राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2182/1997
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-1059/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.10.1997 के विरूद्ध)
लाइफ इन्श्योरेन्स कारपोरेशन आफ इण्डिया, 19-ए, टैगोर टाउन, इलाहाबाद, द्वारा जनरल मैनेजर। .........................अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
श्री राम नरेश पुत्र श्री हीरा लाल, निवासी ग्राम सराय रहिया, पोस्ट उमरी, जिला इलाहाबाद। ...........................प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 12.11.2014
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी द्वारा यह अपील, जिला फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-1059/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.10.1997 से क्षुब्ध होकर दिनांक 12.11.1997 को योजित की गयी है।
इस प्रकरण के आवश्यक तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी स्व0 श्रीमती श्याम कुमारी ने अपना बीमा अपीलार्थी/विपक्षी के यहां रू0 50,000/- में दिनांक 28.03.1992 को कराया था। बीमार्थी की मृत्यु एकाएक दिनांक 08.10.1993 को हो गयी, जिसकी सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समय से अपीलार्थी/विपक्षी को दी गयी एवं बीमा दावा प्रस्तुत किया गया, जिस पर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा निगम ने अपने पत्र दिनांक 07.07.1995 द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा इस आधार पर निरस्त कर दिया कि उसकी पत्नी ने प्रस्ताव पत्र में अपने पति की बीमा पालिसी रू0 50,000/- की बतायी थी, जबकि वास्तव में बीमा पालिसी रू0 36,000/- की थी। इसी आधार पर बीमा निगम ने उसका बीमा दावा निरस्त कर दिया। बीमा निगम के इस कृत्य से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रश्नगत परिवाद बीमा धन मय 12 प्रतिशत ब्याज तथा क्षतिपूर्ति की मांग की गयी, जिस पर विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत परिवाद के विरूद्ध लिखित अभिकथन योजित करते हुए कहा गया कि
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चूंकि बीमार्थी ने प्रस्ताव के समय गलत तथ्य रखते हुए बीमा पालिसी प्राप्त की थी, इसलिए उसका बीमा दावा निरस्त किया गया है और यह भी कहा गया है कि बीमा निगम द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। अत: परिवाद खारिज होने योग्य है। जिला फोरम द्वारा साक्ष्यों का अवलोकन करने पश्चात यह पाया कि परिवादी/प्रत्यर्थी एवं उसकी पत्नी दोनों निरक्षर थे एवं बीमा पालिसी दिखाने पर ही एजेण्ट ने पालिसी का नम्बर भरा था। यदि प्रस्ताव पत्र में एजेण्ट ने बीमा राशि गलत भरी थी तो इसमें एजेण्ट की गलती है। जहां तक पति की पालिसी की सूचना देने का प्रश्न है तो यह सिद्ध है कि बीमार्थी निरक्षर थी। उसने प्रस्ताव पत्र स्वंय नहीं भरा था, बल्कि एजेण्ट ने भरा था। अत: पत्रावली के अवलोकन से जिला फोरम द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बीमा निगम द्वारा बीमा दावे का निस्तारण सही इरादे से नहीं किया है। तदनुसार जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेश दिया गया कि आदेश मिलने के दो माह के अन्दर परिवादी को बीमा दावा राशि का रू0 55,678/- एवं दिनांक 07.07.1995 से भुगतान की तिथि तक इस राशि पर 12 प्रतिशत ब्याज अदा करें एवं नियत अवधि में यदि भुगतान नहीं किया जाता है तो इस राशि पर 15 प्रतिशत ब्याज देय होगा।
अपीलार्थी द्वारा उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील संस्थित की गयी है, जिसमें यह कहा गया है कि चूंकि प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा भी अपीलार्थी/विपक्षी के यहां से किया गया था, जो जांच पड़ताल के बाद रू0 36,000/- में पाया गया। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा निगम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी का बीमा दावा इस आधार पर निरस्त किया गया था कि बीमार्थी की अपनी कोई आय नहीं थी। बीमार्थी ने गलत तथ्यों के आधार पर रू0 50,000/- की धनराशि की बीमा पालिसी प्राप्त कर ली। अपीलार्थी द्वारा अपने तर्क के समर्थन में अण्टर राइटिंग (बीमांकन) के प्रपत्र दाखिल किया गया है, जिसमें Female Lives Points to Remember के पैरा नम्बर 12 पर ध्यान आकृष्ट कराया गया, जिसमें Female lives under category I and II are eligible under Plan 91 में कहा गया है कि यदि पति का बीमा जितनी धनराशि के लिए होगा उससे कम धनराशि के लिए बीमा पत्नी का किया जायेगा। चूंकि अपीलार्थी द्वारा यह भी तर्क रखा गया कि पति की आय में ही पत्नी की आय सम्मिलित होती है, इसलिए पति से अधिक पत्नी का बीमा नहीं किया जा सकता है।
अपीलार्थी के उपरोक्त कथन का विरोध करते हुए प्रत्यर्थी द्वारा कहा गया कि अपीलार्थी के तर्क में कोई बल नही है, क्योंकि बीमार्थी का जो बीमा रू0 50,000/- दिनांक 28.03.1992 को कराया गया था उसकी किश्तें भी बीमार्थी
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स्वंय ही जमा करती थी और बीमार्थी की एकाएक मृत्यु दिनांक 08.10.1993 को हो गयी, जिसकी सूचना बीमा निगम को समय से दे दी गयी थी। चूंकि बीमार्थी श्रीमती श्याम कुमारी स्वंय एक निरक्षर महिला थी। उन्होंने बीमा निगम के एजेण्ट के कहने पर जहां उसने कहा वहां पर अपना अगूँठा लगा दिया। बीमार्थी का स्वास्थ्य परीक्षण कराने के बाद ही उसे बीमा पालिसी दी गयी थी। तदनुसार बीमार्थी बीमा कराते समय स्वस्थ थी। जहां तक बीमा निगम द्वारा यह कहना कि बीमार्थी के पति की बीमा पालिसी रू0 36,000/- की थी, इसलिए उसे भी रू0 36,000/- का ही दिया जा सकता है, जबकि बीमार्थी की इसमें कोई चूक नहीं है। बीमा निगम को स्वंय यह बताना चाहिये था कि यदि पति की पालिसी जितनी धनराशि के लिए होती है उससे कम धनराशि की पालिसी बीमार्थी को दी जायेगी। इस बात की जानकारी बीमा निगम ने कहीं भी नहीं दी।
पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्र को विस्तार से सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों एवं अभिलेखों तथा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का अवलोकन करने के पश्चात यह समीचीन पाती है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय सभी सुसंगत साक्ष्यों एवं सारवान तथ्यों पर आधारित है, क्योंकि बीमा निगम ने स्वंय ही बीमार्थी एवं उसकी पत्नी का बीमा किया था। यह बीमा निगम की स्वंय की जिम्मेदारी थी कि यदि पति पत्नी का बीमा करते समय बीमार्थी को बीमा के नियमों को बताना चाहिये था, जो न बता कर के सेवा में कमी की गयी है। तदुनसार जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश सारवान तथ्यों पर आधारित है, इसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने एवं जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि होने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-1059/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील के व्यय के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-4