जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम रायबरेली।
परिवाद संख्या: ७५/२०१४
लक्ष्मी खरे पत्नी अजय कुमार निवासी रेलवे स्टेशन के सामने अमृत नगर जिला-रायबरेली।
परिवादिनी
बनाम
रायबरेली विकास प्राधिकरण द्धारा उपाध्यक्ष आर० डी० ए० काम्पलेक्स जेल गार्डेन रोड रायबरेली द्धारा जिलाधिकारी रायबरेली।
विपक्षी
परिवाद अंतर्गत धारा-१२ उपभोक्ता संरक्षण १९८६
निर्णय
परिवादिनी लक्ष्मी खरे ने यह परिवाद धारा-१२ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अंतर्गत इस आशय का प्रस्तुत किया है कि विपक्षी ने एकता विहार योजना वर्ष -२००५ में लाई जिसमे विभिन्न क्षेत्रफलो के ( एच. आई. जी. एम. आई. जी. एल. आई. जी. व ई. डब्लू. एस. भूखण्ड) आवंटित करने की योजना बनाई तथा समाचार पत्रों में पंजीकरण राशि के रूप में भूखण्ड के मूल्य का दस प्रतिशत जमा कराते हुये प्लाटों का आबंटन सुनिश्चित कराये जाने हेतु लाटरी कराने का आश्वासन दिया। उक्त योजना का पंजीकरण वर्ष २०१० से प्रारम्भ हुआ जिसमे परिवादिनी अपनी आवश्यकता अनुसार एम० आई० जी० प्लाट क्षेत्रफल १२८ वर्ग मीटर हेतु प्लाट मूल्य का दस प्रतिशत रू० ६४०००.०० जरिये बैंक ड्राफ्ट स्टेट बैंक आफ इंडिया रायबरेली का दिनांक २२.०२.२०१० को जमा कराकर अपना पंजीकरण कराई। प्रश्नगत योजना में विपक्षी द्धारा बताये गये क्षेत्रफल १२८ वर्ग मीटर का मूल्य रू० ६४००००.०० व बारह प्रतिशत फ्री होल्ड शुल्क बताया गया था परन्तु बाद में अपनी ही नियमावली उत्तर प्रदेश नगर विकास योजना और विकास अधिनियम १९७३ अधिनियम संख्या-११ के प्राविधानों के अनुसार तैयार की गई थी उसको नजर अंदाज करते हुये मनमाने ढ़ग से प्लाटो की कीमत बढ़ाकर रू० ८६७०००.०० कर दिया गया। विपक्षी द्धारा बिना शासनादेश के प्रश्नगत प्लाटों का प्रकाशन मूल्य रू० ५०००.०० प्रतिवर्गमीटर से बढ़ाकर रू० ९८००.०० प्रति वर्ग मीटर कर दिया गया जबकि विपक्षी के ही शासनादेश संख्या ४०४९/९-आ-९९/१६ समिति १९९८ जो कि विपक्षी के उच्च अधिकारी आवास आयुक्त के द्धारा जारी किया गया है जिसमे यह उल्लेख है कि वास्तविक मूल्य दस प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। जबकि इसके विपरीत मूल्य बढ़ाये जाने का कोई शासनादेश भी विपक्षी द्धारा नहीं जारी किया गया। प्रश्नगत प्लाटों की लाटरी विपक्षी द्धारा दिनांक १९.०२.२०१३ को की गई उक्त लाटरी
२
के पूर्व दिनांक २२.०१.२०१३ को विपक्षी द्धारा दूरभाष पर सूचित किया गया कि एकमुश्त धनराशि जमा करने वालो के प्रस्ताव देने वालो को भूखण्ड आवंटन में वरियता दी जायेगी जिसका लाभ उठाने हेतु परिवादिनी द्धारा भी एक मुश्त धनराशि जमा करने का प्रस्ताव दे दिया गया। विपक्षी द्धारा लाटरी करने के पूर्व मौखिक रूप से बताया गया कि प्लाट की संख्या बुकलेट में प्रकाशित १०७ के बजाय ९६ ही है आज आधे अर्थात ४८ प्लाटों की लाटरी की जायेगी जबकि पूर्व में दिनांक २०.०२.२०१३ को प्लाटों का मूल्य बढ़ा दिया गया था। परिवादिनी विपक्षी के कार्यालय में शेष प्लाटों की लाटरी हेतु जाती रही परन्तु उसे मात्र झूठा आश्वासन ही दिया जाता रहा। शेष प्लाटों पर विपक्षी द्धारा धोखा- धड़ी करते हुये व्यक्तिगत लाभ के लिये फ्लैट निर्माण प्रारम्भ करा दिया गया जिसका अनुमोदन विपक्षी के अधिकारियों द्धारा दिनांक ०५.०६.२०१३ को किया गया जबकि योजना परिवर्तन का निर्णय विपक्षी के सक्षम अधिकारियों द्धारा नहीं किया गया और न ही समाचार में इस निमित्त कोई सूचना ही प्रकाशित की गई। विपक्षी के द्धारा भूखण्ड का प्रकाशन किया गया तथा उसी के अनुसार परिवादिनी से धनराशि भी जमा कराई गई परन्तु विधि विरूद्ध तरीके से फ्लैट का निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया जो विपक्षी की सेवा में न्यूनता है। विवाद दिनांक २२.०२.२०१० को पैदा हुआ जब परिवादिनी ने अपना पंजीकरण धनराशि जमा करके कराया उसके पश्चात् दिनांक १९.०२.२०१३ को विपक्षी द्धारा पचास प्रतिशत प्लाटों की लाटरी कराई गई तथा शेष प्लाटों पर विधि विरूद्ध तरीके से नियमावली के परे जाकर फ्लैट का निर्माण प्रारम्भ किया गया। इसके अतिरिक्त दिनांक १९.१२.२०१४ को फोरम द्धारा दिनांक २०.१२.२०१४ को प्रश्नगत प्लाटों की लाटरी में सम्मिलित किये जाने का आदेश दिये जाने के बावजूद भी विपक्षी द्धारा परिवादिनी को लाटरी में शामिल नहीं किया गया। जिसके कारण परिवादिनी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अत: परिवादिनी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादिनी ने याचना किया है कि प्रश्नगत भूखण्डों पर विधि विरूद्ध तरीके से किये जा रहे फ्लैट निर्माण तथा लाटरी दिनांक २०.१२.२०१४ को निरस्त किया जाय अथवा विकल्प में प्रश्नगत प्लाट क्षेत्रफल १२८ वर्ग मीटर उसे दिलाया जाय तथा प्लाट आवंटन की दशा में शासनादेश संख्या ४०४९/९-आ-९९/१६/समिति१९९८ के अनुसार दस प्रतिशत वृद्धि अर्थात रू० ५५००.०० प्रति वर्ग मीटर आधार पर प्लाट दिलाया जाय।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र योजित किया है जिसमे यह अभिकथन किया है कि रायबरेली विकास प्राधिकरण रायबरेली द्धारा वर्ष-२००५ में एकता विहार योजना में ए० बी० सी० तथा डी० टाइप भूखण्डों के बावत पंजीकरण खोला गया किन्तु उस अवधि में परिवादिनी द्धारा कोई पंजीकरण नहीं कराया गया।
३
सभी श्रेणियों के भूखण्ड का मूल्य अनुमानित था तथा अंतिम मूल्यांकन के पश्चात् बढ़ी हुई धनराशि आवंटी को जमा करनी होगी। पुन: पंजीकरण दिनांक २७.०१.२०१० से २७.०२.२०१० की अवधि के लिये खोला गया जिसमे परिवादिनी ने अपना पंजीकरण स्वेच्छा से विपक्षी के समक्ष प्रस्तुत किया। दिनांक २७.०१.२०१० से २७.०२.२०१० की अवधि में विपक्षी प्राधिकरण द्धारा जारी की गई पंजीकरण सूचना की शर्त कालम-४ में यह वर्णित है कि उपरोक्त मूल्य अनुमानित है जो अंतिम मूल्यांकन के समय परिवर्तनीय है और इस प्रकार के मामले उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है। एकता विहार योजना में एच० आई० जी० २०० वर्ग मीटर तथा एम० आई० जी० १२८ वर्ग मीटर के पचास प्रतिशत भूखण्डो का आवंटन लाटरी के माध्यम से किये जाने का निर्णय लिया गया है जिसके लिये एक मुश्त धनराशि जमा करने का प्राविधान रखा गया तथा इसकी विज्ञप्ति अमृत प्रभात में दिनांक २५.०१.२०१३ तथा पायनियर दिनांक २४.०१.२०१३ में प्रकाशित कराई गई। परिवादिनी ने विपक्षी के समक्ष दिनांक २४.०१.२०१३ को एक मुश्त धनराशि जमा करने हेतु लिखित रूप से अपनी सहमति दी। परिवादिनी ने दिनांक १९.०२.२०१३ को लाटरी में भाग लिया था किन्तु असफल रही। लाटरी में असफल होने के कारण उसे सम्पत्ति आवंटित नहीं की गई। परिवादिनी विपक्षी की उपभोक्ता नहीं है। परिवादिनी ने तथ्यों को छिपाकार काल्पनिक आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है जो निरस्त होने योग्य है। प्राधिकरण को जनहित में किसी भी योजना में बदलाव का पूर्ण अधिकार है। परिवादिनी द्धारा चाहा गया अनुतोष मेनडेटरी इंजक्शन की कोटि में आता है। विपक्षी द्धारा किसी भी स्तर पर उपभोक्ता की सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। परिवाद किसी भी दशा में पोषणीय नहीं है। परिवादिनी किसी भी धनराशि को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अत: परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
परिवादिनी ने परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में स्वयं का शपथ पत्र तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में पंजीकरण आवंटन नियमावली पंजीकरण आवेदन पत्र दिनांक २५.०२.२०१० बैंकर्स चैक आदेश दिनांक ०६.०७.२०१३ आदेश दिनांक २०.०२.२०१० व ०२.०३.२०१३ कमीशन रिपोर्ट दिनांक १२.०८.२०१४ समाचार पत्र दिनांक ०९.१२.२०१४ तथा फेहरिस्त द्धारा दिनांक ११.०३.२०१५ को चार प्रपत्रों की फोटो प्रतिलिपि प्रस्तुत किया है।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र के कथनों के समर्थन में शपथपत्र तथा दस प्रपत्र व निर्णय प्रस्तुत किया है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुना तथा पत्रावली का भलीभांति परिशीलन किया। यहॉ आरम्भ में ही विपक्षी रायबरेली विकास प्राधिकरण की तरफ से विद्धान अधिवक्ता श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी द्धारा जो
४
तर्क प्रस्तुत किया गया है उनका उल्लेख करना उचित होगा। विद्धान अधिवक्ता बाजपेई ने अपने तर्क में यह कहा है कि परिवादिनी विपक्षी रायबरेली विकास प्राधिकरण की उपभोक्ता नहीं है परिवादिनी ने यह परिवाद जनहित याचिका तथा प्रतिनिधि वाद के रूप में प्रस्तुत किया है अत: इस मंच के समक्ष यह परिवाद पोषणीय नहीं है। लाटरी से संबंन्धित कोई आदेश पारित करने की अधिकारिता इस मंच को नहीं है तथा परिवादिनी का परिवाद कालबाधित है। विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता ने यह तर्क दिया है कि परिवादिनी ने सेवाओं के लिये जाने का उल्लेख परिवाद में नहीं किया है अत: वह उपभोक्ता नहीं है। अपने तर्क के समर्थन में विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता ने १९९५(१) जेसीआर(५) एस०सी० एम० एस० म्युचुअल फंड बनाम कार्तिक दास डा० अरबिन्द कुमार बनाम सेबी एंव अन्य में माननीय उच्चतम न्यायालय द्धारा प्रतिपादित निर्णयज विधि सिद्धान्त को उद्धरित किया है तथा उक्त निर्णयज विधि के प्रस्तर-२६ पर विशेष बल देते हुये यह कहा है कि ऐसे प्रकरण में उपभोक्ता मंच को धारा-१४ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में वर्णित अधिकारिता के अंतर्गत निषेधाज्ञा निर्गत करने का अधिकार नहीं है। परिवादिनी के उपभोक्ता न होने के संबंध में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय पीठ द्धारा १९९१ एससीडी पृष्ठ ८१ रवि कुमार आनन्द एंव अन्य बनाम आवास विकास परषिद लखनऊ एंव अन्य तथा सीपीआर २००६ (२) २९१ बजरंग लाल अग्रवाल बनाम राजस्थान हाउसिंग बोर्ड एंव अन्य में प्रतिपादित विधि सिद्धान को उद्धरित करते हुये यह तर्क दिया है कि मात्र पंजीकरण के आधार पर किसी को आवंटन का अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता है। परिवादिनी के उपभोक्ता न होने के संबंध में २००५(२) सीपीआर ३०८ एन० एस० आर० नैय्यर बनाम प्रबंधक राज्य इंजीनियरिंग उघोग में केरल राज्य उपभोक्ता आयोग द्धारा प्रतिपादित निर्णयज विधि सिद्धान्त को उद्धरित किया है कि परिवाद में यदि परिवादी द्धारा सेवा लिये जाने का उल्लेख नहीं है तब उसे उपभोक्ता नहीं माना जायेगा।
परिवादिनी के विद्धान अधिवक्ता ने उपरोक्त निर्णयज विधि सिद्धान्तों के विपरीत २०१५ (सीपीजे) पृष्ठ ३६ एन सी दिल्ली डेवलपमेन्ट एथारिटी बनाम प्रवीण कुमार एंव अन्य तथा निर्मला देवी बनाम उत्तर प्रदेश आवास एंव विकास परषिद में प्रतिपादित निर्णयज विधि सिद्धान्त को उद्धरित किया है जिसमे यह स्पष्ट अवधारित किया गया है कि जिन व्यक्तियों ने विकास प्राधिकरण में अपना पंजीकरण कराया है तथा फ्लैट अथवा प्लाट की प्रतीक्षा में है उन्हें उपभोक्ता माना जायेगा। इसी प्रकार परिवादिनी ने २०१२ सीपीजे(४) एस सी नरायण कन्सट्रक्शन आदि बनाम यूनियन आफ इंडिया एंव अन्य में प्रतिपादित निर्णयज विधि सिद्धान्त को उद्धरित किया है जिसमे माननीय
५
उच्चतम न्यायालय ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि जब कोई व्यक्ति किसी भूखंड अथवा भवन के आवंटन हेतु पंजीकरण कराके प्रतीक्षारत है तो वह उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। उपरोक्त समग्र निर्णयज विधि सिद्धान्तों के परिशीलन के उपरान्त हम इस निश्चित मत के है कि परिवादिनी विपक्षी की उपभोक्ता है।
जहॉ तक परिवाद के जनहित याचिका होने का प्रश्न है परिवादिनी ने स्वयं के साथ विपक्षी द्धारा की गई सेवा में कमी उपेक्षा एंव लापरवाही के तथ्यों का वर्णन करते हुये परिवाद प्रस्तुत किया है एंव मात्र स्वयं के लिये उपश्रम की याचना किया है। आम जन मानस के लिये यह याचना न तो की गई है और न तो परिवाद प्रस्तुत किया है। अत: प्रस्तुत परिवाद जनहित याचिका की श्रेणी में नहीं आता है। विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवाद में अन्य आवेदकों का भी वर्णन किया गया है जिससे यह परिवाद जनहित याचिका हो जाता है किन्तु परिवाद पत्र में वर्णित समग्र तथ्यों के परिशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि तथ्य एंव परिस्थितियों का विस्तृत विवरण अंकित करने में परिवादिनी ने अन्य आवेदकों द्धारा कराये गये पंजीकरण आदि का उल्लेख किया है। अन्य आवेदकों के तथ्यों का उल्लेख करने मात्र से यह परिवाद जनहित याचिका नहीं हो जायेगा। अत: विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क कि प्रस्तुत परिवाद जनहित याचिका है तथा पोषणीय नहीं है विधिमान्य नहीं है तथा यह परिवाद प्रतिनिधि वाद के रूप में भी नहीं प्रस्तुत किया गया है। जहॉ तक परिवाद के काल बाधित होने का प्रश्न है परिवादिनी ने दिनांक १९.०२.२०१३ को प्लाटों की कराई गई लाटरी में उसे सम्मिलित न किये जाने से वाद का कारण उत्पन्न होना बाताया है तथा निर्धारित विधिक अवधि के अंतर्गत परिवाद प्रस्तुत किया है अत: परिवाद कालबाधित नहीं है।
परिवादिनी के परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों के परिशीलन से स्पष्ट है कि परिवादिनी ने निम्न लिखित आधारो पर स्वयं के प्रति विपक्षी द्धारा की गई सेवा में कमी का उल्लेख किया है। प्रथमत: यह कि विधि विरूद्ध तरीके से योजना का परिवर्तन कर दिया गया है। द्धितीयत: यह कि शासनादेश के विपरीत दस प्रतिशत से अधिक की मूल्य वृद्धि कर दी गई और परिवादिनी को लाटरी में सम्मिलित नहीं किया गया।
जहॉ तक योजना परिवर्तन एंव मूल्य वृद्धि का प्रश्न है प्रस्तुत परिवाद में इस मंच द्धारा इन बिन्दुओं पर विस्तृत परीक्षण आपेक्षित नहीं है।
अब प्रश्न यह है कि क्या परिवादिनी को लाटरी में शामिल किया गया अथवा नहीं। यहॉ आरम्भ में ही इस तथ्य का उल्लेख करना उचित होगा कि परिवादिनी ने रायबरेली विकास प्राधिकरण के विरूद्ध उपाध्यक्ष के माध्यम से
६
यह परिवाद प्रस्तुत किया है किन्तु रायबरेली विकास प्राधिकरण की तरफ से उपाध्यक्ष स्वयं अथवा अपने अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित नहीं आये है अपितु श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने सचिव विकास प्राधिकरण की तरफ से वकालतनामा प्रस्तुत किया है। इस प्रकार रायबरेली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष की तरफ से कोई उपस्थित नहीं आया मात्र सचिव विकास प्राधिकरण की तरफ से उनके विद्धान अधिवक्ता उपस्थित आये है तथा सचिव विकास प्राधिकरण ने ही परिवादिनी के परिवाद पत्र के विरूद्ध अपनी आपत्ति एंव लिखित उत्तर प्रस्तुत किया है। यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्षी लिखित उत्तर के समर्थन में श्री विवेक कुमार सिंह अवर अभियन्ता सिविल रायबरेली विकास प्राधिकरण ने शपथपत्र प्रस्तुत किया है एंव उन्होंनें अपने शपथपत्र में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि उन्हें शपथपत्र प्रस्तुत करने हेतु अधिकृत किया गया है इसी प्रकार एक दूसरा शपथपत्र विपक्षी के तरफ से श्री नरेन्द्र कुमार मारकान्डे अवर अभियन्ता रायबरेली विकास प्राधिकरण ने प्रस्तुत किया है तथा उन्होंनें भी स्वयं को शपथपत्र प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त होने का तथ्य शपथपत्र में कहा है किन्तु ऐसा कोई अधिकार पत्र इन दोनो अवर अभियन्तागण की ओर से नहीं प्रस्तुत किया गया जिससे यह स्पष्ट हो कि वह विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे है और उन्हें रायबरेली विकास प्राधिकरण की तरफ से प्रतिनिधित्व करने हेतु अधिकृत किया गया है। फलत: स्थिति यह है कि विपक्षी की तरफ से अधिकृत व्यक्ति द्धारा लिखित उत्तर में वर्णित तथ्यो का समर्थन करने हेतु विधि मान्य तरीके से शपथपत्र नहीं प्रस्तुत किया है।
जहॉ तक विपक्षी द्धारा भूखंडों की लाटरी कराये जाने का प्रश्न है। स्वीकृत रूप से १०७ भूखंडों की लाटरी होनी थी किन्तु घोषित किया गया कि मात्र ९६ भूखंडों की ही लाटरी की जायेगी। कालान्तर में लाटरी करने के पूर्व ९६ भूखंड के बजाय मात्र ४८ भूखंड की ही लाटरी की गई। परिवादिनी को यह विश्वसनीय आशंका हुई कि विपक्षी उसे अवैध रूप से लाटरी में शामिल नहीं होने देगें अत: परिवादिनी ने इस आशय का प्रार्थना पत्र भी इस मंच के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसे विधि सम्मत तरीके से लाटरी में सम्मिलत होने दिया जाय। यघपि लिखित उत्तर तथा उसके समर्थन में प्रस्तुत किये गये उपरोक्त शपथपत्रों में परिवादिनी को लाटरी में सम्मिलित होने का तथ्य वर्णित किया गया है अर्थात यह कहा गया है कि परिवादिनी लाटरी में सम्मिलित हुई किन्तु वह असफल रही। परिवादिनी द्धारा विपक्षी रायबरेली विकास प्राधिकरण से सूचना का अधिकार २००५ के अंतर्गत प्राप्त की गई लिखित सूचना की छाया प्रति दाखिल की गई है जिसमे विपक्षी ने इस आशय की स्पष्ट सूचना दिया है कि कुल-३३ लोग लाटरी में सफल हुये। विपक्षी की टिप्पणी में यह
७
उल्लेख है कि उपाध्यक्ष महोदय के आदेश के क्रम में अन्य श्रेणी के भूखण्डों के साथ ही १२८ वर्गमीटर एम० आई० जी० श्रेणी के भूखण्डों का आवंटन भी लाटरी द्धारा किया गया है। इस श्रेणी के भूखण्ड हेतु पूर्व में लाटरी में सम्मिलित श्रीमती लक्ष्मी खरें द्धारा जिला उपभोक्ता संरक्षण फोरम रायबरेली में वाद दाखिल किया गया था। फोरम द्धारा दिनांक १९.१२.२०१४ को अपने आदेश में श्रीमती लक्ष्मी खरें को लाटरी में सम्मिलित किये जाने का आदेश दिया गया था। इस आदेश के विरूद्ध प्राधिकरण अधिवक्ता द्धारा फोरम में दिनांक १९.१२.२०१४ को आपत्ति पत्र भी दाखिल किया गया है।
श्रीमती लक्ष्मी खरे द्धारा पुन: लाटरी में सम्मिलित न किये जाने के कारण माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के समक्ष रिट याचिका संख्या- १२९३४/एम० बी०/२०१४ लक्ष्मी खरे बनाम स्टेट आफ यू० पी० व अन्य योजित की गई दिनांक २३.१२.२०१४ को उक्त याचिका पर सुनवाई के दौरान प्राधिकरण अधिवक्ता द्धारा विरोध किये जाने पर याचिका कर्ता ने उक्त रिट याचिका माननीय उच्च न्यायालय से वापस लिये जाने का अनुरोध किया जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका को वापसी के आधार पर खारिज कर दिया। इस प्रकार इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय से याची को कोई अनुतोष प्राप्त नहीं हुआ। अत: दिनांक २०.१२.२०१४ को सम्पन्न एम० आई० जी० भूखंड की लाटरी को इस शर्त के स्वीकृत कर दिया जाये कि श्रीमती लक्ष्मी खरे के मामले में यदि कोई न्यायिक निर्णय होता है तो उस पर तद्नुसार अनुपालन किया जायेगा। विपक्षी के पत्रावली पर उपलब्ध उपरोक्त टिप्पणी से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी को इस मंच द्धारा आदेश दिये जाने के बावजूद विपक्षी ने लाटरी में सम्मिलित नहीं किया। उक्त टिप्पणी से यह भी स्पष्ट है कि विपक्षी को लाटरी में विधि सम्मत तरीके से सम्मिलित किये जाने का इस मंच द्धारा पारित आदेश की पूर्णत: जानकारी थी।
यहॉ इस तथ्य का भी उल्लेख करना उचित होगा कि विपक्षी ने इस तथ्य को भी स्पष्ट नहीं किया है कि किन परिस्थितियों में १०७ भूखंडों के बजाय मात्र ९६ भूखंड की लाटरी प्रस्तावित की गई और अंतत: मात्र ४८ भूखंड की ही लाटरी की गई। विपक्षी के इस कृत्य से परिवादिनी के लाटरी में सफल होने की स्थिति न केवल क्षीण हो गई अपितु नगण्य हो गई और उसके अधिकारों का भी विधि विरूद्ध तरीके से हनन हुआ।
फलत: अब स्थिति यह है कि स्वीकृत रूप से विपक्षी रायबरेली विकास प्राधिकरण की एक योजना यह भी थी कि पंजीकृत व्यक्ति भूखंड का सम्पूर्ण मूल्य एक मुश्त जमा कर देगें तो उन्हें प्रथम आगत प्रथम आवंटन के आधार पर भूखंडों का आवंटन किया जायेगा। परिवादिनी ने स्वीकृत रूप से सम्पूर्ण धनराशि जमा करके भूखंड आवंटित किये जाने की सहमति दिया था किन्तु
८
उसने यह धनराशि जमा नहीं किया और उसने स्वयं का भाग्य आजमाने के लिये लाटरी में सम्मिलित होने का विकल्प चुना किन्तु परिवादिनी को विधि विरूद्ध तरीके से बिना किसी वैधानिक आधार के लाटरी में सम्मिलित नहीं होने दिया गया जिससे परिवादिनी के विधिक अधिकारों का हनन हुआ। विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादिनी ने प्रथम बार आयोजित लाटरी में भाग लिया था और उसमे सफल नहीं हुई थी अत: दूसरी बार परिवादिनी को लाटरी में भाग लेने नहीं दिया गया किन्तु यह तर्क भी विधि मान्य नहीं है क्योंकि विपक्षी द्धारा ऐसा कोई नियम नहीं बताया गया जिसमे इस तथ्य का उल्लेख हो कि जो प्रथम बार लाटरी में भाग लेगा उसे दूसरी बार भाग नहीं लेने दिया जायेगा। इसके अतिरिक्त विपक्षी इस आशय का अभिलेख भी प्रस्तुत नहीं कर सके कि परिवादिनी प्रथम बार लाटरी में भाग ले चुकी है।
इसके अतिरिक्त पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार रायबरेली विकास प्राधिकरण द्धारा लाटरी सम्पन्न कराई जा चुकी है अत: अब पुन: लाटरी कराये जाने का कोई अवसर तथा औचित्य नहीं है। इस प्रकार परिवादिनी के लाटरी में भाग लेने के अधिकारों का हनन हो चुका है। अत: अब यही एक विकल्प अवशेष रह जाता है कि रायबरेली विकास प्राधिकरण अपनी स्वयं की योजना के अनुसार यदि कोई एक मुश्त सम्पूर्ण धनराशि जमा करता है तब उसे प्रथम आगत प्रथम आवंटन के आधार पर भूखंड आवंटित किया जाय।
अत: स्पष्ट है कि विपक्षी द्धारा परिवादिनी को लाटरी में विधि विरूद्ध तरीके से सम्मिलित न किये जाने के आधार पर परिवादिनी के प्रति विपक्षी द्धारा उपेक्षा लापरवाही एंव सेवा में त्रुटि कारित की गई है। अत: परिवादिनी को यह अधिकार उत्पन्न होता है कि स्वयं विपक्षी की योजना प्रथम आगत प्रथम आवंटन का लाभ परिवादिनी को प्रदान किया जाय अर्थात परिवादिनी यदि भूखंड का पंजीकरण पुस्तिका में उल्लिखित प्रस्तावित सम्पूर्ण मूल्य जो शासनादेश के अनुसार बढ़े हुये दर से दस प्रतिशत से अधिक न हो को यदि एक मुश्त जमा कर देती है तब उसे भूखंड का आवंटन प्राप्त किये जाने का अधिकार होगा।
जहॉ तक मूल्य वृद्धि का प्रश्न है इस संबंध में स्पष्ट शासनादेश पत्रावली पर उपलब्ध है कि दस प्रतिशत से अधिक की मूल्य वृद्धि नहीं की जायेगी। जबकि इसके विपरीत विपक्षी ने मूल्य वृद्धि के संबंध में कोई शासनादेश नहीं प्रस्तुत किया है।
जहॉ तक फ्लैट निर्माण योजना निरस्त किये जाने का प्रश्न है हम इस निश्चित मत के है कि इस मंच को विस्तृत परीक्षण करके योजना निरस्त करने की अधिकारिता नहीं प्राप्त है।
९
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निश्चित मत के है कि परिवादिनी परिवाद पत्र में वर्णित तथ्य को सिद्ध करने में पूर्ण रूप से सफल रही है। अत: परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि यदि परिवादिनी दो माह के अंतर्गत पंजीकरण पुस्तिका में उल्लिखित भूखंड का सम्पूर्ण प्रकाशित मूल्य जो शासनादेश के अनुसार दस प्रतिशत से अधिक बढ़ा हुआ न हो एक मुश्त जमा कर देती है तो विपक्षी परिवादिनी द्धारा धनराशि जमा करने की तिथि से एक माह के अंतर्गत परिवादिनी को प्रथम आगत प्रथम आवंटन की विपक्षी की योजना के अनुसार उसे भूखंड आवंटित करें। सन्दर्भित परिस्थिति में वाद व्यय पक्षकार वहन् करेंगें।
(शैलजा यादव) (राजेन्द्र प्रसाद मयंक) (लालता प्रसाद पाण्डेय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
यह निर्णय आज फोरम के अध्यक्ष एंव सदस्यों द्वारा हस्ताक्षारित एंव दिनांकित कर उदघोषित किया गया।
(शैलजा यादव) (राजेन्द्र प्रसाद मयंक) (लालता प्रसाद पाण्डेय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
दिनांक २१.१२.२०१५
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि यदि परिवादिनी दो माह के अंतर्गत पंजीकरण पुस्तिका में उल्लिखित भूखंड का सम्पूर्ण प्रकाशित मूल्य जो शासनादेश के
अनुसार दस प्रतिशत से अधिक बढ़ा हुआ न हो एक मुश्त जमा कर देती है तो विपक्षी परिवादिनी द्धारा धनराशि जमा करने की तिथि से एक माह के अंतर्गत परिवादिनी को प्रथम आगत प्रथम आवंटन की विपक्षी की योजना के अनुसार उसे भूखंड आवंटित करें। सन्दर्भित परिस्थिति में वाद व्यय पक्षकार वहन् करेंगें।