Uttar Pradesh

StateCommission

A/596/2015

Bank Of Baroda - Complainant(s)

Versus

Ramesh Pridhnani - Opp.Party(s)

B.L. Jaiswal

07 Oct 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/596/2015
(Arisen out of Order Dated 27/01/2015 in Case No. C/587/2009 of District Lucknow-II)
 
1. Bank Of Baroda
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. Ramesh Pridhnani
Lucknow
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील सं0-५९६/२०१५

(जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-५८७/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७-०१-२०१५ के विरूद्ध)

१. बैंक आफ बड़ौदा, जोनल आफिस यू.पी. एण्‍ड उत्‍तराखण्‍ड जोन, जीवन भवन ४५, हजरतगंज लखनऊ द्वारा जोनल मैनेजर।

२. रीजनल मैनेजर, बैंक आफ बड़ौदा, १, संकलन, सिविल लाइन्‍स, हल्‍द्वानी।

३. ब्रान्‍च मैनेजर बैंक आफ बड़ौदा काशीपुर मेन ब्रान्‍च, बाजपुर रोड, काशीपुर, जिला ऊधम सिंह नगर।

                                    .....................    अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।

बनाम्

रमेश प्रिधनानी पुत्र स्‍व0 होत चन्‍द्र प्रिधनानी, प्रौपराइटर मोडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज, रजिस्‍टर्ड कार्यालय शंकर भवन, मॉडल हाउस, नया गॉव(पूर्व), लखनऊ।

                                    ....................           प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

समक्ष:-

१-  मा0 उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित  :- श्री राजीव जायसवाल विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित       :- श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक : २६-०२-२०१६.

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील, जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-५८७/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७-०१-२०१५ के विरूद्ध योजित की गयी है।

      संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार वह मोडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज का स्‍वामी है, जिसका व्‍यापार पुरूष व महिलाओं की घडियॉं बनाने का था। अपीलार्थी सं0-३ ने उपरोक्‍त इण्‍डस्‍ट्री के व्‍यवसाय हेतु दिनांक २१-१२-१९८७ को २५.०० लाख रू० नगद ऋण सीमा स्‍वीकृत की थी। इस सुविधा के विरूद्ध इस इण्‍डस्‍ट्री की मशीनें तथा निर्मित एवं अर्द्ध निर्मित घडियॉं कुल मूल्‍य ५०,९९,२५६/- रू० बन्‍धक रखी थीं। परिवादी तथा उसके भाई, जो इस इण्‍डस्‍ट्री के गारण्‍टर थे, ने अनेक एफ.डी.आर. अपने नाम से बनवाकर अपीलार्थी सं0-३ की अभिरक्षा में सुरक्षित रखी थीं। दिनांक   १६-०८-१९८९ के उपरान्‍त अपीलार्थी बैंक से उपरोक्‍त इण्‍डस्‍ट्री का कोई लेन-देन नहीं हुआ। उक्‍त तिथि पर अपीलार्थीगण द्वारा इस इण्‍डस्‍ट्री का प्रांगण सील कर दिया गया तथा

 

-२-

फैक्‍ट्री की चाबियॉं अपीलार्थीगण द्वारा अपनी अभिरक्षा में ले ली गयीं। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी बैंक में स्थित अपने खातों के विवरण की प्रतिलिपि अपीलार्थीगण से मांगी, किन्‍तु अपीलार्थीगण द्वारा सही प्रतियॉं प्राप्‍त नहीं करायी गयीं। दिनांक ०१-१०-२००७ को प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने नगद ऋण खाते के विवरण की प्रति सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्‍तर्गत अपीलार्थीगण से मांगी, किन्‍तु जन सूचना अधिकारी/रीजनल मैनेजर अपीलार्थी सं0-२ ने अपने पत्र दिनांक १३-०१०-२००७ के द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते के  विवरण की प्रतिलिपि प्रदान करने से इन्‍कार कर दिया। इसके विरूद्ध प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने मुख्‍य जन सूचना अधिकारी के समक्ष अपील की। दिनांक ०८-११-२००७ को मुख्‍य जन सूचना अधिकारी ने अपने पत्र द्वारा यह सूचना किया कि डिमाण्‍ड ड्राफ्ट दिनांकित   २१-१२-१९८७ प्रत्‍यर्थी/परिवादी के उपरोक्‍त उद्योग के नगद ऋण खाते से बनाया गया है न कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी की सुरक्षित एफ0डी0आर0 के सापेक्ष। इस खाते का फर्जी विवरण पत्र दिनांकित ०८-११-२००७ द्वारा प्राप्‍त कराया गया, जबकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी अथवा उसके भाई ने ऐसा कोई निर्देश अपीलार्थीगण को नहीं दिया था और न ही ऐसा कोई अभिलेख निष्‍पादित किया था कि एफ0डी0आर0 के विरूद्ध ऋण प्रदान किया जाय। नगद ऋण खाते के फर्जी विवरण के आधार पर अपीलार्थीगण ने अपने प्रस्‍ताव दिनांकित १४-११-२००३ से एक मुश्‍त समझौता के रूप में अवैध धनराशि जमा किए जाने की मांग की थी। बार-बार मांगे जाने के बाबजूद अपीलार्थीगण ने नगद ऋण खाते का सही विवरण प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्राप्‍त नहीं कराया। अत: अपीलार्थीगण के विरूद्ध परिवाद प्रश्‍नगत खाते का सही विवरण उपलब्‍ध कराये जाने हेतु योजित किया गया।

      अपीलार्थीगण का यह कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी मॉडर्न टाइम्‍स इ‍ण्‍डस्‍ट्रीज को २५.०० लाख रू० तक की नगद ऋण सुविधा उपलब्‍ध करायी गयी थी, जिसका उसके द्वारा उपयोग किया गया। इस ऋण खाते के सापेक्ष्‍य परिवादी के उद्योग से सम्‍बन्धित सम्‍पत्तियॉं अपीलार्थी सं0-३ बैंक द्वारा बन्‍धक रखी गयी थीं। परिवादी के नाम जारी किए गये एफ0डी0आर0 की धनराशि का भुगतान परिवादी के उपरोक्‍त खाते में बकाया धनराशि की अदायगी में किया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते से सम्‍बन्धित सही विवरण प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्राप्‍त कराया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुरोध पर एक मुश्‍त

 

 

-३-

समझौता के रूप में दिनांक १४-११-२००३ को एक प्रस्‍ताव अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्रेषित किया गया, किन्‍तु इस समझौता की शर्तों का अनुपालन प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा नहीं किया गया। अपीलार्थी बैंक ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।

      विद्वान जिला मंच ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी के परिवाद को आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि वे निर्णय की तिथि से ०६ सप्‍ताह के अन्‍दर परिवादी को मॉडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज का कैश क्रैडिट एकाउण्‍ट/चालू खाता एकाउण्‍ट तथा LABOD, एकाउण्‍ट से सम्‍बन्धित स्‍टेटमेण्‍ट आफ एकाउण्‍ट मय डेबिल एवं क्रैडिट वाउचर्स के साथ आदि की प्रति उपलब्‍ध करायें। इसके अतिरिक्‍त अपीलार्थीगण को यह भी निर्देश दिया गया कि वे प्रत्‍यर्थी/परिवादी को मानसिक क्‍लेश हेतु २०,०००/- रू० तथा ५,०००/- रू० वाद व्‍यय स्‍वरूप अदा करें। निर्धारित अवधि के अन्‍दर यह धनराशि अदा न किए जाने की स्थिति में अपीलार्थीगण समस्‍त धनराशि पर उक्‍त तिथि से ता अदायगी तक १२ प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज अदा करेंगे। इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी।

      हमने अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजीव जायसवाल को तथा प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री विकास अग्रवाल के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।

      यह अपील प्रश्‍नगत आदेश दिनांकित २७-०१-२०१५ के विरूद्ध दिनांक २६-०३-२०१५ को योजित की गयी है। इस प्रकार यह अपील विलम्‍ब से योजित की गयी है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि विलम्‍ब का कोई उचित स्‍पष्‍टीकरण अपीलार्थीगण की ओर से प्रस्‍तुत नहीं किया गया है।

      उल्‍लेखनीय है कि अपीलार्थी ने अपील के प्रस्‍तुतीकरण में हुए विलम्‍ब को क्षमा किए जाने हेतु परिसीमा अधिनियम की धारा-५ के अन्‍तर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया है तथा प्रार्थना पत्र के समर्थन में श्री राजेश कुमार अरोड़ा, ए.जी.एम. बैंक आफ बड़ौदा, ए.आर.एम. ब्रान्‍च विभूति खण्‍ड, गोमती नगर, लखनऊ का शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया है। शपथ पत्र के अनुसार निर्णय दिनांक २७-०१-२०१५ की प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक     १३-०२-२०१५ को प्राप्‍त हुई। प्रश्‍नगत परिवाद की कार्यवाही श्रीमती ऊषा चावला अधिवक्‍ता

 

 

-४-

द्वारा जिला मंच के समक्ष संचालित की जा रही थी। उन्‍होंने निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्‍त कर अपीलार्थी बैंक को दिनांक २३-०२-२०१५ को बिना पत्रावली के प्राप्‍त करायी। श्रीमती ऊषा चावला से मामले की पत्रावली वापस करने को कहा गया, किन्‍तु उन्‍होंने पत्रावली वापस नहीं की। अत: वर्तमान अधिवक्‍ता श्री राजीव जायसवाल से परिवाद एवं प्रतिवाद पत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्‍त करने हेतु कहा गया, क्‍योंकि वह बैंक के रिकार्ड में उपलब्‍ध नहीं थे, जिनकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्‍त करने हेतु श्री जायसवाल ने दिनांक १६-०३-२०१५ को प्रार्थना पत्र प्रेषित किया। ये प्रमाणित प्रतिलिपियॉं दिनांक २०-०३-२०१५ को श्री जायसवाल को प्राप्‍त हुईं। प्रमाणित प्रतिलिपियॉं प्राप्‍त करने के उपरान्‍त अपील तैयार करके योजित की गयी। शपथ पत्र में उल्‍िलखित उपरोक्‍त तथ्‍यों से यह विदित होता है कि अपीलार्थी बैंक ने जानबूझकर अपील के प्रस्‍तुतीकरण में विलम्‍ब नहीं किया है। अपील के प्रस्‍तुतीकरण में हुए विलम्‍ब का सन्‍तोषजनक स्‍पष्‍टीकरण प्रस्‍तुत किया गया है। इसके अतिरिक्‍त यह भी उल्‍लेखनीय है कि मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों, जिनका उल्‍लेख इस निर्णय में आगे किया जायेगा, के अनुसार अपील में बल प्रतीत हो रहा है, अत: ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से अपील के प्रस्‍तुतीकरण में हुआ विलम्‍ब क्षमा किए जाने योग्‍य है। अपील के प्रस्‍तुतीकरण में हुआ विलम्‍ब क्षमा किया जाता है।

      अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच को प्रश्‍नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं था। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि वाद कारण उत्‍पन्‍न होने के ०२ वर्ष के भीतर परिवाद योजित न किए जानेके कारण परिवाद कालबाधित था। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विरूद्ध अपीलार्थी बैंक द्वारा सरफेसी एक्‍ट के अन्‍तर्गत कार्यवाही किए जाने के कारण परिवाद उपभोक्‍ता मंच में पोषणीय नहीं था। इन तथ्‍यों की ओर ध्‍यान न देते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया है, अत: प्रश्‍नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण है।

      प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच      ने पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य का उचित परिशीलन करने के उपरान्‍त प्रश्‍नगत निर्णय

 

-५-

पारित किया है। परिवाद से सम्‍बन्धित वाद कारण जिला मंच, लखनऊ के क्षेत्राधिकार में उत्‍पन्‍न हुआ तथा वाद कारण उत्‍पन्‍न होने के ०२ वर्ष के अन्‍दर परिवाद योजित किया गया।      

      उल्‍लेखनीय है कि अपलार्थी बैंक ने प्रश्‍नगत परिवाद के सन्‍दर्भ में जिला मंच में अपीलार्थी संख्‍या-२ द्वारा प्रेषित किए गये प्रतिवाद पत्र की प्रति की सत्‍यप्रति संलग्‍नक-२, अपीलार्थी बैंक द्वारा जिला मंच के समक्ष साक्ष्‍य के रूप में प्रस्‍तुत श्री सोमानाथ सिन्‍हा ए.जी.एम. बैंक आफ बड़ौदा, ए.आर.एम. ब्रान्‍च विभूति खण्‍ड, गोमती नगर, लखनऊ के शपथ पत्र की सत्‍यापित फोटोप्रति, रिट याचिका सं0-३८४०५/२००९ मै0 मॉडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज बनाम ऋण बसूली अधिकरण इलाहाबाद में मा0 उच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांकित ०२-०८-२०११ की प्रमाणित प्रतिलिपि की फोटोप्रति दाखिल की हैं। श्री सोमनाथ सिन्‍हा द्वारा प्रेषित किए गये शपथ पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी बैंक द्वारा दिये गये ऋण का पूर्ण उपयोग किया, किन्‍तु इस ऋण की अदायगी प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा न किए जाने के कारण बकाया धनराशि की वसूली हेतु अपीलार्थी बैंक ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विरूद्ध वाद सक्षम दीवानी न्‍यायालय में योजित किया। यह वाद दिनांक ३०-०९-१९९१ को डिक्री हुआ। तद्नुसार डिक्री के निष्‍पादन की कार्यवाही की गयी। ऋण बसूली अधिकरण बन जाने के उपरान्‍त निष्‍पादन वाद ऋण बसूली अधिकरण में स्‍थानान्‍तरित किया गया, जिसके द्वारा मौडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज ऋण प्राप्‍तकर्ता एवं गारण्‍टर्स के विरूद्ध बसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया। इसके उपरान्‍त परिवादी ने एक रिकाल प्रार्थना पत्र दिनांक १२-०९-२००३ को प्रेषित किया, जो दिनांक ०९-०५-२००६ को परिवादी की अनुपस्थिति के कारण निरस्‍त हो गया। तदोपरान्‍त प्रेषित दूसरा रिकाल प्रार्थना पत्र भी दिनांक १२-०९-२००६ को निरस्‍त हो गया। अपलार्थीगण का यह कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने एक रिट याचिका माननीय उच्‍च न्‍यायालय में योजित की। यह रिट याचिका मा0 उच्‍च न्‍यायालय, इलाहाबाद द्वारा स्‍वीकार की गयी तथा यह निर्देशित किया गया कि रिकॉल प्रार्थना पत्र दिनांक १२-०९-२००३ का गुणदोष पर निस्‍तारण किया जाय। ऋण बसूली अधिकरण ने अपने आदेश दिनांक १५-१२-२००६ द्वारा निष्‍पादन वाद को पुनर्स्‍थापित कर दिया। जब यह कार्यवाही लम्बित थी, इसी मध्‍य अपीलार्थी बैंक ने

 

 

-६-

सरफेसी एक्‍ट की धारा-१३(२) के अन्‍तर्गत मोडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज को नोटिस जारी किया, जिसका उत्‍तर उनके द्वारा नहीं दिया गया। मोडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज द्वारा ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष प्रार्थना पत्र दिनांक १०-०१-२००७, ११-०१-२००७ एवं १५-०३-२००७ प्रेषित किए गये। ये प्रार्थना पत्र ऋण बसूली अधिकरण द्वारा निरस्‍त किए गये, जिसके विरूद्ध अपील, अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी। अपीलीय प्राधिकरण द्वारा अपील इस निर्देश के साथ स्‍वीकार की गयी कि प्रार्थना पत्र दिनांक   १५-०३-२००७ का निस्‍तारण १५ दिन के अन्‍दर किया जाय तथा यह भी निर्देश दिया गया कि इस आदेश का लाभ उस स्थिति में ही प्रदान किया जायेगा, जब अपीलार्थी १५.०० लाख रू० जमा करेगा। इस आदेश के विरूद्ध मोडर्न टाइम्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज द्वारा रिट याचिका योजित की गयी। इस याचिका में पारित आदेश के अनुसार १५.०० लाख रू० धनराशि को घटाकर ०५.०० लाख रू० कर दिया गया तथा ०५.०० लाख रू० की यह धनराशि एक सप्‍ताह में जमा करने हेतु निर्देशित किया गया, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने यह धनराशि भी जमा नहीं की। तदोपरान्‍त सरफेसी एक्‍ट की धारा-१३(४) के अन्‍तर्गत नोटिस जारी की गयी। इस नोटिस का जवाब दाखिल किया गया तथा ऋण बसूली अधिकरण द्वारा पारित आदेश दिनांक ३०-१०-२००८ द्वारा यह निर्णीत किया गया कि वह कार्यवाही कालबाधित नहीं है। ऋण बसूली अधिकरण द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध योजित अपील अपीलीय अधिकरण द्वारा निरस्‍त की गयी। अपीलीय अधिकरण द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध रिट याचिका माननीय उच्‍च न्‍यायालय में योजित की गयी। यह रिट याचिका माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक ०२-०८-२०११ द्वारा निरस्‍त की गयी।

अपीलार्थी द्वारा अपील के साथ प्रस्‍तुत किए गये अभिलेखों के अवलोकन से यह भी विदित होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने सरफेसी एक्‍ट की धारा-१७ के अन्‍तर्गत प्रार्थना पत्र भी ऋण बसूली अधिकरण, लखनऊ में प्रेषित किया है। अपीलार्थीगण की ओर से प्रेषित अभिलेखों के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्रश्‍नगत ऋण की बसूली के सन्‍दर्भ में की गयी कार्यवाही के तथ्‍यों को छिपाते हुए प्रश्‍नगत परिवाद योजित किया है। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका सं0-९९५/२०१२, हरिनन्‍दन

 

 

-७-

प्रसाद बनाम स्‍टेट बैंक आफ इण्डिया में पारित निर्णय दिनांकित ३१-०५-२०१२, २०१३(१) सीपीसी १७६ (एनसी) में सरफेसी एक्‍ट की धारा-३४ पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया गया है कि सरफेसी एक्‍ट के अन्‍तर्गत कार्यवाही किए जाने के उपरान्‍त उपभोक्‍ता मंच में परिवाद पोषणीय नहीं होगा। ऐसी स्थिति में इस मामले में  राज्‍य आयोग द्वारा परिवाद निरस्‍त किया गया। राज्‍य आयोग द्वारा पारित आदेश की पुष्टि माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा की गयी।

पुनरीक्षण सं0-१६५३/२०१३ इण्डियाबुल्‍स हाउसिंग फाइनेंस बनाम हरदयाल सिंह में दिये गये निर्णय दिनांक २५-११-२०१३ में सिविल अपील सं0-१३५९/२०१३ यशवन्‍त घेसास बनाम बैंक आफ महाराष्‍ट्र के मामले में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिये गये निर्णय दिनांक ०१-०३-२०१३ पर विचार करते हुए माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि सरफेसी एक्‍ट की धारा-३४ के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता मंच का क्षेत्राधिकार सरफेसी एक्‍ट के अन्‍तर्गत कार्यवाही लम्बित रहने की स्थिति में प्रतिबन्धित किया गया है।

      उपरोक्‍त तथ्‍यों के आलोक में यह स्‍पष्‍ट है कि प्रश्‍नगत ऋण की अदायगी से सम्‍बन्धित विवाद सरफेसी एक्‍ट के प्राविधान के अन्‍तर्गत ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष चल रहा है।

      जहॉं तक प्रश्‍नगत मामले का प्रश्‍न है कि यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी बैंक ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्‍तर्गत प्रश्‍नगत खाते का विवरण प्राप्‍त कराया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह कथन है कि उपलब्‍ध कराया गया विवरण फर्जी है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह भी कथन है कि इस फर्जी विवरण के आधार पर अनधिकृत रूप से अपीलार्थी बैंक ने अपने पत्र दिनांकित १४-११-२००३ द्वारा अवैध धनराशि जमा करने की मांग की है। इस प्रकार यह स्‍पष्‍ट है कि वस्‍तुत: अपीलार्थीगण द्वारा ऋण की अदायगी में जिस धनराशि की अदागयी की मांग की जा रही है उसे प्रत्‍यर्थी/परिवादी स्‍वीकार नहीं कर रहा है, बल्कि उसे फर्जी बता रहा है। सरफेसी एक्‍ट के अन्‍तर्गत लम्बित कार्यवाही में प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपना पक्ष प्रस्‍तुत कर सकता है। पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों से यह भी विदित हो रहा है कि प्रत्‍यर्थी/

 

-८-

 

परिवादी ने सरफेसी एक्‍ट की धारा-१७ के अन्‍तर्गत प्रार्थना पत्र भी ऋण बसूली अधिकरण के समक्ष प्रस्‍तुत किया है। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से प्रश्‍नगत परिवाद उपभोक्‍ता मंच में पोषणीय नहीं था। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद में सरफेसी एक्‍ट के अन्‍तर्गत प्रश्‍नगत ऋण से सम्‍बन्धित कार्यवाही के तथ्‍य को छिपाते हुए प्रश्‍नगत परिवाद योजित किया था तथा विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्‍तुत प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों तथा बैंक द्वारा प्रस्‍तुत की गयी साक्ष्‍य में सरफेसी एक्‍ट के अन्‍तर्गत प्रश्‍नगत ऋण के सन्‍दर्भ में की गयी कार्यवाही पर विचार न करते हुए एवं प्रश्‍नगत निर्णय में इन तथ्‍यों का उल्‍लेख न करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया है। हमारे विचार से प्रश्‍नगत परिवाद पोषणीय नहोने के कारण प्रश्‍नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण है।

      यह तथ्‍य भी उल्‍लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों में परिवादी ने वाद कारण को निरन्‍तर बताते हुए दिनांक १३-१०-२००७ को वाद कारण उत्‍पन्‍न होना मानते हुए परिवाद योजितकिया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह कथन है कि अपीलार्थीगण ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते का विवरण उसे उपलब्‍ध नहीं कराया। अन्‍तत: सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्‍तर्गत दिनांक १३-१०-२००७ को खाते का विवरण अपीलार्थी बैंक द्वारा प्राप्‍त कराया गया। यह विवारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार फर्जी था।

      उल्‍लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों के अनुसार दिनांक १६-०८-१९८९ को प्रत्‍यर्थी/परिवादी के उद्योग का प्रांगण अपीलार्थी बैंक द्वारा सील कर दिया गया, जबकि लगभग ५०,९९,२५६/- रू० का माल मशीनरी सहित अपीलार्थी बैंक के पास बन्‍धक था। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह भी कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने एफ0डी0आर0 भी अपीलार्थी बैंक की अभिरक्षा में रखे थे। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि दिसम्‍बर, १९८७ में प्रत्‍यर्थी/परिवादी के व्‍यापार के लिए २५.०० लाख रू० की नगद ऋण सुविधा स्‍वीकृत की गयी थी। यह नितान्‍त अस्‍वाभाविक है कि दिनांक १६-०८-१९८९ को प्रत्‍यर्थी/परिवादी का व्‍यापारिक परिसर उपरोक्‍त बकाया ऋण की बसूली में अपीलार्थी बैंक द्वारा सील      कर दिया जाय, जबकि कथित रूप से लगभग ५१.०० लाख रू० मूल्‍य की मशीनरी तथा

 

 

-९-

 

निर्मित एवं अर्द्ध निर्मित माल अपीलार्थी बैंक के पास बन्‍धक हो, प्रत्‍यर्थी/परिवादी के एफ0डी0आर0 भी बैंक के पास सुरक्षित हों और प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपने प्रश्‍नगत खाते  से सम्‍बन्धित विवरण की भी बैंक से मांग न की हो। य‍ह तथ्‍य भी उल्‍लेखनीय है कि स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में यह नहीं कहा है कि दिनांक १३-१०-२००७ से पूर्व खातों का विवरण प्रत्‍यर्थी/परिवादी को प्राप्‍त नहीं कराया गया, बल्कि यह कहा गया है कि खातों का सही विवरण प्राप्‍त नहीं कराया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा किए गये पत्राचार के आधार पर परिसीमा की अवधि स्‍वत: विस्‍तारित नहीं मानी जा सकती। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह कथन तथा विद्वान जिला मंच का यह निष्‍कर्ष कि वाद कारण प्रश्‍नगत मामले में निरन्‍तर उत्‍पन्‍न होना माना जायेगा, स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं माना जा सकता, बल्कि उस तिथि पर वाद कारण उत्‍पन्‍न होना माना जायेगा, जब सर्वप्रथम प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा खाते के विवरण की मांग की गयी और उसे कथित रूप से सही विवरण प्रदान नहीं किया गया।

उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-२४(ए) के अनुसार परिवाद, वाद कारण उत्‍पन्‍न होने के ०२ वर्ष की अवधि के मध्‍य योजित किया जाना आवश्‍यक है, जबकि प्रश्‍नगत मामले में परिवाद वाद कारण उत्‍पन्‍न होने के बाद ०२ वर्ष की अवधि के अन्‍तर्गत योजित नहीं किया गया है। अत: अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है कि प्रश्‍नगत परिवाद कालबाधित होने के बाबजूद इस तथ्‍य पर ध्‍यान न देते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया है। कालबाधित होने के आधार पर भी परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

      उपरोक्‍त तथ्‍यों एवं विवेचना के आधार पर हमारे विचार से यह अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है तथा प्रश्‍नगत निर्णय विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण होने के कारण अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।       

आदेश

            प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच (द्वितीय), लखनऊ द्वारा

 

 

 

 

-१०-

 

परिवाद सं0-५८७/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७-०१-२०१५ अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

इस अपील के व्‍यय-भार के सम्‍बन्‍ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है। पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिल नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।             

 

                                               (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                 पीठासीन सदस्‍य

 

 

                                                  (महेश चन्‍द)

                                                     सदस्‍य

 

 

 

 

 

 

 

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट-५.

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
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