राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-447/2020
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता आयोग-द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या 157/2015 में पारित आदेश दिनांक 28.11.2019 के विरूद्ध)
पंजाब नेशनल बैंक, पटेल चौक, बरेली
........................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
रामपाल पुत्र श्री लीलाधर, निवासी- एच0नं0 एस-2/132 ग्रेटर ग्रीन पार्क, बारादरी, बरेली ...................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री साकेत श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 18.10.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री साकेत श्रीवास्तव को सुना।
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी पंजाब नेशनल बैंक द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग-द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या-157/2015 रामपाल बनाम शाखा प्रबन्धक पंजाब नेशनल बैंक में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.11.2019 के विरूद्ध योजित की गयी है।
प्रश्नगत निर्णय और आदेश के द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि परिवादी प्रतिपक्षी से क्षतिपूर्ति के रूप में रू. 27,500/-(सत्ताइस हजार पॉंच सौ) प्राप्त करने के अधिकारी है। परिवादी प्रतिपक्षी से मानसिक कष्ट हेतु रू. 3,000/- (तीन हजार) प्राप्त करने का अधिकारी है। उपरोक्त धनराशियों का भुगतान दो माह के अंतर्गत न होने पर परिवादी प्रतिपक्षी से परिवाद योजित किए जाने की तिथि से उनके भुगतान तक उन पर 7प्रतिशत
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वार्षिक साधारण ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा। वाद व्यय के रूप में परिवादी प्रतिपक्षी से रू. 5000/-(पॉंच हजार) प्राप्त करने का अधिकारी है।''
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक में एक सावधि जमा (एफ0डी0आर0) खाता सं0 364700 पी0आर0ओ0 21098 दिनांक 20.11.2012 धनराशि 85946/-रू0 जमा करके दिनांक 31.12.2014 तक के लिए 9.5 प्रतिशत ब्याज पर बनवाई थी, जिसका भुगतान मय ब्याज दिनांक 30.12.2014 को 1,13,087/-रू0 का होना था।
परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा उपरोक्त सावधि जमा के आधार पर बैंक से 35000/-रू0 का ऋण लिया, जिसमें दिनांक 06.03.2012 को बैंक खाता सं0 9117640 से 20,000/-रू0 का भुगतान कर दिया तथा यह कि दिनांक 03.09.2012 को जब परिवादी शेष 15,000/-रू0 का भुगतान करने गया तो उसे ज्ञात हुआ कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को कोई सूचना दिये बिना उपरोक्त धनराशि को परिवादी के सावधि खाते से काटकर शेष धनराशि परिवादी के बचत खाते में जमा कर दी गयी। विपक्षी बैंक के उक्त कृत्य से परिवादी को मानसिक आघात पहुँचा तथा परिवादी को ब्याज के रूप में 27,500/-रू0 का नुकसान हुआ, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी बैंक द्वारा मुख्य रूप से कथन किया गया कि परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक से दिनांक 21.07.2011 को 35,000/-रू0 का ऋण लिया गया तथा उक्त ऋण के सम्बन्ध में परिवादी द्वारा अपनी एफ0डी0आर0 पी0आर0 21098 को बन्धक किया था। उक्त एफ0डी0आर0 दिनांक 11.09.2011 को परिपक्व हो गयी, परन्तु परिवादी द्वारा न तो उक्त धनराशि का भुगतान विपक्षी को किया तथा न ही उसकी परिपक्वता धनराशि प्राप्त करने हेतु आवेदन किया तथा यह कि उक्त एफ0डी0आर0 को दिनांक 30.12.2011 को दिनांक 30.12.2014 तक के लिए 9.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर
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नवीनीकृत कराया गया, उस समय भी परिवादी द्वारा ऋण का नियमानुसार भुगतान नहीं किया गया।
विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा पत्र दिनांकित 09.03.2012 व ऋण अनुबन्ध पत्र दिनांक 21.07.2011 के अनुपालन में देय धनराशि को दिनांक 04.04.2012 तक जमा नहीं किया गया तो विपक्षी द्वारा ऋण धनराशि एवं ब्याज की गणना करके उक्त धनराशि को काटकर शेष धनराशि परिवादी के खाते में जमा कर दी गयी, जिसकी सूचना परिवादी को मोबाइल पर एस0एम0एस0 के माध्यम से दी गयी। उक्त सूचना प्राप्त होने पर परिवादी द्वारा दिनांक 09.04.2012 से दिनांक 22.04.2012 तक नौ बार अपने खाते से लेन-देन किया गया। विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त अपने निर्णय में बिन्दुवार सभी तथ्यों की विस्तृत रूप से विवेचना करते हुए यह पाया गया कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को बिना किसी पूर्व सूचना के प्रश्नगत सावधि जमा से ऋण समायोजित कर लिया गया तथा शेष धनराशि परिवादी के खाते में जमा कर दी गयी, जिससे परिवादी सावधि जमा का ब्याज प्राप्त करने से वंचित हो गया, जो विपक्षी बैंक की सेवा में कमी है।
तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रश्नगत आदेश दिनांक 28.11.2019 पारित किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुनने के उपरान्त तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय एवं आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त मेरे विचार से
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय विधिसम्मत है, परन्तु विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को जो मानसिक कष्ट हेतु 3,000/-रू0 अदा करने हेतु आदेशित किया गया है, उसे समाप्त किया जाना उचित है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग-द्वितीय, बरेली द्वारा परिवाद संख्या-157/2015
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रामपाल बनाम शाखा प्रबन्धक पंजाब नेशनल बैंक में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.11.2019 को संशोधित करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक कष्ट हेतु 3,000/-रू0 (तीन हजार रूपया मात्र) अदा करने का आदेश समाप्त किया जाता है। जिला उपभोक्ता आयोग का शेष आदेश यथावत् रहेगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को 01 माह में विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1