राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील सं0-1530/2013
(जिला मंच बांदा द्वारा परिवाद सं0-२५३/२०१०में पारित आदेश दिनांक ३०/०५/२०१३ के विरूद्ध)
- यूनियन आफ इंडिया द्वारा प्रबन्धक उ0म0 रेलवे इलाहाबाद सूबेदारगंज इलाहाबाद।
- उत्तर मध्य रेलवे द्वारा मण्डलीय प्रबन्धक उत्तर मध्य रेलवे झांसी।
- स्टेशन प्रबन्धक रेलवे स्टेशन बांदा।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
रंजन कुमार पुत्र श्री बाके बिहारी जिला मजिस्ट्रेट आवास सिविल लाइन्स बांदा।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1 मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य।
2 मा0 संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री वी0के0 वर्मा एवं पीपी श्रीवास्तव विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री अभिषेक भटनागर विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: ३०/१२/२०१४
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य द्वारा उद्घोषित।
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थीगण ने विद्वान जिला मंच बांदा द्वारा परिवाद सं0-२५३/२०१० रंजन कुमार बनाम यूनियन आफ इंडिया में पारित आदेश दिनांक ३०/०५/२०१३ के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें विद्वान जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से विपक्षीगण के विरूद्ध इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि परिवादी रू0 २६०००/-रू0 चोरी गये सामान की क्षतिपूर्ति रू0 ७०००/-रू0 मानसिक, शारीरिक कष्ट पीड़ा की क्षतिपूर्ति तथा २०००/-रू0 परिवाद व्यय अर्थात कुल ३५०००/-रू0 विपक्षीगण से पाने का अधिकारी है। धनराशि अदा करने का विपक्षीगण का पृथक-पृथक व संयुक्त उत्तरदायित्व होगा। विपक्षीगण उक्त धनराशि परिवादी को आज से एक मास के भीतर अदा करे अन्यथा परिवादी को नियमानुसार धनराशि वसूलकरने का अधिकार होगा।’’
संक्षेप में कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी दिनांक २६/०२/२०१० को परिवादी स्वयं अपने तीन सहयात्रियों के साथ उ0प्र0 सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस गाडी नं0 २४४८ निजामुद्दीन से बांदा द्वितीय वातानुकूलित कोच नं0 ए १ की सीट
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१०,१३,१४,१५ व १६ में यात्राकर रहा था जिसके लिये भुगतान देकर रिजर्वेशन कराया था। टिकट का पीएनआर नं0 २५३२३२०५७० था। परिवादी के साथ परिवादी की पत्नी श्रीमती अंजू रंजन व परिवाद के अन्य सदस्य व्यक्गित सामान लेकर यात्रा कर रहे थे जिनमें उनके हैण्ड पर्स भी थे जो सावधानी व सुरक्षापूर्वक उनकी सीट पर रखे हुए थे। परिवादी बांदा जिला मंच में मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत था बांदा स्टेशन में उतरना था। उतरते समय देखा कि श्रीमती अंजू रंजन का हैण्ड पर्स चोरी हो गया है। श्रीमती अंजू रंजन के हैण्ड पर्स में निम्नलिखित सामान था। हैण्ड पर्स कीमत ७००/-रू0, श्रीमती अंजू रंजन का एटीएम कार्ड सिंडीकेट बैंक व पासबुक, चेकबुक बैंक आफ इंडिया, डिप्लोमेटिक पासपोर्ट श्रीमती अंजू रंजन, एक रूबी एण्ड डायमण्ड रिंग कीमती १५०००/-रू0, नकद धनराशि ३०००/-रू0 एक चांदी की इयर रिंग कीमत ७००/-रू0, एक टाइटन की रागा वाच कीमत ३०००/-रू0 ताले की चाबी ड्राईविंग लाइसेंस पैना कार्ड आफीशियल डाकूमेंट एक मोबाईल नोकिया ६३०० गोल्ड ब्लैक कीमत ७०००/-रू0 एयरटेल सिम नं0 ९७१७३३४२०२, यूएस डालर ९०० मूल्य ४५०००/-रू0 अन्य सामग्री। परिवार के अन्य सदस्यके पर्स में उपलब्ध सामानका विवरण इस प्रकार है। हैण्ड पर्स का रंग कत्थई कीमत ६००/-रू0 एक मोबाईल सेट नं0 १६०० वोटा सिम कीमतलगभग ५०००/-रू0 वालेट सफेद रंग का कीमत, एटीएम कार्ड बैंक आफ इंडिया नाम संजू कुमारी, नगद धनराशि १५००/-रू0 दोबुक कांस्टीट्यूशन आफ इंडिया व नोट कापी, मेट्रो का स्मार्ट कार्ड, कोदरेज अलमारी की चाबी एक चश्मा कीमती मु0 कुछ कपडे कीमत लगभग ५०००/-रू0 अन्य सामान। इस प्रकार कुल कीमत लगभग ९३०००/-रू0 है। घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना जीआरपी बांदा में अपराध सं0-२४/१० दिनांक २७/०२/२०१०को दर्ज कराई गयी। लेकिन एक मोबाईल सेट नोकिया १६०० कीमत रूपया ५०००/-रू0 नगद रू0 १०००/-रू0 व ३ एटीएम कार्ड ही पुलिस ने बरामद किया अन्य सामान पुलिस ने बरामद नहीं किया। परिवादी एसी सेकेन्ड क्लास में यात्रा कर रहा था जिसमें यात्रियों की सहायत समय पर दरवाजे आदि बन्द करने अनाधिकृत व्यक्तियों का प्रवेश रोकने हेतु एक अटेंडेंट तथा टीटी रहते हैं फिर भी परिवादी के सहयात्रियों का सामान चोरी हो गया जिसकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व विपक्षीगण का था। विपक्षीगण की लापरवाही के कारण परिवादी व सहयात्रियों के महत्वपूर्ण कागजात डिप्लोमेटिक पास पोर्टपैन कार्ड चेकबुक एटीएम कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस आदि चोरी हो गये जिसके अभाव में भारी मानसिक, शारीरिक आर्थिक कष्टों का सामाना करना पडा। परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ताहै । विपक्षीगण को दिनांक ०२/०३/२०१० को पंजीकृत डाक से सूचना दी गयी। अत: यह परिवादी चोरी गये सामान अथवा उसका मूल्य ९३०००/-रू0 दिलाये जाने, मानसिक, आर्थिक शारीरिक क्षति १ लाख रूपये १००००/- रू0 परिवाद व्यय अधिवक्ता फीस दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
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विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें कहा गया है कि लिस्ट बढ़ा-चढ़ाकर बनायी गयी। अंकित सामान पर्स में रखे जाने योग्य नहीं है। सामान्य आदमी भी जेवर घडी कपडे कार्ड आदि पर्स में नही रखता। कुछ सामानों की कीमत भी अंकित नहीं की गयी। प्रकरण सेवा में त्रुटि का नहीं बल्कि परिवादी की लापरवाही की श्रेणी में आता है। सम्पर्क क्रान्ति ट्रेन का संचालन डीआरएम उत्तर रेलवे नई दिल्ली द्वारा होता है। महा प्रबन्धक बडौदा हाउस नई दिल्ली में बैठते हैं। विपक्षीगण को अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है। आवश्यक पक्षकार न बनाये जाने का दोष है। उक्त ट्रेन में संपूर्ण स्टाफ दिल्ली से आता जाता है। विपक्षीगण का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है। रेलवे एक्ट के अनुसार केवल बुक किए गए सामान का उत्तरदायित्व रेलवे का होता है। निजी सामान की सुरक्षा का उत्तरदायित्व यात्री पर होता है। रेलवे टाईम टेबल कोच एवं प्लेट फार्म तथा आरक्षण कक्ष में स्पष्ट रूप से लिखा रहता है कि यात्री अपने सामान की स्वयं रक्षा करें। परिवाद पत्र में यह स्पष्ट नहीं है कि परिवादी के साथ सहयात्री कौन-कौन थे। परिवादी की पत्नी के अतिरिक्त अन्य किसी यात्री का पर्स चोरी हुआ। दूसरा सहयात्री महिला है अथवा पुरूष है यह स्पष्ट नहीं है। परिवादी ने किसी हैसियत से परिवाद प्रस्तुत किया है यह स्पष्ट नहीं है। इसी आधार पर परिवाद निरस्त होने योग्य है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि कथित पर्स एक स्थान पर अथवा विभिन्न स्थानों पर कब कैसे और कहां चोरी हुए। परिवादी बांदा के जिलाधिकारी हैं। अपने पद के प्रभाव के कारण जीआरपी में रिपोर्ट दर्ज करायी और अपने नाम से परिवाद प्रस्तुत कर दिया। परिवादी को कोई परिवाद का कारण उत्पन्न नहीं है। यह प्रकरण चोरी का है रेलवे का कोई उत्तरदायित्व नहीं है। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवादी ने कथित चोरी हुए सामान के संबंध में कोई शुल्क अदा नहीं किया। परिवाद रेल दावा अधिनियम १९८९ की धारा १०० से भी बाधित है निरस्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थीगण की ओर से श्री वी0के0 वर्मा एवं श्री पी0पी0 श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी की ओर से श्री अभिषेक भटनागर के तर्कों को सुना गया। पत्रावली का परिशीलन किया गया।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी/प्रत्यर्थी के कथित पर्स लापरवाही के कारण गिरा अथवा चोरी हो गया किन्तु उसने अपने पद का फायदा उठाने के उद्देश्य से अपने नाम से वाद योजित कर दिया है और उसे वाद का कोई कारण उत्पन्न नहीं होता है। रेल विभाग द्वारा यह सूचना प्रकाशित की जाती है कि यात्री अपने सामान की स्वयं सुरक्षा करें।अत: ऐसी परिस्थिति में यदि यात्री अपने सामान को स्वयं अपने कब्जे में ले जा रहा है तो उसका पूर्ण
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उत्तरदायित्व यात्री पर होता है जिसके लिए यदि कोई कथित चोरी जैसी घटना हो जाती है तो उसके लिए अपीलकर्तागण उत्तरदायी नहीं हैं।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने फोर्थ (२०१०) सीपीजे १९१ (एनसी) यूनियन आफ इंडिया द्वारा मैनेजर एवं अन्य बनाम डा0 श्रुतिदेव एवं अन्य पर विश्वास व्यक्त करते हुए तर्क दिया है कि रेलवे अधिनियम की धारा १०० के अन्तर्गत किसी भी लगेज के खो जाने पर अथवाक्षतिपूर्ति हो जाने पर रेलवे विभाग तब तक उत्तरदायी नहीं है जब तक कि उपरोक्त सामान रेलवे के द्वारा बुक नहीं किय गया हो। अत: ऐसी परिस्थिति में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट १९८७ की धारा १३ के अन्तर्गत परिवाद रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल में दाखिल किया जाना चाहिए था क्योंकि उपरोक्त अधिनियम की धारा १५ के अन्तर्गत किसी अन्य न्यायालय को उसके श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रस्तुत परिवाद में जिसका पर्स गायब हुआ है वह परिवादी नहीं है। अत: ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच द्वारा पारित किया गया आदेश निरस्त किए जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि यदि परिवादी/प्रत्यर्थी रंजन कुमार के साथ उसकी पत्नी श्रीमती अंजू रंजन व परिवाद में अन्य सदस्य व्यक्तिगत सामान लेकर यात्रा कर रहे थे जबकि श्री अंजू रंजन और एक अन्य सदस्य का पर्स चोरीहो गया। चूंकि श्रीमती अंजू रंजन का परिवादी पति है एवं सहयात्री भी है। अत: ऐसी परिस्थिति में परिवाद उसके द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया है कि यदि यात्रा के दौरान कोई चोरी या इस प्रकार की घटना व अन्य कागजात तथा चोरी होती है तो इस प्रकार की घटना के लिए अपीलकर्तागण दोषी है। रेल में सुरक्षित यात्रा का दायित्व भी अपीलकर्तागण पर है। अत: मात्र यह सूचना प्रकाशित करना की यात्री अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें, इससे रेलवे विभाग इस उत्तरदायित्व से उन्मुक्त नहीं हो जाता क्योंकि सुरक्षित रेलवे यात्रा कराने के लिए सुविधा प्रदान करने के लिए रेलवे विभाग उत्तरदायी है। अत: विद्वान जिला मंच द्वारा विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया गया एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अपीलकर्ता ने रिवीजन पिटीशन सं0-८५८/२००५ मा0 राष्ट्रीय आयोग कर्नाटका श्रीमती चन्द्रिका का बनाम नार्थ जोन इंडियन रेलवेज एवं अन्य, S.L.P (Civil) NOS 34731/34739/2012 VIJAI Kumar JAIN Versus Union of India decided by Hon’ble Supreme Court on 2/07/2013 पर विश्वास
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व्यक्त करते हुए तर्क दिया वश्ययकरीके....कि चूंकि परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपने समान को बुक नहीं कराया था, अत: रेलवे में कथित घटना के लिए रेलवे प्रशासन उत्तरदायी नहीं है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने Union of India and other versus SANJIV Dilsukhrai Dave 2003 (51) ALR40 (Consumer)= 2003 CTJ 196 (CP) NCDRC, Revision Petition No 602/2013 (N.C) Union of India Vs Dr. Shobha Agarwal decided on 22 July 2013, SLP to appeal (Civil)/2014 (arising and of Revision No. 602 of 2013 ) C.C 761/2014 decided on 31-01-2014), Revision Petition No. 4007/2009
(National Commission) Union of India Vs J.S. Kunwar dated 15 December 2009 पर विश्वास व्यक्त करते हुए तर्क दिया कि परिवादी का चोरी गया हैण्ड पर्स लगेज की परिभाषा में नहीं आता है, अत: उसके बुक कराने का प्रश्न ही नहीं उठता और न ही वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८९ की धारा १०० के प्राविधानों से आच्छादित है। पर्स की चोरी रेलवे के कर्मचारीगण की लापरवाही व असावधानी के कारण हुई जो कि सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। अत: ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच ने विधि अनुसार निर्णय पारित किया है जिसमें कोई हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों एवं उभय पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई विधिक व्यवस्थाओं का परिशीलन किया गया।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यूनियन आफ इंडिया बनाम संजीव दिलसुखराज देव एवं अन्य २००३ सीटीजे १९६ (सीपी) (एनसीडीआरसी)में निम्नानुसार अवधारित किया है “ A major responsibility cast on the TTE in addition to examining.
The tickets is that of ensuring that no intruders enter the reserved compartments…………This is certainly a gross dereliction of duty which resulted in deficiency in service to the Respondents.
The price difference between the unreserved ticket and a reserved ticket is quite high and the traveling public who buy a reserved ticket would expect that they can enjoy the train journey with a certain minimum amount of security and safety.
……..One has to presume that passenger would take reasonable care of his luggage. But, he cannot be expected to take measures against intruders getting easily into reserved compartments and running away with goods, when the railway administration is charged with the responsibility to prevent such unauthorized entry. We have entered the 21st century and we cannot carry on our daily life in the same age old fashion with bearing brunt of indifferent service provided by public authorities like Railways. People expect in the 21st century a modicum of efficient and reliable service, which provides at least safety of
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person and property while traveling in reserved compartments.” This view has been reaffirmed in the case of G.M. South Central Railway Vs. Dr. R.V. Kumar & Anr., 2005 CTJ 862 (CP) (NCDRC).
In our view, there is a clear deficiency of service on the part of the Petitioners in allowing the unauthorized persons to enter the reserved compartment and stealing the attaché of the Respondent.
In view of the aforesaid decisions of this Commission, there is no reason for s or interfere with the order of the State Commission in revisional jurisdiction under Section 21 (b) of the Consumer.
Union Of India Vs Sanjiv Dilsukhrai Dave (N.C.) 2003 (51) ALR 40 (Consumer) में आधारित किया है।
उपरोक्त उद्धृत निर्णय के पैरा 10 व 11 इस प्रकार हैं :-
Para10. As regards the issue of negligence of the Railway Administration, a list of duties prescribed by Railway Administration ‘’TTE for Sleeper Coaches” is brought on record. Of these duties prescribed at Sl. Nos. 4,14,16 and 17 are very relevant. These read as follows:
“4. He shall check the tickets of the passengers in the coach, guide them to their berths/seats and prevent unauthorized persons from the coach. He shall in particular ensure that persons holding platform tickets, who came to see off or receive passengers do not enter the coach.
14. He shall ensure that the doors of the coach are kept latched when the train is on the move and open them up for passengers as and when required.
16. He shall ensure that the end doors of vestibules trains are kept locked between 22.00 and 6.00 hrs. to prevent outsiders entering the coach.
17. He shall remain vigilant particularly during night time and ensure that intruders, beggars, hawkers and unauthorized persons do not enter the coach.”
Para11. The above duties clearly show that there is a responsibility cast on the TTE attached to the second class sleeper coach to be very vigilant about anyone other than the reserved tickets holders entering the compartment, to such an extent that he is required to prevent even a relation of the passenger holding a platform ticket who comes to see off a passenger from entering a coach. The TTE is particularly required to take special care in the night as brought out in Sl. Nos. 16 and 17. Sl. No 14 clearly casts a responsibility on him to ensure that the doors of the coach are kept latched when the train is on the move.
मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन आफ इंडिया एवं अन्य बनाम मनोज पाठक द्वितीय (१९९६) सीपीजे ३१ (एनसी) में यह अवधारित किया है
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कि “It is not in dispute that the complainant had hired services of Railway Administration for consideration and if there is any negligence or deficiency in service on the part of the Railway Administration, then it is a consumer dispute
within the scope and ambit of section 2 (1) (d) of the Act. The complainant was entitled to be carried safely in the train upto its destination in the reserved compartment. However, if any person enters into any reserved compartment unauthorisedly, then besides being liable for criminal prosecution, he can be removed from the railway compartment by any railway servant or by any of the person whom such railway servant may call to his aid [see section 147 (2) of the Railways Act, 1989]. The Railway Administration neglected in checking reserved railway compartment and then failed to remove them forcibly for which they are duly empowered by the statute.”
G.M., Eastern Railway and another V. Smt. Malti Gupta (1999) iii CPJ 573 में यह अवधारित किया है कि:-where theft of three suitcases from the reserved sleeper coach occurred, the State Commission held that is a clear case of dereliction of duties resulting into theft of personal baggages of the three passengers due to negligence on the part of the Railway Administration and its servants.
यूनियन आफ इंडिया बनाम शोभा अग्रवाल Revision Petition No 602/2013 (N.C) decided on 22 July 2013 में यह अवधारित किया है:-
Para8. Undisputedly, the complainant and her daughter were travelling in a reserved coach and it was the duty of
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the TTE to ensure that no intruders entered the reserved compartment. Since apparently there was a failure on the part of the TTE to prevent entry of unauthorized person in the coach during the night, the Fora below where right in
holding the petitioner liable for deficiency in service to the respondent in this regard. So far as the applicability of section 15 of the Railway Claims Tribunal Act, 1987 is concerned, we cannot agree with the contention of learned counsel because this section bars jurisdiction of the other courts only “in relation to the matters referred to in sub-sections (1) and (1A) of section 13”. Section 13 is reproduced thus:-
“13. Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal – (1) The Claims
Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that day by any Civil Court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of Railway Act,-
- relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under chapter VII of the Railways Act in respect of claims for-
- compensation for loss, destruction, damages, deterioration or non-delivery of animals or good entrusted to a railway administration for carriage by railway;
- compensation payable under Sec. 82-A of the Railway Act or the rules made there under; and
- in respect of the claims for refund of fares or part thereof or for
refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted
to a railway administration to be carried by railway.
[(1-A) The Claims Tribunal shall also exercise, on and from the date of
Commencement of the provisions of Sec.124-A of the Railways Act,1989
(24 of 1989), all such jurisdiction, powers and authority as were
exercisable immediately before that date by any Civil Court in respect of
claims for compensation now payable by the Railway Administration under
Sec.124-A of the said Act or the Rules made thereunder.]
(2) The provision of the [Railways Act, 1989] and the rules made
thereunder shall, so far as may be, be applicable for inquiring into or
determining any claims by the Claims Tribunal under this Act.”
Para 9. Plain reading of section 13 indicates that the case of the respondent does not fall under any of the categories mentioned in the section. In view of this,
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the jurisdiction of the consumer Fora cannot be barred by virtue of the provisions of section 15.
इस रिवीजन के विरूद्ध यूनियन आफ इंडिया ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय में एक SLP to appeal (Civil)/2014 (सी ७६१/२०१४) यूनियन आफ इंडिया बनाम
शोभा अग्रवाल प्रस्तुत की है जिसे कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक ३०/०१/२०१४ को स्पेशल लीव पेटीशन खारिज कर दी है।
उपरोक्त विधि व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में जो परिवादी/प्रत्यर्थी की पत्नी का सामान चोरी हो गया है उसके लिए रेलवे विभाग की लापरवाही परिलक्षित होती है और रेलवे विभाग अपने उत्तरदायित्व का पालन सही रूप से नहीं कर सका है और इस प्रकार उसके द्वारा सेवा में कमी की गयी है। अत: विद्वान जिला मंच द्वारा जो निर्णय पारित किया गया है वह संपूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं विधिक व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्वान जिला मंच बांदा द्वारा परिवाद सं0-२५३/२०१० रंजन कुमार बनाम यूनियन आफ इंडिया में पारित आदेश दिनांक ३०/०५/२०१३ की पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रति नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाए।
(अशोक कुमार चौधरी) (संजय कुमार)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र कोर्ट0 ३