राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2694/2015
चोलामण्डलम मै0 जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि0 रीजनल आफिस द्वितीय
फ्लोर, 4 मैरी गोल्ड, शाह नजफ रोड, सप्रू मार्ग, लखनऊ द्वारा असिस्टेन्ट
जनरल मैनेजर। .....अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम
रविन्द्र सिंह पुत्र श्री अमर सिंह निवासी पुरवा, लल्लु पोस्ट गुपचरियापुर
जिला औरैया। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री टी0के0 मिश्रा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश कुमार शर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 07.09.2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 30/2015 रवीन्द्र सिंह बनाम चोला मण्डल व एक अन्य में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 03.11.2015 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता मंच ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि परिवादी को रू. 570190/- 07 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित अदा किया जाए और यदि चोरी गया ट्रैक्टर बरामद होता है तब इस ट्रैक्टर का स्वामित्व बीम कंपनी का होगा।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने 22.02.14 को ट्रैक्टर क्रय किया था, जिसका बीमा 22.02.14 से 22.02.15 तक के लिए वैध था। बीमा मूल्य रू. 566190/- था। यह ट्रैक्टर दि. 01.03.14 को श्रीमती रजनी के मकान से लुलुईया बम्बा के पास से लूट लिया गया, तब से ट्रैक्टर का पता नहीं चला। बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, जो नकार दिया गया।
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3. बीमा कंपनी का कथन है कि घटना के समय चालक के पास लाइसेन्स नहीं था तथा ट्रैक्टर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए चलाया जा रहा था। दि. 16.04.11 की बताई गई है, जबकि सूचना 31.03.12 को दी गई है। इस प्रकार बीमा की शर्त का उल्लंघन किया गया है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच ने उपरोक्त निर्णय/आदेश पारित किया।
5. इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता मंच ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है, क्योंकि पालिसी की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। 11 दिन के पश्चात बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, इसलिए बीमा पालिसी की शर्त संख्या 1 व 9 का उल्लंघन हुआ, इसलिए बीमा कंपनी का कोई उत्तरदायी नहीं है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय अपास्त होने योग्य है।
6. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय व पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में ट्रैक्टर चोरी होने या ले जाने का कोई कथन नहीं है, इसलिए ट्रैक्टर की चोरी या लूट नहीं हुई है तथा बीमा कंपनी को समय पर सूचना नहीं दी गई, इसलिए बीमा कंपनी उत्तरदायी नहीं है। नकल तहरीर की प्रति दस्तावेज संख्या 27 के रूप में मौजूद है। इस रिपोर्ट में ट्रैक्टर को लौटाने या ट्रैक्टर की चोरी होने का कोई उल्लेख नहीं है, केवल यह कथन किया गया कि ट्रैक्टर गायब करा दिया। परिवादी/प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि इस तहरीर के आधार पर जो अपराध पंजीकृत हुआ है उसमें चोरी की
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धारा 379 अंकित है। दस्तावेज संख्या 26 के अवलोकन से जाहिर होता है कि धारा 143, 323, 147, 504, 506, 342 के साथ धारा 378 का भी उल्लेख है। यथार्थ में किसी व्यक्ति के साथ यदि मारपीट कर कोई चीज चुराई गई है तब ऐसा मामला धारा 379 के अंतर्गत नहीं आता। धारा 379 का उल्लेख तहरीर में दिए गए विवरण के विपरीत है। तहरीर में कहीं पर भी नहीं है कि ट्रैक्टर को चुरा लिया गया या ट्रैक्टर को बलपूवर्क छीन लिया गया/लूट लिया गया। मारपीट करने का स्पष्ट उल्लेख है, परन्तु ट्रैक्टर के संबंध में केवल गायब करा दिया गया शब्द का उल्लेख है। इस तहरीर के आधार पर गायब कराने का कोई तरीका नहीं दर्शाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि बीमा क्लेम प्राप्त करने के उद्देश्य से एक फर्जी कहानी तैयार की गई। तहरीर के अनुसार यद्यपि गलत रूप से धारा 379 अंकित है, परन्तु फिर भी इस धारा के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने के बाद विवेचना का क्या परिणाम हुआ, इस दायित्व का कोई सबूत पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए चोरी की कोई घटना किसी सक्षम न्यायालय द्वारा साबित नहीं मानी गई। चूंकि चोरी की घटना साबित नहीं है, इसलिए बीमा कंपनी द्वारा कोई बीमा क्लेम देय नहीं बनता। जिला उपभोक्ता मंच ने विधिक स्थिति के विपरीत निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्त मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद खारिज किया जाता है।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाए।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2