Uttar Pradesh

StateCommission

A/2003/2387

L. I. C. Of India - Complainant(s)

Versus

Reena Dubey - Opp.Party(s)

Arvind Tilahari

08 Jun 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2003/2387
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. L. I. C. Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Reena Dubey
s
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vijai Varma PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 08 Jun 2017
Final Order / Judgement

सुरक्षित

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील संख्‍या-2387/2003

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-305/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.08.2003 के विरूद्ध)

 

लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया, द्वारा ब्रांच मैनेजर, लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया, स्‍टेशन रोड, मैनपुरी।

                             अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्     

राजीव कुमार दुबे पुत्र स्‍व0 प्रेम प्रकाश दुबे, इटावा रोड, बेबर, जिला मैनपुरी।

  (मृतक)

1/1. श्रीमती रीना दूबे पत्‍नी स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/2. कु0 रिया दुबे पुत्री स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/3. अभय दुबे पुत्र स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/4. आयुष दुबे पुत्र स्‍व0 राजीव कुमार दुबे। ½ त ¼ द्वारा श्रीमती रीना दुबे। समस्‍त निवासीगण इटावा रोड, बेबर, जिला मैनपुरी।     (प्रतिस्‍थापित वारिसान)

                                     प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी

समक्ष:-

1. माननीय श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्‍य।

2. माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : श्री अरविन्‍द तिलहरी, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : श्री आर0के0 गुप्‍ता, विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक 25.07.2017

मा0 श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

यह अपील, विद्वान जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-305/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.08.2003 के विरूद्ध विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से योजित की गयी है।

अपील से सम्‍बन्धित मुख्‍य तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी के भाई श्री अतुल कुमार दुबे ने अपीलार्थी/विपक्षी के यहां से बीमा पालिसी रू0 एक लाख की करायी थी, जिसमें परिवादी को नॉमिनी बनाया था। उपरोक्‍त पॉलिसी में दुर्घटना हित लाभ भी देय था। दिनांक 11.04.1998 को परिवादी के भाई का अपहरण कर लिया गया था और उसके बाद उसकी हत्‍या कर दी गयी। इस तथ्‍य को अपराधियों ने कबूल भी किया है। परिवादी द्वारा मृत्‍यु की सूचना विपक्षी को दी गयी तथा सम्‍पूर्ण औपचारिकताओं को पूर्ण करने के उपरांत बीमा दावा विपक्षी के यहां प्रस्‍तुत किया, जिस पर उसे मात्र रू0 1,17,868/- का भुगतान किया गया, किन्‍तु दुर्घटना हित लाभ की धनराशि का भुगतान नहीं किया गया, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादी द्वारा एक परिवाद जिला फोरम के समक्ष दाखिल किया गया, जहां पर विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल करके मुख्‍यत: यह कथन किया गया कि बीमाधारक की मृत्‍यु पर उसके नॉमिनी व्‍यक्ति परिवादी को बीमा दावे के सन्‍दर्भ में स्‍वीकृत धनराशि का भुगतान चेक द्वारा किया जा चुका है। दुर्घटना हित लाभ के लिए परिवादी को यह सिद्ध करना था कि बीमाधारक की मृत्‍यु बिना किसी द्ववेश में हुई है, किन्‍तु परिवादी यह सिद्ध नहीं कर सका, क्‍योंकि बीमाधारक की हत्‍या कुछ नामित हत्‍यारों द्वारा की गयी है, इसलिए इसे दुर्घटना नहीं माना जा सकता है। बीमाधारक की मृत्‍यु के सम्‍बन्‍ध में मुकदमा न्‍यायालय जजी, मैनपुरी में लम्बित है, जब तक की वहां से निर्णय नहीं हो जाता है तब तक दुर्घटना हित लाभ कानून नहीं दिया जा सकता है। अत: परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

उभय पक्ष को सुनने के उपरान्‍त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 07.08.2003 को निम्‍न आदेश पारित किया गया :-

‘’ विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को उक्‍त मामले में दुर्घटना हित लाभ की धनराशि मुव0 1,00,000/- (एक लाख रूपये) मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के एक माह के अन्‍दर अदा करे और साथ ही बतौर वाद व्‍यय रूपये 500/- भी उक्‍त अवधि में अदा किए जावे। ‘’

उपरोक्‍त आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील मुख्‍यत:            इन आधारों पर दायर की गयी है कि बीमाधारक की हत्‍या हुई थी, जिसे दुर्घटना नहीं माना जा सकता है। परिवादी को दुर्घटना हित लाभ के बिना बीमित धनराशि का भुगतान नियमानुसार किया जा चुका है। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध है, अत: निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

अपील के विरूद्ध प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से आपत्‍ति‍ दाखिल की गयी है, जिसमें मुख्‍यत: यह क‍थन किया गया है कि बीमाधारक की हत्‍या किसी अपराधिक चरित्र के कारण नहीं हुई थी, उसकी हत्‍या दुर्घटना के अन्‍तर्गत आती है। ऐसी स्थिति में उसे दुर्घटना हित लाभ दिये जाने योग्‍य है।

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरविन्‍द तिलहरी तथा प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के0 गुप्‍ता उपस्थित हैं। उभय पक्ष को विस्‍तार से सुना गया एवं प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश तथा उपलब्‍ध अभिलेखों का गम्‍भीरता से परिशीलन किया गया।

इस प्रकरण में अब यह देखा जाना है कि परिवादी  उसके बीमाधारक भाई की हत्‍या होने के आधार पर दुर्घटना हित लाभ अपीलार्थी द्वारा दिया जाना चाहिये या नहीं। यदि हॉं तो क्‍या दुर्घटना हित लाभ न देकर के अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी की गयी है।

इस प्रकरण में यह तथ्‍य निर्वि‍वादित है कि परिवादी के बीमाधारक भाई की हत्‍या के कारण हुई मृत्‍यु पर परिवादी को बीमित धनराशि का भुगतान किया जा चुका है, किन्‍तु दुर्घटना हित लाभ परिवादी को नहीं दिया गया है। इस सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा तर्क किया गया कि स्‍वीकृत रूप से परिवादी के बीमाधारक भाई की मृत्‍यु कुछ व्‍यक्तियों द्वारा उसका अपहरण करके हत्‍या कर देने के कारण हुई थी, जो दुर्घटना के अन्‍तर्गत नहीं आती है। इस कारण से दुर्घटना हित लाभ नहीं दिया जा सकता है। इसके विपरीत प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क किया गया कि बीमाधारक का अपहरण करने के उपरान्‍त उसकी हत्‍या की गयी थी। ऐसी स्थिति में उक्‍त हत्‍या दुर्घटना के अन्‍तर्गत ही मानी जायेगी। अत: अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा दुर्घटना हित लाभ न देकर सेवा में कमी की गयी है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा III (2008) CPJ 120 (NC) Maya Devi Vs Life Insurance Corporation of India में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय का हवाला दिया गया है, जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि मृत्‍यु का कारण बीमाधारक द्वारा किसी ऐसे कार्य को करना था, जिसके परिणामस्‍वरूप उसकी हत्‍या गोली मारने से हुई थी। यदि हत्‍या सोच-समझकर की जाये तो भी उक्‍त हत्‍या दुर्घटना मानी जा सकती है। उपरोक्‍त निर्णय के आधार पर इस प्रकरण में भी जो हत्‍या हुई थी, उसे यदि हत्‍या करने के उद्देश्‍य से भी हत्‍या की गयी थी तो भी उपरोक्‍त निर्णय के अनुसार हत्‍या दुर्घटना के अन्‍तर्गत मानी जानी चाहिये। तदनुसार परिवादी को दुर्घटना हित लाभ दिया जाना चाहिये।

सर्वप्रथम उपरोक्‍त विधि व्‍यवस्‍था के तथ्‍य इस प्रकरण के तथ्‍यों से भिन्‍न हैं, क्‍योंकि उपरोक्‍त विधि व्‍यवस्‍था में यह माना गया है कि हत्‍या दुर्घटना की श्रेणी में ही मानी जानी चाहिये, जबकि हत्‍या का कारण स्‍वंय बीमाधारक का कोई जानबूझकर किया हुआ कार्य ही कारण न रहा हो। इस प्रकरण में हत्‍या का कारण रूपये के लेन-देन के सम्‍बन्‍ध में मृतक को अभियुक्‍तों द्वारा जान से मारने की नियत से अपहरण किये जाने का तथ्‍य प्रथम सूचना रिर्पो में अंकित कराया गया है। अत: न केवल हत्‍या की नियत से अपहरण किये जाने का तथ्‍य अंकित है, अपितु रूपये के लेन-देन के सम्‍बन्‍ध में हत्‍या का कारण भी दृष्टिगत होता है। इस सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा श्रीमती रीता देवी बनाम न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेन्‍स कं0लि0 IV (2000) SLT 179 में दिये गये निर्णय का हवाला दिया गया है, जिसमें मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा निम्‍नांकित रूप से विधि व्‍यवस्‍था दी गयी है :-

The question, therefore, is can a murder be an accident in any given case? There is no doubt that 'murder' as it is understood, in the common parlance is a felonious act where death is caused with intent and the perpetrators of that act normally have a motive against the victim for such killing. But there are also instances where murder can be by accident on a given set of facts. The difference between a 'murder' which is not an accident and 'murder' which is an accident, depends on the proximity of the cause of such murder. In our opinion, if the dominant intention of the act of felony is the kill any particular person then such killing is not an accidental murder but is a murder simplicitor, while if the cause of murder or act of murder was originally not intended and the same was caused in furtherance of any other felonious act then such murder is an accidental murder.

मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए इस प्रकरण में स्‍पष्‍ट है कि बीमाधारक की जो हत्‍या हुई है, वह मात्र हत्‍या की श्रेणी में आयेगी न कि दुर्घटनाग्रस्‍त की श्रेणी में, क्‍योंकि हत्‍या की नियत से ही मृतक बीमाधारक का अपहरण करके उसकी हत्‍या की गयी है। इन परिस्थितियों में यह स्‍पष्‍ट है कि चूंकि बीमाधारक की हत्‍या दुर्घटनाग्रस्‍त हत्‍या की श्रेणी में नहीं आती है, अपितु मात्र हत्‍या की ही श्रेणी में आती है। अत: अपीलार्थी द्वारा परिवादी को दुर्घटना हित लाभ नहीं दिये जाने में कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। जिला फोरम द्वारा प्रश्‍नगत निर्णय गलत आधार पर पारित किया गया है, वह निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। तदनुसार अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

 

 

अपील स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-305/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.08.2003 अपास्‍त किया जाता है।

पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्‍यय-भार स्‍वंय वहन करेंगे।

 

 

 

 

      (विजय वर्मा)                          (राज कमल गुप्‍ता)

        पीठासीन सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

 

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2

 

सुरक्षित

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील संख्‍या-2387/2003

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-305/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.08.2003 के विरूद्ध)

 

लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया, द्वारा ब्रांच मैनेजर, लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया, स्‍टेशन रोड, मैनपुरी।

                             अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्     

राजीव कुमार दुबे पुत्र स्‍व0 प्रेम प्रकाश दुबे, इटावा रोड, बेबर, जिला मैनपुरी।

  (मृतक)

1/1. श्रीमती रीना दूबे पत्‍नी स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/2. कु0 रिया दुबे पुत्री स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/3. अभय दुबे पुत्र स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/4. आयुष दुबे पुत्र स्‍व0 राजीव कुमार दुबे। ½ त ¼ द्वारा श्रीमती रीना दुबे। समस्‍त निवासीगण इटावा रोड, बेबर, जिला मैनपुरी।     (प्रतिस्‍थापित वारिसान)

                                     प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी

समक्ष:-

1. माननीय श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्‍य।

2. माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : श्री अरविन्‍द तिलहरी, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     : श्री आर0के0 गुप्‍ता, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 25.07.2017

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

     मै माननीय पीठासीन सदस्‍य श्री विजय वर्मा द्वारा दिए गए उपरोक्‍त निर्णय से असहमत हूं अत: मेरे द्वारा पृथक से निर्णय पारित किया जा रहा है, जो निम्‍नवत है।

प्रस्‍तुत अपील, विद्वान जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-305/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.08.2003 के विरूद्ध योजित की गयी है। जिला मंच द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

 

 

-2-

‘’ विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को उक्‍त मामले में दुर्घटना हित लाभ की धनराशि मु0 1,00,000/- (एक लाख रूपये) मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के एक माह के अन्‍दर अदा करे और साथ ही बतौर वाद व्‍यय रूपये 500/- भी उक्‍त अवधि में अदा किए जावे। ‘’

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी के भाई श्री अतुल कुमार दुबे ने अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कंपनी से एक बीमा पालिसी एक लाख रूपये की ली थी। उपरोक्‍त पालिसी में दुर्घटना हित लाभ भी देय था। दि. 11.04.98 को मृतक बीमाधारक का अपहरण कर लिया गया और उसके बाद उसकी हत्‍या कर दी गई। परिवादी ने बीमाधारक की मृत्‍यु की सूचना बीमा कंपनी को दी तथा बीमा दावा अपीलार्थी/विपक्षी के समक्ष प्रस्‍तुत किया। बीमा कपनी ने केवल रू. 117868/- का भुगतान किया, परन्‍तु दुर्घटना हित लाभ की कोई धनराशि भुगतान नहीं की, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादी ने जिला मंच के समक्ष अपना परिवाद प्रस्‍तुत किया।

      विपक्षी बीमा कंपनी ने जिला फोरम के समक्ष अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत करके परिवाद का प्रतिवाद किया। विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथन किया कि परिवादी ने बीमाधारक की मृत्‍यु के उपरांत विलम्‍ब से औपचारिकताएं पूर्ण की और औपचारिकताएं पूर्ण होने के 90 दिन के अंदर उनके द्वारा रू. 117868/- का भुगतान दि. 26.10.99 को कर दिया था। परिवादी को दुर्घटना हित लाभ प्राप्‍त करने के लिए यह साबित करना था कि बीमाधारक की मृत्‍यु बीमाधारक के बिना किसी दोष के दुर्घटना में हुई। बीमाधारक की मृत्‍यु कुछ नामित हत्‍यारों द्वारा की गई और उस हत्‍या को दुर्घटना नहीं माना जा सकता। बीमाधारक का पहले अपहरण हुआ तथा बाद में उसकी हत्‍या हुई। इस प्रकरण में बीमाधारक का आचरण संदेह के घेरे में है, अत: परिवादी को कोई भी हित लाभ प्राप्‍त नहीं हो सकता है।

      जिला फोरम ने उभय पक्ष को सुनने का पूर्ण अवसर प्रदान करते हुए उपरोक्‍त निर्णय/आदेश पारित किया।

उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍ताओं की बहस को सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों व साक्ष्‍यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।

      अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में यह अभिकथन किया है कि जिला फोरम ने

 

-3-

बीमा पालिसी की शर्तों को नजर-अंदाज करते हुए अवैधानिक आदेश पारित किया है। जिला फोरम ने बीमा पालिसी के प्रस्‍तर-10 पर विचार नहीं किया, जिसमें दुर्घटना हित लाभ दिए जाने के संबंध में शर्तें दी गई हैं। जिला फोरम ने दुर्घटना की गलत व्‍याख्‍या की है। अपहरण के बाद हुई हत्‍या दुर्घटना की श्रेणी में नहीं आती है बीमाधारक का मृत शरीर भी नहीं मिला। जिला फोरम ने हत्‍या के अभियुक्‍तों के बयान पर विश्‍वास करके गलती की है, जबकि अभी तक सेशन कोर्ट का कोई निर्णय नहीं आया है।

      प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपील के विरूद्ध अपनी आपत्ति प्रस्‍तुत करते हुए यह अभिकथन किया कि जिला फोरम का आदेश विधिसम्‍मत है। जिला फोरम ने पालिसी की धारा 10 का सम्‍यक रूप से विवेचन करने के उपरांत यह निष्‍कर्ष दिया है कि हत्‍या से हुई मृत्‍यु दुर्घटना के अंतर्गत आती है और परिवादी दुर्घटना हित लाभ पाने के अधिकारी हैं। बीमा कंपनी ने मृतक बीमाधारक के चरित्र के संबंध में अथवा व्‍यक्तिगत इतिहास के संबंध में कोई साक्ष्‍य दाखिल नहीं किया है। अभियुक्‍तों ने बीमाधारक की हत्‍या करके शव को नदी में टुकड़े करके बहा दिया, जिसके संबंध में सेशन कोर्ट के निष्‍कर्ष की आवश्‍यकता नहीं है। जिला फोरम ने साक्ष्‍यों का भली प्रकार से विश्‍लेषण व विवेचना करते हुए विधिसम्‍मत आदेश पारित किया है, अत: अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

यह तथ्‍य निर्विवा‍द है कि मृतक बीमाधारक अतुल कुमार दुबे ने दि. 15.01.96 को एक लाख रूपये की 25 वर्ष की अवधि के लिए दुर्घटना हित लाभ सहित बीमा पालिसी ली थी, जिसमें परिवादी राजीव कुमार दुबे नामिनी था (दौरान कार्यवाही श्री राजीव कुमार दुबे की मृत्‍यु हो गई और उनके स्‍थान पर उनके वारिस कायम हुए)। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि बीमाधारक का अपहरण किया गया और बाद में उसकी हत्‍या कर दी गई। परिवादी ने बीमा कंपनी के समक्ष अपना क्‍लेम प्रस्‍तुत किया। बीमा कंपनी ने बीमे की धनराशि रू. 117868/- का भुगतान परिवादी को कर दिया, परन्‍तु दुर्घटना हित लाभ की एक लाख रूपये की धनराशि देने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि बीमाधारक की मृत्‍यु कुछ व्‍यक्तियों द्वारा उसका अपहरण करके हत्‍या कर देने के कारण हुई थी, जो दुर्घटना के अंतर्गत नहीं आती है। अपीलार्थी ने बहस के दौरान यह तर्क दिया

 

 

 

-4-

कि बीमाधारक का दि. 11.09.98 को अपहरण किया गया और उसकी हत्‍या कर उसकी लाश को नहर में कुछ अपराधियों द्वारा बहा दिया गया। अभियुक्‍तों को चार्जशीट किया गया और जनपद मैनपुरी में अभियुक्‍तों के विरूद्ध सेशन ट्रायल चल रहा है। चूंकि अपीलार्थी की हत्‍या एक नियोजित ढंग से धनराशि के लेनदेन में की गई, अत: यह हत्‍या दुर्घटना के अंतर्गत नहीं आती है। अपीलार्थी ने मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत पृथ्‍वी राज भंडारी बनाम एल.आई.सी. आफ इंडिया ।।।(2006) सीपीजे 213(एनसी),  मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा निर्णीत श्रीमती रीता देवी बनाम न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेन्‍स कं0लि0 IV (2000) SLT 179 तथा मा0 उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्णीत नीलम राय बनाम एल.आई.सी. आफ इंडिया एवं अन्‍य 2009 एल.डी. 14  पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है।

      यह स्‍थापित विधि व्‍यवस्‍था है कि बीमा पालिसी एक संविदा है और इस संविदा के पक्षकार संविदा की शर्तों से बंधे होते हैं। सर्वप्रथम प्रकरण में यह देखा जाना है कि क्‍या बीमा पालिसी में कोई ऐसी स्‍पष्‍ट शर्त थी, जिसके अनुसार यदि बीमाधारक की मृत्‍यु अपहरण के बाद हत्‍या से होती है तो उसे दुर्घटना हित लाभ देय नहीं होगा। बीमा पालिसी की इस शर्त के बारे में कोई उल्‍लेख प्रस्‍तुत किए गये साक्ष्‍यों में अपीलार्थी बीमा कंपनी ने नहीं किया है।

            अपीलार्थी का यह तर्क है कि जिला मंच ने बीमा पालिसी की शर्त के क्‍लाज-10 का सही तरीके से विश्‍लेषण या व्‍याख्‍या नहीं की। बीमा पालिसी की शर्त की धारा 10(2)(ब) में निम्‍न प्रावधान किया गया है:-

(ख) बीमादार की मृत्‍यु हो जाने की दशा में यह अवधि जिसमें प्रीमियम देय है समाप्‍त होने के पूर्व बाहरी घटक और दिखाई देने वाले साधनों से होने वाली दुर्घटना के परिणामस्‍वरूप व प्रत्‍यक्ष रूप से उसी के कारण कोई चोट लग जाने और अन्‍य कारणों के अलावा केवल इसी दुर्घटना के फलस्‍वरूप तथा प्रत्‍यक्ष रूप से उसी कारण 120 दिनों के भीतर बीमेदार की मृत्‍यु हो जाने पर पालिसी के बीमा धन के बराबर अतिरिक्‍त बीमाधन का भुगतान कर दिया जाएगा, किंतु इसी पालिसी पर दी जाने वाली ऐसी अतिरिक्‍त राशि तथा बीमादार के जीवन पर जारी की गई अन्‍य पालिसियों पर दी जाने

 

 

-5-

वाली ऐसी ही अतिरिक्‍त कुल राशि मिलाकर पांच लाख रूपये से अधिक नहीं होगी।

            The Corporation shall not be liable to pay the additional sum reffered in (a) or b above, if the disability or the death of the life assured shall:

1. जानबूझकर अपने को चोट पहुंचाने, आत्‍महत्‍या का यत्‍न करने, पागलपन या अनैतिक आचरण के कारण अथवा किसी मादक द्रव्‍य पदार्थ, औषधि या नशीली वस्‍तु का सेवन करने से होगी या

2. ऐसी दुर्घटना के परिणामस्‍वरूप होगी जबकि बीमादार उड्डयन या वैमानिकी में किसी भी पद पर लगा हुआ होगा लेकिन यह बात उस दशा में लागू न होगी जबकि वह स्‍थापित इकाई हवाई अड्डो के बीच नियमानुसार उड़ान भरने वाले अधिकृत यात्रा वाहक हवाई जहाज में किराया देकर, अधिक किराया देकर या बिना किराया दिए हुए यात्रा करने वाला यात्री हो और हवाई जहाज तथा जहाज के उड़ने व उतरने के समय उसकी वहां कोई ड्यूटी न हो, या

3. दंगो, असैनिक उपद्रव, सन्‍यत्र विद्रोह, युद्ध(भले ही घोषणा की गई हो या न की गई हो), आक्रमण, शिकार, पर्वतारोहण, ऊंची-नीची छलांग, दोड़(स्‍टीपल चेसिंग) या किसी भी प्रकार की भाग-दोड़ के फलस्‍वरूप चोट लगने के कारण होगी, या

4. बीमेदार द्वारा किसी भी कानून के भंग करने के परिणामस्‍वरूप होगी, या

5. बीमादार के किसी युद्ध में संलग्‍न देश(भले ही घोषणा की गई हो या न की गई हो) की सशस्‍त्र सेना या सैन्‍य में नौकरी करने या किसी सेना, नौसेना या पुलिस संगठन में, पुलिस के कार्य में लगे होने के कारण होगी।

      बीमा पालिसी में उपरोक्‍तानुसार जो ' एक्‍सक्‍लूजन ' ' क्‍लाज ' दिए हुए हैं उसमें स्‍पष्‍ट रूप से प्रश्‍नगत प्रकरण नहीं आता है। बीमाधारक का न तो कोई अनैतिक आचरण सिद्ध है और न ही उसके द्वारा किसी भी कानून के भंग करने का साक्ष्‍य है। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने अपने निर्णय Pawan Kumari vs Life Insurance Corporation Of India and Anr. निर्णीत on 26 May, 2016 मे समतुल्‍य तथ्‍यों में निम्‍न प्रकार मत व्‍यक्‍त किया है:-

11.     Further, relying upon the judgement passed by the Andhra Pradesh High Court in United India Insurance Co. Ltd. & Anr. Vs. Ummadi Shakunthala (supra), it has been held that the murder which was the result of unexpected events from the

 

-6-

standpoint of the victim was an accident. It has been held in the said judgement as follows:-

 

"28. From the above it is clear that murder, which is an unexpected event from the standpoint of victim, is an accident. In the instant case, it is not in dispute that the deceased was killed allegedly by group of persons belonging to other faction. Indisputably as the injuries being vital, the deceased died. Though it is on record that somebody attacked, the reasons are not known and further it is also very difficult to discern as to whether the intention of the person who attacked the deceased was only to cause injuries or to completely annihilate the deceased or for some other reason. Of course from the injuries caused it could be provisionally understood that the deceased was attacked to annihilate him. However, it would be totally a different subject, which has to be dealt with separately in the criminal adjudication. But when it comes to the purpose of contractual obligation by the Insurance Company under the policy, the death of the deceased should only be understood, as already discussed above, as an 'accident'. The occurrence in my considered view satisfies all the conditions laid under the policy and hence it is inescapable for this Court to hold that the murder of the deceased in the present case shall be treated as an accident for the purpose of awarding compensation under the Janata Personal Accidence Policy." 

12.     A plain reading of the conclusion arrived at by the Andhra Pradesh High Court in the above case, shows that it was very difficult to discern, whether  the intention  of the person who attacked him was only to cause injuries, or to completely annihilate him. It is also stated that from the standpoint of the victim, it was an unexpected event. The facts and circumstances of the present case also show that the deceased first went to the house of Nathu Soni from where, he was tied by a rope by the persons present there. When he tried to go and report the matter to the police station, he was killed on the road. It is, therefore, clear from the standpoint of the deceased, it was an unexpected event, otherwise he would not have gone to the house of Nathu Soni, if he had known he shall be attacked and killed.

13.     In so far as the order passed by this commission in Prithvi Raj Bhandari (supra) is concerned, it is seen that the facts of this case are entirely different from the facts of the present case. In Prithvi Raj Bhandari (supra), three criminal cases had been filed against the deceased/insured already. It has been observed by this Commission that a series of criminal cases filed against him as well as his killing by shooting him in the ear and also in the ribs, left no doubt that it was a murder by design and intent, rather than a case of accident murder. The order passed by the National Commission shall not be applicable to the facts of the present case, where it can be concluded that there is nothing on record to show that the murder of the deceased policy-holder was a predesigned or pre-planned murder. Considering the ratio of the judgements,

-7-

therefore, quoted on behalf of the appellant, it is made out that murder in this case  comes under the definition of 'accident'.

     In Ganga Ram Rai Vs LIC of India, NCDRC-RP No. 722/2010, decided on 13.4.15 it was held " on a discussion of Maya Devi Vs Life Insurance Corporation of India (also reported in III (2008) CPJ 120 (NC) & the Supreme Court's judgement) reported in (2000) 5 SCC 113 - Rita Devi (smt.) and ors. Vs New India Assurance Co. Ltd & Anr. Rita Devi's judgement was followed. However, the NCDRC held that there was " no evidence by which it can be inferred that insured took up the quarrel and the cause of his death was deliberate and willful act of the insured himself.  In such circumstances, when insured was kidnapped and later on murdered it is to be held that death of insured was accidental and he was entitled to additional sum equal to the sum assured as per terms and conditions of the policy."

     पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों से यह स्‍पष्‍ट है कि बीमाधारक का पहले अपहरण किया गया और बाद में उसकी हत्‍या की गई। अपीलार्थी ने कोई ऐसा साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया है जिससे यह सिद्ध होता हो कि बीमाधारक का कोई अपराधिक इतिहास हो, जिससे यह सिद्ध होता हो कि उसकी हत्‍या जानबूझकर सुनियोजित तरीके से की गई और इस हत्‍या को ' एक्‍सीडेन्‍टल मर्डर ' की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। हमारे समाज में जान-पहचान वालों के मध्‍य वित्‍तीय लेनदेन होते है, लेकिन यह किसी के स्‍वप्‍न में भी नहीं आता कि जो वह वित्‍तीय लेनदेन कर रहा है उसमें उसकी हत्‍या भी हो सकती है। पत्रावली पर कोई ऐसा साक्ष्‍य नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि This murder after kidnapping was a murder by design and intent rather than a case of accidental murder. बीमाधारक के दृष्टिकोण से यह घटना एक अप्रत्‍याशित दुर्घटना की श्रेणी में ही आएगी।

            In India photographic company limited Vs. H.D. Shourie AIR 1999 SC 2453, MANU/SC/0668/2002 it was observed. "The Consumer Protection Act 1986 was enacted as a result of widespread consumer protection movement; Provision has been made in the said said Act with the object of interprecting the relevant law in a rational manner and forachieving the object setforth in the Act. A rational approach and not a Technical approach is the mandate of law."

      अपीलार्थी की जो हत्‍या के सम्‍बन्‍ध में बीमा शर्तें हैं वे स्‍पष्‍ट नहीं है और कई ऐसे प्रकरण उपभोक्‍ता न्‍यायालयों में लंबित है, अत: बीमा कंपनी को ' एक्‍सक्‍लूजन क्‍लाज ' में संशोधन कर और स्‍पष्‍टता लानी चाहिए जिससे उपभोक्‍ताओं को अनावश्‍यक

 

-8-

मुकदमेबाजी में न फंसना पड़े।

      मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा निर्णीत श्रीमती रीता देवी बनाम न्‍यू इंडिया एश्‍योरेंस कं0लि0  IV (2000) SLT 179, मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत Maya Devi Vs Life Insurance Corporation of India III (2008) CPJ 120 (NC) तथा उपरोक्‍त वर्णित मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय व माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के दृष्‍टान्‍तों में प्रतिपादित सिद्धांतों के दृष्टिगत मैं इस मत का हूं कि प्रश्‍नगत प्रकरण में यह हत्‍या दुर्घटना के अंतर्गत आएगी और परिवादी/प्रत्‍यर्थी दुर्घटना हित लाभ पाने का अधिकारी है।

      जिला मंच ने साक्ष्‍यों की विस्‍तृत विवेचना करते हुए अपना निर्णय दिया है, जो विधिसंगत है, मैं उसमें कोई त्रुटि नहीं पाता हूं तथा जिला मंच का निर्णय/आदेश पुष्टि किए जाने व अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

 

प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है। विद्वान जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-305/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.08.2003 की पुष्टि की जाती है।

पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्‍यय-भार स्‍वंय वहन करेंगे।

 

 

 

 

                   (राज कमल गुप्‍ता)

                                        सदस्‍य

 

राकेश, आशुलिपिक,

कोर्ट-2

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-2387/2003

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या 305/1999 में पारित आदेश दिनांक 07.08.2003 के विरूद्ध)

लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया, द्वारा बांच मैनेजर, लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया, स्‍टेशन रोड, मैनपुरी।

                              ...................अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम

राजीव कुमार दुबे पुत्र स्‍व0 प्रेम प्रकाश दुबे, इटावा रोड, बेबर, जिला मैनपुरी। (मृतक)

1/1. श्रीमती रीना दुबे पत्‍नी स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/2. कु0 रिया दुबे पुत्री स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/3. अभय दुबे पुत्र स्‍व0 राजीव कुमार दुबे।

1/4. आयुष दुबे पुत्र स्‍व0 राजीव कुमार दुबे। ½ ता ¼ द्वारा श्रीमती रीना दुबे। समस्‍त निवासीगण इटावा रोड, बेबर, जिला मैनपुरी।

                              ................प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अरविन्‍द तिलहरी,                                                 

                            विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्‍ता,                                    

                          विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 28.09.2017        

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

राज्‍य आयोग के माननीय सदस्‍यगण श्री विजय वर्मा और  श्री राज कमल गुप्‍ता द्वारा वर्तमान अपील संख्‍या-2387/2003 लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया बनाम राजीव कुमार दुबे की सुनवाई की गयी, परन्‍तु दोनों माननीय सदस्‍यगण ने अलग-अलग निर्णय पारित किया है, जिसमें माननीय सदस्‍यगण के

 

 

-2-

बीच इस बिन्‍दु पर मतभेद है कि क्‍या बीमाधारक व्‍यक्ति की मृत्‍यु दुर्घटना है या हत्‍या है? अत: यह अपील तृतीय सदस्‍य के रूप में सुनवाई हेतु मेरे समक्ष सूचीबद्ध की गयी है।

मेरे समक्ष अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स   कारपोरेशन   आफ   इण्डिया    के    विद्वान    अधिवक्‍ता                  श्री अरविन्‍द तिलहरी और प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के0 गुप्‍ता उपस्थित आए हैं।

मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षे‍पित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली और दोनों माननीय सदस्‍यगण द्वारा पारित निर्णयों का अवलोकन किया है।

दोनों माननीय सदस्‍यगण द्वारा पारित निर्णय के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि माननीय सदस्‍य श्री विजय वर्मा ने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि बीमाधारक व्‍यक्ति की मृत्‍यु हत्‍या है दुर्घटना नहीं, जबकि माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता ने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि बीमाधारक व्‍यक्ति की मृत्‍यु दुर्घटना है हत्‍या नहीं। अत: इस स्‍तर पर निर्णय हेतु विचारणीय बिन्‍दु यह है कि क्‍या बीमाधारक व्‍यक्ति की मृत्‍यु दुर्घटना है या हत्‍या है?

माननीय सदस्‍य श्री विजय वर्मा ने अपने निर्णय में  माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा श्रीमती रीता देवी बनाम न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेन्‍स कं0लि0 IV (2000) SLT 179 के वाद में दिए गए निर्णय को सन्‍दर्भित किया है, जिसमें माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निम्‍न मत व्‍यक्‍त किया है:-

 

-3-

The question, therefore, is can a murder be an accident in any given case? There is no doubt that 'murder' as it is understood, in the common parlance is a felonious act where death is caused with intent and the perpetrators of that act normally have a motive against the victim for such killing. But there are also instances where murder can be by accident on a given set of facts. The difference between a 'murder' which is not an accident and 'murder' which is an accident, depends on the proximity of the cause of such murder. In our opinion, if the dominant intention of the act of felony is the kill any particular person then such killing is not an accidental murder but is a murder simplicitor, while if the cause of murder or act of murder was originally not intended and the same was caused in furtherance of any other felonious act then such murder is an accidental murder.

माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता ने अपने निर्णय में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पवन कुमारी बनाम लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया व अन्‍य में पारित निर्णय              दिनांक 26.05.2016 को  सन्‍दर्भित  किया  है,  जिसमें  माननीय

 

-4-

राष्‍ट्रीय आयोग ने निम्‍न मत व्‍यक्‍त किया है:-

11.     Further, relying upon the judgement passed by the Andhra Pradesh High Court in United India Insurance Co. Ltd. & Anr. Vs. Ummadi Shakunthala (supra), it has been held that the murder which was the result of unexpected events from the standpoint of the victim was an accident. It has been held in the said judgement as follows:-

"28. From the above it is clear that murder, which is an unexpected event from the standpoint of victim, is an accident. In the instant case, it is not in dispute that the deceased was killed allegedly by group of persons belonging to other faction. Indisputably as the injuries being vital, the deceased died. Though it is on record that somebody attacked, the reasons are not known and further it is also very difficult to discern as to whether the intention of the person who attacked the deceased was only to cause injuries or to completely annihilate the deceased or for some other reason. Of course from the injuries caused it could be provisionally understood that the deceased was attacked to annihilate him. However, it would be totally a different

 

-5-

subject, which has to be dealt with separately in the criminal adjudication. But when it comes to the purpose of contractual obligation by the Insurance Company under the policy, the death of the deceased should only be understood, as already discussed above, as an 'accident'. The occurrence in my considered view satisfies all the conditions laid under the policy and hence it is inescapable for this Court to hold that the murder of the deceased in the present case shall be treated as an accident for the purpose of awarding compensation under the Janata Personal Accidence Policy." 

12.     A plain reading of the conclusion arrived at by the Andhra Pradesh High Court in the above case, shows that it was very difficult to discern, whether  the intention  of the person who attacked him was only to cause injuries, or to completely annihilate him. It is also stated that from the standpoint of the victim, it was an unexpected event. The facts and circumstances of the present case also show that the deceased first went to the house of Nathu Soni from where, he was tied by a rope by the persons present there. When he tried to go and report the matter to  the  police  station,  he  was

-6-

killed on the road. It is, therefore, clear from the standpoint of the deceased, it was an unexpected event, otherwise he would not have gone to the house of Nathu Soni, if he had known he shall be attacked and killed.

13.     In so far as the order passed by this commission in Prithvi Raj Bhandari (supra) is concerned, it is seen that the facts of this case are entirely different from the facts of the present case. In Prithvi Raj Bhandari (supra), three criminal cases had been filed against the deceased/insured already. It has been observed by this Commission that a series of criminal cases filed against him as well as his killing by shooting him in the ear and also in the ribs, left no doubt that it was a murder by design and intent, rather than a case of accident murder. The order passed by the National Commission shall not be applicable to the facts of the present case, where it can be concluded that there is nothing on record to show that the murder of the deceased policy-holder was a predesigned or pre-planned murder. Considering the ratio of the judgements,  therefore,  quoted  on   behalf   of   the

 

-7-

appellant, it is made out that murder in this case  comes under the definition of 'accident'.

     माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता ने अपने निर्णय में पुनरीक्षण याचिका संख्‍या-722/2010 गंगा राम राय बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांक 13.04.2015 को भी सन्‍दर्भित किया है, जिसमें माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने माया देवी बनाम लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया के वाद में पारित अपने पूर्व निर्णय का उल्‍लेख किया है, जिसमें माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा रीता देवी आदि बनाम न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेन्‍स कं0लि0 व अन्‍य के वाद में पारित निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्‍त का अनुसरण किया है।

     माननीय सदस्‍यगण द्वारा सन्‍दर्भित उपरोक्‍त न्‍याय निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्‍त के प्रकाश में उन तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार किया जाना आवश्‍यक है, जिसमें वर्तमान वाद के बीमाधारक व्‍यक्ति की हत्‍या किया जाना अभिकथित है।

     निर्विवाद रूप से बीमाधारक व्‍यक्ति के अपहरण के सम्‍बन्‍ध में अपराध संख्‍या-163/1998 अन्‍तर्गत धारा 364 आई0पी0सी0 थाना बेबर जिला मैनपुरी में प्रत्‍यर्थी/परिवादी राजीव कुमार दुबे की रिपोर्ट पर पंजीकृत किया गया है और प्रथम सूचना रिपोर्ट में यह कहा गया है कि दिनांक 11.04.1998 को साढ़े 11 बजे रात्रि में प्रत्‍यर्थी/परिवादी राजीव कुमार दुबे का भाई बीमाधारक अतुल कुमार  बस स्‍टैण्‍ड पर बैठा था तभी राजेश कुमार व उसका साला बौली  व

-8-

गुड्डन उसके पास आए और 25,000/-रू0 जो राजेश ने बीमाधारक अतुल कुमार से लिया था को देने के बहाने साथ लेकर गए और उसके बाद बीमाधारक की कथित रूप से हत्‍या हुई है।

     बीमाधारक अतुल कुमार के अपहरण के सम्‍बन्‍ध में जो उपरोक्‍त प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना बेबर में दर्ज करायी गयी है उससे यह स्‍पष्‍ट है कि दिनांक 11.04.1998 को साढ़े 11 बजे रात्रि के समय बीमाधारक को प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामित उपरोक्‍त व्‍यक्ति उसका रूपया देने के बहाने से लेकर गये हैं और           उसका अपहरण किया है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट                   दिनांक 13.04.1998 को प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने थाने में करीब                36 घण्‍टे बाद दर्ज करायी है। उस समय तक बीमाधारक की हत्‍या की कोई सूचना नहीं थी और न ही बीमाधारक की हत्‍या का कोई प्रत्‍यक्षदर्शी विवरण प्रथम सूचना रिपोर्ट अथवा पत्रावली में उपलब्‍ध है। बीमाधारक के अपहरण के बाद उसकी मृत्‍यु कब और कैसे हुई तथा किन परिस्थितियों में हुई यह अस्‍पष्‍ट है।

     माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता ने अपने निर्णय में पवन कुमारी बनाम लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया व अन्‍य के वाद में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय को जो सन्‍दर्भित किया है उसके तथ्‍य और वर्तमान वाद के तथ्‍य के बीच समानता दिखती है। अत: माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता ने वर्तमान वाद के तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में बीमाधारक की मृत्‍यु को जो दुर्घटना माना है, वह माननीय  सर्वोच्‍च  न्‍यायालय  द्वारा

 

-9-

रीता देवी बनाम न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेन्‍स कं0लि0 व अन्‍य के उपरोक्‍त वाद में प्रतिपादित सिद्धान्‍त एवं उसके अनुसरण में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पवन कुमारी बनाम लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कारपोरेशन आफ इण्डिया व अन्‍य एवं गंगा राम राय बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया के वाद में दिए गए निर्णयों के अनुकूल है और माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता द्वारा जो निष्‍कर्ष निकाला गया है, उसे वर्तमान वाद के तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में अनुचित कहना उचित नहीं है। अत: मैं माननीय सदस्‍य श्री राज कमल गुप्‍ता के मत से सहमत हूँ।

     सम्‍पूर्ण तथ्‍यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हूँ कि बीमाधारक अतुल कुमार की मृत्‍यु को दुर्घटना मानने हेतु उचित आधार है।

पत्रावली आज दिनांक 28.09.2017 को सम्‍बन्धित पीठ के समक्ष निर्णय घोषित करने हेतु प्रेषित की जाए।

 

               (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)           

                    अध्‍यक्ष             

 

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1    

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vijai Varma]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.