(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 794/2018
Branch Manager, Bajaj Allianz Life Insurance Co. Ltd., Branch Auraiya, C/o. Anil Tyres, Brahm Nagar, Kanpur Road, Near Coca Cola Agency, District Auraiya and another.
…….Appellants
Versus
Rohit kumar S/o Ved Prakash, Aged about 27 years, R/o Kuthond, Thana Kuthond, District Jalaun.
………Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एस0बी0 श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 21.09.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 279/2017 रोहित कुमार बनाम शाखा प्रबंधक बजाज एलाइंज लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, औरैया द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 03.01.2018 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को अंकन 1,62,103/-रू0 मय 07 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज के साथ अदा करें।
3. प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने साक्ष्य के विपरीत एकतरफा निर्णय पारित किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा केवल एक किश्त का भुगतान किया गया। नवीनीकरण प्रीमियम का कभी भुगतान नहीं किया गया। इसलिए पालिसी अस्तित्व में नहीं रही। तीन वर्ष तक पालिसी के संचालन के बाद ही प्रीमियम की जमा राशि वापस ली जा सकती है।
4. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0बी0 श्रीवास्तव को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
5. परिवाद के तथ्यों के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दो पालिसी प्राप्त की गई और कुल 86,103/-रू0 का प्रीमियम जमा किया गया। पालिसी लेते समय बताया गया था कि केवल एक बार किश्त जमा करनी है और एक वर्ष बीतने के बाद कहा गया कि पुन: प्रीमियम की किश्त जमा करें जब कि प्रत्यर्थी/परिवादी वार्षिक किश्त जमा नहीं कर सकता। प्रत्यर्थी/परिवादी ने पालिसी चलाने से मना कर दिया। इसलिए जमा राशि को अन्य अनुतोष के साथ वापस प्राप्त करने के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
6. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने एकतरफा साक्ष्य पर विचार करते हुए यह निष्कर्ष दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपने द्वारा जमा समस्त धनराशि तथा मानसिक कष्ट हेतु 60,000/-रू0 और अधिवक्ता की फीस के रूप में 16,000/-रू0 कुल 1,62,103/-रू0 प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने पालिसी की शर्तों का कोई उल्लेख अपने निर्णय में नहीं किया। पालिसी का प्रस्ताव भरते समय वार्षिक प्रीमियम के बारे में बीमाधारक को समुचित सूचना थी। उससे कोई तथ्य छिपाया नहीं गया। चूँकि तीन वर्ष तक लगातार प्रीमियम जमा नहीं किया गया। इसलिए समस्त जमा राशि लौटायी नहीं जा सकती।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में जारी की गई पालिसी की प्रतियां भी पत्रावली पर मौजूद हैं जिनके अवलोकन से ज्ञात होता है कि एक पालिसी दि0 19.05.2011 से दूसरी पालिसी दि0 10.06.2011 से प्रारम्भ हुई है। एक पालिसी में 2,00,000/-रू0 बीमाधन सुरक्षित किया गया है तथा दूसरी पालिसी में अंकन 10,00,000/-रू0 बीमाधन सुरक्षित किया गया है। दोनों पालिसियों की समयावधि 20 वर्ष है। इनमें स्पष्ट रूप से नियमित प्रीमियम अदा करने का प्रीमियम राशि सहित उल्लेख है। केवल एक प्रीमियम जमा करने के पश्चात प्रत्यर्थी/परिवादी को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह समस्त धनराशि की वापसी का अनुरोध करे। यह प्रत्यर्थी/परिवादी की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं है कि एक बार संविदा निष्पादित होने के पश्चात वह अपने मन की इच्छानुसार अग्रिम वार्षिक प्रीमियम अदा करने से इंकार करे और पूर्व में जमा प्रीमियम की मांग करे। यथार्थ में प्रस्तुत केस में बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में किसी प्रकार की कमी नहीं की गई है। उपभोक्ता परिवाद दाखिल करने के उद्देश्य से कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बगैर वाद कारण के उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया और जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा भी इस स्थिति को विचार में लिए बिना कि यथार्थ में प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई वाद कारण उत्पन्न हुआ है। अनावश्यक रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में अनेक मदों में धनराशि अदा करने का आदेश पारित कर दिया जो निश्चित रूप से अवैध तथा मनमाना निर्णय है। अत: प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
9. अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है तथा परिवाद संधारणीय न होने के कारण खारिज किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार अपीलार्थीगण को वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2