राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित।
अपील संख्या-2458/1998
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मुजफ्फरनगर परिवाद संख्या-173/1994 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03-09-1998 के विरूद्ध)
Life Insurance Corporation of India, Branch Office, G.T.Road, Khatauli, Through Branch Manager..
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Ranveer Singh, S/o Sri Jaipal Singh, R/o Vill & Post : Saroorpur Kalam, Tehsil : Bagpat, Distt-Meerut.
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
1- मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री वी0एस0 विसारिया।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - श्री विजयन्त निगम।
दिनांक : 09-12-2014
मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
अपीलाथी ने प्रस्तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मुजफ्फरनगर परिवाद संख्या-173/1994 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03-09-1998 के विरूद्ध प्रस्तुत जिसमें वादी का वाद आंशिक रूप से डिग्री किया गया एवं विपक्षी कम्पनी को आदेश दिया गया है कि वह वादी द्वारा ली गयी पोलिसी 50,000/-रू0 एवं इस पर मिलने वाला अदायगी की तिथि तक लाभी व इस धनराशि पर दिनांक 01-02-1994 से अदायगी की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी अदा करे। इसके अतिरिक्त वाद व्यय, नोटिस खर्च, वकील फीस आदि के मद में 1,000/-रू0 अदा करें। यह धनराशि इस निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर देय होगी, से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि वादी की पत्नी सुशीला देवीने जनवरी, 1990 में विपक्षी कम्पनी में आगामी 20 वर्षों के लिए 50,000/-रू0 का बीमा कराया जिसकी त्रैमासिक किश्ते दी जानी अपेक्षित थी। वादिनी को पालिसी नम्बर-250460707 जारी की गयी। दिनांक 27-28 मई, 1991 की मध्यरात्रि में बीमाधारिणी की अज्ञात बदमाशों ने हत्या कर
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दी गयी। सभी औपचारिकताऍं पूर्ण कर विपक्षी से क्लेम की मांग की। दिनांक 29-11-1991 को विपक्षी द्वारा कुछ कागजात मांगे गये जिसे वादी द्वारा दिनांक 28-02-1992 को उपलब्ध करा दिये फिर भी विपक्षी द्वारा कोई धनराशि न देने पर परिवाद योजित किया गया।
विपक्षी की ओर से जवाब में कुछ कथनों को स्वीकार किया गया कुछ को अस्वीकार किया गया। विशेष कथन में यह कहा गया कि बीमा पालिसी बीमा की उपधारा-4.बी के अन्तर्गत जारी की गयी थी और 27-28 मई, 1991 को बीमित की मृत्यु तीन वर्ष के अंदर हो गयी इसलिए केवल बीमाधारक द्वारा जमा की गयी किश्त की धनराशि ही देय है अन्य कोई उपसम देय नहीं है।
विद्धान जिला मंच ने पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ताओं को सुनने के बाद विपक्षी की सेवा में कमी मानते हुए वादी का वाद स्वीकार किया है।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों एवं जिला मंच द्वारा पारित निर्णय का अवलोकन किया।
अपीलार्थी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि वर्तमान बीमा पालिसी क्लाज 4-बी के अन्तर्गत बीमा पालिसी है एवं क्लाज 4-बी के अन्तर्गत बीमा पालिसी में इस आशय का स्पष्ट प्राविधान है कि बीमा पालिसी के जारी होने के तीन वर्ष के अंदर ही यदि बीमाधारक की मृत्यु हत्या/आत्महत्या आदि के कारण हो दुर्घटना के अतिरिक्त हो जाती है तो बीमा कम्पनी की जिम्मेदारी केवल किश्तों की धनराशि की अदायगी तक सीमित है और इस संदर्भ में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा पालिसी बाण्ड के स्पेशल प्रोविजन के कालम में इस आशय का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि "For Special Provisions sec on the back here of." और ऐसी स्थिति में वर्तमान प्रकरण में बीमित धनराशि अदायगी की जिम्मेदारी बीमा कम्पनी का होना स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है और इस संदर्भ में जिला मंच द्वारा दिया गया आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
उपरोक्त तर्क के खण्डन में प्रत्यर्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बीमाधारक अनपढ़ महिला है और एजेण्ट द्वारा उसे उपरोक्त वर्णित क्लाज-4-बी के बारे में नहीं बताया गया और ऐसा कोई अभिलेख बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि क्लाज 4-बी के बावत बीमाधारक को प्रस्ताव के समय बताया गया था1 इसके अतिरिक्त और बाण्ड में क्लाज 4-बी के बावत अलग से कागज चिपकाया गया है। यह कागज कब चिपकाया गया इसका भी कोई
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स्पष्टीकरण नहीं है और ऐसी स्थिति में क्लाज 4-बी के आधार पर बीमा पालिसी के संदर्भ में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। अपीलार्थी की ओर से I(2014)CPJ 291(NC) Naional Consumer Disputes Redressal Commission, New Delhi Vs. Shankravva की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा गया कि इस नज़ीर में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्पष्ट सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि क्लाज 4-बी के अन्तर्गत बीमा में केवल किश्तों की धनराशि की अदायगी की जिम्मेदारी बीमा कम्पनी की है और वर्तमान प्रकरण में बीमा कम्पनी द्वारा यह भी कहा गया कि वह किश्तों की अदायगी देने के लिए तैयार है परन्तु बीमित धनराशि के बावत जिला मंच द्वारा जो आदेश पारित किया गया है वह स्वीकर किये जाने योग्य नहीं है।
परिवादी/प्रत्यर्थी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि क्लाज 4-बी के बावत बीमाधारक एजेण्ट द्वारा बताया नहीं गया था इस संदर्भ में अपीलार्थी की ओर से 1986-95 Consumer 1387(NS) ) Naional Consumer Disputes Redressal Commission, New Delhi FA No. 163 of 1993 LIC of India Vs. M.Gowri & others निर्णीत दिनांकित 10-10-1994 में मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णय की ओर ध्यान आकर्षित किया गया जिसमें इस आशय का सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि प्रस्ताव के समय एल0आई0सी0 का एजेण्ट वास्तव में बीमाधारक का एजेण्ट स्वीकार किये जाने योग्य है और ऐसी स्थिति में परिवादी/प्रत्यर्थी के अधिवक्ता का यह तर्क कि एजेण्ट ने उसे क्लाज 4-बी के बावत नहीं बताया था इसका कोई लाभ परिवादी/प्रत्यर्थी पाने का अधिकारी नहीं है।
पालिसी बाण्ड के प्रथम पृष्ठ के विशेष उपबंध के कालम में स्पष्ट रूप से इस आशय का उल्लेख है कि बाण्ड के पीछे प्राविजन दिये गये है और बाण्ड के पीछे क्लाज 4-बी का प्राविजन होना बताया जाता है। ऐसी स्थिति में पक्षकारों के बीच संविदा में क्लाज-4-बी का होना स्वीकार किये जाने योग्य है और इस संदर्भ में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क में बल पाया जाता है। जिला मंच द्वारा पारित आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
तद्नुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार करते हुए विद्धान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या-173/1994 रणवीर सिंह बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक
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03-09-1998 अपास्त किया जाता है और परिवाद भी खण्डित किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
( जितेन्द्र नाथ सिन्हा ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य बाल कुमारी
कोर्ट नं0-4
प्रदीप मिश्रा