सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 2798/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-390/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16-04-2012 के विरूद्ध)
M/s Luxmi Cold Storage & Ice Industries, Jadishpur Didhwa, Kauriram District-Gorakhpur, through Proprietor.
...अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Ravidra Pratap Singh S/o Late Vishram Singh R/o Vill-Rohari, Post Rohari, Belghat, Teh-Khajani, District-Gorakhpur.
..........प्रत्यर्थी/परिवादी
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
समक्ष :-
- मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
दिनांक : 25-10-2018
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-390/2010 रविन्द्र प्रताप सिंह बनाम् मे0 लक्ष्मी कोल्ड स्टोरज एण्ड आइस इण्डस्ट्रीज में जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16-04-2012 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
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इस प्रकरण में विवाद के संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने वर्ष 2007-08 में आलू की खेती की और भण्डारण की व्यवस्था न होने पर परिवादी ने विपक्षी के कोल्ड स्टोरज में दिनांक 11-03-2008 को 61 कुन्तल 60 किलो आलू रखा (जिसका विवरण निम्नानुसार है :- (1) 112 बोरे प्रत्येक बोरा 50 किलोग्राम (2) 07 बोरे प्रत्यर्थी बोरा 80 किलोग्राम)। परिवादी ने रखे गये आलू की विपक्षी से रसीद संख्या-13421119 दिनांक 11-03-2008 को प्राप्त की। कोल्ड स्टोरज का किराया उसे रू0 110/- प्रति कुन्तल बताया गया था। परिवादी माह सितम्बर, 2008 में जब अपना आलू लेने विपक्षी के कोल्ड स्टोरज में गया तो उसे बताया गया कि आपका आलू खराब हो गया है और एक माह बाद आलू का मूल्य वापिस कर दिया जायेगा। किन्तु विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू नही लौटाया गया। परिवादी ने विपक्षी को कानूनी नोटिस दिया परन्तु कोई कार्यवाही विपक्षी द्वारा नहीं की गयी। जो कि विपक्षी के स्तर पर सेवा में कमी है। इसलिए क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद संख्या-390/2010 जिला फोरम गोरखपुर के समक्ष योजित करते हुए हुए निम्न अनुतोष की याचना की गयी है:-
- यह कि विपक्षी से आलू, भण्डारण के संबंध में वादी की हुई वास्तविक हानि रू0 1,14,565/- दिलाया जाए।
- यह कि आलू भण्डारण का किराया माफ किया जाए।
- यह कि परिवाद व्यय रू0 3,000/- परिवादी को विपक्षी से दिलाया जाए।
- यह कि अधिवक्ता फीस रू0 5000/- विपक्षी से परिवादी को दिलाया जाए।
विपक्षी को जिला फोरम द्वारा नोटिस जारी किया गया परन्तु विपक्षी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई लिखित बयान प्रस्तुत किया गया। अत: विपक्षी के विरूद्ध परिवाद की सुनवाई एकपक्षीय रूप से की गयी है।
जिला फोरम ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों का परिशीलन करने तथा उनके तर्कों को सुनने के बाद आक्षेपित निर्णय दिनांक 16-04-2012 के द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार कर लिया तथा निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
‘’ परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय व आदेश के एक माह की अवधि के अन्तर्गत रू0 17,470/- परिवादी को प्रदान करे अथवा बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से मंच में जमा करें, जो
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परिवादी को दिलाई जा सके। यदि नियत अवधि एक माह के अन्तर्गत विपक्षी धनराशि अदा नहीं करते है तो समस्त धनराशि विपक्षी से विधि अनुसार वसूल की जायेगा।‘’
उपरोक्त आक्षेपित आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
अपील में आधार लिया गया है कि अपीलार्थी को जिला फोरम के समक्ष परिवाद की कोई जानकारी नहीं थी और उसे उक्त परिवाद में कोई नोटिस प्राप्त नहीं हुआ। प्रश्नगत आदेश एकपक्षीय है तथा खारिज होने योग्य है। अपीलार्थी को प्रथम बार उक्त नोटिस की जानकारी तब हुई जब उक्त परिवाद में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22-11-2012 में निष्पादन वाद संख्या-89/2012 में नोटिस प्राप्त हुआ। दिनांक 10-12-2012 को प्रश्नगत आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के बाद यह अपील दायर की गयी है।
अपील में, यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी ने दिनांक 11-03-2008 को अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में आलू भण्डारण हेतु रखा था। परिवादी को विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा जब यह बताया गया कि उसका आलू सड़ गया है तो वह वापस चला गया और उसने दो साल तक उसकी कोई सुध नहीं ली तथा अचानक उपरोक्त उल्लिखित परिवाद जिला फोरम में दायर कर दिया।
अपील के आधार में प्रकरण में तथ्यों का उल्लेख करते हुए यह भी कहा गया है कि दिनांक 19-10-2008 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपना आलू वापस प्राप्त करने का सम्पर्क किया था और दिनांक 20-10-2008 को आलू की निकासी के लिए गेट पास निर्गत किया गया था और उसे आलू भी हस्तगत करा दिया गया था। यह तथ्य प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम से छिपाकर प्रश्नगत परिवाद दायर किया है अत: वह किसी प्रकार का कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है।
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प्रश्नगत आदेश एकपक्षीय है और खण्डित होने योग्य है, क्योंकि अपीलार्थी को जिला फोरम में अपना पक्ष रखने का कोई अवसर प्राप्त नहीं हुआ है।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू निर्गत किये जाने से संबंधित कोई साक्ष्य यथा गेट पास अथवा आलू हस्तगत किये जाने की कोई रसीद अपील के साथ दाखिल नहीं की है जिससे यह स्पष्ट होता हो कि वास्तव में प्रत्यर्थी/परिवादी को उसका आलू अपीलार्थी ने हस्तगत करा दिया था।
इसके अतिरिक्त अपील के अभिकथनों में विरोधाभास भी है क्योंकि एक स्थान पर अपील में अभिकथन किया गया है कि विपक्षी द्वारा आलू की निकासी हेतु सम्पर्क करने पर उसे बताया गया था कि उसका आलू सड़ गया है तथा वह वापिस चला गया तथा दो साल तक उसने कोई सुध नहीं ली तथा दूसरे स्थान पर अभिकथन किया गया है कि उसे गेट पास निर्गत कर आलू हस्तगत करा दिया गया था, यदि आलू सड़ गया था तो उसके हस्तगत कराने का कोई प्रश्न नहीं उत्पन्न होता।
अपीलार्थी की अपील में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे अपीलार्थी के अभिकथनों को समर्थन मिलता हो। अपीलार्थी ने मात्र तकनीकी आधार पर अपील दायर की है।
अपीलार्थी की अपील निर्धारित अवधि में दायर की गयी है और इसके कालातीत होने का कोई प्रश्न लिप्त नहीं है,
क्योंकि अपील दायर करने की तिथि दिनांक 17-12-2012 है जबकि प्रश्नगत आदेश की नि:शुल्क प्रति दिनांक 10-12-2012 को प्राप्त की गयी है और अपीलार्थी ने अपील समय सीमा के अंदर योजित की है अत: विलम्ब का दोष विलुप्त किये जाने से संबंधित प्रार्थना पत्र अनावश्यक है।
परिवादी ने परिवाद विलम्ब का दोष क्षमा किये जाने के प्रार्थना पत्र के साथ जिला फोरम के समक्ष दायर किया गया था और आलू की धनराशि प्राप्त करने के लिए उसने दिनांक 09-06-2010 को अंतिम बार नोटिस दिया था और जब उसने नोटिस दिये जाने के बावजूद उसका आलू नहीं दिया तब उसने दिनांक 07-12-2010 को परिवाद दायर किया।
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यद्धपि जिला फोरम ने परिवाद के कालातीत होने के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया है, किन्तु नोटिस दिये जाने और विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के परिप्रेक्ष्य में परिवाद में कोई विलम्ब होना प्रतीत नहीं होता है।
तद्नुसार अपीलार्थी की अपील में कोई बल नहीं है और अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-3 प्रदीप मिश्रा, आशु0