1.परिवादी ने विपक्षी से 720 पैकिट आलू की कीमत 1080000/रु मय बैक ब्याज दिनाक 27.2.2015 से भुगतान की तिथि तक दिलाने की प्रार्थना की है।
2.. संक्षेप में परिवादी का कथन है कि उसने दि.27.2.2015 को क्रमशः 113,64,20,36, 75, 39, 27, 40,,13, 24,100 व 29 पैकिट जिसका प्रति पैकिट वज़न लगभग 53 किग्रा. आलू के बीज कोल्ड स्टोर में भण्डरित किये थे। तथा प्रत्येक पैकिट 1500/रु. के हिसाब से कोल्ड स्टोर में खरीद कर रखे थे , लेकिन सभी 772 आलू का बीज खराब हो गया जिसका कारण चैम्बर का ढह जाना बताया प्रार्थी द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी उक्त 720 पैकिट का भुगतान बाजारु कीमत पर करने पर नहीं किया। दि.4.2.2016 को आलू के पैकिट्स की कीमत 1500/रु. की दर से 1080000/ की माँग करने पर कोई भुगतान नहीं किया।विपक्षीगण सं.1 व2 की लापरवाही से 720 पैकिट्स आलू नष्ट हो गये। अतः 720 पैकिट्स की कीमत रु.1080000/ दिलाई जाये।
3. विपक्षी सं.1 ने अपने प्रतिवाद पत्र में कथन किया है कि परिवादी द्वारा 720 पैकिट न होकर 504 पैकिट कोल्ड स्टोर में रखे गये थे।परिवादी द्वारा 20 पैकिट छोडकर शेष पैकिट विभिन्न व्यापारियो को बेच दिये और 20 पैकिट के बारे में कोल्ड स्टोर विनियमन 1976 के प्रावाधानो का अनुपालन नहीं किया। थोक न. 1645/40 1648/13, 1697/24 618/100, 1726/29 व 1646/39 परिवादी के न होकर जवाहर सिह के थे और थोक न. 1568/27 कोई थोक नहीं था। पैकिट का विवरण जोडने पर 720 पैकिट न होकर 580 पैकिट थे और जिलाधिकारी को प्राप्त पत्र दि. 26.10.2015 मे 580 पैकिट का जिक्र किया गया है। पुलिस अधीक्षक को भेजे गये पत्र कि. 18.10.2015 में भी 580 पैकिट का जिक्र किया गया । वादी ने झूठा वाद दायर किया है।
4. विपक्षी सं.1 ने अपने प्रतिवाद पत्र में कथन किया है कि वह वादी फर्म का मालिक/ प्रबन्धक/संचालक/ साझीदार नहीं है वादी ने झूठा वाद दायर किया है।
5. विपक्षी सं.4 ने अपने पत्र में कथन किया है कि वादी जिला उधान अधिकारी अलीगड की सूचना पर मुकदमा अपराध सं. 348/2015 अंर्तगत धारा 419,420, 467, 468, 47, भारतीय दण्ड विधान व 37 उ.प्र. कोल्ड स्टोर अधि. पंजीकृत किया गया था।
6. विपक्षी सं.5 ने अपने पत्र में कथन किया है कि फर्म के स्वामी रमेश चन्द्र वार्ष्मेय ने अपने पत्र दि. 11.7.2016 में अवगत कराया वादी द्वारा पत्र में दर्शाये गये 720 पैकिट के स्थान पर 504 पैकिट आलू रखे गये थे और 20 पैकिट छोडकर बाकी सभी पैकिट वादी द्वारा शीतगृह पर बेच दिये थे। कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर का एक हिस्सा दि.5.7.2015 की रात्रि में गिर गया था जिससे कुछ आलू क्षति ग्रस्त हो गया था। जाँच उपरान्त शीतगृह का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था प्रकरण से जिला अधिकारी व जिला उधान अधिकारी का कोई सम्बन्ध नहीं है। विपक्षी सं.1 व 2 उत्तरदायी है।
7. पक्षकारो ने अपने-अपने केस के समर्थन में शपथ पत्र एवं प्रलेख दाखिल किये है।
8. पक्षकारो की ओर से तर्क सुने गये तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
9. प्रथम प्रश्न यह निहित है कि परिवादी द्वारा 720 पैकिट आलू भण्डार किये गये थे अथवा 504 पैकिट आलू भण्डार किये गये थे जिन में से मात्र 20पैकिट छोडकर शेष पैकिट वादी द्वारा शीतगृह पर बेच दिये थे अथवा सभी पैकिट आलू शीतगृह के चैम्बर का हिस्सा गिरने से क्षतिग्रस्त हो गये ?
10. परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि उसने 720 पैकिट आलू शीतगृह में भण्डार किये थे जो शीतगृह का कुछ हिस्सा गिरने से क्षतिग्रस्त हो गये थे। विपक्षी सं.5 जिला उधान अधिकारी द्वारा अपने पत्र व दर्ज कराई प्रथम सूचना रिपोर्ट में अवगत कराया गया है कि शीतगृह के चैम्बर का कुछ हिस्सा गिरने से कुछ आलू क्षतिग्रस्त हो गया था और विपक्षी के शीतगृह के चैम्बर का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। स्पष्ट है कि 720 पैकिट आलू में से कुछ पैकिट आलू निश्चित रुप से शीत गृह के चैम्बर का हिस्सा क्षतिग्रस्त होने से नष्ट हो गये थे। प्रश्न यह है कि कितने आलू क्षतिग्रस्त हुआ कितना शेष बचा। विपक्षी द्वारा 20 पैकिट आलू छोडकर शेष आलू शीत गृह पर बेचने का कथन किया गया है किन्तु बिक्रीत आलू की बिक्री के सम्बन्ध में कोई संतोषजनक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह विदित होता है कि आलू क्षतिग्रस्त हो गया मात्र 20 पैकिट आलू बचा था जिसका भुगतान वादी को नहीं दिया गया। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से 720 पैकिट आलू भण्डारित करना विदित होता है । अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि विपक्षी सभी पैकिट के आलू की भरपाई के लिये उत्तरदायी है ।फलस्वरुप विपक्षी सं.1 वादी को 720 पैकिट आलू की कीमत रु.1080000/ भुगतान करने के लिये उत्तरदायी है ।
11.प्रश्न परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
12. विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को आलू की कीमत रु 1080000/ मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दि. 27.2.2015 से भुगतान किये जाने की तिथि तक ब्याज सहित भुगतान करे। अन्यथा आदेश का अनुपालन ना किये जाने की दशा में उसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 72 के अंर्तगत कारावास अथवा अर्थदंड से दण्डित किया जा सकता है।
13. परिवाद में यदि कोई प्रार्थना पत्र लम्बित है तब निर्णय के अनुसार निस्तारित किया जाता है।
14. निर्णय की प्रति पक्षकारो को निशुल्क प्राप्त करायी जाये और आयोग की वेबसाइट पर पक्षकारो के अवलोकनार्थ निर्णय को तुरंत पलोड किया जाये।
15. पत्रावली को निर्णय की प्रति सहित अभिलेखागार भेजा जाये।