिवादिया के परिवाद का विरोध करते हुये जवाब पेश किया उसमें अंकित किया है कि माननीय उच्च न्यायालय, राजस्थान, जयपुर ने आदेश दिनांक 16.01.2001 द्वारा राजस्थान क्षैत्र में स्थित उन सभी शैक्षणिक संस्थानों को जिन पर राजस्थान नान गवर्मेट एजुकेशन इंस्टीट्यूट एक्ट,1989 लागू होता है कोे कर्मचारियों को भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 की परिधि से बाहर कर दिया है। माननीय उच्च न्यायालय राजस्थान, जयपुर की बैंच ने आदेश दिनांक 12.02.2002 द्वारा एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली ने आदेश दिनांक 30.10.06 द्वारा निर्णय दिनांक 16.01.2001 की पुष्टि की है। उक्त निर्णय की रोशनी में शैक्षणिक संस्थानों के कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 के अन्तर्गत आवृति तिथि से ही अधिनियम की परिधि से बाहर कर दिया गया है एवं संस्थान द्वारा अपने कर्मचारियों के भविष्य निधि एवं पेंशन निधि के अंशदान के रूप में जमा करायी गई राशि त्रुटिपूर्ण जमा की श्रेणी में चली गयी, जिससे संस्थान के पीडी खाते में जमा करा दिया गया है। परिवादिया का नियोजक संस्थान के कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 की परिधि से बाहर हो जानेे कारण परिवादिया पर कर्मचारी पंेशन योजना 1995 भी लागू नहीं होती, जिसके तहत उसे पेंशन जारी की गई थी। अप्रार्थीगण ने माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय दिनांक 30.10.06 की पालना में परिवादिया की पेंशन बंद की है, जो नियमानुसार बंद की है। ऐसी स्थिति में परिवादिया का परिवाद सव्यय खारिज किया जावे।
उपरोक्त अभिकथनों के आधार पर बिन्दुवार हमारा निर्णय निम्न प्रकार हैः-
01. आया परिवादिया, अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है ?
परिवादिया के परिवाद, शपथ-पत्र, से परिवादिया, अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है।
02. आया अप्रार्थीगण ने सेवा दोष किया है ?
उभय पक्षों को सुना गया। पत्रावली में उपलब्ध दस्तावेजी रेकार्ड का अवलोकन किया तथा परिवादिया की लिखित बहस एवं उसके द्वारा पेश किये गये न्यायिक दृष्टान्तों का ससम्मान अध्य्यन अवलोकन किया गया तो स्पष्ट हुआ कि अप्रार्थीगण ने माननीय उच्च न्यायालय, राजस्थान, जयपुर ने आदेश दिनांक 16.01.2001 द्वारा राजस्थान क्षैत्र में स्थित उन सभी शैक्षणिक संस्थानों को जिन पर राजस्थान नान गवर्मेट एजुकेशन इंस्टीट्यूट एक्ट,1989 लागू होता है कोे परिवादिया भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 की परिधि से बाहर कर दिया है। माननीय उच्च न्यायालय राजस्थान, जयपुर की बैंच ने आदेश दिनांक 12.02.2002 द्वारा एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली ने आदेश दिनांक 30.10.06 द्वारा निर्णय दिनांक 16.01.2001 की पुष्टि की है। उक्त निर्णय की रोशनी में शैक्षणिक संस्थानों के कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 के अन्तर्गत आवृति तिथि से ही अधिनियम की परिधि से बाहर कर दिया गया है एवं संस्थान द्वारा अपने कर्मचारियों के भविष्य निधि एवं पेंशन निधि के अंशदान के रूप में जमा करायी गई राशि त्रुटिपूर्ण जमा की श्रेणी में चली गयी, जिससे संस्थान के पीडी खाते में जमा करा दिया गया है। परिवादिया का नियोजक संस्थान के कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 की परिधि से बाहर हो जानेे कारण, परिवादिया पर कर्मचारी पेंशन योजना 1995 भी लागू नहीं होती, जिसके तहत उसे पेंशन जारी की गई थी। अप्रार्थीगण ने माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय दिनांक 30.10.06 की पालना में परिवादिया की पेंशन बंद की है, जो नियमानुसार बंद की है। परिवादिया के अधिवकता निवेदन किया है कि माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय दिनांक 30.10.06 का है और परिवादिया की सेवा निवृति, उक्त आदेश के पहले ही हो गई थी, इसलिये उक्त निर्णय परिवादिया पर प्रभावित नहीं होगा, अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने उक्त तर्क का खंडन करते हुये तर्क दिया कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश दिनांक 30.10.06 ने, माननीय उच्च न्यायालय, राजस्थान के आदेश दिनांक 16.01.2001 की, पुष्टि की है, इसलिये माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दिनांक 30.10.06 का निर्णय, माननीय उच्च न्यायालय, राजस्थान के आदेश दिनांक 16.01.2001 से ही लागू होगा, क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने केवल राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय की पुष्टि की है, यदि माननीय उच्चतम न्यायालय, माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के उक्त निर्णय में किसी प्रकार की तरमीम करता तो माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के दिनांक से ही प्रभावित होता न की माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की दिनांक से, इस प्रकार अप्रार्थीगण ने परिवादिया की पेंशन माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय की पालना में बंद कर, परिवादिया की सेवा में कोई कमी नहीं की है। उपरोक्त विवेचन, विश्लेषण को दृष्टिगत रखते हुये हमारे विनम्र मत में परिवादिया, अप्रार्थीगण का सेवादोष साबित करने में असफल रही है।
03. अनुतोष ?
परिवादिया का परिवाद, अप्रार्थीगण के खिलाफ खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिया श्रीमती निर्मला जैन का परिवाद, अप्रार्थीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(महावीर तंवर) (नंदलाल शर्मा)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच,झालावाड केम्प कोटा मंच, झालावाड, केम्प कोटा।
निर्णय आज दिनांक 09.07.2015 को खुले मंच में लिखाया जाकर सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच,झालावाड केम्प कोटा मंच, झालावाड, केम्प कोटा।
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