//जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर (छ0ग0)//
प्रकरण क्रमांक:- सी.सी./2011/214
प्रस्तुति दिनांक:- 12/12/2011
जी.एन.अंबलकर,
पिता स्व.नारायण राव अंबलकर,
उम्र 51 वर्ष, निवासी फ्लेट 303,
जीवन छाया अपार्टमेंट,
राईट टाउन जबलपुर म.प्र. ............आवेदक/परिवादी
(विरूद्ध)
1. रत्नेश जायसवाल,
पिता स्व.रमेश जायसवाल,
उम्र 40 वर्ष, निवासी पारिजात एक्सटेंशन
तह. व जिला बिलासपुर छ.ग.
वर्तमान निवास आसमां मार्केटिंग मुंगेली रोड
बिलासपुर छ.ग.
2. राम केडिया पिता स्व.पुरूषोत्तम दास केडिया
उम्र 42 वर्ष, निवासी ऋषि कंुज, 27 खोली बिलासपुर
तह. व जिला बिलासपुर छ.ग.
3. कैलाश खुशलानी,
पिता श्री जीवतराम खुशलानी,
उम्र 38 वर्ष, निवासी जबड़ापारा बिलासपुर
तह. व जिला बिलासपुर छ.ग.
4. गजानन इस्टेट (फर्म)
द्वारा अनावेदक क्रमांक 1 से 3 ..........अनावेदकगण/विरोधी पक्षकारगण
//आदेश//
(आज दिनांक 05 /02 /2015 को पारित)
1. आवेदक जी.एन.अंबलकर ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदकगण के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदकगण से अनुबंधशुदा फ्लैट अथवा विकल्प में अग्रिम राशि 1,51,000/.रु0 को ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के साथ दिलाये जाने का निवेदन किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक क्रमांक 1 से 3 अनावेदक क्रमांक 4 गजानन इस्टेट फर्म के भागीदार हैं। फर्म की ओर से अनावेदक क्रमांक 1 दिनांक 01.07.2007 को आवेदक के साथ 1080 वर्गफुट पर 10,80,000/-रू. में फ्लेट ए 208 का निर्माण कर 24 माह की अवधि में देने का इकरार किया, किंतु अनुबंध के अनुसार अनावेदकगण द्वारा फ्लेट का निर्माण नहीं कराया गया और आपसी विवाद की बात बताकर शीघ्र बनाकर दिए जाने का आश्वासन दिया जाता रहा, किंतु अनावेदकगण द्वारा न तो आज दिनांक तक फ्लेट का निर्माण कराया गया और न ही अग्रिम लिए गए राशि 1,51,000/-रू. वापस किया गया और मात्र आश्वासन दिया जाता रहा, अतः उसने दिनांक 23.09.2011 को अपने अधिवक्ता के जरिए नोटिस भेज कर यह परिवाद पेश करना बताया है और अनावेदकगण से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है।
3. अनावेदक क्रमांक 1 जवाब पेश कर फ्लेट के लिए आवेदक द्वारा 1,51,000/-रू. जमा किया जाना तो स्वीकार किया गया, साथ ही कहा गया कि फर्म के बाकी भागीदारों से सहयोग नहीं मिलने के कारण निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका, जिसके कारण आवेदक को वांछित फ्टेट प्रदान नहीं किया जा सका। आगे उसने फर्म में केवल अपने 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी के आधार पर सेवा में कमी पाये जाने पर भुगतान का उत्तरदायी होना प्रकट किया।
4. अनावेदक क्रमांक 2 व 3 संयुक्त जवाबदावा पेश कर इस बात से इंकार किये कि वे गजानन इस्टेट के भागीदार हैं, इस संबंध में उनके द्वारा कहा गया कि वे आरंभ में गजानन इस्टेट फर्म के रजिस्ट्रेशन आॅफ पार्टनरशीप डीड में हस्ताक्षर तो किये थे, किंतु बाद में भागीदारों के मध्य कोई सामंजस्य स्थापित नहीं होने के कारण उस डीड के तहत कोई कार्यवाही नहीं करते हुए आपसी सहमति के आधार पर भागीदार विलेख दिनांक 09.10.2006 को प्रभावहीन एवं शून्य मान लिए थे, किंतु अनावेदक क्रमांक 1 छलपूर्वक उनके पीठ पीछे आवेदक तथा अन्य लोगों से फ्लेट बुकिंग के नाम पर राशि उगाई की गई, जिसके लिए अनावेदक क्रमांक 1 व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार है, उक्त आधार पर उन्होंने अपने विरूद्ध परिवाद निरस्त किए जाने का निवेदन किये।
5. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है। प्रकरण का अवलोकन किया गया।
6. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदकगण से वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है ?
सकारण निष्कर्ष
7. आवेदक द्वारा मामले में पेश ’’डीड आॅफ पार्टनरशीप’’ के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि अनावेदक क्रमांक 1 से 3 गजानन इस्टेट फर्म के भागीदार हैं। इसी प्रकार आवेदक द्वारा पेश एग्रीमेंट के अवलोकन से यह भी स्पष्ट होता है कि अनावेदक क्रमांक 1 द्वारा फर्म की ओर से दिनांक 01.07.2007 को आवेदक के साथ फ्लेट निर्माण के संबंध में अनुबंध किया गया था और उसके एवज में 1,51,000/-रू. की राशि प्राप्त किया था, जिसकी रसीद प्रकरण में संलग्न है ।
8. अनावेदक क्रमांक 2 व 3 यद्यपि अपने जवाब में इस बात से इंकार किये हैं कि वे गजानन इस्टेट फर्म के भागीदार है, इस संबंध में उनका कथन है कि वे आरंभ में उक्त फर्म के रजिस्ट्रेशन आॅफ पार्टनरशीप डीड में हस्ताक्षर किये थे, ंिकंतु उनके मध्य कोई सामंजस्य नहीं होने के कारण उस डीड के तहत कोई कार्यवाही नहीं करते हुए आपसी सहमति के आधार पर उसे दिनांक 09.10.2006 को प्रभावहीन एवं शून्य मान लिये थे, किंतु इस संबंध में उनके द्वारा प्रकरण में कोई साक्ष्य अथवा प्रमाण पेश नहीं किया गया है, जिससे कि दर्शित हो कि उनके मध्य निष्पादित भागीदारी विलेख दिनांक 09.10.2006 से प्रभावहीन एवं शून्य हो गया था।
9. अनावेदक क्रमांक 1 अपने जवाब में इस बात को स्वीकार किया है कि वह भागीदारी फर्म की ओर से अनावेदक क्रमांक 2 व 3 से अधिकृत होते हुए आवेदक से दिनांक 01.07.2007 को फ्लैट निर्माण के संबंध में अनुबंध किया था और 1,51,000/.रु0 की राशि अग्रिम प्राप्त किया था, जिसकी पुष्टि प्रकरण में संलग्न आवेदक की ओर से प्रस्तुत दस्तावेजों से भी होती है।
10. अनावेदक क्रमांक 2 व 3 यद्यपि यह अभिकथित किये हैं कि उनके पीठ पीछे बगैर उनकी जानकारी अनावेदक क्रमांक 1 द्वारा आवेदक तथा अन्य लोगों से फ्लैट बुकिंग के नाम पर राशि उगाही की गई है, जिसके लिए वे अपने को जिम्मेदार नहीं होना प्रकट किये हैं, किंतु इस तथ्य को जाहिर करने के लिए कि उनके मध्य अनावेदक क्रमांक 1 के साथ निष्पादित भागीदार विलेख उनके परस्पर सहमति के आधार पर दिनांक 09.10.2006 से प्रभावहीन एवं शून्य हो गया था अथवा इस तथ्य को जाहिर करने के लिए कि अनावेदक क्रमांक 1 द्वारा उनकी जानकारी के बगैर आवेदक से फ्लैट बुकिंग के नाम पर राशि उगाही की गई, कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया है । फलस्वरूप इस संबंध में अनावेदक क्रमांक 2 व 3 का कथन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं पाया जाता।
11. उपरोक्त विवेचन के प्रकाश में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अनावेदक क्रमांक 1 आवेदक के साथ दिनांक 01.07.2007 को फर्म की ओर से अनावेदक क्रमांक 2 व 3 द्वारा अधिकृत होकर फ्लैट निर्माण के संबंध में इकरार किया था और उसे 24 माह में पूर्ण कर प्रदान किये जाने का आश्वासन दिया था, किंतु उनके द्वारा आपसी विवाद के चलते फ्लैट का निर्माण नहीं कराया गया और न ही आवेदक से प्राप्त किये गये अग्रिम 1,51,000/.रु0 उसे वापस लौटाई गई, जिसके लिए फर्म सहित तीनों अनावेदक जिम्मेदार है। अनावेदकगण की ओर से यद्यपि यह भी कहा गया है कि आवेदक द्वारा प्रश्नगत परिवाद समयावधि बाह्य होने से चलने योग्य नहीं है, किंतु इस संबंध में अनावेदकगण का तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं पाया जाता, क्योंकि आवेदक के अनुसार, अग्रिम राषि प्राप्त करने उपरांत उसे केवल आष्वासन दिया जाता रहा तब वह विवश होकर दिनांक 23.09.2011 को अपने अधिवक्ता जरिये नोटिस भेज कर यह परिवाद प्रस्तुत करना बताया है, जो नोटिस उपरांत दो वर्श के भीतर प्रस्तुत होने से समयावधि के भीतर है।
12. उपरोक्त विवेचन के प्रकाश में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवेदक अनावेदकगण की ओर से सेवा में कमी का मामला स्थापित करने में सफल रहा है अतः आवेदक के पक्ष अनावेदकगण के विरूद्ध निम्न आदेश पारित किया जाता है:-
अ. अनावेदकगण, संयुक्ततः एवं पृथक-पृथक आवेदक को एक माह के भीतर 1,51,000/-रू.( एक लाख इक्यावन हजार रूपये) अदा करेंगे तथा उस पर आवेदन दिनांक 12.12.2011 से ताअदायगी 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करेंगे।
ब. अनावेदकगण, आवेदक को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 1,00,000/.रु0 (एक लाख रूपये) की राशि भी अदा करेंगे।
स. अनावेदकगण, आवेदक को वादव्यय के रूप में 3,000/.रु0 (तीन हजार रूपये) की राशि भी अदा करेंगे।
आदेश पारित
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य